Friday, October 4, 2024
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Ganesh Chaturthi – गणेश चतुर्थी – गणपति उत्सव : भगवान गणेश की एक समृद्ध आराधना का पर्व, जानें इसके बारे में…

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) एक भारतीय उत्सव है, भगवान श्री गणेश के अवतरण दिवस के रूप में उनकी आराधना और स्तुति करने हेतु मनाया जाता है। गणपति एक सार्वजनिक गणेशोत्सव है, जो गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाने वाला एक महोत्सव है। ये उत्सव भारत के महाराष्ट्र राज्य और मुंबई नगर में विशेष रूप से मनाया जाता है। आजकल गणेशोत्सव भारत के अन्य भागों में भी हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा है।

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)

भगवान गणेश हिंदू धर्म के प्रथम आराध्य देवता है। किसी भी पूजा कार्य अथवा किसी भी शुभ कार्य का आरंभ करते समय सबसे पहले भगवान गणेश जी की आराधना की जाती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के रूप में जाना जाता है। वह सभी विघ्नों का नाश करते हैं, इसीलिए किसी भी शुभ कार्य या पूजा कार्य में आने वाले विघ्नों को रोकने के लिए सबसे पहले भगवान गणेश की स्तुति की जाती है।

गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव का ही पर्व है शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्री गणेश का अवतरण हुआ था। इसी कारण गणेश चतुर्थी उनके अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाती है। यूँ तो तो पूरे भारतवर्ष में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में यह पर्व विशेष उल्लास से मनाया जाता है।

गणपति

महाराष्ट्र में गणपति महोत्सव 10 दिनों तक चलने वाला एक सार्वजनिक महोत्सव है। ये महाराष्ट्र एवं गोवा आदि राज्यों में विशेष रूप से मनाया जाता है। 10 दिन तक भगवान श्री गणेश की प्रतिमा की स्थापना की जाती है और उस प्रतिमा का विसर्जन तालाब, झील, समुद्र आदि किसी भी जलाशय आदि में कर दिया जाता है।

ये महोत्सव भगवान श्री गणेश के प्रति आभार प्रकट करने का एक प्रसिद्ध महोत्सव है। यह महाराष्ट्र, गोवा एवं मुंबई का सार्वजनिक उत्सव है। सभी भक्तगण सार्वजनिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से इस उत्सव को मनाते हैं। वे भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को सार्वजनिक पंडालों में अथवा अपने घरों पर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा की स्थापना करते हैं। भक्त लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार प्रतिमा की स्थापना करते हैं। कोई डेढ़ दिन लिये के लिये प्रतिमा की स्थापना करता है, अर्थात डेढ़ दिन का गणपति बिठाता है, तो कोई तीन दिन, पाँच दिन या सात दिन तक प्रतिमा की स्थापना करते है।

दस दिन का महोत्सव

सभी बड़े सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल दस दिन तक गणेश प्रतिमा की स्थापना करते हैं। दस दिनों तक धूमधाम से गणेशात्सव का पर्व मनाया जाता है। कुछ प्रसिद्ध गणेशोत्सव मंडलों में लोग दूर-दूर से भगवान गणपति के दर्शन करने आते हैं। मुंबई का लाल बाग का राजा एक ऐसा ही प्रसिद्ध पंडाल गणेशोत्सव मंडल है, जहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं।

गणेश प्रतिमा की स्थापना के पहले दिन लोग गाजे-बाजे के साथ भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा की स्थापना करते हैं और अंतिम दिन यानी अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश प्रतिमा के विसर्जन के लिए भी पूरी धूमधान से गाजे-बाजे के साथ निकटतम जलाशय, झील, तालाब या समुद्र में प्रतिमा का विसर्जन करने को ले जाते हैं। लोग गणपति बाप्पा मोरया, पुरचा वर्षी लवकर या’ का नारा लगाते हैं। इसका अर्थ है, भगवान गणेश की जय हो, अगले वर्ष आप जल्दी आना। गणपति का उत्सव महाराज एवं मुंबई का सबसे बड़ा उत्सव है और यह उत्सव सार्वजनिक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।

गणपति उत्सव सार्वजनिक रूप से कैसे शुरू हुआ?

महाराष्ट्र में भगवान गणेश को की विशेष तौर पर पूजा करने की परंपरा रही है। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में किसी विशिष्ट देवी-देवता को विशेष रूप से पूजन करने की परंपरा रही है। महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां पर भगवान श्री गणेश को मराठी लोग बहुत अधिक श्रद्धा भाव से मानते हैं। गणेश की सार्वजनिक रूप से गणेश उत्सव की शुरुआत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी, उन्होने महाराष्ट्र के घर-घर में मनाये जाने वाले इस उत्सव को सार्वजनिक उत्सव का रूप दिया।

श्रीगणेश

भगवान श्री गणेश भगवान हिंदू धर्म में प्रथम आराध्य देव हैं। भगवान श्री गणेश की पूजा किए बिना कोई भी पूजा प्रारंभ नहीं मानी जाती। किसी भी धार्मिक पूजा का आरंभ भगवान गणेश की स्तुति से ही किया जाता है। इससे पूजाकार्य में विघ्न उत्पन्न न हों। भगवान श्री गणेश श्री शिव-पार्वती के पुत्र हैं। उनके बारे में अनेक कथायें प्रचलित हैं। श्रीगणेश को विघ्नों का हरण करने वाले के देव के रूप में माने जाते हैं, और ऋद्धि-सिद्धि के प्रदाता माने जाते हैं। गणेश द्वादशनाम मंत्र

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।

गणेश वंदना मंत्र

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।

गणेश मनोकामना पूर्ति मंत्र

गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌।

गणेश सर्वकामना पूर्ति स्तोत्र  (इस गणेश स्तोत्र का 108 बार शुद्ध सात्विक मन से पाठ से करने से अद्भुत फल प्राप्त होते हैं।)

ॐ नमो विघ्नराजाय, सर्वसौख्य प्रदायिने
दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परमात्मने।।
लंबोदरं महावीर्यं, नागयज्ञोपज्ञोभितम
अर्धचंद्र धरं देहं विघ्नव्यूह विनाशनम्।।
ॐ ह्रां, ह्रीं ह्रुं, ह्रें ह्रौं ह्रः हेरंबाय नमो नम:
सर्व सिद्धिं प्रदोसि त्वं सिद्धि बुद्धि प्रदो भवं।।
चिंतितार्थं प्रदस्तवं हीं, सततं मोदक प्रियं
सिंदूरारुण वस्त्रैश्च पूजितो वरदायक:।।
इदं गणपति स्तोत्रं य पठेद् भक्तिमान नर:
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मींर्मुंञति।।

भगवान श्री गणेश सभी के जीवन में सुख समृद्धि भरें और सभी का कल्याण करें यही प्रार्थना है।

Post topic: Ganesh Chaturthi – गणेश चतुर्थी


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Life Scan of Avni Lekhra – अवनि लेखरा – एक प्रेरणादायक पैरालिंपियन की कहानी

अवनि लेखरा (Avni Lekhra) का नाम आज न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में एक प्रेरणा स्रोत के रूप में पहचाना जाता है। वह एक ऐसी नारी हैं जिन्होंने अपने जीवन की कठिनाइयों को मात देते हुए न केवल खुद को साबित किया, बल्कि देश का नाम भी ऊंचा किया। एक पैरालिंपियन और भारतीय राइफल शूटर के रूप में, अवनि ने अपने संघर्ष, संकल्प और मेहनत से न केवल एक या दो, बल्कि कई स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। इस लेख में हम उनके जन्म से लेकर उनकी विशेष उपलब्धियों और पुरस्कारों तक, उनके जीवन के हर पहलू पर चर्चा करेंगे –

अवनि लेखरा (Avni Lekhra) की संघर्षमयी जीवनगाथा (Life Scan of Avni Lekhra)

अवनि लेखरा एक भारतीय पैरालंपियन और राइफल शूटर हैं, जिन्होंने पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनकर इतिहास रचा है। 8 नवंबर 2001 को जयपुर, राजस्थान में जन्मीं अवनि ने 11 साल की उम्र में एक कार दुर्घटना के बाद पैरालिसिस का सामना किया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और शूटिंग में अपना करियर बनाया। उनकी असाधारण प्रतिभा और दृढ़ संकल्प ने उन्हें टोक्यो 2020 और पेरिस 2024 पैरालंपिक में स्वर्ण पदक दिलाया, जिससे वे भारत की सबसे सफल पैरालंपिक एथलीट बन गईं। आइए इस प्रेरणादायक खिलाड़ी के जीवन और उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानें।

जन्म और परिवार

अवनि लेखरा का जन्म 8 नवंबर 2001 को जयपुर, राजस्थान में एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रवीण लेखरा और माता का नाम श्वेता लेखरा है। उनके पिता प्रवीण कुमार लेखरा और माता ने हमेशा उन्हें जीवन में आगे बढ़ने और कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित किया। अवनि के बचपन के शुरुआती साल सामान्य ही थे, लेकिन 2012 में एक कार दुर्घटना ने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। इस हादसे में उनकी रीढ़ की हड्डी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई, जिसके कारण उन्हें पैराप्लेजिया (निचले अंगों की विकलांगता) का सामना करना पड़ा। इस घटना ने उन्हें व्हीलचेयर पर रहने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन अवनि के संकल्प ने उन्हें इस कठिनाई से उबरने का साहस दिया।

शिक्षा

अवनि की प्रारंभिक शिक्षा जयपुर के केंद्रीय विद्यालय 3 में हुई, जहां उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने खेल जीवन की भी शुरुआत की। अपने स्कूल के दिनों में ही उन्होंने शूटिंग में रुचि दिखाई और धीरे-धीरे इस क्षेत्र में अपना करियर बनाने का निर्णय लिया। वर्तमान में, अवनि राजस्थान विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई कर रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी अवनि ने हमेशा अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित रखा और इसे अपनी प्राथमिकता बनाई।

जीवन यात्रा

अवनि की जीवन यात्रा संघर्षों और चुनौतियों से भरी रही है। 11 साल की उम्र में जब उन्हें एक कार दुर्घटना का सामना करना पड़ा, तो उनका जीवन एक कठिन मोड़ पर आ गया। इस दुर्घटना के बाद, अवनि ने कई मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का सामना किया।

दुर्घटना के बाद अवनि काफी निराश हो गई थीं और डिप्रेशन में चली गई थीं। उनके पिता ने उन्हें इस मुश्किल दौर से बाहर निकालने के लिए खेलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। शुरुआत में उन्होंने तीरंदाजी की ट्रेनिंग ली, लेकिन जल्द ही उन्हें शूटिंग में अपना असली जुनून मिल गया।

उनके पिता ने उन्हें तीरंदाजी में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया, लेकिन जल्द ही अवनि ने शूटिंग को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। इस दौरान, उन्होंने न केवल अपने शरीर की कमजोरियों पर विजय प्राप्त की, बल्कि मानसिक रूप से भी खुद को सशक्त बनाया। अवनि के संघर्षों की यह कहानी न केवल उनके आत्मविश्वास का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे उन्होंने हर मुश्किल का सामना करते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचने का हौसला रखा।

ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा से प्रेरित होकर अवनि ने 2015 में शूटिंग शुरू की और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

करियर

अवनि लेखरा के करियर की शुरुआत 2015 में हुई जब उन्होंने पूर्व ओलंपिक चैंपियन अभिनव बिंद्रा से प्रेरित होकर शूटिंग को अपना करियर बनाने का फैसला किया। अपने इस फैसले के बाद, अवनि ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिताब अपने नाम किए।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 2020 टोक्यो पैरालंपिक में आई, जहां उन्होंने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग SH1 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। इसी पैरालंपिक में उन्होंने 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन SH1 स्पर्धा में कांस्य पदक भी जीता, जिससे वे एक ही पैरालंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

अवनि का करियर इसी पर नहीं रुका। पेरिस 2024 पैरालिंपिक में उन्होंने एक बार फिर से स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। वह पैरालिंपिक में लगातार दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। यह अवनि की मेहनत और समर्पण का ही परिणाम था कि उन्होंने अपनी सफलता की इस कहानी को लगातार नए मुकामों पर पहुंचाया।

विशेष उपलब्धियां

1. पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला
2. एक ही पैरालंपिक में दो पदक (एक स्वर्ण और एक कांस्य) जीतने वाली पहली भारतीय महिला
3. लगातार दो पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट
4. पैरालंपिक में कुल तीन पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला

अवनि लेखरा की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उन्होंने न केवल एक, बल्कि तीन पैरालिंपिक पदक अपने नाम किए हैं, जिसमें दो स्वर्ण और एक कांस्य शामिल है। इसके अलावा, अवनि ने पेरिस 2024 पैरालिंपिक में भी स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया।

पुरस्कार और सम्मान

अवनि लेखरा को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। 2021 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान ‘खेल रत्न’ से नवाजा गया। इसके अलावा, 2022 में उन्हें ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया गया, जो भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। अवनि को जीक्यू इंडिया द्वारा 2021 में ‘यंग इंडियन ऑफ द ईयर’ और वोग मैगजीन द्वारा ‘वोग वुमन ऑफ द ईयर’ का खिताब भी मिला। अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति ने उन्हें 2021 में ‘बेस्ट फीमेल डेब्यू’ पुरस्कार से नवाजा।

1. 2021 – खेल रत्न पुरस्कार (भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान)
2. 2021 – यंग इंडियन ऑफ द ईयर (GQ इंडिया)
3. 2021 – वोग वुमन ऑफ द ईयर (वोग मैगज़ीन)
4. 2021 – बेस्ट फीमेल डेब्यू (पैरालंपिक अवॉर्ड्स)
5. 2022 – पद्म श्री
6. 2022 – खेलों में उत्कृष्टता के लिए FICCI FLO पुरस्कार
7. 2022 – शी-एज अवॉर्ड (हिंदुस्तान टाइम्स)
8. 2022 – पैरा एथलीट ऑफ द ईयर (महिला) (स्पोर्ट्स्टार)
9. 2022 – बीबीसी इंडिया चेंज मेकर ऑफ द ईयर 2021

छोटा सा लाइफ स्कैन

नाम: अवनि लेखरा
जन्म तिथि: 8 नवंबर 2001
जन्म स्थान: जयपुर, राजस्थान
माता-पिता: प्रवीण लेखरा (पिता), श्वेता लेखरा (माता)
भाई-बहन: जानकारी उपलब्ध नहीं
वैवाहिक स्थिति: अविवाहित
ऊंचाई: 5 फीट 3 इंच
धर्म: हिंदू
शहर/राज्य: जयपुर, राजस्थान
नेट वर्थ: जानकारी उपलब्ध नहीं

अंत में…

अवनि लेखरा की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कोई भी चुनौती इतनी बड़ी नहीं होती जिसे दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से पार न किया जा सके। 11 साल की उम्र में एक भयानक दुर्घटना के बाद पैरालाइज़ होने के बावजूद, अवनि ने न केवल अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाया बल्कि देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरव भी हासिल किया। उनकी उपलब्धियां युवाओं के लिए एक प्रेरणा हैं और साबित करती हैं कि शारीरिक सीमाएं सफलता की राह में बाधक नहीं बन सकतीं।

अवनि की सफलता केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारत में पैरा-स्पोर्ट्स के विकास और समावेशी समाज की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। उनकी कहानी दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति समाज के दृष्टिकोण को बदलने में मदद करती है और उन्हें अपनी क्षमताओं का एहसास कराती है। अवनि लेखरा न केवल एक चैंपियन शूटर हैं, बल्कि वे एक ऐसी रोल मॉडल हैं जो लाखों लोगों को प्रेरित कर रही हैं कि वे अपने सपनों को साकार करने के लिए कभी हार न मानें।

अवनि लेखरा की कहानी उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है जो अपने जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना कर रहे हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि अगर हमारे पास संकल्प और साहस है, तो हम किसी भी कठिनाई को मात दे सकते हैं और अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं। अवनि ने न केवल अपने देश का नाम रोशन किया है, बल्कि उन्होंने यह भी दिखाया है कि किसी भी समस्या के बावजूद, अगर हमारी इच्छाशक्ति मजबूत है, तो हम किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। उनके जीवन की यह कहानी एक संदेश है कि हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा अपने सपनों की ओर बढ़ते रहना चाहिए।


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Atal Bihari Vajpayee Life Scan – अटल बिहारी वाजपेई – काल के कपाल पर गीत नया गाता हूँ।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे। भारत के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके वाजपेयी ने अपनी राजनीति के साथ-साथ कविताओं और भाषणों के माध्यम से लोगों के दिलों में जगह बनाई। इस लेख में हम अटल बिहारी वाजपेई के जीवन का स्कैन (Atal Bihari Vajpayee Life Scan) करेंगे…

अटल बिहारी वाजपेई जी की जीवन गाथा (Atal Bihari Vajpayee Life Scan)

अटल बिहारी वाजपेयी भारत के एक प्रमुख राजनेता, कवि और पत्रकार थे, जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार सेवा की। वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और भारतीय राजनीति में अपने दूरदर्शी नेतृत्व और राजनयिक कौशल के लिए जाने जाते थे। आइए उनके जीवन, शिक्षा, संघर्ष, राजनीतिक करियर और उपलब्धियों पर विस्तृत चर्चा करते हैं…

श्री अटलबिहारी वाजपेई

जन्म और परिवार

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक शिक्षक और कवि थे, जबकि उनकी माता कृष्णा देवी एक गृहिणी थीं। वाजपेयी का जन्म एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जिसने उनके व्यक्तित्व और मूल्यों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनका परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बटेश्वर गाँव का निवासी था, लेकिन उनके पिता ग्वालियर में अध्यापक थे। वाजपेयी जी के चार भाई और तीन बहनें थीं।

वाजपेई जी युवावस्था में अपने परिवारजनों के साथ

शिक्षा-दीक्षा

अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर में प्राप्त की। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर से प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और फिर कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। वाजपेयी ने अपने छात्र जीवन के दौरान ही राजनीति और सामाजिक कार्यों में रुचि दिखाना शुरू कर दिया था।

जीवन की यात्रा और संघर्ष

अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन संघर्ष और संघर्षशीलता का उदाहरण है। वे राष्ट्रीय सेवा और राजनीतिक प्रतिबद्धता के गवाह रहे। उन्होंने अपने युवा वर्षों में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल होकर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, वे भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए, जिसने उनके राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को और मजबूत किया।
वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य बने। उनका जीवन हमेशा राष्ट्रहित के प्रति समर्पित रहा और उन्होंने अपनी कविताओं और भाषणों से लोगों को प्रेरित किया।

अपने प्रारंभिक करियर में, वाजपेयी ने एक पत्रकार के रूप में काम किया और हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़े कई प्रकाशनों के लिए लिखा। यह अनुभव उनके भाषण कौशल और लेखन क्षमता को निखारने में सहायक रहा, जो बाद में उनके राजनीतिक करियर में बहुत उपयोगी साबित हुआ।

वाजपेई जी अपनी युवावस्था में गहन मुद्रा में

राजनीतिक करियर

अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक करियर 1951 में भारतीय जनसंघ के गठन के साथ शुरू हुआ। वे पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और जल्द ही अपने प्रभावशाली भाषणों और नेतृत्व कौशल के लिए जाने जाने लगे। 1957 में, वाजपेयी पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और तब से लगातार कई बार सांसद रहे।

1977 में जनता पार्टी सरकार में, वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में सेवा की, जहां उन्होंने अपने कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया और भारत की विदेश नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1980 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गठन के बाद, वाजपेयी पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए।

अटल बिहारी वाजपेई संयुक्त राष्ट्र सभा में भाषण देते हुए

वाजपेयी ने तीन बार भारत के प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की। उनका पहला कार्यकाल 1996 में केवल 13 दिनों का था। 1998 में, वे फिर से प्रधानमंत्री बने, लेकिन यह सरकार भी केवल 13 महीने तक चली। अंत में, 1999 में, वे एक स्थिर गठबंधन सरकार के साथ प्रधानमंत्री बने और 2004 तक इस पद पर रहे।

नेता के रूप में वाजपेई जी की विशेष उपलब्धियां

प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी की कुछ प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं…

1. परमाणु शक्ति : 1998 में पोखरण-II परमाणु परीक्षणों का आदेश देकर भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया।

2. आर्थिक सुधार : उनके कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार किए गए, जिसमें निजीकरण और विदेशी निवेश को प्रोत्साहन शामिल था।

3. बुनियादी ढांचा विकास : स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना जैसी पहलों के माध्यम से राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क का विस्तार किया।

4. शांति पहल : पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने के लिए लाहौर बस यात्रा जैसी पहलें की।

5. शिक्षा : सर्व शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा पर जोर दिया।

6. दूरसंचार क्रांति : दूरसंचार क्षेत्र में व्यापक सुधार किए, जिससे मोबाइल फोन और इंटरनेट का प्रसार हुआ।

जनसंघ, जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के साथ सफर

अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफर विभिन्न संगठनों के साथ जुड़ा रहा।

1. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) : वाजपेयी ने युवावस्था में ही आरएसएस में शामिल होकर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। यहां उन्होंने राष्ट्रवाद और सामाजिक सेवा के मूल्य सीखे।

2. भारतीय जनसंघ : 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ के गठन में वाजपेयी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए और कई वर्षों तक इसका प्रतिनिधित्व किया।

3. जनता पार्टी : 1977 में जब कई विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई, तब वाजपेयी इसके प्रमुख नेताओं में शामिल हुए। इस पार्टी की सरकार में उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में सेवा की।

अटलबिहारी वाजपेई जी और लालकृष्ण आडवाणी जी

4. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) : 1980 में जनता पार्टी के विघटन के बाद, वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भाजपा की स्थापना की। वे पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष बने और लंबे समय तक इसका नेतृत्व किया।

वाजपेयी ने इन सभी संगठनों के साथ अपनी यात्रा में हिंदुत्व की विचारधारा और उदार लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच एक संतुलन बनाए रखा। उन्होंने भाजपा को एक मुख्यधारा की राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो अंततः 1998 में केंद्र में सत्ता में आई।

अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तिगत जीवन

अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तिगत जीवन सादगी और समर्पण से भरा था। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया, जिसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं। वाजपेयी जी ने अपना पूरा जीवन देश सेवा और राजनीति को समर्पित कर दिया था। उन्होंने कहा था कि वे ‘राजनीति से विवाहित’ हैं। वाजपेयी अपने परिवार, विशेषकर अपनी बहनों की देखभाल में बहुत सक्रिय रहे थे।

दत्तक पुत्री

वाजपेयी जी ने नमिता कौल भट्टाचार्य को अपनी दत्तक पुत्री के रूप में स्वीकार किया था। नमिता, वाजपेयी के लंबे समय के मित्र और सहयोगी राजकुमार कौल और उनकी पत्नी की बेटी थीं। वाजपेयी ने नमिता और उनके परिवार को अपने घर में रहने की अनुमति दी और उन्हें अपने परिवार का हिस्सा माना।

ब्राह्मण होने के बावजूद मांसाहारी

हालांकि वाजपेयी एक शुद्धतावाादी ब्राह्मण परिवार से थे, फिर भी वे मांसाहारी थे। उन्होंने कभी अपनी खाने की आदतों को छिपाया नहीं और खुले तौर पर स्वीकार किया कि वे मांस खाते हैं। यह उनकी व्यक्तिगत पसंद थी और उन्होंने इसे अपने धार्मिक विश्वासों से अलग रखा।

कवि के रूप में वाजपेयी

एक सफल और प्रसिद्ध राजनेता तथा भारत के प्रधानमंत्री होने के अलावा अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रतिभाशाली कवि और लेखक भी थे। उनकी कविता यात्रा बचपन से ही शुरू हो गई थी, जब उन्होंने अपने पिता से प्रेरणा ली, जो स्वयं एक कवि थे।

वाजपेयी की कुछ प्रमुख रचनाएँ

1. मेरी इक्यावन कविताएँ
2. नई दिशा
3. अमर आग है
4. कैदी कविराय की कुंडलियाँ
5. अग्निपरीक्षा

उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम, मानवीय मूल्य, प्रकृति प्रेम और जीवन दर्शन के विषय प्रमुख थे।

प्रसिद्ध कविताओं की कुछ पंक्तियाँ:

‘कदम मिलाकर चलना होगा’ से:

बाधाएँ आती हैं आएँ,
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

‘गीत नया गाता हूँ’ से

हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा।
काल के कपाल पर
लिखता-मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।

वाजपेयी की कविताएँ उनके राजनीतिक व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग थीं। उनकी कविताओं में उनके विचारों, आदर्शों और देश के प्रति प्रेम की झलक मिलती है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से न केवल साहित्य में योगदान दिया, बल्कि जनता के साथ एक गहरा भावनात्मक जुड़ाव भी स्थापित किया।

प्रसिद्ध दिवंगत गजल गायक जगजीत सिंह जी ने उनकी कविताओं को अपन स्वर देकर ‘संवेदना’ नाम से एक अलबम निकाली थी।

पुरस्कार और सम्मान

अटल बिहारी वाजपेयी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया:

1. भारत रत्न (2015): भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
2. पद्म विभूषण (1992)
3. लोकमान्य तिलक पुरस्कार (1994)
4. भारत के सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार (1994)
5. मोरारजी देसाई पुरस्कार (2009)

वाजपेई जी नरेंद्र मोदी के साथ विचार विमर्श करते हुए

इसके अलावा, उन्हें कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधि से भी सम्मानित किया गया।

संक्षिप्त जीवन परिचय

नामअटल बिहारी वाजपेयी
जन्म तिथि25 दिसंबर, 1924
निधन16 अगस्त 2018
जन्म स्थानग्वालियर, मध्य प्रदेश
माता का नामकृष्णा देवी
पिता का नामकृष्ण बिहारी वाजपेयी
भाईबहनप्रेम, एक बड़ा भाई और तीन बहनें
वैवाहिक स्थितिअविवाहित
धर्महिंदू
शहर/राज्यलखनऊ (उत्तर प्रदेश), ग्वालियर (मध्य प्रदेश) दिल्ली (अंतिम निवास स्थान)
कदलगभग 6 फीट

अंत में…

अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन और करियर भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। एक कुशल राजनेता, दूरदर्शी नेता और प्रतिभाशाली वक्ता के रूप में, उन्होंने न केवल भारतीय जनता पार्टी को एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया, बल्कि देश के विकास और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी कविताएं और भाषण उनकी सांस्कृतिक संवेदनशीलता और गहरी मानवीय समझ को दर्शाते हैं। वाजपेयी की विरासत एक ऐसे नेता की है जो अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहते हुए भी सर्वसम्मति बनाने में सक्षम था। उनका जीवन युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है और भारतीय लोकतंत्र में उनका योगदना कभी नहीं भुलाया जा सकता।

16 अगस्त 2018 को उन्होंंने अपने शरीर के रूप में हम सबके बीच से हमेशा के लिए विदा ले ली, लेकिन स्मृतियों के रूप में वह हमेशा अमर हैं।


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Some information souce:

https://en.wikipedia.org/wiki/Atal_Bihari_Vajpayee

Independence day Vs Republic day – स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस – जानिए दोनों में क्या है अंतर

भारत में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस दो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व हैं, जिनका जश्न पूरे देश में मनाया जाता है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि इन दोनों में क्या अंतर है? (Independence day Vs Republic day) आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में अंतर )Independence day Vs Republic day)

दोनो महत्वपूर्ण दिनों में क्या अंतर है, जानें…

झंडा फहराने की प्रक्रिया का अंतर

15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से झंडा फहराते हैं। इस दिन, ध्वज को नीचे से खींचकर फहराया जाता है, जो 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना का प्रतीक है। इसे संविधान में ध्वजारोहण कहा जाता है।

वहीं, गणतंत्र दिवस पर, 26 जनवरी को, राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं। इस दिन, झंडा पहले से ही सबसे ऊपर बंधा होता है और उसे खोलकर फहराया जाता है। इसे झंडा फहराना कहा जाता है।

कौन करता है ध्वजारोहण और क्यों

स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं क्योंकि इस दिन भारत को आज़ादी मिली थी, लेकिन संविधान लागू नहीं हुआ था।

गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं, क्योंकि इस दिन संविधान लागू होने की स्मृति के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होते हैं, इसलिए वे राष्ट्र को संबोधित करते हुए झंडा फहराते हैं।

जश्न का आयोजन

स्वतंत्रता दिवस का मुख्य समारोह दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले में आयोजित किया जाता है, जहां प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं।

गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर भव्य परेड का आयोजन होता है, जिसमें भारतीय सशस्त्र बलों की शान और सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है।

इन दोनों पर्वों का अपना अलग महत्व है, जो हमारे देश की समृद्धि, स्वतंत्रता और संविधान की महत्ता को दर्शाते हैं।


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History of Independence day 15 August – भारत का स्वतंत्रता दिवस – 15 अगस्त को ही क्यों मनाते हैं? स्वतंत्रता दिवस जानें पूरी कहानी।

15 अगस्त को ही भारत की स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाते हैं, आइए स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त के दिन ही मनाने के पीछे की कहानी (History of Independence day )को जाने..

भारत का स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाने का कारण (History of Independence day )

भारत 15 अगस्त, 2024 को अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। इस आजादी के पीछे न जाने कितने वीर सपूतों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। 15 अगस्त, 1947 को पहली बार भारत ने स्वतंत्रता का स्वाद चखा, जब वर्षों के संघर्ष के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने हमारे देश को आजाद करने का निर्णय लिया।

यह दिन हमारे देश के लिए गौरव और गर्व का प्रतीक है, जो हमें उन अनगिनत वीरों की याद दिलाता है जिन्होंने हमारी आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

भारत की स्वतंत्रता का निर्णय

ब्रिटिश संसद ने 30 जून, 1948 तक भारत को सत्ता सौंपने का आदेश दिया था, लेकिन भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लुइस माउंटबेटन ने 15 अगस्त, 1947 की तारीख चुनी।

माउंटबेटन के इस निर्णय के पीछे दो प्रमुख कारण थे। पहला, वे किसी भी तरह के रक्तपात या दंगों से बचना चाहते थे। दूसरा, 15 अगस्त द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी वर्षगांठ थी, जो एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संदर्भ था।

Indian Independence Bill:

इस निर्णय के आधार पर, 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में Indian Independence Bill पेश किया गया। यह विधेयक न केवल भारत की स्वतंत्रता का प्रावधान करता था, बल्कि देश के विभाजन की भी रूपरेखा प्रस्तुत करता था। इसमें भारत और पाकिस्तान, दोनों के लिए 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में निर्धारित किया गया था।

पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस

हालांकि, बाद में पाकिस्तान ने अपना स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को मनाना शुरू कर दिया। इसके पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह इसलिए किया गया क्योंकि कराची में सत्ता हस्तांतरण समारोह 14 अगस्त को हुआ था। दूसरों का कहना है कि 14 अगस्त, 1947 को रमजान की 27वीं तारीख थी, जो इस्लाम में एक पवित्र दिन माना जाता है।

आज, 78 साल बाद, भारत अपनी स्वतंत्रता का जश्न मनाते हुए न केवल अपने अतीत को याद करता है, बल्कि एक उज्ज्वल भविष्य की ओर भी देखता है। हमारा देश विकास और प्रगति के नए आयामों को छू रहा है, लेकिन साथ ही अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत को भी संजोए हुए है।

इस स्वतंत्रता दिवस पर, हम न केवल अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, बल्कि उन सभी नागरिकों को भी सम्मानित करते हैं जो आज देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल एक उपलब्धि नहीं है, बल्कि एक निरंतर प्रक्रिया है जिसे हर पीढ़ी को आगे बढ़ाना है।

आइए, इस 78वें स्वतंत्रता दिवस पर हम सब मिलकर एक नए भारत के निर्माण का संकल्प लें – एक ऐसा भारत जो न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध हो, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और भाईचारे के मूल्यों पर आधारित हो। जय हिन्द!


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Green chilies – हरी मिर्च का अधिक सेवन – फायदेमंद या नुकसानदायक? जानें सच>

हरी मिर्च (Green chilies) भारतीय भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका तीखा स्वाद व्यंजनों को विशेष बना देता है। परंतु, क्या आप जानते हैं कि इसका अधिक सेवन शरीर को नुकसान भी पहुँचा सकता है? यहां जानें कुछ प्रमुख नुकसान और सावधानियां:

1. पेट में जलन और एसिडिटी

हरी मिर्च में मौजूद कैप्साइसिन तत्व पेट में एसिड उत्पादन को बढ़ा सकता है, जिससे जलन और एसिडिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

2. गैस्ट्रिक की समस्या

अधिक मिर्च के सेवन से पेट में अल्सर और गैस्ट्राइटिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं, क्योंकि कैप्साइसिन पेट की परत को नुकसान पहुंचाता है।

3. दस्त और पेट दर्द

हरी मिर्च पाचन तंत्र को उत्तेजित कर सकती है, जिससे दस्त और पेट दर्द की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

4. मुंह में जलन

हरी मिर्च के तीखेपन से मुंह में जलन और सूजन हो सकती है, जोकि संवेदनशील त्वचा को उत्तेजित करता है।

5. त्वचा में जलन

अधिक मिर्च के सेवन से त्वचा में जलन, खुजली और लालिमा जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।

6. सांस लेने में कठिनाई

कुछ व्यक्तियों को अधिक मिर्च खाने से सांस लेने में कठिनाई हो सकती है, क्योंकि कैप्साइसिन सांस की नली को उत्तेजित करता है।

7. नींद की समस्या

हरी मिर्च का अधिक सेवन मस्तिष्क को उत्तेजित करता है, जिससे नींद आने में समस्या हो सकती है।

हरी मिर्च का सेवन कैसे करें?

  • मात्रा का ध्यान रखें : हरी मिर्च का सेवन सीमित मात्रा में करें।
  • पकाने का तरीका : मिर्च को कम तीखा बनाने के लिए उसे ठीक से पकाएं।
  • दूध का सेवन करें : मिर्च खाने के बाद दूध पीने से पेट की जलन में राहत मिल सकती है।
  • एलर्जी की जांच : अगर आपको मिर्च से एलर्जी है, तो इसका सेवन न करें।

हरी मिर्च के सेवन में संतुलन बनाकर रखें, ताकि इसके स्वाद और पौष्टिक गुणों का लाभ उठाया जा सके। यदि किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या हो, तो मिर्च का सेवन करने से पहले चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।

Side effects of excessive consumption of Green chilies


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गोल-गोल छोटी सी काली मिर्च अद्भुत गुणों से भरी है, जिसके फायदे ही फायदे हैं।

रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) – भाई और बहन के प्रेम का अनोखा बंधन। जानें क्यों और कैसे मनातें हैं?

रक्षाबंधन त्योहार की पूरी जानकारी (Raksha Bandhan Full Information)

रक्षाबंधन (Raksha bandhan) का त्योहार है, जो कि भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है। बहनें अपने भाई को राखी बांध कर भाई के प्रति अपने प्रेम एवं स्नेह को प्रकट करती हैं। भाई भी बहनों के हाथ से राखी बंधवा कर भाई-बहन के प्रेम की मजबूत डोर को और अधिक मजबूत करते हैं।

ऱक्षाबंधन: भाई-बहन के पवित्र बंधन का पर्व

रक्षाबंधन हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भाई-बहन के पवित्र बंधन का पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहनों को जीवनभर की रक्षा का वचन देते हैं।

रक्षाबंधन मनाने का कारण

रक्षाबंधन मनाने का कारण भाई-बहन के बीच के प्रेम और रक्षा का बंधन है। बहनें अपने भाइयों को राखी बांधकर उन्हें यह बताती हैं कि वे उन्हें हमेशा प्यार करती हैं और उनकी रक्षा करेंगी। भाई भी अपनी बहनों को राखी बांधकर उन्हें यह आश्वासन देते हैं कि वे हमेशा उनकी रक्षा करेंगे और उन्हें कभी दुख नहीं होने देंगे।

रक्षाबंधन मनाने की विधि

रक्षाबंधन के दिन, बहनें सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और नए कपड़े पहनती हैं। फिर वे अपने भाइयों के घर जाती हैं और उन्हें राखी बांधती हैं। राखी बांधते समय, बहनें अपने भाइयों को मिठाई और उपहार भी देती हैं। भाई अपनी बहनों को राखी बांधने के बदले उन्हें कुछ पैसे या उपहार देते हैं।

रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों के कल्याण के लिए व्रत भी रखती हैं। वे भगवान से प्रार्थना करती हैं कि उनके भाई हमेशा स्वस्थ और सुरक्षित रहें।

रक्षाबंधन मनाने की मान्यता और कहानी

रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे अनेक तरह की पौराणिक एवं धार्मिक मान्यताएं हैं। इसके पीछे अनेक कहानियां हैं। कहीं पर द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कहानी है, तो कहीं पर लक्ष्मी और राजा बालि की कहानी है। कहीं पर इंद्र और उनकी पत्नी शचति की कहानी है तो कहीं पर राजा बलि की कहानी है और वामन अवतार की कहानी है।

रक्षाबंधन त्यौहार मनाने के पीछे अनेक तरह की कहानियां प्रचलित हैं, उनमें से कुछ कहानियां इस प्रकार हैं..

यम और यमुना की कहानी

यम को मृत्यु का देवता कहा गया है और यमुना उनकी बहन थी। एक बार लगभग 12 साल बाद वह अपनी बहन यमुना के घर उनसे मिलने गए। अपने भाई के आने की खुशी के कारण यमुना बेहद उत्साहित थीं।  उन्होंने अपने भाई यम के स्वागत के लिए तरह-तरह के पकवान बनाए।

जब यम यमुना के घर पहुंचे तो यमुना ने उनका स्वागत भव्य रूप से किया और उनके हाथ पर एक धागा बांधा। यम ने अपनी बहन यमुना से प्रसन्न होकर कुछ उपहार मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने उन्हें हमेशा मिलते रहने का वादा लिया। यम ने यमुना को आशीर्वाद दिया और किसी भी संकट की घड़ी में उसकी रक्षा करने का वचन दिया, तभी से रक्षाबंधन मनाने की परंपरा चल पड़ी।

कृष्ण और द्रौपदी की कहानी

रक्षाबंधन की यह कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की उंगली किसी कारणवश कट गई तो उनके पास ही खड़ी द्रौपदी ने उन्होंने तुरंत अपनी गाड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर उनकी उंगली बांधी ताकि खून बहने से रुक सके। श्रीकृष्ण द्रौपदी के स्नेह से बेहद अभिभूत हुए और उन्होंने द्रौपदी का हर संकट की घड़ी की में रक्षा का वचन दिया। बाद में उन्होंने यह वचन निभाया भी। रक्षाबंधन का त्योहार मनाने की परंपरा चल पड़ी। कृष्ण के हाथ पर बांधने वाली साड़ी का टुकड़ा राखी का प्रतीक बन गई।

देवी लक्ष्मी और राजा बाली की कहानी

इसके अनुसार राजा बाली ने भगवान विष्णु की भक्ति करके उनसे अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की। भगवान विष्णु  बाली की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके महल में चौकीदार का कार्य करने लगे। बैकुंठ धाम में देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अनुपस्थित पाया तो गए परेशान हो गए। वह राजा बाली के यहाँ से भगवान विष्णु को वापस लाना चाहती थी।

इसीलिए उन्होंने बाली के सामने रूप बदलकर बेघर महिला के रूप में पहुंची और बाली से आश्रय मांगा। बाली दयालु राजा था इसलिए बाली ने लक्ष्मी को आश्रय दिया। देवी लक्ष्मी ने एक बार राजा बाली की कलाई पर एक धागा बांधा। राजा बाली ने प्रसन्न होकर उपहार मांगने के कहा।

देवी लक्ष्मी ने राजा बाली से चौकीदार के रूप में कार्य करने वाले भगवान विष्णु के मांग लिया और अपने असली रूप में आ गईं। राजा बाली वचन का पक्का था इसलिए उसने देवी लक्ष्मी को उनके द्वारा मांगा उपहार दिया और भगवान विष्णु को स्वतंत्र कर दिया। तभी बहन द्वारा भाई की कलाई पर राखी मांगे जाने के परंपरा चल पड़ी।

इसलिए किसी एक स्पष्ट मान्यता को रक्षाबंधन मनाने का आधार नहीं दे सकते।  कालांतर में अनेक तरह की कहानियों से विकसित हुआ यह पर्व आखिर में भाई-बहन के परम स्नेह और पवित्र बंधन का प्रतीक पर्व बन गया।

ऐसा पर्व भारत के अलावा किसी अन्य देश में नहीं मनाया जाता। भाई-बहन के पवित्र संबंध को जितनी अधिक पवित्रता भारत में दी जाती है, वह विश्व में अन्य कहीं  नही दी जाती।

रक्षाबंधन के दिन त्योहार मनाने का तरीका

रक्षाबंधन के दिन, बहनें और भाई सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। फिर वे मंदिर जाते हैं या घर में ही भगवान की पूजा करते हैं। बहनें और भाई तब तक भोजन नही करते जब तक बहन भाई को राखी नही बांध देती। राखी बांधने के एवज में भाई बहन को कोई उपहार भी देता है। यदि बहन विवाहित है और अपनी ससुराल में है तो वह अपने भाई के घर राखी बांधने के लिए आती है।

राखी की बदलती डिजायनें

समय के साथ राखी की डिजायनों में भी बदलाव आया है। पहले बड़ी-बड़ी राखियां होती थीं अब राखियों का आकार छोटा होता जा रहा है। अब बाजार में एक से एक स्टाइलिश राखियां भी आ गई है जो कलाई पर बेहद आकर्षक लगती हैं।

रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन की पवित्र बंधन का प्रतीक है, जो सदियों के भाई बहन के संबंध को एक मजबूत बनाता जा रहा है।


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Aman Sehrawat Life Scan – अमन सहरावत: भारतीय कुश्ती का उभरता सितारा

अमन सहरावत (Aman Sehrawat) भारतीय कुश्ती जगत का एक चमकता सितारा है। हरियाणा के एक छोटे से गाँव में जन्मे अमन ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन हार नहीं मानी। बचपन में माता-पिता को खोने के बावजूद उन्होंने अपने सपनों को जीवंत रखा और कड़ी मेहनत से कुश्ती के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। 2024 पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर अमन ने न सिर्फ इतिहास रचा, बल्कि युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल भी कायम की। आइए जानते हैं इस प्रतिभाशाली पहलवान की जीवन कहानी।

अमन सहरावत – संघर्ष से सफलता तक की प्रेरक गाथा (Aman Sehrawat  Life Scan)

अमन सहरावत का नाम आज भारतीय कुश्ती के क्षितिज पर एक चमकते हुए सितारे के रूप में उभरा है। अपनी असाधारण कुश्ती प्रतिभा और अद्वितीय संघर्ष के माध्यम से, अमन ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अपने देश का नाम रोशन किया है। अमन के जीवन की कहानी प्रेरणादायक है और इसे हम निम्नलिखित लेख में विस्तार से समझेंगे।

जन्म और परिवार

अमन सहरावत का जन्म 16 जुलाई 2003 को हरियाणा के झज्जर जिले के बिरोहर गांव में हुआ। उनके पिता सोमवीर सहरावत एक गरीब किसान थे, जबकि माँ कमलेश सहरावत गृहिणी थीं। बचपन से ही अमन को कुश्ती में रुचि थी और वे अक्सर गाँव के अखाड़े में मिट्टी की कुश्ती लड़ा करते थे। जब वह मात्र 11 वर्ष के थे, तब उनके जीवन में एक बड़ा झटका आया तब उनके पिता का निधन हो गया और उसके एक साल बाद ही उन्होंने अपनी मां को भी खो दिया। इस दुखद घटना के बाद अमन के दादा मायाराम सहरावत ने उनकी जिम्मेदारी संभाली और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

शिक्षा

अमन की प्रारंभिक शिक्षा बिरोहर गांव में ही हुई। अमन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के सरकारी स्कूल से प्राप्त की। माता-पिता के निधन के बाद उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती पर भी ध्यान केंद्रित किया। 10 साल की उम्र में वे दिल्ली के प्रसिद्ध छत्रसाल स्टेडियम में प्रशिक्षण लेने लगे। यहाँ उन्होंने कुश्ती की बारीकियाँ सीखीं और अपने कौशल को निखारा। स्कूली शिक्षा के साथ-साथ अमन ने खेल में भी उत्कृष्टता हासिल की और कई युवा प्रतियोगिताओं में पदक जीते।

जीवन यात्रा

अमन का जीवन संघर्षों से भरा रहा। माता-पिता के निधन के बाद उन्होंने गहरे अवसाद का सामना किया, लेकिन दादा के समर्थन और कुश्ती के प्रति जुनून ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। छत्रसाल स्टेडियम में कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारा। आर्थिक तंगी के बावजूद अमन ने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य पर डटे रहे। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी और वे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने लगे।

करियर

अमन सहरावत का करियर अत्यधिक सफल और प्रेरणादायक रहा है।
अमन सहरावत ने 2021 में अपना पहला राष्ट्रीय चैम्पियनशिप खिताब जीतकर कुश्ती जगत में धमाकेदार प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2022 में उन्होंने अंडर-23 एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और फिर अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक हासिल किया। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वे पहले भारतीय पहलवान बने।

2023 में अमन ने एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और एशियाई खेलों में कांस्य पदक हासिल किया। जनवरी 2024 में उन्होंने ज़ाग्रेब ओपन कुश्ती टूर्नामेंट में पुरुषों की 57 किग्रा स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। इसी वर्ष उन्होंने 2024 पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया और भारत के एकमात्र पुरुष पहलवान बने जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की।

विशेष उपलब्धि

अमन सहरावत की सबसे बड़ी उपलब्धि 2024 पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतना रही। 57 किलोग्राम भार वर्ग में उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया। इस उपलब्धि के साथ वे व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय बन गए। मात्र 21 वर्ष की आयु में यह पदक जीतना अमन की असाधारण प्रतिभा और मेहनत का परिणाम है।

पुरस्कार और सम्मान

– 2022 अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
– 2023 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
– 2023 एशियाई खेलों में कांस्य पदक
– 2024 ज़ाग्रेब ओपन कुश्ती टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक
– 2024 पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक

अमन सहरावत का छोटा सा लाइफ स्कैन

नाम: अमन सहरावत
जन्म तिथि: 16 जुलाई 2003
जन्म स्थान: बिरोहर गाँव, झज्जर, हरियाणा
माता-पिता: स्व. सोमवीर सहरावत (पिता), स्व. कमलेश सहरावत (माता)
भाई-बहन: जानकारी उपलब्ध नहीं
वैवाहिक स्थिति: अविवाहित
ऊंचाई: 5 फीट 8 इंच
धर्म: हिंदू
शहर/राज्य: हरियाणा
कुल संपत्ति: अनुमानित ₹5 करोड़

अंत में…

अमन सहरावत की जीवन गाथा संघर्ष, दृढ़ संकल्प और सफलता का एक अनूठा उदाहरण है। एक साधारण परिवार में जन्मे अमन ने अपनी मेहनत और लगन से न सिर्फ देश, बल्कि दुनिया में अपना नाम रोशन किया है। बचपन में माता-पिता को खोने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपने सपनों को साकार करने के लिए दिन-रात एक कर दिया।

अमन की सफलता सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य को पाने की ठान लेता है। उनका ओलंपिक पदक भारतीय खेल जगत के लिए एक नया अध्याय है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। अमन सहरावत की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है, बस उसे पाने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत की जरूरत होती है।


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Some information courtesy

https://en.wikipedia.org/wiki/Aman_Sehrawat

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नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) भारत के सबसे सफल एथलीटों में से एक हैं। वह पुरुषों की भाला फेंक स्पर्धा में ओलंपिक और विश्व चैंपियन हैं। टोक्यो 2020 में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने एथलेटिक्स में भारत का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। 2023 में विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतकर उन्होंने एक और इतिहास रच दिया। अपनी असाधारण प्रतिभा और कड़ी मेहनत से नीरज ने एक छोटे से गांव से निकलकर दुनिया के शीर्ष एथलीट बनने तक का सफर तय किया है। वह न केवल अपने खेल में उत्कृष्ट हैं, बल्कि अपने विनम्र स्वभाव के लिए भी जाने जाते हैं। आइए इस चैंपियन एथलीट के जीवन (Neeraj Chopra Life Scan) और करियर पर एक नज़र डालें।

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जन्म और परिवार

नीरज चोपड़ा का जन्म 24 दिसंबर 1997 को हरियाणा के पानीपत जिले के खंडरा गांव में हुआ था। उनके पिता सतीश कुमार किसान हैं और माता सरोज देवी गृहिणी हैं। नीरज का परिवार मूलतः कृषि से जुड़ा है। उनकी दो बहनें हैं और वह अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं।

शिक्षा

नीरज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पानीपत में ही पूरी की। नीरज चोपड़ा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बीवीएन पब्लिक स्कूल से प्राप्त की। उन्होंने चंडीगढ़ के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 2021 तक वह पंजाब के जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से कला स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं।

जीवन यात्रा

नीरज चोपड़ा का जीवन संघर्ष और मेहनत का अद्वितीय उदाहरण है। बचपन में मोटापे के कारण चिढ़ाए जाने के बाद नीरज के पिता ने उन्हें व्यायाम के लिए जिम में भेजा। नीरज के पिता ने उन्हें मडलाुडा के एक व्यायामशाला में भर्ती कराया। 11 साल की उम्र में पानीपत स्टेडियम में भाला फेंक खिलाड़ियों को देखकर उन्हें इस खेल का शौक लगा। बिना किसी प्रशिक्षण के ही वह 40 मीटर तक भाला फेंक सकते थे। इससे प्रभावित होकर जयवीर चौधरी ने उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू किया।

करियर

नीरज चोपड़ा का करियर प्रेरणादायक है। 2010 में पानीपत स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया सेंटर में, उन्होंने अपने पहले कोच जयवीर चौधरी के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण शुरू किया। नीरज ने 2012 में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में 68.40 मीटर का थ्रो करके पहली बार अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। 2014 में उन्होंने बैंकॉक में युवा ओलंपिक क्वालीफिकेशन में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता। 2016 में पोलैंड में आयोजित IAAF विश्व अंडर-20 चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने विश्व जूनियर रिकॉर्ड बनाया।

2018 में नीरज ने राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते। 2021 में टोक्यो ओलंपिक में 87.58 मीटर के थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। 2022 में विश्व चैंपियनशिप में रजत और डायमंड लीग फाइनल में स्वर्ण जीता। 2023 में बुडापेस्ट में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में 88.17 मीटर के थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने एक और उपलब्धि हासिल की।

विशेष उपलब्धि

नीरज चोपड़ा की सबसे विशेष उपलब्धि 2020 टोक्यो ओलंपिक में आई, जब उन्होंने 87.58 मीटर के थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता। यह भारत के लिए ट्रैक और फील्ड में पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक था। इसके अलावा, उन्होंने 2023 में बुडापेस्ट में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीता।
नीरज चोपड़ा एथलेटिक्स में भारत के पहले ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता हैं। वह विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट भी बन गए हैं। उन्होंने ओलंपिक, विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और डायमंड लीग – सभी प्रमुख प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीता है।

पुरस्कार और सम्मान

नीरज चोपड़ा को कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  • अर्जुन पुरस्कार (2018)
  • विशिष्ट सेवा पदक (2020)
  • मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार (2021)
  • पद्म श्री (2022)

नीरज चोपड़ा का परिचय संक्षेप में…

नाम नीरज चोपड़ा
जन्मतिथि 24 दिसंबर 1997
जन्मस्थान खंडरा गांव, पानीपत, हरियाणा
माता-पिता सतीश कुमार और सरोज देवी
भाई-बहन दो बहनें
वैवाहिक स्थिति अविवाहित
ऊंचाई 5 फीट 11 इंच (1.80 मीटर)
धर्म हिंदू
शहर/राज्य पानीपत, हरियाणा
नेटवर्थ लगभग 35 करोड़ रुपये

अंत में…

नीरज चोपड़ा ने अपनी असाधारण प्रतिभा और समर्पण के बल पर भारतीय एथलेटिक्स में एक नया अध्याय लिखा है। एक छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने दुनिया के शीर्ष एथलीटों में अपना स्थान बनाया है। ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने भारतीय खेल इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज करा लिया है। अपने विनम्र स्वभाव और मेहनती रवैये के कारण वह युवाओं के लिए एक आदर्श बन गए हैं। नीरज की सफलता ने भारत में एथलेटिक्स के प्रति रुचि बढ़ाई है और आने वाले समय में वह और भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे, ऐसी उम्मीद है। नीरज चोपड़ा न केवल एक महान एथलीट हैं, बल्कि एक बेहतर इंसान भी हैं जो अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं।


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Some information courtesy

https://en.wikipedia.org/wiki/Neeraj_Chopra

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विनेश फोगट (Vinesh Phogat), एक भारतीय पेशेवर पहलवान, ने कुश्ती के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन किया है। राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनने का गौरव हासिल करने वाली विनेश ने अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बल पर कई उपलब्धियां हासिल की हैं। इस लेख में, हम विनेश फोगट के जीवन, संघर्ष, करियर और उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

विनेश फोगाट की जीवन गाथा (Vinesh Phogat Life Scan)

विनेश फोगाट भारत की सबसे प्रसिद्ध महिला पहलवानों में से एक हैं। वह दो बार की ओलंपियन हैं और राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई खेलों तथा विश्व चैंपियनशिप में कई पदक जीत चुकी हैं। आइए उनके जीवन के सफर को जानते हैं…

जन्म और परिवार

विनेश फोगाट का जन्म 25 अगस्त 1994 को हरियाणा के भिवानी जिले के बलाली गांव में हुआ था। वह एक प्रसिद्ध पहलवान परिवार से ताल्लुक रखती हैं।उनके पिता राजपाल फोगट और चाचा महावीर फोगट, जिन्होंने उन्हें पहलवानी के क्षेत्र में आगे बढ़ाया, दोनों ही पहलवान थे। उनके परिवार में कुश्ती का एक समृद्ध इतिहास है, और उनके चचेरे बहनें गीता और बबीता फोगट भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की पहलवान हैं जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता है। उनके पिता राजपाल फोगाट भी एक पहलवान थे। दुर्भाग्य से, विनेश ने महज 9 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया। इसके बाद उनके चाचा महावीर सिंह फोगाट ने उनकी देखभाल की और उन्हें कुश्ती की ट्रेनिंग दी।

महावीर सिंह फोगाट प्रसिद्ध पहलवान गीता फोगाट और बबीता कुमारी के पिता हैं, जो विनेश की चचेरी बहनें हैं। इस तरह विनेश को एक ऐसे परिवार में पलने-बढ़ने का मौका मिला जहां कुश्ती का माहौल था। हालांकि, उस समय के ग्रामीण समाज में लड़कियों के कुश्ती खेलने को लेकर काफी विरोध था। विनेश और उनके परिवार को इस विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने सपनों की ओर बढ़ते रहे।

शिक्षा

विनेश फोगाट ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के.सी.एम सीनियर सेकेंडरी स्कूल झोझू कलां, हरियाणा से पूरी की। इसके बाद उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एम.डी.यू), रोहतक, हरियाणा से स्नातक की डिग्री हासिल की। हालांकि, कुश्ती में उनका फोकस लगातार बना रहा और उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ कड़ी मेहनत से प्रशिक्षण भी जारी रखा।

जीवन यात्रा

विनेश फोगाट का जीवन संघर्षों और चुनौतियों से भरा रहा है। बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ जाना, गांव के लोगों का विरोध और फिर कुश्ती के मैदान में उतरकर अपनी जगह बनाना – इन सभी चुनौतियों का सामना विनेश ने बहुत ही दृढ़ता से किया।

2016 के रियो ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल मुकाबले के दौरान उनके घुटने में गंभीर चोट लग गई थी, जिसके कारण उन्हें मैच बीच में ही छोड़ना पड़ा था। यह उनके करियर का सबसे कठिन दौर था। लेकिन विनेश ने हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत से वापसी की।

करियर

विनेश फोगाट ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत 2013 में एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप से की, जहां उन्होंने 51 किग्रा वर्ग में कांस्य पदक जीता। इसके बाद उनका करियर लगातार ऊपर की ओर बढ़ता गया।

2014 में उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। इसी साल एशियाई खेलों में उन्होंने कांस्य पदक हासिल किया। 2016 में वह पहली बार ओलंपिक में भाग लेने के लिए क्वालीफाई हुईं।

2018 विनेश के लिए बेहद सफल रहा। उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों दोनों में स्वर्ण पदक जीते। एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली वह पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं।

2019 में विनेश ने अपना पहला विश्व चैंपियनशिप पदक जीता – 53 किग्रा वर्ग में कांस्य। इसी के साथ उन्होंने टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए क्वालीफाई भी कर लिया।

2021 में उन्होंने एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। टोक्यो ओलंपिक में वह क्वार्टर फाइनल तक पहुंचीं लेकिन पदक नहीं जीत पाईं।

2022 में विनेश ने एक बार फिर शानदार वापसी की। उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण और विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।

विशेष उपलब्धि

विनेश फोगाट की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों दोनों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं। इसके अलावा, वह विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कई पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला पहलवान हैं।

2019 में विनेश लॉरियस वर्ल्ड स्पोर्ट्स अवार्ड्स के लिए नामांकित होने वाली पहली भारतीय एथलीट बनीं। यह उनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता का प्रमाण है।

2024 पेरिस ओलंपिक में, विनेश ने एक और इतिहास रच दिया जब वह यूई सुसाकी को हराने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय पहलवान बनीं। सुसाकी मौजूदा ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता और विश्व चैंपियन हैं।

पुरस्कार और सम्मान

1. अर्जुन पुरस्कार (2016) – भारत सरकार द्वारा उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन के लिए दिया जाने वाला सम्मान।

2. मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार (2020) – भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान।

3. बीबीसी इंडियन स्पोर्ट्सवुमन ऑफ़ द ईयर पुरस्कार (2022)

विनेश फोगाट का छोटा सा परिचय

नामविनेश फोगाट
जन्म तिथि25 अगस्त 1994
जन्म स्थानबलाली, भिवानी, हरियाणा
माता-पिताराजपाल फोगाट (पिता), प्रेमलता (माता)
भाई-बहनमेहर फोगाट (भाई)
वैवाहिक स्थितिविवाहित
पति का नामसोमवीर राठी
ऊंचाई5 फीट 5 इंच (165 सेमी)
धर्महिंदू
निवासबलाली, हरियाणा
कुल संपत्तिलगभग 36.5 करोड़ रुपये (अनुमानित, 2023 तक)

अंत में…

विनेश फोगाट के साथ पेरिस ओलंपिक में दुखद वाकया तब हो गया जब वह 50 kg भार वर्ग के फाइनल में पहुँचने के बावजूद फाइनल नहीं खेल पाईं। फाइनल से पहले हुए वजन टेस्ट में उनका वजन 50 kg के 100 ग्राम अधिक पाया गया। इस आधार पर नियमों के अनुसार उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। उनका और भारत का जो कम से सिल्वर मेडल पक्का हो गया था वह भी उन्हे नहीं मिल पाया। उन्हे कोई भी मेडल नहीं मिल पाया।

विनेश फोगाट का जीवन और करियर प्रेरणादायक है। एक छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना नाम कमाया है। उन्होंने कई बाधाओं और चुनौतियों का सामना किया, लेकिन हर बार और मजबूत होकर उभरीं।

विनेश ने भारतीय महिला कुश्ती को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। उनकी उपलब्धियों ने न केवल कुश्ती बल्कि समग्र रूप से भारतीय खेल जगत में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित किया है। वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक रोल मॉडल हैं।

विनेश के पास अभी भी कई लक्ष्य हैं, जिनमें ओलंपिक पदक जीतना सबसे बड़ा है। उनकी दृढ़ता और प्रतिबद्धता को देखते हुए, यह कहना गलत नहीं होगा कि वह अपने सपनों को जरूर साकार करेंगी और भारतीय कुश्ती को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगी।


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Some information courtesy

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हरमनप्रीत सिंह (Harmanpreet Singh) भारतीय हॉकी के वर्तमान युग के सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों में से एक हैं। एक कुशल डिफेंडर और शानदार ड्रैग फ्लिकर के रूप में, उन्होंने अपने असाधारण खेल और नेतृत्व कौशल से भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस लेख में हम हरमनप्रीत सिंह के जीवन (Harmanpreet Singh Life Scan) और करियर पर एक नज़र डालेंगे।

हरमन प्रीत सिंह की जीवनगाथा (Harmanpreet Singh Life Scan)

 

जन्म और परिवार

हरमनप्रीत सिंह का जन्म 6 जनवरी 1996 को पंजाब के अमृतसर जिले के जंडियाला गुरु कस्बे के पास तिम्मोवाल गांव में हुआ था। उनका परिवार एक सिख किसान परिवार है। उनके पिता का नाम सरबजीत सिंह और माता का नाम राजविंदर कौर है। बचपन में, हरमनप्रीत अपने पिता के साथ खेती में मदद करते थे। खेती के काम ने उन्हें शारीरिक रूप से मजबूत बनाया और यही ताकत उनके हॉकी करियर में काम आई। हरमनप्रीत के दो बड़े भाई भी हैं।

शिक्षा

हरमनप्रीत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के स्कूल से प्राप्त की। हालांकि, उनकी औपचारिक शिक्षा के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।10 साल की उम्र में उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया और 15 साल की उम्र में सुरजीत सिंह हॉकी अकादमी में शामिल हो गए। वहां उन्हें पेशेवर ट्रेनिंग मिली और उनके खेल कौशल में निखार आया।

जीवन यात्रा

हरमनप्रीत सिंह का जीवन संघर्ष और मेहनत की कहानी है। बचपन में खेती करते हुए उन्होंने अपनी शारीरिक क्षमता को बढ़ाया। हॉकी के प्रति उनके जुनून ने उन्हें सुरजीत हॉकी अकादमी तक पहुंचाया। वहां के कठोर प्रशिक्षण और उनके आत्मविश्वास ने उन्हें जूनियर टीम में जगह दिलाई।

हरमनप्रीत सिंह ने महज 10 साल की उम्र में हॉकी खेलना शुरू किया था। शुरुआत में वे अपनी मां के डर से चुपके-चुपके हॉकी खेलने जाते थे। खेतों में काम करने और ट्रैक्टर चलाने से उन्हें शारीरिक मजबूती मिली, जो बाद में उनके हॉकी करियर में बहुत काम आई। 15 साल की उम्र में वे सुरजीत हॉकी अकादमी में शामिल हुए, जहां उन्होंने अपने खेल को और निखारा।

करियर

हरमनप्रीत सिंह ने 2014 में सुल्तान जोहोर कप में जूनियर राष्ट्रीय टीम के लिए अपना पदार्पण किया। उसी टूर्नामेंट में उन्होंने 9 गोल किए और प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब जीता। 2015 में उन्होंने सीनियर टीम में पदार्पण किया और तब से लगातार टीम का अहम हिस्सा रहे हैं।

2016 रियो ओलंपिक में उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा, लेकिन उन्होंने जल्द ही अपनी फॉर्म में वापसी की। 2018 में उन्होंने एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता। 2021 टोक्यो ओलंपिक में उनके शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीता। इस टूर्नामेंट में उन्होंने 6 गोल किए और टीम के टॉप स्कोरर रहे।

2022 राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने भारत को रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 2023 में उन्होंने एशियाई खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया, जिससे टीम ने पेरिस 2024 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया।

विशेष उपलब्धि

हरमनप्रीत सिंह को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग फ्लिकरों में से एक माना जाता है। उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में 150 से अधिक गोल किए हैं। 2021-22 FIH प्रो लीग में उन्होंने अपना 100वां अंतरराष्ट्रीय गोल पूरा किया और 18 गोल के साथ टूर्नामेंट के टॉप स्कोरर रहे।

हरमनप्रीत सिंह ने 2020-2021 और 2021-22 के लिए एफआईएच प्लेयर ऑफ द ईयर अवार्ड्स में पुरुष प्लेयर ऑफ द ईयर का खिताब जीता। वे पहले भारतीय और चौथे सदस्य बने, जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है।

पुरुस्कार और सम्मान

1. अर्जुन पुरस्कार (2018)
2. FIH प्लेयर ऑफ द ईयर अवार्ड (2020-21, 2021-22)
3. हॉकी इंडिया लीग में पोंटी चड्ढा मोस्ट प्रॉमिसिंग प्लेयर अवार्ड (2015)
4. 2016 चैंपियंस ट्रॉफी में यंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट
5. 2014 सुल्तान जोहोर कप में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट

छोटा सा लाइफ स्कैन

1. नाम: हरमनप्रीत सिंह
2. जन्म तिथि: 6 जनवरी 1996
3. जन्म स्थान: तिम्मोवाल गांव, जंडियाला गुरु, अमृतसर, पंजाब
4. माता-पिता: सरबजीत सिंह (पिता), राजविंदर कौर (माता)
5. भाई-बहन: दो भाई
6. वैवाहिक स्थिति: विवाहित
7. पत्नी का नाम: अमनदीप कौर
8. ऊंचाई: 1.8 मीटर (5 फीट 11 इंच)
9. धर्म: सिख
10. शहर/राज्य: पंजाब
11. नेट वर्थ: जानकारी उपलब्ध नहीं

अंत में…

हरमनप्रीत सिंह ने अपने असाधारण कौशल, दृढ़ संकल्प और नेतृत्व क्षमता से भारतीय हॉकी में एक नया अध्याय लिखा है। एक सामान्य किसान परिवार से निकलकर वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ियों में से एक बन गए हैं। उनकी मेहनत और लगन ने न केवल उन्हें व्यक्तिगत सफलता दिलाई है, बल्कि पूरी भारतीय हॉकी टीम को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतना उनके करियर के सबसे यादगार पलों में से हैं। लेकिन इससे भी बढ़कर, उन्होंने भारतीय युवाओं के लिए एक आदर्श स्थापित किया है। उनका जीवन दिखाता है कि कठिन परिश्रम, दृढ़ संकल्प और अपने सपनों के प्रति समर्पण से कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

आने वाले समय में, हरमनप्रीत सिंह से भारतीय हॉकी के लिए और भी बड़ी उपलब्धियों की उम्मीद है। उनका लक्ष्य 2024 पेरिस ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाना होगा। उनकी प्रेरणादायक यात्रा निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बनी रहेगी।


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Hariyali Teej Vidhi-Vidhan – हरियाली तीज त्योहार, महिलाओं का अनोखा पर्व – पूर्ण विधि-विधान

हरियाली तीज (Hariyali Teej)एक ऐसा त्योहार है जो हर साल श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार अगस्त में मनाया जाता है और रक्षाबंधन से 11 दिन पहले आता है। आइए इसके बारे में जानत है…

हरियाली तीज त्योहार क्या है, इसके कैसे मनाएं सब कुछ जानें…(Hariyali Teej)

हरियाली तीज त्योहार विवाहित महिलाओं के लिए समर्पित है और यह उनके सुख और समृद्धि का प्रतीक है। हरियाली तीज को सावन के महीने के त्योहार रूप में भी देखा जाता है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का महीना है।

हरियाली तीज को मनाने का तरीका क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग होता है, लेकिन कुछ आम बातें हैं जो सभी क्षेत्रों में समान रूप से देखी जाती हैं। महिलाएं इस दिन नए कपड़े पहनती हैं और हरियाली के रंगों से सजती हैं वे हरियाली के पौधों, जैसे कि तुलसी, बेलपत्र, और आम की पत्तियों को अपने घरों में सजाती हैं। वे पूजा करती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती से अपने परिवार के लिए सुख और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

हरियाली तीज उत्तर भारत में बड़े जोर-शोर से मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह त्यौहार सुख एवं समृद्धि का प्रतीक होता है। यह त्यौहार अधिकतर महिलाओं द्वारा ही मनाया जाता है। यह मुख्यतःपौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह त्यौहार भगवान शिव और पार्वती के पुनर्मिलन के स्मरण के तौर पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।

हरियाली तीज त्यौहार में महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और घर में पूजा पाठ करते हैं तथा माता गौरी का सोलह सिंगार द्वारा पूजन करती हैं। इसके अलावा वह अपने पति की समृद्धि अपने घर की समृद्धि तथा पति की दीर्घायु की कामना करते हुए यह व्रत रखती हैं।

इस दिन विवाहित महिलाएं सोलह सिंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं। उत्तर भारत में विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु व्रत रखती हैं। पूरा दिन व्रत रखने के बाद अंत में तीज की कथा सुनी जाती है और लोकगीत गाए जाते हैं तथा लोक नृत्य किए जाते हैं। यह त्योहार सावन के महीने में पड़ता है इसलिए गांव आदि में पेड़ों पर झूला झूले जाते हैं। घर में सात्विक भोजन बनाया जाता है तथा खीर-पुरी और बिना प्याज लहसुन का भोजन बनाया जाता है।

हरियाली तीज क्यों मनाया जाता है?

हरियाली तीज त्योहार के मनाने के पीछे यह कथा है कि एक बार भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए एक कथा सुनाई थी। जिसके अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को ही अपना पति मान चुकी थीं और उनको वर के रूप में पाने के लिए नित्य जप-तप करती थीं।

एक बार नारदजी उनके घर पधारे और कहा कि मैं भगवान विष्णु के कहने पर आया हूँ। वह आपकी कन्या से प्रसन्न होकर विवाह करना चाहते हैं। तब पार्वती जी के पिता पर्वतराज हिमालय प्रसन्न हो गए और अपनी कन्या पार्वती का विवाह विष्णु से कराने के लिए तैयार हो गए। लेकिन जब पार्वती को यह पता चला तो वह दुखी हो गई क्योंकि वह भगवान शिव को ही अपना वर मानती थीं। ऐसी स्थिति में एक जंगल में जाकर छुप गई। उनके पिता उन्हें नहीं ढूंढ पाए।

अपनी पुत्री के गायब होने पर पिता चिंतित होकर सोचने लगे कि यदि जब विष्णु बारात लेकर आएंगे तब वह क्या जवाब देंगे। पिता ने अपनी पुत्री पार्वती को बहुत ढूंढा लेकिन वो कहीं नहीं मिलीं। पार्वती एक गुफा में भगवान शिव का रेत का शिवलिंग बनाकर निरंतर शिव की आराधना करती थीं। इसके लिए उन्होंने अनेक कष्ट सहे और भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी तक की परवाह नही की। उ

नकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। उसी समय उनके पिता उन्हें ढूंढते हुए वहाँ आ गए और अपनी पुत्री को साथ चलने के लिए कहने लगे। तब पार्वती ने उन्हें सारी बात बताई कि वह शिव को ही अपना पति मानती हैं और उनको ही अपने वर के रूप में वरण कर लिया है। यदि वह उनका विवाह शिव से कराने के लिए तैयार हैं, तो वह उनके साथ चलने के लिए तैयार हैं।

हिमालयराज अपनी पुत्री पार्वती की बात मान गए और उसके बाद भगवान शिव से पार्वती का विवाह हो गया। इसी विवाह के उपलक्ष में हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है, क्योंकि मां पार्वती ने कठोर व्रत रखकर भगवान शिव को प्राप्त किया था उसी कारण तभी से यह मान्यता चल पड़ी थी जो स्त्री व्रत रखेगी उसे अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी और उसके पति की दीर्घायु होगी।

हरियाली तीज के दिन निम्नलिखित उपाय भी करें

  • महिलाएं भगवान शिव और माँ पार्वती को चावल और दूध से बनी खीर का भोग लगाएं और वह प्रसाद को पूजा समाप्त होने के बाद खुद खाएं तथा अपने पति को दें। इससे दांपत्य जीवन में मधुरता आती है।
  • हरियाली तीज के दिन महिलाएं भगवान शिव को पान का बीड़ा चढ़ाएं और वह पान का बीड़ा फिर अपने पति को दे दें तो इससे दांपत्य जीवन में मधुरता आती है
  • तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पति-पत्नी मिलकर पूजा करें और खीर का भोग लगाने से दांपत्य जीवन में मधुर संबंध बनते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • यदि किसी युवती का विवाह नहीं हो पा रहा हो या विवाह बार-बार टूट रहा हो, तो भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के बाद पीले वस्त्र पहनकर प्रदोष काल में पूजा करें। माता पार्वती को कुमकुम अर्पित करें और उस कुमकुम को अपने पास रख लें और उसका टीका लगाएं तो शीघ्र विवाह संभावना होती है कि विवाह की समस्याएं दूर हो सकती हैं।
  • भगवान शिव और माता पार्वती को सूजी का हलवा चढ़ाने से भी घर में सुख समृद्धि तथा दांपत्य जीवन में मधुरता आती है।
  • भगवान शिव और माता पार्वती को घेवर का भोग लगाने से शुभ फल प्राप्त होता है और वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है।
  • हरियाली तीज के दिन माँ पार्वती और शिव भगवान शिव को शहद का भोग लगाने से लगाकर उसको किसी ब्राह्मण को दान कर देने दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है।
  • इसी तरह हरियाली तीज के दिन माता पार्वती को गुड़ से बनी किसी भी मिठाई का भोग लगाकर उस मिठाई को किसी को दान कर देने से आर्थिक संकट दूर होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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स्वप्निल कुसाले का नाम भारतीय निशानेबाजी के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित किया जाएगा। अपने कड़े परिश्रम, इच्छा शक्ति, और समर्पण के बलबूते पर स्वप्निल ने कई बार देश का नाम गौरवान्वित किया है। इस लेख में हम स्वप्निल कुसाले (Life Scan of Swapnil Kusale) के जन्म, परिवार, शिक्षा, जीवन यात्रा, करियर, और उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

स्वप्निल कुसाले: एक प्रतिभाशाली निशानेबाज की जीवन गाथा (Life Scan of Swapnil Kusale )

स्वप्निल कुसाले एक भारतीय खेल निशानेबाज हैं जो 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन में प्रतिस्पर्धा करते हैं। उन्होंने अपने असाधारण कौशल और समर्पण से भारतीय निशानेबाजी में एक नया अध्याय लिखा है। 2024 पेरिस ओलंपिक में पुरुषों की 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। यह उपलब्धि उनके दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत का परिणाम है। आइए इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी के जीवन और करियर पर एक नज़र डालें।

जन्म और परिवार

स्वप्निल कुसाले का जन्म 6 अगस्त 1995 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के कम्बलवाड़ी गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनका परिवार खेल परिदृश्य से पहले से ही जुड़ा हुआ था क्योंकि उनके पिता सुरेश कुसाले एक पूर्व राष्ट्रीय स्तरीय निशानेबाज रह चुके हैं। उनके पिता सुरेश कुसाले एक पूर्व राष्ट्रीय स्तरीय निशानेबाज थे, जबकि माता अनीता कुसाले गाँव की सरपंच हैं। उनके भाई सूरज कुसाले भी एक एथलीट हैं। खेलों से जुड़े इस परिवार ने स्वप्निल को शुरू से ही प्रेरणा और समर्थन दिया।

शिक्षा

स्वप्निल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे, महाराष्ट्र से पूरी की। उन्होंने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने निशानेबाजी का प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धा भी जारी रखी। 2009 में, उनके पिता ने उन्हें महाराष्ट्र सरकार के क्रीड़ा प्रबोधिनी खेल कार्यक्रम में नामांकित किया, जहाँ उन्होंने एक साल की कड़ी शारीरिक प्रशिक्षण के बाद निशानेबाजी को अपने करियर के रूप में चुना।

संक्षिप्त जानकारी

नाम: स्वप्निल कुसाले
पिता का नाम: सुरेश कुसाले
माता का नाम: अनीता कुसाले
भाई का नाम: सूरज कुसाले
ऊंचाई: 5 फीट 8 इंच (लगभग)
धर्म: हिन्दू
उच्चतम शिक्षा: बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक
जन्म स्थान: ग्राम कंबलवाड़ी, कोल्हापुर जिला, महाराष्ट्र
वैवाहिक स्थिति: अविवाहित

जीवन यात्रा

स्वप्निल कुसाले की जीवन यात्रा संघर्ष और सफलता की कहानी है। बचपन से ही अपने पिता की निशानेबाजी को करीब से देखना और उनके प्रोत्साहन ने स्वप्निल को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। 2009 में उनके पिता ने उन्हें महाराष्ट्र सरकार के क्रीड़ा प्रबोधिनी खेल कार्यक्रम में नामांकित किया। एक साल की कड़ी शारीरिक ट्रेनिंग के बाद, स्वप्निल ने शूटिंग को अपने करियर का लक्ष्य बनाया।
शुरुआती दिनों में आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए, 2015 में वह पुणे में भारतीय रेलवे के लिए टिकट कलेक्टर बन गए, जिससे उन्हें अपनी पहली राइफल खरीदने में मदद मिली।

करियर

स्वप्निल कुसाले का निशानेबाजी करियर उपलब्धियों से भरा रहा है:

1. 2015: कुवैत में एशियाई शूटिंग चैंपियनशिप के जूनियर वर्ग में 50 मीटर राइफल प्रोन 3 में स्वर्ण पदक जीता।

2. 2015: तुगलकाबाद में 59वीं राष्ट्रीय शूटिंग चैंपियनशिप में 50 मीटर राइफल प्रोन स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता।

3. 2017: तिरुवनंतपुरम में 61वीं राष्ट्रीय चैंपियनशिप में 50 मीटर राइफल 3 पोजीशन में स्वर्ण पदक जीता।

4. 2022: काहिरा में आईएसएसएफ विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में पुरुषों की 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन स्पर्धा में भारत के लिए ओलंपिक कोटा बर्थ अर्जित किया।

5. 2024: पेरिस ओलंपिक में पुरुषों की 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन स्पर्धा में कांस्य पदक जीता।

विशेष उपलब्धि

स्वप्निल कुसाले की सबसे बड़ी उपलब्धि 2024 पेरिस ओलंपिक में पुरुषों की 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन स्पर्धा में कांस्य पदक जीतना है। यह भारत के लिए इस स्पर्धा में पहला ओलंपिक पदक है। इस प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय निशानेबाजी के इतिहास में एक विशेष स्थान दिला दिया है।

पुरस्कार और सम्मान

स्वप्निल कुसाले को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं।
1. अर्जुन पुरस्कार
2. शिव छत्रपति खेल पुरस्कार
3. ब्रांड कोल्हापुर पुरस्कार (2021)

अंत में…

स्वप्निल कुसाले की कहानी संघर्ष, दृढ़ संकल्प और सफलता का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। एक छोटे से गाँव से निकलकर ओलंपिक पदक तक का सफर उनकी प्रतिभा और मेहनत का प्रमाण है। उनकी सफलता न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है। स्वप्निल की यात्रा युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो दिखाती है कि कड़ी मेहनत और समर्पण से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। भारतीय खेल जगत में उनका योगदान अमूल्य है और निश्चित रूप से वे आने वाले समय में और भी उपलब्धियाँ हासिल करेंगे।


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लक्ष्य सेन (Life Scan of Lakshya Sen) एक भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपनी शानदार खेल क्षमता और असाधारण मेहनत से विश्व स्तर पर भारतीय बैडमिंटन को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया है। उन्होंने 2018 एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक और 2021 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीते। उनकी उपलब्धियों की सूची लंबी है, जिसमें 2022 ऑल इंग्लैंड ओपन में उपविजेता और 2022 थॉमस कप में भारतीय टीम का हिस्सा होना शामिल है। इल लेख में हम उनके जन्म, परिवार, शिक्षा, जीवन यात्रा, करियर, विशेष उपलब्धियां, पुरस्कार और सम्मान पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

लक्ष्य सेन की जीवन गाथा (Life Scan of Lakshya Sen)

लक्ष्य सेन भारतीय बैडमिंटन के नए युग के प्रतीक हैं। युवा आयु में ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है और भारत के लिए कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं। जूनियर स्तर से लेकर सीनियर स्तर तक, लक्ष्य ने अपनी प्रतिभा और समर्पण से सभी को प्रभावित किया है। आइए जानें इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी के बारे में विस्तार से।

जन्म और परिवार

लक्ष्य सेन का जन्म 16 अगस्त 2001 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था। बैडमिंटन उनके परिवार में खून में है। उनके पिता डीके सेन एक प्रसिद्ध बैडमिंटन कोच हैं, जो लक्ष्य के भी कोच रहे हैं। उनके दादा सीएल सेन को अल्मोड़ा में बैडमिंटन का भीष्म पितामह कहा जाता है।

उनके परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई चिराग सेन भी है, जो खुद भी बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। लक्ष्य के बड़े भाई चिराग सेन भी एक अच्छे बैडमिंटन खिलाड़ी हैं।

लक्ष्य के पिता डीके सेन नेशनल लेवल पर बैडमिंटन खेल चुके हैं और राष्ट्रीय स्तर के कोच भी हैं. डीके सेन वर्तमान में प्रकाश पादुकोण अकादमी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

इस तरह से खेल का माहौल लक्ष्य को बचपन से ही मिला। परिवार में खेलों का माहौल और समर्थन होने के कारण लक्ष्य ने बहुत कम उम्र में ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया।

लक्ष्य सेन के भाई चिराग सेन भी इंटरनेशनल लेवल पर बैडमिंटन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं. अपने बेटे को बैडमिंटन की अच्छी ट्रेनिंग देने के लिए डीके सेन अल्मोड़ा छोड़ बेंगलुरु में बस गए थे। बेंगलुरु में लक्ष्य सेन ने प्रकाश पादुकोण एकेडमी में दाखिला लिया था, जहां उन्होंने ट्रायल के दौरान अपनी प्रतिभा से प्रकाश पादुकोण को हैरत में डाल दिया था।

शिक्षा-दीक्षा

लक्ष्य ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही प्राप्त की। हालांकि, जल्द ही उन्होंने अपना ध्यान पूरी तरह से बैडमिंटन पर केंद्रित कर दिया। उन्होंने प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन अकादमी में प्रशिक्षण लिया, जहां उन्होंने अपने खेल को और निखारा। लक्ष्य ने अपनी औपचारिक शिक्षा को बैडमिंटन के साथ संतुलित करने का प्रयास किया, लेकिन उनका मुख्य फोकस हमेशा खेल पर ही रहा। अपनी शिक्षा और खेल को संतुलित रखते हुए लक्ष्य ने अपनी पूरी शिक्षा पूरी की और अपनी पूरी लगन बैडमिंटन में झोंक दी।

जीवन यात्रा

लक्ष्य का सफर चुनौतियों से भरा रहा है। एक छोटे शहर से आने के बावजूद, उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की। प्रारंभिक दिनों में, उन्हें कई बार हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वे लगातार अपने खेल में सुधार करते रहे और धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए।

करियर

लक्ष्य का करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, लेकिन उन्होंने लगातार प्रगति की है:

लक्ष्य सेन ने 2016 में जूनियर बैडमिंटन सर्किट में शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने 2016 इंडिया इंटरनेशनल सीरीज़ टूर्नामेंट में पुरुष एकल का खिताब जीता। 2017 में वह बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड जूनियर रैंकिंग में नंबर एक जूनियर एकल खिलाड़ी बने। 2018 में, उन्होंने एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और समर यूथ ओलंपिक में मिश्रित टीम स्पर्धा में भी स्वर्ण पदक जीता।

2019 में, लक्ष्य सेन ने बेल्जियम इंटरनेशनल टूर्नामेंट और डच ओपन पुरुष एकल खिताब जीता। 2020 में, उन्होंने बैडमिंटन एशिया टीम चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा बने। 2021 में, वह विश्व चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में पहुँचे और कांस्य पदक जीता।

2022 में, उन्होंने इंडिया ओपन के फाइनल में मौजूदा विश्व चैंपियन लोह कीन यू को हराकर अपना पहला सुपर 500 खिताब जीता। उन्होंने 2022 कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीता और थॉमस कप में भारतीय टीम का हिस्सा बने।

1. 2016: जूनियर सर्किट में शानदार प्रदर्शन, जूनियर एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक।
2. 2017: BWF वर्ल्ड जूनियर रैंकिंग में नंबर एक बने।
3. 2018: एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, यूथ ओलंपिक में रजत पदक।
4. 2019: पहला BWF टूर खिताब (डच ओपन) जीता।
5. 2021: विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।
6. 2022: इंडिया ओपन जीता, ऑल इंग्लैंड ओपन में उपविजेता रहे, थॉमस कप विजेता टीम का हिस्सा बने, राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
7. 2023: कनाडा ओपन जीता, एशियाई खेलों में टीम रजत पदक।

विशेष उपलब्धि

लक्ष्य सेन की विशेष उपलब्धियों में 2018 एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतना और 2022 थॉमस कप में भारतीय टीम का हिस्सा होना शामिल है। उनकी इन उपलब्धियों ने उन्हें भारतीय बैडमिंटन का एक प्रमुख चेहरा बना दिया है। लक्ष्य की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 2022 में थॉमस कप जीतना रहा, जो भारत के लिए ऐतिहासिक जीत थी। इसके अलावा, 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतना भी उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

पुरस्कार और सम्मान

लक्ष्य सेन को उनके खेल कौशल और उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। 2018 में, उन्होंने एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और समर यूथ ओलंपिक में मिश्रित टीम स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। 2019 में, उन्होंने बेल्जियम इंटरनेशनल टूर्नामेंट और डच ओपन पुरुष एकल खिताब जीता। 2021 में, उन्होंने विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। 2022 में, उन्होंने इंडिया ओपन के फाइनल में जीत हासिल की और कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीता।

लक्ष्य को उनकी उपलब्धियों के लिए कई सम्मान मिले हैं, जैसे…
1. अर्जुन अवार्ड (2022)
2. BWF की मोस्ट प्रॉमिसिंग प्लेयर ऑफ़ द ईयर (2021)
3. कई राज्य स्तरीय सम्मान

अंत में…

लक्ष्य सेन भारतीय बैडमिंटन के भविष्य हैं। उनकी युवा आयु में ही इतनी उपलब्धियां दर्शाती हैं कि वे एक असाधारण प्रतिभा हैं। उनकी खेल शैली, समर्पण और दृढ़ संकल्प उन्हें एक आदर्श एथलीट बनाते हैं। वे न केवल कोर्ट पर बल्कि कोर्ट के बाहर भी युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। लक्ष्य का सफर अभी शुरू ही हुआ है, और आने वाले वर्षों में वे निश्चित रूप से भारतीय खेल के लिए और भी बड़ी उपलब्धियां हासिल करेंगे। उनकी कहानी सिखाती है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ संकल्प से कोई भी अपने सपनों को साकार कर सकता है।


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सरबजोत सिंह एक युवा और प्रतिभाशाली भारतीय निशानेबाज हैं, जिन्होंने अपने छोटे से करियर में ही कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। 10 मीटर एयर पिस्टल में विशेषज्ञता रखने वाले सरबजोत ने हाल ही में 2024 पेरिस ओलंपिक में मनु भाकर के साथ मिलकर मिश्रित टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। आइए जानें इस युवा खिलाड़ी (Sarabjot Singh Life Scan) के बारे में विस्तार से…

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जन्म और परिवार

सरबजोत सिंह का जन्म 30 सितंबर 2001 को हरियाणा के अंबाला जिले के धीना जाट गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता जतिंदर सिंह किसान हैं, जबकि माँ हरदीप कौर गृहिणी हैं। सरबजोत का जन्म एक जाट परिवार में हुआ और उनका एक छोटा भाई भी है।

शिक्षा

सरबजोत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों से प्राप्त की। उन्होंने चंडीगढ़ के सेक्टर 10 स्थित डीएवी कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की। 2023 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से कला में स्नातक की उपाधि हासिल की। शिक्षा के साथ-साथ वे शूटिंग में भी अपना कौशल निखारते रहे।

जीवन यात्रा

सरबजोत का शूटिंग से परिचय एक संयोग था। 13 वर्ष की आयु में, उन्होंने एक समर कैंप के दौरान कुछ बच्चों को एयर गन चलाते देखा। यह देखकर उनके मन में भी शूटिंग सीखने की इच्छा जागी। हालांकि शुरुआत में उनके पिता ने इस महंगे खेल के लिए मना कर दिया, लेकिन सरबजोत के लगातार आग्रह पर वे मान गए।

2016 में, सरबजोत ने अंबाला की एआर एकेडमी ऑफ शूटिंग स्पोर्ट्स में औपचारिक रूप से शूटिंग शुरू की। यहां उन्होंने कोच अभिषेक राणा के मार्गदर्शन में अपने कौशल को निखारा। इसके अलावा, उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध निशानेबाज समरेश जंग से भी प्रशिक्षण लिया।

करियर

सरबजोत के करियर की शुरुआत बेहद शानदार रही। 2019 में, उन्होंने जूनियर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

2022 में, सरबजोत ने हांग्जो एशियाई खेलों में शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल टीम स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा, उन्होंने 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम स्पर्धा में रजत पदक भी अपने नाम किया।

2023 में, सरबजोत ने अपने प्रदर्शन में और सुधार किया। कोरिया के चांगवोन में आयोजित एशियाई शूटिंग चैंपियनशिप में उन्होंने दो पदक जीते – 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम में रजत और पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य। इसी कांस्य पदक ने उन्हें 2024 पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में मदद की।

इसी वर्ष, भोपाल में आयोजित ISSF विश्व कप में सरबजोत ने 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता, जो उनके करियर की एक बड़ी उपलब्धि थी।

विशेष उपलब्धि

सरबजोत सिंह की विशेष उपलब्धियों में से एक यह है कि उन्होंने 2023 भोपाल में आयोजित ISSF विश्व कप में 10 मीटर एयर पिस्टल में स्वर्ण पदक जीता। यह उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था और उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से भारतीय निशानेबाजी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।

सरबजोत की सबसे बड़ी उपलब्धि 2024 पेरिस ओलंपिक में आई, जहां उन्होंने मनु भाकर के साथ मिलकर 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। यह उनका पहला ओलंपिक था, और पहली ही बार में पदक जीतना एक बड़ी उपलब्धि है।

पुरस्कार और सम्मान

हालांकि सरबजोत अभी अपने करियर के शुरुआती दौर में हैं, लेकिन उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदक और सम्मान जीते हैं:

  • 2019 जूनियर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
  • 2022 एशियाई खेलों में स्वर्ण और रजत पदक
  • 2023 एशियाई शूटिंग चैंपियनशिप में रजत और कांस्य पदक
  • 2023 ISSF विश्व कप में स्वर्ण पदक
  • 2024 ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक

अंत में…

सरबजोत सिंह भारतीय शूटिंग के उभरते सितारे हैं। अपने छोटे से करियर में ही उन्होंने कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। एक किसान परिवार से आकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करना उनकी प्रतिभा और समर्पण का प्रमाण है।

सरबजोत की सफलता का राज उनका कठिन परिश्रम, दृढ़ संकल्प और शांत स्वभाव है। वे न केवल एक कुशल निशानेबाज हैं, बल्कि एक परिपक्व व्यक्तित्व के धनी भी हैं। उनकी यह सफलता भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

अभी 22 वर्ष की आयु में ही ओलंपिक पदक जीतना सरबजोत के उज्जवल भविष्य का संकेत है। आने वाले समय में वे और भी बड़ी उपलब्धियां हासिल करेंगे, ऐसी उम्मीद है। भारतीय खेल जगत को सरबजोत जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों से बहुत उम्मीदें हैं।


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Manika Batra Life Scan – मनिका बत्रा : भारतीय टेबल टेनिस की स्टार – जीवन पर एक नज़र

मनिका बत्रा भारत की शीर्ष महिला टेबल टेनिस खिलाड़ी हैं। वह राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता और दो बार की ओलंपियन हैं। अपने शानदार प्रदर्शन और कई उपलब्धियों के साथ, मनिका ने भारतीय टेबल टेनिस को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। वह न केवल अपने खेल में उत्कृष्ट हैं, बल्कि युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा भी हैं। आइए इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी के जीवन और करियर (Manika Batra Life Scan) पर एक नज़र डालें।

जन्म और परिवार

मनिका बत्रा का जन्म 15 जून 1995 को दिल्ली के नारायणा विहार में हुआ था। वह अपने माता-पिता की तीन संतानों में सबसे छोटी हैं। उनके पिता का नाम गिरीश बत्रा और माता का नाम सुषमा बत्रा है। मनिका की बड़ी बहन आंचल और बड़े भाई साहिल भी टेबल टेनिस खेलते थे। विशेष रूप से, उनकी बहन आंचल ने मनिका के शुरुआती खेल करियर पर काफी प्रभाव डाला।

शिक्षा

मनिका ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के हंस राज मॉडल स्कूल से प्राप्त की। यह वही स्कूल था जहां उनके कोच संदीप गुप्ता अपनी अकादमी चलाते थे। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा जीसस एंड मैरी कॉलेज, नई दिल्ली से शुरू की, लेकिन टेबल टेनिस पर पूरा ध्यान केंद्रित करने के लिए एक वर्ष बाद ही पढ़ाई छोड़ दी। मनिका ने अपने खेल को प्राथमिकता दी और इसके लिए कई बलिदान दिए, जिसमें 16 साल की उम्र में स्वीडन की प्रतिष्ठित पीटर कार्लसन अकादमी में प्रशिक्षण के लिए मिली छात्रवृत्ति को अस्वीकार करना भी शामिल था।

जीवन यात्रा

मनिका ने मात्र चार वर्ष की आयु में टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया था। उनकी प्रतिभा जल्द ही सामने आई जब उन्होंने राज्य स्तरीय अंडर-8 टूर्नामेंट में मैच जीता। इसके बाद उन्होंने कोच संदीप गुप्ता के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण लेना शुरू किया।

अपने किशोर वर्षों में, मनिका ने टेबल टेनिस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कई मॉडलिंग प्रस्तावों को ठुकरा दिया। यह उनके खेल के प्रति समर्पण को दर्शाता है। उन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अपने जुनून और कड़ी मेहनत से उन्हें पार किया।

करियर

मनिका का अंतरराष्ट्रीय करियर 2011 में शुरू हुआ, जब उन्होंने चिली ओपन की अंडर-21 श्रेणी में रजत पदक जीता। इसके बाद उन्होंने कई प्रतिष्ठित टूर्नामेंटों में भाग लिया और पदक जीते।

2014 में, मनिका ने ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2015 में, उन्होंने राष्ट्रमंडल टेबल टेनिस चैंपियनशिप में तीन पदक जीते – महिला टीम स्पर्धा में रजत, महिला युगल में रजत और महिला एकल में कांस्य।

2016 दक्षिण एशियाई खेलों में मनिका ने शानदार प्रदर्शन करते हुए तीन स्वर्ण पदक जीते। उसी वर्ष, वह रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला टेबल टेनिस खिलाड़ी बनीं।

मनिका का सबसे यादगार प्रदर्शन 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में आया, जहां उन्होंने चार पदक जीते, जिनमें दो स्वर्ण शामिल थे। उन्होंने महिला एकल में स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया और भारतीय महिला टीम को सिंगापुर को हराकर स्वर्ण दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2020 टोक्यो ओलंपिक में, मनिका ने एक और उपलब्धि हासिल की जब वह एकल स्पर्धा के तीसरे दौर तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला टेबल टेनिस खिलाड़ी बनीं।

विशेष उपलब्धि

मनिका की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 2021 में आई, जब वह साथियान गणानाशेखरन के साथ WTT कंटेंडर बुडापेस्ट में मिश्रित युगल खिताब जीतकर WTT इवेंट जीतने वाली पहली भारतीय बनीं।

2022 में, मनिका और अर्चना गिरीश कामथ की जोड़ी ने एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की जब वे विश्व रैंकिंग में चौथे स्थान पर पहुंचीं। यह किसी भी श्रेणी में किसी भारतीय टेबल टेनिस खिलाड़ी द्वारा हासिल की गई सर्वोच्च रैंकिंग थी।

पुरस्कार और सम्मान

मनिका बत्रा को उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है:

1. 2020 – मेजर ध्यानचंद खेल रत्न, भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान
2. 2018 – अर्जुन पुरस्कार, भारत का दूसरा सबसे बड़ा खेल सम्मान
3. 2018 – ITTF द्वारा ब्रेकथ्रू स्टार अवार्ड

अंत में…

मनिका बत्रा ने अपने असाधारण प्रदर्शन और उपलब्धियों से न केवल भारतीय टेबल टेनिस को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है, बल्कि दुनिया भर में इस खेल के लिए भारत की छवि को भी बदला है। वह युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं और उनका लक्ष्य भारत में टेबल टेनिस को और अधिक लोकप्रिय बनाना है। अपने समर्पण, कड़ी मेहनत और प्रतिभा के साथ, मनिका बत्रा निश्चित रूप से भारतीय खेल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और आने वाले वर्षों में और अधिक सफलता हासिल करने की क्षमता रखती हैं।


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Life Scan of Antim Panghal – अंतिम पंघाल – भारत की उभरती हुई युवा कुश्ती सनसनी

अंतिम पंघाल (Life Scan of Antim Panghal) एक युवा भारतीय पहलवान हैं जिन्होंने अपने छोटे से करियर में ही कई उपलब्धियां हासिल की हैं। वह दो बार की अंडर-20 विश्व चैंपियन हैं और भारत की पहली ऐसी महिला पहलवान हैं जिन्होंने यह खिताब जीता है। इसके अलावा, उन्होंने एशियाई खेलों, एशियाई चैंपियनशिप और सीनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में भी पदक जीते हैं। इस लेख में हम अंतिम पंघाल के जीवन और करियर पर एक नज़र डालेंगे।

भारत की उभरती हुई युवा कुश्ती सनसनी (Life Scan of Antim Panghal)

अंतिम पंघाल (जन्म 2004) हरियाणा की एक भारतीय पहलवान हैं, जिन्होंने कुश्ती के क्षेत्र में न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी भारत का नाम रोशन किया है। वह भारत की पहली अंडर-20 विश्व कुश्ती चैंपियन हैं और उन्होंने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण पदक जीते हैं।

जन्म और परिवार

अंतिम पंघाल का जन्म 31 अगस्त 2004 को हरियाणा के हिसार जिले के भगाना गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम रामनिवास पंघाल और माँ का नाम कृष्णा कुमारी है। अंतिम अपने माता-पिता की पांच संतानों में से दूसरी सबसे छोटी हैं। उनकी तीन बड़ी बहनें हैं – सरिता, मीनू और निशा, जबकि उनका छोटा भाई अर्पित है। अंतिम का नाम उनके परिवार में सबसे छोटी लड़की होने के कारण रखा गया था।

शिक्षा

अंतिम पंघाल की प्रारंभिक शिक्षा हिसार के एक स्थानीय स्कूल में हुई। कुश्ती में उनकी रुचि और प्रदर्शन के चलते उनकी शिक्षा का अधिकांश हिस्सा कुश्ती प्रशिक्षण और प्रतियोगिताओं के इर्द-गिर्द केंद्रित रहा। उनके पिता रामनिवास पंघाल ने सुनिश्चित किया कि अंतिम को सबसे अच्छा प्रशिक्षण और आहार मिले, जिसके लिए उन्होंने अपने परिवार को हिसार शहर में स्थानांतरित कर दिया।

जीवन यात्रा

अंतिम के जीवन में कुश्ती का प्रवेश उनकी बहन सरिता के कारण हुआ। अंतिम पंघाल का कुश्ती का सफर तब शुरू हुआ जब वह केवल 10 साल की थीं। उनकी बहन सरिता ने उन्हें हिसार के महावीर स्टेडियम में कुश्ती के प्रशिक्षण के लिए लेकर गईं। शुरुआत में उनके पिता रामनिवास इस फैसले से असहमत थे, लेकिन अंतिम की कोच रोशनी देवी के प्रोत्साहन से वे मान गए।

परिवार ने अंतिम के कुश्ती करियर को समर्थन देने के लिए कई बलिदान दिए, जिसमें हिसार शहर में स्थानांतरित होना और वहां एक नया घर बनाना शामिल था। रामनिवास ने यह सुनिश्चित किया कि अंतिम को सर्वोत्तम आहार मिले, इसलिए उन्होंने अपनी भैंसों को भी साथ रखा।

शुरुआती दिनों में, उनके पिता ने उन्हें प्रतिदिन 20 किलोमीटर का सफर कराके प्रशिक्षण के लिए ले जाने का निर्णय लिया। यह निर्णय उनके परिवार के लिए बहुत बड़ा था, लेकिन उन्होंने इसे पूरा समर्थन दिया।

करियर

अंतिम पंघाल ने अपने कुश्ती करियर की शुरुआत बहुत कम उम्र में की और जल्द ही सफलता हासिल करना शुरू कर दिया। अंतिम पंघाल ने अपने करियर की शुरुआत में ही विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करना शुरु कर दिया था। उनकी प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं:

1. 2018: 49 किग्रा अंडर-15 राष्ट्रीय चैंपियन बनीं और जापान में अंडर-15 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।

2. 2020: जूनियर एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक और अंडर-23 एशियाई चैंपियनशिप में रजत पदक जीता।

3. 2022: ज़ौहैर सघेयर रैंकिंग सीरीज़ में अपना पहला सीनियर स्वर्ण पदक जीता।

4. 2022: सोफिया में अंडर-20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा।

5. 2023: अम्मान में अपने अंडर-20 विश्व चैंपियनशिप खिताब का सफल बचाव किया।

6. 2023: अस्ताना में एशियाई चैंपियनशिप में रजत पदक जीता।

7. 2023: बेलग्रेड में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता और पेरिस 2024 ओलंपिक के लिए कोटा हासिल किया।

8. 2023: हांगझोऊ एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता।

विशेष उपलब्धि

अंतिम पंघाल की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह अंडर-20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं। उन्होंने यह खिताब लगातार दो साल (2022 और 2023) जीता, जो उनकी असाधारण प्रतिभा और निरंतरता को दर्शाता है।

अंतिम पंघाल ने 2023 में अस्ताना में एशियाई चैंपियनशिप में रजत पदक जीता। इसके अलावा, उन्होंने 2023 में बेलग्रेड में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता और पेरिस 2024 ओलंपिक कोटा भी हासिल किया।

पुरस्कार और सम्मान

अंतिम पंघाल को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं।

1. अंडर-20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में दो स्वर्ण पदक (2022, 2023)
2. विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक (2023)
3. एशियाई चैंपियनशिप में रजत पदक (2023)
4. एशियाई खेलों में कांस्य पदक (2023)
5. यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (UWW) द्वारा “राइजिंग स्टार ऑफ द ईयर 2023” का सम्मान

अंत में…

अंतिम पंघाल की कहानी प्रेरणादायक है और युवा खिलाड़ियों के लिए एक उदाहरण है। उन्होंने अपने परिवार के समर्थन और अपनी अथक मेहनत से कुश्ती के क्षेत्र में अपना नाम स्थापित किया है। महज 19 वर्ष की आयु में, उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे अद्भुत हैं। विनेश फोगाट जैसी दिग्गज पहलवान को कड़ी टक्कर देने की क्षमता रखने वाली अंतिम भारतीय कुश्ती के भविष्य की एक उज्ज्वल आशा हैं।

उनका करियर अभी शुरुआती दौर में है, और आने वाले वर्षों में वे और अधिक सफलताएं हासिल करने की क्षमता रखती हैं। पेरिस 2024 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के साथ, अंतिम के पास अपने देश के लिए ओलंपिक पदक जीतने का सुनहरा मौका होगा। उनकी कड़ी मेहनत, समर्पण और प्रतिभा निश्चित रूप से उन्हें भारतीय कुश्ती के इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाएगी।


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मनु भाकर : भारत की युवा निशानेबाज (Manu Bhaker Life Scan)

मनु भाकर भारत की एक प्रतिभाशाली युवा निशानेबाज हैं, जिन्होंने अपने छोटे से करियर में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई उपलब्धियां हासिल की हैं। महज 16 साल की उम्र में विश्व कप में स्वर्ण पदक जीतने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय बनकर उन्होंने इतिहास रच दिया। राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई खेलों और युवा ओलंपिक में पदक जीतकर मनु ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। आइए जानते हैं इस युवा खिलाड़ी के जीवन और करियर (Manu Bhaker Life Scan) के बारे में विस्तार से।

जन्म और परिवार

मनु भाकर का जन्म 18 फरवरी 2002 को हरियाणा के झज्जर जिले के गोरिया गाँव में हुआ था। उनके पिता राम किशन भाकर मरीन इंजीनियर हैं और माँ स्कूल में प्रिंसिपल हैं। मनु के परिवार में खेलों का माहौल रहा है और उनके माता-पिता ने हमेशा उनके सपनों को पूरा करने में सहयोग किया है। मनु ने बचपन में निशानेबाजी के साथ-साथ मुक्केबाजी, एथलेटिक्स, स्केटिंग और जूडो कराटे जैसे खेलों में भी भाग लिया। जब मनु की उम्र 18 साल से कम थी, तब उनके पिता ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपनी लाइसेंसी पिस्टल के साथ बेटी को प्रशिक्षण के लिए छोड़ने जाने लगे।

Manu Bhaker Family
मनु भाकर अपने माता-पिता और भाई के साथ

शिक्षा

मनु भाकर की पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो मनु ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के स्कूल से प्राप्त की। फिर उन्होंने अपनी स्कूलिंग और कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली से ही की। मनु ने 2021 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्री राम कॉलेज से पॉलिटिकल साइंट ऑनर्स में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी।

मनु खेलों के साथ-साथ अभी पढ़ाई भी कर रही हैं। वह इस समय पंजाब यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई कर रही हैं।

वह बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी रुचि रखती थीं। स्कूली दिनों में उन्होंने टेनिस, स्केटिंग, मुक्केबाजी और थांग-टा जैसे कई खेलों में हिस्सा लिया और राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीते। हालांकि, 14 साल की उम्र में उन्होंने शूटिंग को अपना करियर बनाने का फैसला किया।

बचपन में मनु ने कई खेलों में अपनी प्रतिभा दिखाई। मुक्केबाजी, स्केटिंग, वॉलीबॉल, घुड़सवारी, मार्शल आर्ट और टेनिस में उन्होंने 60 से अधिक राष्ट्रीय पदक जीते। एक चोट के कारण उन्हें शूटिंग की ओर रुख करना पड़ा, जो बाद में उनके लिए वरदान साबित हुआ।

जीवन यात्रा

मनु के लिए शूटिंग में करियर बनाने का फैसला आसान नहीं था। उनके पिता ने अपनी नौकरी छोड़कर बेटी के सपने को पूरा करने में पूरा सहयोग दिया। चूंकि नाबालिग के लिए सार्वजनिक परिवहन में हथियार ले जाना अवैध है, इसलिए उनके पिता उन्हें रोज प्रशिक्षण के लिए छोड़ने जाते थे। मनु को भारतीय खेल प्राधिकरण और राष्ट्रीय राइफल एसोसिएशन से भी मदद मिली। प्रसिद्ध शूटर जसपाल राणा ने उन्हें कोचिंग दी, जिससे उनके खेल में निखार आया।

करियर

मनु ने अपने करियर की शुरुआत बॉक्सिंग से की। नेशनल लेवल पर मेडल भी जीते, लेकिन एक दिन प्रैक्टिस के दौरान आंख में चोट लगने के बाद उन्होंने बॉक्सिंग छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने मार्शल आर्ट्स, आर्चरी, टेनिस, और स्केटिंग में भी हाथ आजमाया, लेकिन अंततः उन्हें शूटिंग में अपना असली रास्ता मिला।

शूटिंग में शुरुआत

मनु की माँ ने उनके लिए प्रिंसिपल की नौकरी छोड़ दी और उन्हें शूटिंग में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। मनु की मां जिस स्कूल में प्रिंसिपल थीं, वहां एक शूटिंग रेंज थी। वहां मनु ने अपने पहले ही शॉट से कोच अनिल जाखड़ को प्रभावित किया। उन्होंने मनु की प्रतिभा को पहचाना और उसे शूटिंग में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। मनु की मेहनत और कोच की मार्गदर्शन ने उन्हें नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर सफलता दिलाई।

मनु भाकर ने अपने निशानेबाजी में की शुरुआत 2017 में की, जब उन्होंने केरल में आयोजित राष्ट्रीय चैंपियनशिप में 9 स्वर्ण पदक जीतकर नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। इसी वर्ष एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में उन्होंने रजत पदक जीता।

2018 में मनु ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी। मैक्सिको के ग्वाडलजारा में आयोजित ISSF विश्व कप में उन्होंने 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। 16 साल की उम्र में वह विश्व कप में स्वर्ण जीतने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय बनीं। इसी वर्ष उन्होंने ISSF जूनियर विश्व कप में भी डबल स्वर्ण जीता।

2018 राष्ट्रमंडल खेलों में मनु ने 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता और एक नया रिकॉर्ड भी बनाया। युवा ओलंपिक खेलों में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा।

2019 में मनु ने तीनों ISSF विश्व कप के मिक्स्ड डबल्स इवेंट में सौरभ चौधरी के साथ स्वर्ण पदक जीते। म्यूनिख विश्व कप में चौथे स्थान पर रहकर उन्होंने टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया।

2021 नई दिल्ली ISSF विश्व कप में मनु ने 10 मीटर एयर पिस्टल में स्वर्ण और रजत तथा 25 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य पदक जीता।

टोक्यो ओलिंपिक 2021

2021 के टोक्यो ओलिंपिक में मनु भाकर की पिस्टल खराब हो गई थी, जिससे वे क्वालिफाइंग राउंड में ही बाहर हो गईं। इस असफलता के बाद मनु बेहद उदास हो गईं और उनकी मां को उनकी चिंता होने लगी। उन्होंने मनु की पिस्टल छिपा दी ताकि वह दुखी न हों। लेकिन मनु ने हार नहीं मानी और एक बार फिर से प्रैक्टिस शुरू कर दी।

टोक्यो ओलंपिक 2020 में मनु का प्रदर्शन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। तकनीकी खराबी और दबाव के कारण वह पदक नहीं जीत सकीं।

ओलंपिक के बाद, मनु ने लीमा में आयोजित जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 10 मीटर एयर पिस्टल में स्वर्ण जीता। 2022 काहिरा विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने 25 मीटर पिस्टल में रजत और 2023 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

मनु भाकर ने पेरिस ओलंपिक में ब्रान्ज मेडल जीतकर एक नया इतिहास रचा और ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली महिला निशानेबाज होने का गौरव भी प्राप्त किया।

विशेष उपलब्धि

मनुभाकर के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि उन्होंने पेरिस ओलंपिक में 2 ब्रांज मेडल जीते। वह निशानेबाजी में भारत के लिए मेडल जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी भी बनीं। वह एक ही ओलंपिक में दो मेडल जीतने वाली भी पहली भारतीय एथलीट बनीं।

मनु भाकर की सबसे बड़ी उपलब्धि 16 साल की उम्र में ISSF विश्व कप में स्वर्ण पदक जीतना रही है। वह यह कारनामा करने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय बनीं। इसके अलावा, वह युवा ओलंपिक खेलों में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट भी बनीं।

मनु भाकर ने पेरिस ओलंपिक में भारत का नाम रोशन किया। हालांकि वे तीन मेडल की हैट्रिक नहीं लगा पाईं, फिर भी उनकी झोली में दो कांस्य पदक आए। मनु ने तीन इवेंट्स में हिस्सा लिया और तीनों के फाइनल में पहुंचकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।

नया इतिहास रचने वाली पहली भारतीय एथलीट

मनु भाकर एक ही ओलंपिक में तीन इवेंट्स के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली एथलीट बन गईं। यह उपलब्धि उनके नाम को इतिहास में दर्ज करा गई, भले ही उन्होंने तीनों इवेंट्स में मेडल न जीता हो।

25 मीटर पिस्टल इवेंट में रोमांचक मुकाबला

पेरिस ओलंपिक में मनु का अंतिम मुकाबला 25 मीटर पिस्टल इवेंट था। वे लगातार टॉप-3 में चल रही थीं, लेकिन 8वें राउंड में केवल 2 टारगेट हिट करने के कारण चौथे स्थान पर आ गईं। तीसरे स्थान के लिए हुए शूटआउट में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

यूथ ओलंपिक की स्वर्ण पदक विजेता

मनु भाकर ने 2018 में अर्जेंटीना में हुए यूथ ओलंपिक के 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में गोल्ड मेडल जीता था। वह मात्र 16 वर्ष की उम्र में यह उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की पहली महिला और पहली शूटर बनीं।

पेरिस ओलंपिक में दोहरी सफलता

मनु ने पेरिस ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में पहला ब्रॉन्ज मेडल जीता, जो किसी भारतीय महिला द्वारा ओलंपिक शूटिंग में जीता गया पहला मेडल था। उन्होंने 10 मीटर मिक्स्ड टीम इवेंट में दूसरा ब्रॉन्ज मेडल जीतकर अपनी सफलता को दोहराया।

पुरस्कार और सम्मान

मनु भाकर को उनकी उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है:

○ 2020 में अर्जुन पुरस्कार
○ 2019 में भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा “वर्ष के सर्वश्रेष्ठ युवा एथलीट (महिला)” का पुरस्कार
○ 2018 में BBC की भारत की इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द ईयर अवार्ड

सफलता की ओर कदम

टोक्यो ओलिंपिक के बाद मनु ने खुद को फिर से तैयार किया और पेरिस ओलिंपिक 2024 के लिए क्वालिफाई किया। उन्होंने 10 मीटर एयर पिस्टल कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत को पहला ओलिंपिक मेडल दिलाया। वे ओलिंपिक में शूटिंग में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं।

मनु भाकर की नेटवर्थ

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मनु भाकर की नेटवर्थ लगभग 12 करोड़ रुपये है। यह राशि उनके टूर्नामेंट्स, इनामी राशि, एंडोर्समेंट्स और स्पॉन्सर्स से प्राप्त होती है। मनु भारतीय निशानेबाजी की पोस्टर गर्ल हैं और सोशल मीडिया पर भी काफी लोकप्रिय हैं।

मनु भाकर को कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने के बाद हरियाणा सरकार ने 2 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि दी थी। इसके अलावा, अन्य टूर्नामेंट्स जीतने पर भी उन्हें कई इनामी राशि प्राप्त हुई है। उनके इंस्टाग्राम पर 2 लाख और ट्विटर पर डेढ़ लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं।

मनु भाकर को ओजी क्यू द्वारा स्पॉन्सर किया जाता है, जो उनकी ट्रेनिंग और टूर्नामेंट्स के खर्च को कवर करता है। वह भारतीय सरकार की टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS) का भी हिस्सा हैं। इस स्कीम के तहत पेरिस ओलंपिक की तैयारी के लिए मनु पर 1.68 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इस राशि का उपयोग उनकी पिस्टल की सर्विसिंग, एयर पेलेट्स और गोलियों पर किया गया है। इसके अलावा, जर्मनी में निजी कोच के साथ ट्रेनिंग के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान की गई है।

अंत में…

मनु भाकर भारतीय खेल जगत की एक चमकती हुई सितारा हैं। अपनी कम उम्र में ही उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वह अन्य युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। हालांकि टोक्यो ओलंपिक में उनका प्रदर्शन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा, लेकिन इससे उनके जज्बे पर कोई असर नहीं पड़ा है। वह लगातार अपने खेल में सुधार कर रही हैं और आने वाले समय में और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं।

मनु की कहानी दिखाती है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और परिवार का समर्थन मिले तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। उनकी सफलता ग्रामीण भारत की बेटियों के लिए एक मिसाल है कि वे भी अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं। आने वाले समय में मनु से भारत को और भी बड़ी उपलब्धियों की उम्मीद है, खासकर 2024 पेरिस ओलंपिक में। निःसंदेह, मनु भाकर भारतीय खेल के भविष्य की एक उज्ज्वल किरण हैं।

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 क्र. देश स्वर्ण रजत कांस्य कुल
71भारत0156
 1 संयुक्त राज्य अमेरिका 40 44 42 126
 2 चीन जनवादी गणराज्य 40 27 24 91
 3 जापान 20 12 13 45
 4 ऑस्ट्रेलिया 18 19 16 53
 5 फ्रांस 16 26 22 64
 6 नीदरलैंड 15 7 12 34
 7 ग्रेट ब्रिटेन 14 22 29 65
 8 दक्षिण कोरिया 13 9 10 32
 9 इटली 12 13 15 40
 10 जर्मनी 12 13 8 33
 11 न्यूजीलैंड 10 7 3 20
 12 कनाडा 9 7 11 27
 13 उज़्बेकिस्तान 8 2 3 13
 14 हंगरी 6 7 6 19
 15 स्पेन 5 4 9 18
 16 स्वीडन 4 4 3 11
 17 केन्या 4 2 5 11
 18 नॉर्वे 4 1 3 8
 19 आयरलैंड 4 0 3 7
 20 ब्राज़ील 3 7 10 20
 21 ईरान 3 6 3 12
 22 यूक्रेन 3 5 4 12
 23 रोमानिया 3 4 2 9
 24 जॉर्जिया 3 3 1 7
 25 बेल्जियम 3 1 6 10
 26 बुल्गारिया 3 1 3 7
 27 सर्बिया 3 1 1 5
 28 चेकिया 3 0 2 5
 29 डेनमार्क 2 2 5 9
 30 अज़रबैजान 2 2 3 7
 30 क्रोएशिया 2 2 3 7
 32 क्यूबा 2 1 6 9
 33 बहरीन 2 1 1 4
 34 स्लोवेनिया 2 1 0 3
 35 चीनी ताइपे 2 0 5 7
 36 ऑस्ट्रिया 2 0 3 5
 37 हांगकांग, चीन 2 0 2 4
 37 फिलीपींस 2 0 2 4
 39 अल्जीरिया 2 0 1 3
 39 इंडोनेशिया 2 0 1 3
 41 इज़राइल 1 5 1 7
 42 पोलैंड 1 4 5 10
 43 कज़ाखस्तान 1 3 3 7
 44 जमैका 1 3 2 6
 44 दक्षिण अफ्रीका 1 3 2 6
 44 थाईलैंड 1 3 2 6
 47 इथियोपिया 1 3 0 4
 48 स्विट्ज़रलैंड 1 2 5 8
 49 इक्वाडोर 1 2 2 5
 50 पुर्तगाल 1 2 1 4
 51 ग्रीस 1 1 6 8
 52 अर्जेंटीना 1 1 1 3
 52 मिस्र 1 1 1 3
 52 ट्यूनीशिया 1 1 1 3
 55 बोत्सवाना 1 1 0 2
 55 चिली 1 1 0 2
 55 सेंट लूसिया 1 1 0 2
 55 युगांडा 1 1 0 2
 59 डोमिनिकन गणराज्य 1 0 2 3
 60 ग्वाटेमाला 1 0 1 2
 60 मोरक्को 1 0 1 2
 62 डोमिनिका 1 0 0 1
 62 पाकिस्तान 1 0 0 1
 64 तुर्की 0 3 5 8
 65 मेक्सिको 0 3 2 5
 66 आर्मीनिया 0 3 1 4
 66 कोलंबिया 0 3 1 4
 68 किर्गिस्तान 0 2 4 6
 68 उत्तर कोरिया 0 2 4 6
 70 लिथुआनिया 0 2 2 4
 71 भारत 0 1 5 6
 72 मोल्दोवा 0 1 3 4
 73 कोसोवो 0 1 1 2
 74 साइप्रस 0 1 0 1
 74 फिजी 0 1 0 1
 74 जॉर्डन 0 1 0 1
 74 मंगोलिया 0 1 0 1
 74 पनामा 0 1 0 1
 79 ताजिकिस्तान 0 0 3 3
 80 अल्बानिया 0 0 2 2
 80 ग्रेनाडा 0 0 2 2
 80 मलेशिया 0 0 2 2
 80 प्युर्तो रिको 0 0 2 2
 84 कोते द’आइवोर 0 0 1 1
 84 काबो वर्दे 0 0 1 1
 84 शरणार्थी ओलंपिक टीम 0 0 1 1
 84 पेरू 0 0 1 1
 84 क़तर 0 0 1 1
 84 सिंगापुर 0 0 1 1
 84 स्लोवाकिया 0 0 1 1
 84 ज़ाम्बिया 0 0 1 1

 

 


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Courtesy

https://olympics.com/hi/paris-2024

Radha Yadav Life Scan – राधा यादव – संघर्ष से सितारों तक की कहानी

भारत की महिला क्रिकेट टीम भी आजकल मैदान में अपने झंडे गाढ़ रही है। एक-एक करके महिला क्रिकेट टीम की अनेक खिलाड़ी लड़कियां लोगों में सेलिब्रिटी बनती जा रही है। लोग अब पुरुष क्रिकेट क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह ही महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को भी सिर-आँखों पर बिठाने लगे हैं। ऐसी ही एक महिला क्रिकेट खिलाड़ी है, राधा यादव जो भारतीय टीम की बॉलर है। हाल ही में हुए एशिया कप के सेमीफाइनल मैच में राधा यादव ने बांग्लादेश के तीन विकेट चटकाकर अपनी उपयोगिता सिद्ध की। आइए राधा यादव (Radha Yadav Life Scan) के बारे में जानते हैं..

 

राधा यादव – मुंबई की झुग्गी से क्रिकेट के मैदान तक तक की कहानी (Radha Yadav Life Scan)

मुंबई की गलियों से निकलकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के मैदान तक पहुंचने की कहानी है राधा यादव की। एक ऐसी लड़की, जिसने अपने परिवार की आर्थिक तंगी और समाज की रूढ़िवादी सोच को चुनौती देते हुए अपने सपनों को साकार किया।

राधा यादव की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है। मुंबई की झुग्गी बस्तियों में पली-बढ़ी राधा ने कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए भारतीय महिला क्रिकेट टीम में अपनी जगह बनाई है। उनके पिता, ओमप्रकाश यादव, की किराना दुकान ने परिवार का भरण-पोषण किया, लेकिन यह व्यवसाय हर दिन नगर निगम की धमकी के कारण जोखिम में रहता था। इसके बावजूद, ओमप्रकाश ने अपनी बेटी को क्रिकेट में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

प्रारंभिक जीवन और संघर्ष

राधा का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक छोटे से अजोशी नामक गांव में हुआ था। रोजी-रोटी की तलाश में उनका परिवार मुंबई आ गया, जहां उनके पिता ने एक छोटी सी किराना दुकान शुरू की। राधा ने महज छह साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। गली में लड़कों के साथ क्रिकेट खेलते हुए, पड़ोसियों ने अक्सर तंज कसे, लेकिन उनके परिवार ने हमेशा उनका समर्थन किया।

कांदिवली के एक झुग्गी इलाके में 225 वर्ग फुट के घर में रहते हुए, राधा ने बचपन से ही क्रिकेट के प्रति अपने प्यार को बरकरार रखा।

“मैं अपने मोहल्ले के लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थी। कई लोग मेरे परिवार को ताने मारते थे कि लड़की होकर क्रिकेट खेल रही है, लेकिन मेरे माता-पिता ने कभी मुझे रोका नहीं,” राधा याद करती हैं।

क्रिकेट का सफर

राधा ने अपनी प्रारंभिक क्रिकेट शिक्षा मुंबई में ही ली। संसाधनों की कमी के बावजूद, उनके पिता ने उन्हें क्रिकेट खेलने से नहीं रोका।

आर्थिक तंगी के चलते राधा के पास क्रिकेट किट खरीदने के पैसे नहीं थे। वह लकड़ी के टुकड़े से बैट बनाकर प्रैक्टिस करती थी। उनके पिता उन्हें साइकिल पर बिठाकर तीन किलोमीटर दूर स्टेडियम छोड़ने जाते और राधा कभी टेम्पो तो कभी पैदल ही घर लौटती।

राधा की प्रतिभा को पहचानते हुए कोच प्रफुल नाइक ने उन्हें प्रशिक्षित करना शुरू किया। धीरे-धीरे राधा ने अपनी मेहनत से सफलता हासिल की और 2018 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम में जगह बनाई।

“जब मैंने पहली बार भारत के लिए खेला, तो राष्ट्रगान के दौरान मेरी आंखें भर आईं। मैंने हमेशा इस पल का सपना देखा था,” राधा भावुक होकर कहती हैं।

कठिनाइयों से सफलता तक

राधा के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। उनकी किराना दुकान म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के निरंतर खतरे में रहती थी। इसके बावजूद, राधा के पिता ने हमेशा उन्हें प्रेरित किया। राधा की मेहनत और उनके पिता के समर्थन ने उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम में जगह दिलाई। बीसीसीआई से अब उन्हें सालाना 10 लाख रुपये मिलते हैं, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।

आज राधा यादव एक उभरती हुई स्टार हैं। उन्होंने अपनी पहली कमाई से अपने पिता के लिए एक दुकान खरीदी। अब उनका सपना है कि वह अपने परिवार के लिए एक बड़ा घर खरीद सकें।

अंतरराष्ट्रीय करियर

राधा ने 2018 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की। उन्होंने टी20 इंटरनेशनल में बेहतरीन प्रदर्शन किया। उनके कोच प्रफुल नाइक ने उन्हें ट्रेनिंग दी और उनकी प्रतिभा को निखारा। राधा का कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलेंगी, लेकिन उनकी मेहनत और परिवार के समर्थन ने उन्हें यह मौका दिलाया।

भारतीय टीम में जगह बनाना

राधा ने अपनी मेहनत से भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की की। उन्होंने 2018 आईसीसी महिला विश्व ट्वेंटी 20 टूर्नामेंट में बेहतरीन प्रदर्शन किया। जनवरी 2020 में, उन्हें ऑस्ट्रेलिया में 2020 आईसीसी महिला टी 20 विश्व कप के लिए भारत की टीम में चुना गया। उनके प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय क्रिकेट में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना दिया है।

भविष्य की योजनाएँ

राधा का सपना है कि वह अपने परिवार के लिए एक घर खरीदे ताकि वे आराम से रह सकें। उनके पिता की मेहनत और संघर्ष ने उन्हें यह मुकाम दिलाया है। राधा यादव की कहानी एक प्रेरणा है कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी, मेहनत और लगन से सफलता हासिल की जा सकती है।

राधा यादव की कहानी न सिर्फ एक क्रिकेटर की, बल्कि एक बेटी की भी है जिसने अपने पिता के सपनों को साकार करने के लिए हर कठिनाई का सामना किया। उनके संघर्ष और सफलता की यह कहानी यकीनन हर उस व्यक्ति को प्रेरित करेगी जो अपने सपनों को साकार करने के लिए मेहनत कर रहा है।

राधा की कहानी दर्शाती है कि कैसे दृढ़ संकल्प और मेहनत से कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है। वह युवा लड़कियों के लिए एक प्रेरणा हैं, जो उन्हें सिखाती हैं कि परिस्थितियां कैसी भी हों, अपने लक्ष्य पर डटे रहना चाहिए।

राधा का कहना है, “मेरा संदेश सभी लड़कियों के लिए है कि वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करें और कभी हार न मानें। आप कुछ भी हासिल कर सकती हैं, बस विश्वास रखें और लगे रहें।”

आज राधा यादव न केवल एक सफल क्रिकेटर हैं, बल्कि वह अपने परिवार और समाज के लिए भी एक मिसाल हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सपने देखना और उन्हें पूरा करने के लिए संघर्ष करना कितना महत्वपूर्ण है। राधा यादव की यात्रा मुंबई की गलियों से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के मैदान तक की एक प्रेरणादायक गाथा है, जो हर किसी को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।


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Some information courtesy

https://en.wikipedia.org/wiki/Radha_Yadav

Indian squad in Peris Olympic – पेरिस ओलंपिक 2024 में जाने वाले पूरे भारतीय दल की मुख्य बातें जानें।

26 जुलाई से पेरिस में 33वें समर ओलंपिक की शुरुआत हो रही है, जिसमें भारत का 117 खिलाड़ियों का दल (Indian squad in Peris Olympic) हिस्सा लेगा। इस बार भारत की उम्मीदें ऊंची हैं और कई खिलाड़ी पहली बार ओलंपिक में शामिल हो रहे हैं।

महत्वपूर्ण आंकड़े (Indian squad in Peris Olympic)

कुल 117 खिलाड़ी पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।

भारतीय खिलाड़ी 95 पदकों के लिए दावेदारी पेश करेंगे।

भारत 16 खेलों में हिस्सा लेगा। भारत इन 16 खेलों की 69 स्पर्धाओं में भाग लेगा।

नीरज चोपड़ा एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो अपने गोल्ड मेडल को डिफेंट करने के लिए उतरेंगे क्योंकि पिछले टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने जैवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीता था।

अंतिम पंघाल (पुरुष रेसलिंग), मीराबाई चानू (वेटलिफ्टिंग), तूलिका मान (जूडो), और अनुष अग्रवाल (घुड़सवारी) जो अपने अपने खेलों अकेले भाग लेने वाले खिलाड़ी हैं।

पारुल चौधरी (3000 मीटर स्टीपलचेज और 5000 मीटर) और मनु भाकर (10 मीटर एयर पिस्टल और 25 मीटर पिस्टल) दो स्पर्धाओं में हिस्सा लेंगी।

पीवी सिंधु लगातार तीसरे ओलंपिक में पदक जीतने की कोशिश करेंगी। उन्होंने रियो में सिल्वर और टोक्यो में ब्रॉन्ज जीता था।

नीरज चोपड़ा, पीवी सिंधु, मीराबाई चानू, लवलिना बोरोगोहेन और पुरुष हॉकी टीम – ये पांच खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक के पदक विजेता हैं। अगर इनमें से कोई पदक जीतता है, सुशील कुमार और पीवी सिंधु के बाद दो ओलंपिक पदक जीतने वाले खिलाड़ी बन जाएंगे।

दल की सबसे युवा खिलाड़ी धिनिधी देसिंघु (14 साल) स्वीमिंग में भाग लेंगी। तो टेनिस में रोहन बोपन्ना (44 साल) दल के सबसे वरिष्ठ खिलाड़ी हैं।

21 निशानेबाज भारतीय दल में शामिल हैं, और भारत पहली बार शूटिंग के सभी इवेंट्स में भाग लेगा।

हरियाणा के 28 खिलाड़ी दल का हिस्सा हैं।

भारतीय दल में कुल 29 एथलीट्स हैं।

47 महिला खिलाड़ी दल में शामिल हैं।

72 खिलाड़ी पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लेंगे।


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साभार

https://www.jansatta.com/

Drongiri Parvat – द्रोणागिरी पर्वत और नीति गाँव – जहां नहीं होती हनुमानजी की पूजा

हनुमान जी बलशाली है, और शक्ति के पर्याय के रूप में जाने जाते हैं। रामायण में उनकी वीरता और शौर्य से भरे अनेक प्रसंग हैं। आज सर्वत्र हनुमान जी की पूजा होती है। भारत में किसी देवता के मंदिरों की बात की जाए तो हनुमान जी के मंदिर भारत में सबसे अधिक हैं। लेकिन भारत में एक ऐसा गाँव भी है, जहाँ के लोग हनुमान जी की पूजा नहीं करते हैं। आइए जानते हैं वो गाँव कौन सा है….

दोर्णगिरि पर्वत (Drongiri Parvat) और नीति गाँव

उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ से 50 किलोमीटर दूर स्थित नीति गाँव में द्रोणागिरी पर्वत (Drongiri Parvat) है। यह पर्वत रामायण काल से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि श्रीराम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी मेघनाद के दिव्यास्त्र से मुर्छित हो गए थे। तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने द्रोणागिरी पर्वत आए थे। यहां के लोग इस पर्वत को देवता मानते हैं और हनुमानजी की पूजा नहीं करते क्योंकि उन्होंने पर्वत का एक हिस्सा उखाड़ लिया था।

हनुमानजी संजीवनी बूटी पहचान नहीं पाए, तो पूरा पर्वत का एक हिस्सा ही उठा लिया और लंका ले गए। बद्रीनाथ धाम से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित यह पर्वत आज भी कटा हुआ दिखता है। बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल बताते हैं कि यह हिस्सा स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

शीतकाल में वीरान हो जाता है गाँव

द्रोणागिरी पर्वत की ऊंचाई 7,066 मीटर है। यहां सर्दियों में भारी बर्फबारी होती है, जिससे गाँव के लोग अन्य स्थानों पर चले जाते हैं। गर्मियों में जब मौसम अनुकूल होता है, तब वे वापस लौटते हैं।

ट्रैकिंग प्रेमियों का आकर्षण

जोशीमठ से मलारी की ओर बढ़ते हुए जुम्मा नामक जगह से द्रोणागिरी गाँव के लिए पैदल मार्ग शुरू होता है। धौली गंगा नदी पर बने पुल को पार कर संकरी पहाड़ी पगडंडियों से होते हुए द्रोणागिरी पर्वत तक पहुंचा जा सकता है। यह 10 किलोमीटर का मार्ग ट्रैकिंग प्रेमियों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है और वे यहां भारी संख्या में आते हैं।

जून में पर्वत पूजा का उत्सव

हर साल जून में द्रोणागिरी पर्वत की विशेष पूजा होती है। इस अवसर पर गाँव के लोगों के साथ अन्य राज्यों में बसे लोग भी शामिल होते हैं।


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उत्तराखंड में रामनगर के पास है, वह जगह जहाँ माता सीता धरती में समाई थीं।

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ऋषभ पंत के नाम से कौन परिचित नहीं है। अपनी प्रतिभा और दमदार परफार्मेंस से ऋषभ पंत ने भारत के क्रिकेट अपनी एक नई पहचान बना ली है। वह भारत में उभरता हुआ नाम हैं। उन्होंने अपने प्रदर्शन से लोगों के दिलों में जगह बनाई है। कार दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होने के बाद अपने क्रिकेट में अपनी असंभव वापसी को संभव बनाने वाले इस विकेट कीपर बल्लेबाज के जीवन पर एक नजर डालते हैं…

ऋषभ पंत (Rishabh Pant A life scan)

जन्म, परिवार और जीवन यात्रा

भारतीय क्रिकेटर ऋषभ पंत का जन्म 4 अक्टूबर 1997 को हरिद्वार के रुड़की में एक कुमाउनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम राजेंद्र पंत और माँ का नाम सरोज पंत था। ऋषभ की एक बड़ी बहन भी हैं, जिनका नाम साक्षी पंत है। ऋषभ बचपन से ही क्रिकेट के दीवाने थे और ऑस्ट्रेलियाई विकेटकीपर एडम गिलक्रिस्ट से प्रेरित थे।

ऋषभ पंत की प्रारंभिक शिक्षा इंडियन पब्लिक स्कूल, देहरादून में हुई और बाद में श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली में पढ़ाई की।

व्यक्तिगत जानकारी (संक्षेप में)

जन्म : 4 अक्टूबर 1997, हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत
उम्र : 25 साल (2022 में)
शिक्षा : इंडियन पब्लिक स्कूल, देहरादून; श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली
धर्म : हिन्दू
जाति : कुमाउनी ब्राह्मण
गृह स्थान : रुड़की, उत्तराखंड, भारत
लंबाई : 5 फीट 7 इंच
वजन : 65 किलो
प्रोफेशन : क्रिकेटर (बल्लेबाज, विकेटकीपर)
जर्सी नंबर : 77 (भारत)
कोच : तारक सिन्हा
वैवाहिक स्थिति : अविवाहित

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

ऋषभ पंत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंडियन पब्लिक स्कूल, देहरादून से प्राप्त की। क्रिकेट में रुचि के कारण, उन्होंने दिल्ली में कोच तारक सिन्हा के तहत प्रशिक्षण लेना शुरू किया। ऋषभ के पिता ने उनके सपनों को साकार करने के लिए दिल्ली में बसने का निर्णय लिया। 2017 में ऋषभ पंत के पिता का निधन हो गया उसके बाद से वह उनका माँ और बड़ी बहन साक्षी ही उनके लिए महत्वपूर्ण हैं।

क्रिकेट करियर

ऋषभ पंत ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत राजस्थान से की लेकिन वहाँ पर बात नहीं बनी और फिर वे दिल्ली चले गए। वहां उन्होंने छोटे-मोटे मैच खेले और 2015 में दिल्ली के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया। भारतीय ए टीम में चयन के बाद, राहुल द्रविड़ की मार्गदर्शन में उनकी बल्लेबाजी में निखार आया।

ऋषभ का पहला टेस्ट मैच 18 अगस्त 2018 को इंग्लैंड के खिलाफ, पहला वनडे 21 अक्टूबर 2018 को वेस्टइंडीज के खिलाफ और पहला T20 मैच 1 फरवरी 2017 को इंग्लैंड के खिलाफ था।

उपलब्धियां

○ अंडर-19 विश्व कप 2016 में सबसे तेज 50 रन (18 गेंदों में)।
○ 2016-17 रणजी ट्रॉफी में तिहरा शतक (308 रन)।
○ 2016 रणजी ट्रॉफी में सबसे तेज शतक (48 गेंदों में)।
○ 2018 में टेस्ट डेब्यू में 7 कैच।
○ इंग्लैंड में शतक लगाने वाले पहले भारतीय विकेटकीपर।
○ चौथी पारी में शतक लगाने वाले विकेटकीपर।
○ एक टेस्ट में सर्वाधिक कैच (11 कैच)।
○ 2018 में IPL इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द ईयर।

दिल्ली से उभरते हुए युवा खिलाड़ी

ऋषभ पंत ने अंडर-19 करियर में शानदार किया। 2016 में अंडर-19 विश्व कप में भारत का हिस्सा बने। वहां उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

ऋषभ पंत ने शुरुआत में ही विकेटकीपिंग और बल्लेबाजी में ऋषभ पंत की प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था। उन्होंने बल्लेबाजी और विकेटकीपिंग दोनों में अच्छा किया।

ऋषभ पंत भारत के पूर्व कप्तान और विकेट कीपर महेंद्र सिंह धोनी को अपना आदर्श मानते हैं।

“ऋषभ पंत ने युवा वर्ग में अपने प्रदर्शन से सबका ध्यान आकर्षित किया था और जल्द ही वह भारतीय टीम का हिस्सा बन गए।”

ऋषभ पंत का इंटरनेशनल डेब्यू

ऋषभ पंत ने अंडर-19 क्रिकेट में अपना नाम कर लिया था। उनका शानदार प्रदर्शन उन्हें भारतीय टीम में लाया। 2017 में उन्होंने टी20 और वनडे में अपना पहला मैच खेला।

2018 में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट मैच में अपना पहला टेस्ट खेला। उन्होंने 114 रन बनाए। यह उनकी प्रतिभा का परिचय था।

ऋषभ पंत का क्रिकेट करियर शुरुआत और इंटरनेशनल डेब्यू भारत के लिए बड़ा मील का पत्थर है। उनके प्रदर्शन ने उन्हें टीम का नियमित हिस्सा बना दिया। अब वह टीम के महत्वपूर्ण सदस्य हैं।

“ऋषभ पंत का इंटरनेशनल डेब्यू भारतीय क्रिकेट के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उनके प्रदर्शन से सबको उम्मीद है कि वह भविष्य में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे और टीम को कई जीत दिलाएंगे।”

ऋषभ पंत: दिल्ली कैपिटल्स के अभिमान

ऋषभ पंत भारतीय क्रिकेट के उभरते सितारे हैं। वह दिल्ली कैपिटल्स क्रिकेट टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं। वह 2016 में दिल्ली कैपिटल्स द्वारा खरीदे गए और तब से अब तक लगातार दिल्ली कैपिटल्स के साथ बने हुए हैं। अब वह दिल्ली कैपिटल्स के कप्तान भी हैं। उन्होंने कई मैचों में अपनी टीम को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

“ऋषभ पंत की बल्लेबाजी देखकर लगता है कि वह भारतीय क्रिकेट का भविष्य हैं।”

दिल्ली कैपिटल्स टीम के तत्कालीन कोच (अब नहीं) रिकी पोंटिंग ने ऋषभ पंत की प्रशंसा की है। उन्होंने कई शानदार पारियां खेली हैं। ऋषभ पंत का आईपीएल में प्रदर्शन शानदार रहा है। उनकी बल्लेबाजी और विकेटकीपिंग कौशल ने उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम में स्थान दिलाया है।

कार दुर्घटना और वापसी की कहानी

ऋषभ पंत, भारतीय क्रिकेट टीम के युवा और प्रतिभावान विकेटकीपर-बल्लेबाज, दिसंबर 2022 एक गंभीर कार दुर्घटना में घायल हो गए थे। यह दुर्घटना उनकी क्रिकेट करियर में एक बड़ा झटका था। लेकिन उन्होंने लगातार मेहनत करके जल्द ही वापसी कर ली और फिर से अपनी जगह बनाई।

ऋषभ पंत कार दुर्घटना की घटना के बारे में बात करते हुए, यह बताया गया कि उन्होंने अपने गाड़ी में नियंत्रण खो दिया था और गाड़ी डिवाइडर से टकरा गई। यह घटना दिसंबर 2022 में हुई थी, जब पंत कार खुद ड्राइव करते हुए दिल्ली से उत्तराखंड स्थित अपने घर जा रहे थे।

इस दुर्घटना में पंत को गंभीर चोटें आईं, जिनमें उनका सिर, पैर और पीठ शामिल थे। उनके एक पैर में फ्रैक्टर हो गया, और उन्हें चलने के लिए बैसाखियों का सहारा लेना पड़ता था। शुक्र था कि इस गंभीर दुर्घटना में उनकी जान बच गई। उनकी हालत को देखते हुए हर किसी को शंका थी कि अब शायद ही वह क्रिकेट के मैदान पर वापस लौट पाएं लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से उन्होंने इस असंभव को भी संभव कर दिखाया।

लगातार एक साल तक क्रिकेट मैदान से दूर रहने के बाद उन्होंने आईपीएल 2024 में अपनी टीम दिल्ली कैपिटल्स के लिए वापसी की। आईपीएल में उनकी परफार्मेंस शानदार रही। फिर उन्हें टी20 वर्ल्डकप के लिए भी चुना गया। वर्ल्ड कप में उन्होंने कुछ मैचों में अच्छा प्रदर्शन किया।

भारत ने वह टी20 वर्ल्डकप जीता जिसमें ऋषभ पंत का भी अहम योगदान रहा।

उनका कहना था कि…

“मेरी लगातार मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति ने मुझे जल्द ही वापसी करने में मदद की। मैं अब और मजबूत और तैयार हूं कि अपने भविष्य के लिए लड़ूं।”

ऋषभ पंत के परिवार के बारे में…

ऋषभ पंत के परिवार फिलहाल उनकी माँ सरोज पंत और बहन साक्षी पंत हैं। उनके पिता का 2017 में देहांत हो गया था। साक्षी पंत उनकी बड़ी बहन हैं, जो लंदन में रहकर पढ़ाई करती है। वह सोशल मीडिया पर भी एक्टिव रहती हैं। हाल में ही साक्षी पंत की सगाई हुई है।

ऋषभ पंत का लव लाइफ

ऋषभ पंत फिलहाल तो अविवाहित है लेकिन उनकी एक गर्ल फ्रेंड हैं, जिनका नाम ईशा नेगी है। वह भी उत्तराखंड से संबंध रखती हैं। दोनों पिछले सात साल से रिलेशनशिप मे है।

ऋषभ पंत की चोट और वापसी की कहानी भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों के लिए एक प्रेरणा बन गई है। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और लगन ने उन्हें एक बार फिर से मैदान पर वापस लाने में मदद की है। अब वे अपने ऋषभ पंत की चोट की कहानी के साथ खेल रहे हैं।

हालांकि, यह एक कठिन यात्रा रही है, लेकिन ऋषभ पंत ने अपनी शक्ति और लगन का प्रदर्शन किया है। उनकी वापसी क्रिकेट प्रशंसकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो उनके भविष्य के लिए उत्साहित हैं।

ऋषभ पंत (Rishabh Pant) के सोशल अकाउंट
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P. R. Sreejesh – पी. आर. श्रीजेश – भारतीय हॉकी के महानायक गोलकीपर

परट्टू रवींद्रन श्रीजेश (Parattu Ravindran Sreejesh) जिन्हें आमतौर पर पीआर श्रीजेश (P. R. Sreejesh) के नाम से जाना जाता है, भारतीय हॉकी के एक महान खिलाड़ी हैं। उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के साथ गोलकीपर के रूप में काफी लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी हैं। पी. आर. श्रीजेश भारतीय हॉकी के एक ऐसे महानायक हैं जिन्होंने अपने दम पर कई मैचों का रुख बदल दिया और भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। आइए उनके विषय में जानते हैं…

पी. आर. श्रीजेश का जीवननामा (P. R. Sreejesh Biography)

36 वर्षीय श्रीजेश का जन्म केरल के एर्नाकुलम जिले के किझक्कम्बलम गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। केरल के एर्नाकुलम जिले के किझक्कम्बलम गांव में किसान परिवार में जन्मे श्रीजेश शुरुआत में एथलेटिक्स की ओर आकर्षित थे, और स्प्रिंट, लंबी कूद तथा वॉलीबॉल जैसों खेलों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

श्रीजेश के शुरुआती कोच जयकुमार और रमेश कोलप्पा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें निखारने का काम किया। इन कोचों से श्रीजेश ने न केवल हॉकी की बारीकियां सीखीं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी ग्रहण किए। उन्होंने श्रीजेश को सिखाया कि कैसे ध्यान केंद्रित करना है और अपने खेल को गंभीरता से लेना है। कोचों ने उन्हें यह भी समझाया कि एक गोलकीपर टीम के जीतने और हारने के बीच का अंतर हो सकता है, भले ही उसे इसका पूरा श्रेय न मिले।

श्रीजेश ने अपना अंतरराष्ट्रीय करियर 2006 में श्रीलंका में आयोजित दक्षिण एशियाई खेलों से शुरू किया। श्रीजेश ने 2006 में श्रीलंका में हुए दक्षिण एशियन गेम्स में अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की। इसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारतीय हॉकी टीम में उन्होंने अपनी जगह पक्की कर ली और अपने शानदार प्रदर्शन से टीम को कई महत्वपूर्ण जीत दिलाई।

तब से वे भारतीय हॉकी टीम के एक अभिन्न अंग रहे हैं। उन्होंने भारत के लिए 328 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं, जो उनकी निरंतरता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। श्रीजेश की विशेषता उनकी सहज प्रवृत्ति है, जो उन्हें पेनल्टी शूट-आउट जैसी तनावपूर्ण परिस्थितियों में विशेष रूप से प्रभावी बनाती है।

श्रीजेश के करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ 2012 के लंदन ओलंपिक के बाद आया, जहां भारतीय टीम का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसके बाद, भारतीय हॉकी प्रबंधन ने युवा खिलाड़ियों पर भरोसा जताया, जिनमें श्रीजेश भी शामिल थे। इस नई टीम ने आने वाले वर्षों में कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कीं। 2014 में, भारत ने एशियाई खेलों में 16 साल बाद स्वर्ण पदक जीता। 2015 में, टीम ने FIH हॉकी विश्व लीग फाइनल में कांस्य पदक जीता, जो 33 वर्षों में भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय पदक था।

टोक्यो ओलंपिक

श्रीजेश की सबसे बड़ी उपलब्धि 2021 के टोक्यो ओलंपिक में आई, जहां उनकी शानदार गोलकीपिंग ने भारत को 41 साल बाद कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उपलब्धि भारतीय हॉकी के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई।

श्रीजेश की प्रतिभा और योगदान को कई सम्मानों से नवाजा गया है। उन्हें 2015 में अर्जुन पुरस्कार और 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वे कुछ समय के लिए भारतीय टीम के कप्तान भी रहे, जिसमें 2016 के रियो ओलंपिक भी शामिल है।

करियर की उपलब्धियाँ

श्रीजेश ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। 2014 के एशियन गेम्स में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ पेनल्टी शूट-आउट में शानदार प्रदर्शन किया और भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। 2015 एफआईएच हॉकी विश्व लीग फाइनल में भी उन्होंने भारतीय टीम को कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय टीम ने उनकी कप्तानी में रजत पदक जीता।

संघर्ष और प्रेरणा

श्रीजेश का करियर कई उतार-चढ़ाव से भरा रहा। 2012 के लंदन ओलंपिक में भारतीय टीम का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक था, लेकिन इसके बाद श्रीजेश ने अपनी मेहनत और संघर्ष से टीम को नई दिशा दी। उन्होंने अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए और अपनी सहज प्रवृत्ति का उपयोग कर कई बार टीम को मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकाला।

योगदान और सम्मान

श्रीजेश ने न केवल अपने खेल से बल्कि अपने नेतृत्व और मार्गदर्शन से भी टीम को मजबूत किया। उन्होंने कृष्ण पाठक और सूरज करकेरा जैसे युवा गोलकीपरों को प्रशिक्षित कर भारतीय हॉकी का भविष्य सुरक्षित किया। उनके योगदान के लिए उन्हें 2015 में अर्जुन पुरस्कार और 2017 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

पेरिस ओलंपिक की तैयारी

हाल ही में, श्रीजेश ने घोषणा की है कि 2024 के पेरिस ओलंपिक उनका आखिरी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट होगा। उन्होंने कहा कि वे अपने करियर पर गर्व महसूस करते हैं और आशा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। श्रीजेश ने अपने परिवार, टीम के साथियों, कोचों, प्रशंसकों और हॉकी इंडिया के समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया है।

श्रीजेश की विरासत

वर्तमान में, श्रीजेश एक मेंटर की भूमिका भी निभा रहे हैं, जहां वे कृष्ण पाठक और सूरज करकेरा जैसे युवा गोलकीपरों को अपने अनुभव से सिखा रहे हैं और भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं। यह उनके खेल के प्रति समर्पण और आने वाली पीढ़ी के प्रति जिम्मेदारी का प्रमाण है।

हॉकी इंडिया के अध्यक्ष और पूर्व भारतीय कप्तान डॉ. दिलीप तिर्की ने श्रीजेश को एक विशेष खिलाड़ी बताया है और उनके भारतीय हॉकी में अनुकरणीय योगदान की सराहना की है। तिर्की को उम्मीद है कि श्रीजेश के संन्यास के फैसले से टीम पेरिस ओलंपिक में और भी प्रेरित होकर खेलेगी।

पीआर श्रीजेश भारतीय हॉकी के एक महान खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा, समर्पण और नेतृत्व क्षमता से न केवल अपना नाम रोशन किया, बल्कि पूरे देश का मान बढ़ाया। उनका करियर युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है और उनका योगदान भारतीय हॉकी के इतिहास में सदैव याद किया जाएगा। उनकी विरासत आने वाले खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी और भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी।

साभार

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गुरु पूर्णिमा – गुरु के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने का पर्व – कैसे मनाएं?

हमारा भारत व्रत एवं त्योहारों का देश है। जहां पर हर महीने कोई ना कोई व्रत, पर्व, त्योहार आदि मनाई जाते हैं। गुरु पूर्णिमा (guru purnima) अपने गुरु के प्रति आस्था प्रकट करने का एक ऐसा ही पर्व है, जो पूरे भारत में मनाया जाता है। ये क्यों मनाया जाता है, कब मनाया जाता है, जानें…

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)

गुरु पूर्णिमा अपने गुरु के प्रति सम्मान एवं आस्था प्रकट करने का एक अनोखा पर्व है, जो शिष्यों द्वारा अपने आध्यात्मिक गुरु के प्रति सम्मान एवं आस्था प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह पर्व भारत सहित नेपाल और भूटान जैसे देशों में भी बनाया जाता है, जहाँ पर हिंदू धर्म तथा बौद्ध धर्म को मानने वाले अनुयायियों की संख्या काफी अधिक मात्रा में है।

हिंदू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। यह तिथि सामान्यता जून अथवा जुलाई के माह में आती है।

यहाँ पर गुरु से तात्पर्य विद्यालय में शिक्षा देने वाले वर्तमान शिक्षक से ही नहीं बल्कि अपनी आध्यात्मिक गुरु से है। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने आध्यात्मिक गुरु के प्रति अपने श्रद्धा भाव प्रकट करते हैं। यदि गुरु साक्षात शारीरिक रूप में उनके सम्मुख उपस्थित हैं तो वह उनका पूजन करते हैं। यदि गुरु सशरीर इस संसार में नहीं है तो वह उनके विग्रह का पूजन करते हैं। जिनके कोई गुरु नहीं है वह अपने शिक्षक आदि के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं।

‘गुरु’ का क्या अर्थ है?

गुरु’ संस्कृत का मूल शब्द है। ये दो वर्णों गु’ एवं रु’ से मिलकर बना है। गु’ का अर्थ है, अंधकार’। ‘रु’ का अर्थ है, शमन करने वाला अर्थात मिटाने वाला। वह व्यक्तित्व जो हमारे जीवन में अज्ञानता के अंधकार को दूर कर हमारे मन में ज्ञान के प्रकाश को आलोकित करता है, वही गुरु है। जो हमें सत्य और असत्य के बीच का भेद करना सिखाता है, जो हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाता है, वह ही गुरु है। इसीलिए तो कहा गया है, कि…

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अर्थात गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु और गुरु साक्षात शिव है। वह साक्षात परबह्मा स्वरूप हैं। गुरु को साक्षात पर ब्रह्म का स्वरूप मानकर नमन है।

हिंदू धर्म में गुरु को बेहद महत्व दिया गया है अनेक कवियों ने गुरु को भगवान से भी कुछ स्थान देकर उन्हें उनकी महत्व प्रकट की है, जैसे कबीरदास कहते हैं…

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।

अर्थात मेरे सामने गुरु मेरे गुरु और ईश्वर दोनों साथ-साथ खड़े हैं। फिर भी मैं संशय की स्थिति में हूँ, मैं उलझन में हूँ कि मैं सबसे पहले किस के चरण स्पर्श करूं। फिर मैं निर्णय करता हूं कि मैं सबसे पहले गुरु के चरण स्पर्श करूंगा। क्योंकि ईश्वर को तो पहले मैंने कभी देखा नहीं था। मैं उनके बारे में जानता नहीं था। मैं उनके स्वरूप से परिचित नहीं था।

ईश्वर को समझने की का ज्ञान मेरे अंदर नहीं था। मेरे अंदर ईश्वर को समझने का ज्ञान गुरु ने पैदा किया। गुरु ने ही मुझे ईश्वर को पाने का रास्ता बताया। इसी कारण मेरे लिए तो सबसे पहले मेरे गुरु हैं। कबीर के दोहे से गुरु का महत्व प्रकट होता है।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं?

गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे अनेक कहानियां छिपी हुई है। अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध गौतम बुद्ध ने इसी दिन सारनाथ में सबसे पहले अपने प्रथम उपदेश दिया था। गौतम बुद्ध ने अपने पाँच शिष्यों को सारनाथ में सबसे पहला उपदेश दिया जिसमें उन्होंने चार आर्य सत्य, चार अष्टांगिक मार्ग जैसे गूढ़ बातें बताई थीं। तब से इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। यह दिन बौद्ध धर्म की शुरुआत का दिन भी माना जाता है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार प्राचीन काल के महान संत-गुरु महर्षि वेदव्यास का जन्म इसी दिन हुआ था। महर्षि वेदव्यास को ही हिंदुओं के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथों का संकलन करने का श्रेय दिया जाता है। इसी कारण इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

अन्य मान्यता के अनुसार एक बार जब भगवान शिव जब हिमालय में तपस्या कर रहे थे तो सप्तर्षी उनके पास आए और उन्हें ज्ञान एवं योग सिखाने के लिए कहा। शिव साक्षात योगीराज हैं। वह सप्तर्षियों को योग सिखाने पर सहमत हो गए और वह सप्तर्षियों के गुरु बन गए। उस दिन आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि थी। इसीलिए तभी से गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाने लगा।

गुरु पूर्णिमा को कैसे मनाते हैं?

गुरु पूर्णिमा को मनाने के लिए शिष्य अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार अलग-अलग विधियों से गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाते हैं। हिंदू धर्म में सामान्यतः हर किसी का कोई ना कोई आध्यात्मिक गुरु होता है। इस दिन लोग अपने अपने आध्यात्मिक गुरु के पास जाते हैं। उनकी पूजा करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं उनकी प्रार्थना करते हैं तथा उन्हें दान दक्षिणा देते हैं।

यदि गुरु सशरीर उपलब्ध नहीं है तो उनके चित्र अथवा विग्रह के सामने अपने पूजन कार्य संपन्न करते हैं। बहुत से लोग इस दिन ध्यान आदि कर अपने गुरु के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करते हैं। वर्तमान समय में विद्यार्थी अपने अपने प्रिय शिक्षक के प्रति अपना श्रद्धा भाव प्रकट कर गुरु पूर्णिमा को मना सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनानी चाहिए?

हम जन्म से ही ज्ञानी नहीं बन जाते। हम अज्ञानी ही पैदा होते हैं। हमें जान से समृद्ध यदि कोई करता है तो वह हमारे गुरु ही होता है। वह गुरु हमारे शिक्षक के रूप में हो सकता है, हमारे आध्यात्मिक रूप के रूप में हो सकता है। भारत में गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा तो अपने आध्यात्मिक गुरु के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करने के लिए ही हुई थी। इसलिए गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा भाव प्रकट करने के लिए भी गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। जिनके कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं है। वह अपने शिक्षक के प्रति अपने अपना सम्मान प्रकट कर गुरु पूर्णिमा का पर्व मना सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करें?

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की विशिष्ट पूजा की जाती है। इस दिन गुरु का विशिष्ट विधि से पूजन करके उनके प्रति अपना श्रद्धा भाव प्रकट किया जाता है। गुरु तो वर्ष के 365 दिन स्मरणीय और वंदनीय होते हैं, लेकिन गुरु पूर्णिमा का दिन उनके प्रति विशेष आस्था एवं श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही गुरु पूर्णिमा के दिन नियत है।

इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विधान है। इसलिए अपने आसपास की किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। यदि आस पास कोई पवित्र नदी ना हो या नदी में स्नान करने के लिए ना जा सकें तो घर में ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है।

गुरु का पूजन कैसे करें?

सुबह-सुबह स्नान एवं ध्यान करके घर में एक चौकी स्थापित करें। उस पर अपने गुरु का चित्र स्थापित करें।

उनका आह्वान करें। गुरु व्यास के सहित सभी गुरुओं का भी आह्वान करें। फिर  षोडशोपचार विधि (चंदन, अक्षत, पुष्प धूप, दीप, नैवेद्य) से पूजा करें तथा अपने गुरु द्वारा किए गए मंत्र का कम से कम एक माला मंत्र जाप करें।

यदि संभव हो सके तो गुरु के घर जाकर उन्हें दान-दक्षिणा दें और उनसे आशीर्वाद लें।

गुरु के पास जाना संभव नहीं है, तो गुरु की चरण पादुका की पूजा करें।

गुरु पूर्णिमा के दिन पीले वस्त्र, पीली दाल, केसर, पीतल के बर्तन, पीले रंग की कोई मिठाई आदि का दान करना शुभ रहता है।

पीला रंग का संबंध गुरु ग्रह से होता है। इसलिए पीले रंग की वस्तुओं का दान करने से दुर्भाग्य दूर होता है और और जीवन में समृद्धि आती है

इस वर्ष 2024 में गुरु पूर्णिमा हिंदू पचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को है, जोकि इस वर्ष (2024) में 20 जुलाई 2024 संध्याकाल 5:59 से आरंभ होगी और 21 जुलाई को शाम 3:46 पर समाप्त होगी।

 


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मोबाइल नंबर पोर्ट करने से पहले आपके एरिये में BSNL या दूसरी मोबाइल कंपनी का नेटवर्क है या नहीं ये पता करें।

BSNL में स्विच करने से पहले जानें ये बातें (Mobile Network Coverage in area)

प्राइवेट टेलिकॉम कंपनियों ने मोबाइल रिचार्ज प्लान्स में बढ़ोतरी कर दी है, जिससे परेशान यूजर्स अब सरकारी टेलिकॉम कंपनी BSNL की ओर रुख कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी लोग BSNL नेटवर्क में स्विच करने की बात कर रहे हैं। हालांकि, BSNL में स्विच करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आपके क्षेत्र में BSNL का नेटवर्क उपलब्ध है (Mobile Network Coverage in area) या नहीं। ऐसा न करने पर आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है।

BSNL के सस्ते रिचार्ज प्लान्स

BSNL सस्ते रिचार्ज प्लान्स की पेशकश कर रहा है, जबकि जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया के प्लान्स महंगे हो गए हैं।

नुकसान का खतरा

टेलिकॉम नियमों के अनुसार, यदि आपने एक बार BSNL में स्विच कर लिया और BSNL का नेटवर्क कवरेज न होने पर आप फिर से जियो, एयरटेल या वोडाफोन-आइडिया में स्विच करना चाहेंगे, तो आपको 90 दिनों का इंतजार करना होगा।

BSNL नेटवर्क कवरेज कैसे जांचें

आप BSNL नेटवर्क कवरेज का पता ऑनलाइन nperf वेबसाइट से लगा सकते हैं। यह वेबसाइट वैश्विक मोबाइल नेटवर्क कवरेज की जानकारी देती है। nperf वेबसाइट का उपयोग करके आप आसानी से जान सकते हैं कि आपके क्षेत्र में BSNL का नेटवर्क कैसा है।

वेबसाइट पर मोबाइल नेटवर्क जांचने की प्रक्रिया

1. nperf वेबसाइट पर जाएं: [nperf.com](http://nperf.com)
2. My Account पर क्लिक करें: अपनी प्रोफाइल बनाएं।
3. Map ऑप्शन पर जाएं: Country और Mobile Network ऑप्शन चुनें।
4. अपनी लोकेशन सर्च करें: BSNL समेत अन्य नेटवर्क की जानकारी पाएं।

BSNL में MNP की प्रक्रिया

1. पोर्ट रिक्वेस्ट भेजें: 1900 पर ‘PORT स्पेस और 10 अंकों का मोबाइल नंबर’ लिखकर SMS भेजें।
2. BSNL सेंटर पर जाएं: आधार और अन्य विवरण के साथ पोर्ट रिक्वेस्ट पूरी करें।

MNP के नए नियम

TRAI के नए नियमों के अनुसार, किसी भी नए टेलिकॉम ऑपरेटर में शिफ्ट होने के लिए 7 दिनों का इंतजार करना होगा।

इस प्रकार, BSNL में स्विच करने से पहले इन सभी जानकारियों को ध्यान में रखते हुए ही निर्णय लें।


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अपने मोबाइल नंबर को BSNL में कैसे पोर्ट कैसे करें?

अपने मोबाइल नंबर को BSNL में कैसे पोर्ट कैसे करें?

बीएसएनएल में पोर्ट करने की प्रक्रिया (How to port mobile number to BSNL)

जियो और एयरटेल के रिचार्ज प्लान में बढ़ोतरी के चलते लोग सस्ते विकल्प के रूप में बीएसएनएल की ओर रुख कर रहे हैं। महंगे रिचार्ज प्लान्स के बीच, कई लोग बीएसएनएल में मोबाइल नंबर पोर्टिबिलिटी (MNP) के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं। यदि आप भी जियो या एयरटेल यूजर हैं और बीएसएनएल में सिम पोर्ट करना चाहते (How to port mobile number) हैं, तो जानें इसकी प्रक्रिया…

बीएसएनएल में पोर्ट कैसे करें

1. सबसे पहले, आपको 1900 पर एक एसएमएस भेजकर मोबाइल नंबर पोर्ट की रिक्वेस्ट करनी होगी।
2. एसएमएस में ‘PORT’ लिखकर एक स्पेस के बाद अपना 10 अंकों का मोबाइल नंबर दर्ज करें।
3. जम्मू कश्मीर के यूजर्स को 1900 पर कॉल करना होगा।
4. इसके बाद, आपको बीएसएनएल के सर्विस सेंटर पर जाना होगा, जहां आधार कार्ड या अन्य आईडी प्रूफ, फोटो और बायोमेट्रिक विवरण जमा करने होंगे।
5. बीएसएनएल की नई सिम आपको जारी कर दी जाएगी और इसके लिए कुछ चार्ज भी लिया जा सकता है।
6. आपको एक विशेष नंबर भेजा जाएगा, जिसकी मदद से आप अपना नया सिम एक्टिवेट कर सकते हैं।

MNP के नियम

जियो और एयरटेल यूजर्स का बीएसएनएल में पोर्ट कराने की प्रक्रिया समान है।
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) के नए नियमों के अनुसार, नया टेलिकॉम ऑपरेटर चुनने का वेटिंग पीरियड 7 दिन है। यानी, सिम पोर्ट करने के लिए 7 दिन का इंतजार करना होगा।
यदि आपका बैलेंस बकाया नहीं है, तो आपका मोबाइल नंबर 15 से 30 दिनों के भीतर एक्टिवेट कर दिया जाएगा।

इस प्रक्रिया से आप आसानी से बीएसएनएल में अपने नंबर को पोर्ट कर सकते हैं और सस्ते रिचार्ज प्लान्स का लाभ उठा सकते हैं।

अधिक जानकारी के लिए भारत में दूरसंचार सेवाओं पर नजर रखने वाली सरकारा संस्था ट्राइ (TRAI) की साइट पर विजिट करें…

https://www.trai.gov.in/


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ये जरूरी सरकारी मोबाइल एप आपके बड़े काम के हैं। आज ही अपने मोबाइल में इंस्टाल करें।

पेरिस ओलंपिक 2024 खेलों में भाग लेने वाले सभी देशों के नाम जानें…

फ्रांस की राजधानी पेरिस में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक 26 जुलाई से 11 अगस्त तक आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें 206 देशों के 10,500 से ज़्यादा एथलीट (Complete list of All Countries in Peris Olympic 2024) हिस्सा लेंगे।

खेलों के इस संस्करण में, ‘व्यक्तिगत तटस्थ एथलीट’ और शरणार्थी ओलंपिक टीम के अलावा लगभग 206 राष्ट्रीय ओलंपिक समितियाँ (एनओसी) प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हैं। ये ओलंपिक समितिया 206 देशों का प्रतिनिधित्व करती है।

रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के कारण, IOC ने रूसी और बेलारूसी एथलीटों को अपने-अपने देशों के झंडे तले प्रतिस्पर्धा करने से प्रतिबंधित कर दिया है। इन क्षेत्रों के एथलीट ‘व्यक्तिगत तटस्थ एथलीट’ के रूप में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जब तक कि वे संघर्ष का सक्रिय रूप से समर्थन नहीं करते।

पेरिस ओलंपिक 2024 में भाग लेने वाले सभी देश (Complete list of All Countries in Peris Olympic 2024)

पेरिस ओलंपिक में भाग लेने वाले सभी देशों की सूची इस प्रकार है…

अफ़गानिस्तान लक्जमबर्ग अल्बानिया लातविया
 अल्जीरिया मलावी अमेरिकी समोआ लेसोथो
 अंडोरा मालदीव अंगोला लीबिया
 एंटीगुआ और बारबुडा माल्टा अर्जेंटीना लिथुआनिया
 आर्मेनिया मॉरिटानिया अरूबा मेडागास्कर
 ऑस्ट्रेलिया मेक्सिको ऑस्ट्रिया मलेशिया
 अज़रबैजान मोनाको बहामास माली
 बहरीन मोंटेनेग्रो बारबाडोस मार्शल द्वीप
 बेल्जियम मोजाम्बिक बेलीज़ मॉरीशस
 बेनिन नामीबिया बरमूडा मोल्दोवा
 भूटान नेपाल बोलीविया मंगोलिया
 बोस्निया और हर्जेगोविना न्यूजीलैंड बोत्सवाना मोरक्को
 ब्राज़ील नाइजर ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स म्यांमार
 ब्रुनेई उत्तर कोरिया बुल्गारिया नाउरू
 बुर्किना फ़ासो नॉर्वे बुरुंडी नीदरलैंड
 काबो वर्डे पाकिस्तान कंबोडिया निकारागुआ
 कैमरून फिलिस्तीन कनाडा नाइजीरिया
 केप वर्डे पापुआ न्यू गिनी केमैन द्वीप उत्तर मैसेडोनिया
 मध्य अफ्रीकी गणराज्य पेरू चाड ओमान
 चिली पोलैंड चीन पलाऊ
 कोलंबिया प्यूर्टो रिको कोमोरोस पनामा
 कांगो शरणार्थी ओलंपिक टीम कुक आइलैंड्स पैराग्वे
 कोस्टा रिका रवांडा क्रोएशिया फिलीपींस
 क्यूबा सेंट लूसिया साइप्रस पुर्तगाल
 चेक गणराज्य समोआ कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य कतर
 डेनमार्क साओ टोम और प्रिंसिपे जिबूती रोमानिया
 डोमिनिका सेनेगल डोमिनिकन गणराज्य सेंट किट्स और नेविस
 इक्वाडोर सेशेल्स मिस्र सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस
 अल साल्वाडोर सिंगापुर इक्वेटोरियल गिनी सैन मैरिनो
 इरिट्रिया स्लोवेनिया एस्टोनिया सऊदी अरब
 एस्वातिनी सोमालिया इथियोपिया सर्बिया
 माइक्रोनेशिया के संघीय राज्य दक्षिण कोरिया फिजी सिएरा लियोन
 फिनलैंड स्पेन फ्रांस (मेजबान) स्लोवाकिया
 गैबॉन सूडान गाम्बिया‘  सोलोमन द्वीप
 जॉर्जिया स्वीडन जर्मनी दक्षिण अफ्रीका
 घाना सीरिया ग्रेट ब्रिटेन दक्षिण सूडान
 ग्रीस तंजानिया ग्रेनेडा श्रीलंका
 गुआम तिमोर-लेस्ते ग्वाटेमाला सूरीनाम
 गिनी टोंगा गिनी-बिसाऊ स्विट्जरलैंड
 गुयाना ट्यूनीशिया हैती ताजिकिस्तान
 होंडुरास तुर्कमेनिस्तान हांगकांग थाईलैंड
 हंगरी युगांडा आइसलैंड टोगो
 भारत संयुक्त अरब अमीरात व्यक्तिगत तटस्थ एथलीट त्रिनिदाद और टोबैगो
 इंडोनेशिया उरुग्वे ईरान तुर्की
 इराक वानुअतु आयरलैंड तुवालु
 इजराइल वियतनाम इटली यूक्रेन
 आइवरी कोस्ट वर्जिन द्वीप, यू.एस. जमैका संयुक्त राज्य अमेरिका
 जापान जाम्बिया जॉर्डन उज्बेकिस्तान
 कजाकिस्तानलिकटेंस्टीन केन्या वेनेजुएला
 किरिबातीलेबनान कोसोवो वर्जिन द्वीप ब्रिटिश
 कुवैतलाइबेरिया किर्गिस्तान यमन
लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक जिम्बाब्वे

 

साभार

https://olympics.com/en/paris-2024


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पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए मेन्स हॉकी टीम इंडिया को जानें।

India schedule in Peris Olympic 2024 – पेरिस ओलंपिक खेल 2024 में भारत का पूरा शेड्यूल जानें

सभी ओलंपिक खेलों में भारत का प्रदर्शन।

पेरिस ओलंपिक में जाने वाले पूरे भारतीय दल को जानें…

पेरिस 2024 ओलंपिक में भारतीय दल (Full Indian Squad in Peris Olympic 2024)

26 जुलाई 2024 से फ्रांस की राजधानी पेरिस में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक शुरु होने वाले है। खेलों का ये सबसे बड़ा महाकुंभ 26 जुलाई से 11 अगस्त 2024 तक चलेगा।

पिछले 2020 टोक्यो ओलंपिक में भारत ने अभी तक का अपना सबसे बड़ा दल भेजा था। टोक्यो 2020 में, 124 भारतीय एथलीटों ने भाग लिया, जो अब तक का सबसे बड़ा दल था। उन्होंने कुल सात पदक जीते, जिसमें नीरज चोपड़ा का भाला फेंक में ऐतिहासिक स्वर्ण पदक भी शामिल था।

भारतीय एथलीटों की संख्या ओलंपिक खेलों में लगातार बढ़ रही है। पेरिस 2024 के लिए भी भारत को और अधिक एथलीटों के क्वालीफाई करने की उम्मीद है। ट्रैप शूटर भवानीश मेंदीरत्ता ने 2022 ISSF विश्व चैंपियनशिप में पहला कोटा जीता, लेकिन राष्ट्रीय ट्रायल में सफल नहीं हो सके। उनकी जगह पृथ्वीराज टोंडैमन को मिला।

पहली बार, भारतीय निशानेबाजों ने हर ओलंपिक शूटिंग श्रेणी में कोटा हासिल किया है। मनु भाकर ने महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल और 25 मीटर पिस्टल में शीर्ष स्थान प्राप्त किया। एनआरएआई ने पिस्टल कोटा में से एक को महिला ट्रैप शूटर के लिए बदल दिया, जिसे श्रेयसी सिंह ने प्राप्त किया।

हालांकि, कई क्वालीफाई किए हुए निशानेबाज अंतिम टीम में जगह नहीं बना सके। पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल के लिए रुद्राक्ष पाटिल की जगह संदीप सिंह ने ली। अन्य क्वालीफाइंग निशानेबाज जैसे तिलोत्तमा सेन, अखिल श्योराण, मेहुली घोष भी अंतिम टीम में नहीं चुने गए।

क्वालीफिकेशन प्रक्रिया में, कोटा देश द्वारा जीता जाता है, न कि व्यक्तिगत एथलीटों द्वारा। इस प्रकार, कोटा जीतने वाले एथलीट को दूसरे एथलीट से बदला जा सकता है।

रेस वॉकर प्रियंका गोस्वामी और अक्षदीप सिंह एथलेटिक्स स्पर्धाओं के लिए पहले भारतीय थे। पुरुषों की 20 किमी रेस वॉक में चार भारतीयों ने क्वालीफाई किया, लेकिन केवल अक्षदीप सिंह, विकास सिंह और परमजीत सिंह बिष्ट को ही चयनित किया गया।

महिला मुक्केबाज जैस्मीन लैम्बोरिया ने 57 किग्रा में कोटा हासिल किया, जबकि परवीन हुड्डा को निलंबित कर दिया गया।

भारतीय दल पेरिस ओलंपिक में… (Full Indian Squad in Peris Olympic 2024)

पेरिस 2024 के लिए अब तक क्वालीफाई किए हुए सभी भारतीय एथलीटों की पूरी सूची यहां दी गई है।

क्रमएथलीट का नामखेलस्पर्धा
1पृथ्वीराज टोंडैमैनशूटिंगपुरुषों की ट्रैप
2संदीप सिंहशूटिंगपुरुषों की 10मी एयर राइफल, 10मी एयर राइफल मिश्रित टीम
3स्वप्निल कुसालेशूटिंगपुरुषों की 50मी राइफल 3 पोजीशन
4ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमरशूटिंगपुरुषों की 50मी राइफल 3 पोजीशन
5एलेवेनिल वलारिवनशूटिंगमहिलाओं की 10मी एयर राइफल, 10मी एयर राइफल मिश्रित टीम
6सिफ्त कौर सामराशूटिंगमहिलाओं की 50मी राइफल 3 पोजीशन
7राजेश्वरी कुमारीशूटिंगमहिलाओं की ट्रैप
8अक्षदीप सिंहएथलेटिक्सपुरुषों की 20कि.मी. रेस वॉक
9प्रियंका गोस्वामीएथलेटिक्समहिलाओं की 20कि.मी. रेस वॉक
10विकास सिंहएथलेटिक्सपुरुषों की 20कि.मी. रेस वॉक
11परमजीत बिष्टएथलेटिक्सपुरुषों की 20कि.मी. रेस वॉक
12अविनाश साबलेएथलेटिक्सपुरुषों की 3000मी स्टेपलचेज
13नीरज चोपड़ाएथलेटिक्सपुरुषों की जेवलिन थ्रो
14पारुल चौधरीएथलेटिक्समहिलाओं की 3000मी स्टेपलचेज, महिलाओं की 5000मी
15अंतीम पंघलकुश्तीमहिलाओं की 53कि.ग्रा.
16निखत ज़रीनबॉक्सिंगमहिलाओं की 50कि.ग्रा.
17प्रीति पवारबॉक्सिंगमहिलाओं की 54कि.ग्रा.
18लवलीना बोरगोहेनबॉक्सिंगमहिलाओं की 75कि.ग्रा.
19किशोर जेनाएथलेटिक्सपुरुषों की जेवलिन थ्रो
20टीम इंडिया*हॉकीपुरुषों की हॉकी
21सरबजोत सिंहशूटिंगपुरुषों की 10मी एयर पिस्टल, 10मी एयर पिस्टल मिश्रित टीम
22अर्जुन बबूताशूटिंगपुरुषों की 10मी एयर राइफल, 10मी एयर राइफल मिश्रित टीम
23रमिता जिंदलशूटिंगमहिलाओं की 10मी एयर राइफल, 10मी एयर राइफल मिश्रित टीम
24मनु भाकरशूटिंगमहिलाओं की 10मी एयर पिस्टल, 10मी एयर पिस्टल मिश्रित टीम, महिलाओं की 25मी पिस्टल
25अनिश भानवालाशूटिंगपुरुषों की 25मी रैपिड फायर पिस्टल
26अंजुम मौदगिलशूटिंगमहिलाओं की 50मी राइफल 3 पोजीशन
27धीरज बोम्मदेवरातीरंदाजीपुरुषों की व्यक्तिगत, पुरुषों की टीम
28अर्जुन चीमाशूटिंगपुरुषों की 10मी एयर पिस्टल, 10मी एयर पिस्टल मिश्रित टीम
29ईशा सिंहशूटिंगमहिलाओं की 25मी पिस्टल
30रिदम सांगवानशूटिंगमहिलाओं की 10मी एयर पिस्टल, 10मी एयर पिस्टल मिश्रित टीम
31विजयवीर सिद्धूशूटिंगपुरुषों की 25मी रैपिड फायर पिस्टल
32राइजा ढिल्लोंशूटिंगमहिलाओं की स्कीट
33अनंतजीत सिंह नरुकाशूटिंगपुरुषों की स्कीट, स्कीट मिश्रित टीम
34विष्णु सरवनननौकायनपुरुषों की एकल डिंगी
35अनुश अग्रवालाघुड़सवारीड्रेसाज
36शरत कमल, हरीमीत देसाई, मानव ठक्करटेबल टेनिसपुरुषों की टीम और पुरुषों की एकल
37मणिका बत्रा, स्रीजा अकुला, अर्चना कामथटेबल टेनिसमहिलाओं की टीम और महिलाओं की एकल
38राम बाबूएथलेटिक्सपुरुषों की 20कि.मी. रेस वॉक
39श्रेयसी सिंहशूटिंगमहिलाओं की ट्रैप
40विनेश फोगाटकुश्तीमहिलाओं की 50कि.ग्रा.
41अंशु मलिककुश्तीमहिलाओं की 57कि.ग्रा.
42रीटिका हूडाकुश्तीमहिलाओं की 76कि.ग्रा.
43बलराज पंवाररोइंगM1x
44प्रियंका गोस्वामी/सुरज पंवारएथलेटिक्समैराथन रेस वॉक मिश्रित रिले
45नेथ्रा कुमानननौकायनमहिलाओं की एकल डिंगी
46महेश्वरी चौहानशूटिंगमहिलाओं की स्कीट और स्कीट मिश्रित टीम
47पीवी सिंधुबैडमिंटनमहिलाओं की एकल
48एचएस प्रणयबैडमिंटनपुरुषों की एकल
49लक्ष्य सेनबैडमिंटनपुरुषों की एकल
50सत्विक्सैराज रंकीरेड्डी/चिराग शेट्टीबैडमिंटनपुरुषों की युगल
51अश्विनी पोनप्पा/तनिशा क्रास्टोबैडमिंटनमहिलाओं की युगल
52मुहम्मद अनस/मुहम्मद अजमल/अमोज जैकब/संतोष तमिलारासन/राजेश रमेशएथलेटिक्सपुरुषों की 4×400मी रिले
53ज्योतिका श्री डांडी/सुभा वेंकटेशन/विथ्या रामराज/पुवम्मा एमआरएथलेटिक्समहिलाओं की 4×400मी रिले
54निशा दहियाकुश्तीमहिला 68 किग्रा
55अमन सेहरावतकुश्तीपुरुषों की फ्रीस्टाइल 57 किग्रा
56निशांत देवमुक्केबाजीपुरुषों की 71 किग्रा
57अमित पंघालमुक्केबाजीपुरुषों की 51 किग्रा
58जैस्मिन लांबोरियामुक्केबाजीमहिलाओं की 57 किग्रा
59रोहन बोपन्ना/एन श्रीराम बालाजीटेनिसपुरुषों की डबल्स
60भजन कौरतीरंदाजीमहिलाओं की व्यक्तिगत, महिलाओं की टीम
61शुभंकर शर्मागोल्फपुरुष
62गगनजीत भुल्लरगोल्फपुरुष
63मीराबाई चानूभारोत्तोलनमहिलाओं की 49 किग्रा
64तुलिका मानजुडोमहिलाओं की +78 किग्रा
65अदिति अशोकगोल्फमहिला
66दीक्षा डागरगोल्फमहिला
67तरुणदीप रायतीरंदाजीपुरुषों की व्यक्तिगत, पुरुषों की टीम
68प्रवीण जाधवतीरंदाजीपुरुषों की व्यक्तिगत, पुरुषों की टीम
69दीपिका कुमारीतीरंदाजीमहिलाओं की व्यक्तिगत, महिलाओं की टीम
70अंकिता भगततीरंदाजीमहिलाओं की व्यक्तिगत, महिलाओं की टीम
71श्रीहरि नटराजतैराकीपुरुषों की 100 मीटर बैकस्ट्रोक
72धिनिधि देसिंगुतैराकीमहिलाओं की 200 मीटर फ्रीस्टाइल
73सुमित नागलटेनिसपुरुषों की सिंगल्स
74किरण पहलएथलेटिक्समहिलाओं की 400 मीटर
75ज्योति याराजीएथलेटिक्समहिलाओं की 100 मीटर हर्डल्स
76आभा खातुआएथलेटिक्समहिलाओं की शॉट पुट
77सर्वेश कुशारेएथलेटिक्सपुरुषों की हाई जंप
78अन्नू रानीएथलेटिक्समहिलाओं की जैवलिन थ्रो
79तजिंदरपाल सिंह तूरएथलेटिक्सपुरुषों की शॉट पुट
80अब्दुल्ला अबूबकरएथलेटिक्सपुरुषों की ट्रिपल जंप
81प्रवील चित्रवेलएथलेटिक्सपुरुषों की ट्रिपल जंप
82जेसविन एल्ड्रिनएथलेटिक्सपुरुषों की लॉन्ग जंप
83अंकिता ध्यानीएथलेटिक्समहिलाओं की 5000 मीटर
साभार

https://olympics.com/en/paris-2024


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What is Kanwar Yatra – कांवड़ यात्रा के बारे में जाने… कौन से महीने में और क्यों मनाई जाती है?

सावन का पवित्र महीना जो कि भगवान शिव के लिए समर्पित होता है, उसके आरंभ होते ही कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) भी आरंभ हो जाती है। कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था और भक्ति प्रकट करने का उपाय  है। जिसमें शिव के भक्त गंगा नदी से गंगा जल एकत्रित कर अपने-अपने क्षेत्र में शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाते हैं, जिससे उनकी मनोकामना पूर्ण होती है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। कांवड़ कैसे आरंभ हुई? इसमें क्या नियम हैं? आइए जानते हैं…

कांवड़ यात्रा क्या है? (What is Kanwar Yatra?)

कांवड़ यात्रा एक वार्षिक तीर्थ यात्रा होती है, जो कि हर वर्ष सावन के महीने में शिव भक्तों द्वारा की जाती है। इस यात्रा में जो भी शिव भक्त होते हैं, वह कांवड़ में जल भरकर लाते हैं और या तो 12 ज्योतिर्लिंग में किसी एक ज्योतिर्लिंग में चढ़ाते हैं, या अपने क्षेत्र के किसी बड़े शिव मंदिर भगवान शिवलिंग का उस गंगाजल से अभिषेक करते हैं।

कांवड़ यात्रा अधिकतर उत्तर भारत में की जाती है क्योंकि गंगा नदी उत्तर भारत में बहती है। कांवड़ यात्रा में गंगा जल लाने का ही प्रावधान है अथवा किसी पवित्र नदी का जल गंगा नदी उत्तर और पूर्वी भारत के विभिन्न हिस्सों में ही बहती है, इसीलिए गंगा नदी के आसपास के क्षेत्रों में और राज्यों में कांवड़ यात्रा का प्रचलन है। कावड़ यात्रा विशेषकर हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार आदि राज्यों में बहुत अधिक प्रचलित है।

कांवड़ यात्रा कब आयोजित होती है?

कांवड़ यात्रा हर वर्ष सावन के महीने में आयोजित होती है। यह सावन का महीना हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन का महीना ईसवी कैलेंडर में जून-जुलाई के महीने में आता है। इसलिए कांवड़ यात्रा जून-जुलाई के महीने में ही होती है।

2024 की कांवड़ यात्रा कब है?

2024 में ये पवित्र यात्रा 22 जुलाई 2024 दिन सोमवार से शुरू हो रही है.

कब किया जाएगा कांवड़ यात्रा जलाभिषेक

कांवड़ यात्रा में सावन शिवरात्रि पर जलाभिषेक किया जाता है। इस साल श्रावण मास अधिकमास है, इसलिए इस बार 2024 में दो मासिक शिवरात्रि (सावन शिवरात्रि) होंगी.

पहली शिवरात्रि 15 जुलाई को होगी और जल का समय 16 जुलाई सुबह 12:11 बजे से 12:54 बजे के बीच होगा। दूसरी शिवरात्रि 14 अगस्त को होगी और जल का समय 15 अगस्त सुबह 12:09 बजे से 12:54 बजे के बीच होगा।

कांवड़ यात्रा सावन के महीने में ही क्यों आयोजित होती है?

कांवड़ यात्रा सावन के महीने में इसलिए होती है, क्योंकि इस महीने में भगवान मान्यताओं के अनुसार इस महीने में सभी देवता विश्राम करते हैं। केवल भगवान शिव ही इस संसार का संचालन करते हैं। वह इस महीने में विशेष रूप से जागृत रहते हैं, इसीलिए इस महीने में उनकी भक्ति में श्रद्धापूर्वक उनकी भक्ति करने पर भगवान से शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव से संबंधित अनेक विशेष घटनाएं भी सावन महीने में ही संपन्न हुई थी। जैसे समुद्र मंथन उसके बाद भगवान शिव का विषपान, भगवान शिव पार्वती का विवाह आदि।

कांवड़ क्या है?

कांवड़ एक छोटी सी मटकी होती है जो कि सामान्यतः मिट्टी की होती है, अब उसे धातु की मटकी का भी प्रयोग किया जाने लगा है। इसी मटकी में  गंगाजल भरकर लाया जाता है, इसी जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है।

कांवड़ यात्रा कब से आरंभ हुई?

कांवड़ यात्रा आरंभ होने के पीछे अनेक तरह की मान्यताएं प्रचलित है। कांवड़ यात्रा आरंभ होने की पहली मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम ने ही कांवड़ यात्रा का आरंभ किया था। वह सबसे पहले गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लाकर पुरा महादेव के शिव मंदिर में उन्होंने भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय श्रावण मास ही चल रहा था। उसी के बाद से कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हो गया।

एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान राम ने कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी और वह गंगा नदी से गंगाजल भरकर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग में उन्होंने शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। तीसरी मान्यता के अनुसार रावण को पहला कांवड़िया बताया जाता है। समुद्र मंथन के बाद रावण ने ही जब भगवान शिव ने विष ग्रहण कर लिया तो इसका दुष्प्रभाव उन पर पड़ने लगा। ऐसे में रावण ने उन्हें विष के नकारात्मक प्रभाव से मुक्त करने के लिए उनका गंगाजल से अभिषेक किया था। तभी से कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हो गया।

एक अन्य मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ और भगवान शिव ने विष का पान किया तो विष के दुष्प्रभाव के कारण उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा। तब शिव पर विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवता गंगाजल से जल लाकर भगवान शिव अर्पित किए। तब से कांवड़ यात्रा का आरंभ हो गया।

कांवड़ कितने प्रकार की होती है?

कांवड़ से भी अनेक प्रकार हैं। कांवड़िए अलग-अलग तरह की कांवड़ लेकर चलते हैं और उसी के अनुसार उस कांवड से जुड़े नियमों का उन्हें पालन करना पड़ता है।

सामान्य कांवड़

यह कांवड़ सामान्य कांवड़ होती है, जिसे सबसे अधिक कांवड़िए लेकर चलते हैं। इस कारण ये कांवड़ यात्रा के दौरान जहां चाहे वहां आराम से ही रोका जा सकता है। अलग-अलग स्वयंसेवी लोगों द्वारा पंडालों की व्यवस्था होती है, जहां पर विश्राम करते आगे की कांवड़ यात्रा शुरू की जा सकती है।

डाक कांवड़

डाक कांवड़ में कांवड़िया एक बार जब कांवड़ यात्रा की शुरुआत कर दें तो उसे लगातार चलते रहना पड़ता है। जब तक भगवान शिव का गंगाजल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक नहीं करते, वह रुक नहीं सकता। इस तरह के कांवड़ियों के लिए विशेष रास्ते होते हैं ताकि उनके रुकने में किसी भी तरह का व्यवधान ना हो। डाक कांवड़ में लंबी कांवड़ यात्रा नही होती क्योंकि लगातार कई दिनों तक बिना रुके चलना संभव नहीं।

खड़ी कांवड़

यह एक विशेष कांवड़ होती है, जिसमें भक्तजन जो कांवड़ लेकर चलता है। उसकी सहायता के लिए उसके साथ कोई ना कोई सहयोगी चलता है। जब वह वक्त आराम करता है तो उसका सहयोगी अपने कंधे पर कांवड़ लेकर खड़ा रहता है ताकि भक्त थोड़ा विश्राम करने के बाद फिर यात्रा संपन्न कर सकें।

दंडी कावड़

इस कांवड़ में भक्तगण जिस नदी से जल जाते हैं, वहाँ से शिव धाम तक की यात्रा में दंड देते हुए पूरी करते हैं यानी अपनी पूरी यात्रा की दौरान वह अपने शरीर की लंबाई के अनुसार लेट कर यात्रा पूरी करते हैं। इस दंडवत प्रणाम करना कहते हैं। यह यात्रा सबसे कठिन कांवड़ यात्रा होती है, एक सहयोगी कांवड़ लेकर चलता है तथा दूसरा दंडवत लेट कर यात्रा करता हुआ जाता है।

कावंड़ यात्रा के नियम

कांवड़ यात्रा से कई कठोर नियम भी जुड़े होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। तभी कांवड़ यात्रा का सच्चा फल प्राप्त होता है।

  • कांवड़ यात्रा के दौरान पूरी तरह सात्विक जीवनशैली अपनानी पड़ती है और किसी भी तरह के मांस-मदिरा, नशा आदि से दूर रहना पड़ता है ।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।
  • कांवड़ यात्रा का कांवड़िया केवल एक समय भोजन करता है।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया बिना स्नान किए अपनी कांवड़ को स्पर्श ना करें।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान तेल, साबुन, कंघी आदि का प्रयोग वर्जित है, और किसी भी तरह का श्रंगार नही करना चाहिए।
  • कांवड़िया ना तो चारपाई पर सो सकता है ना ही उसे किसी वाहन पर चढ़कर यात्रा करना चाहिए। कांवड़ियों को सदैव जमीन पर सोना चाहिए।
  • जब कांवड़िया कांवड़ यात्रा कर रहा हो तो अपनी कांवड़ विश्राम के समय किसी वृक्ष या पौधे के नीचे नहीं रखें नहीं तो इससे कांवड़ खंडित मानी जाती है।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया भूमि से स्पर्श नहीं कर सकता।
  • विश्राम के दौरान जब वह अपनी कांवड़ अपनी कांवड़ को रखता है, तो कांवड़ रखने को विशेष स्टैंड बने होते हैं। कांवड़ द्वारा विशेष स्टैंड बनाए जाते हैं। जिन पर कांवड़ को टिका सकता है, जो भूमि को स्पर्श नहीं करते।
  • कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया को बोल बम बोल बम’ का उच्चारण करना चाहिए तथा ओम नमः शिवाय’ मंत्र का निरंतर जप करते रहना चाहिए।
  • अपनी कांवड़ को सिर के ऊपर से कभी भी ना ले जाएं। यदि कांवड़िया किसी स्थान पर अपनी कांवड़ को रखता है तो उस स्थान से आगे कांवरियों को कभी नहीं जाना चाहिए। उस स्थान से आगे अपनी कांवड़ को साथ लेकर ही जा सकता है।

कांवड़ यात्रा के बारे में और जानने के लिए ये वीडियों देखें

https://www.youtube.com/watch?v=nC1M5fedGJY  


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हिंदू कैलेंडर का पांचवा महीना, श्रावण मास या सावन (Shravan Maas), भगवान शिव को समर्पित है। इस महीने के प्रत्येक सोमवार को शिव पूजा का विशेष महत्व है। सोमवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाने या व्रत रखने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। सावन सोमवार व्रत के साथ मंगला गौरी व्रत और सावन शिवरात्रि भी इस महीने के प्रमुख पर्व हैं।

श्रावण मास (Shravan Maas) – भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना जो उनको ही है समर्पित

सनातन धर्म में शिव सबसे बड़े आराध्य देव माने जाते हैं शिव से परे कुछ भी नहीं। वह योगीराज हैं, मोक्ष प्रदाता हैं। ब्रह्म रूप में सृष्टि का सृजन करते हैं, विष्णु रूप में संसार का पालन करते हैं, और शंकर रूप में संसार का संहार करते हैं। अर्थात वह देवों के देव महादेव हैं। इसीलिए सनातन संस्कृति में एक पूरा महीना ही भगवान शिव की विशेष आराधना के लिए समर्पित है। श्रावण का महीना वह पवित्र महीना है जिसमें भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। भगवान शिव की आराधना करने से शिव  प्रसन्न होते हैं और भक्त पर विशेष कृपा बरसाते हैं। श्रावण मास को आमतौर पर लोग सावन भी कहते हैं। सावन के महीने में सोमवार का दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन यदि भोलेनाथ की जल चढ़ाकर या व्रत रखकर पूजा की जाए तो व्यक्ति को शीघ्र सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

श्रावण मास 2024

इस साल सावन 22 जुलाई 2024 से 19 अगस्त 2024 तक रहेगा। यह अद्भुत संयोग है कि सावन का आरंभ और समापन दोनों सोमवार को हो रहे हैं। इस बार सावन में पांच सोमवार पड़ रहे हैं, जिसे बहुत शुभ माना जाता है।

श्रावण मास का महत्व

श्रावण मास का हर दिन फलदायी होता है, लेकिन सावन के सोमवार विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। ऐसा माना जाता है कि सावन सोमवार का व्रत रखने से पारिवारिक जीवन सुखी रहता है और जीवन में समृद्धि आती है। साथ ही, इससे कुंडली में चंद्रमा की स्थिति भी मजबूत होती है।

सावन सोमवार 2024

1. पहला सोमवार व्रत – 22 जुलाई 2024
2. दूसरा सोमवार व्रत – 29 जुलाई 2024
3. तीसरा सोमवार व्रत – 5 अगस्त 2024
4. चौथा सोमवार व्रत – 12 अगस्त 2024
5. पांचवां सोमवार व्रत – 19 अगस्त 2024

सावन में मंगला गौरी व्रत

1. पहला मंगला गौरी व्रत – 23 जुलाई 2024
2. दूसरा मंगला गौरी व्रत – 30 जुलाई 2024
3. तीसरा मंगला गौरी व्रत – 6 अगस्त 2024
4. चौथा मंगला गौरी व्रत – 13 अगस्त 2024

सावन शिवरात्रि 2024 का समय काल

सावन महीने की शिवरात्रि विशेष होती है। यह व्रत कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन रखा जाता है। इस बार सावन शिवरात्रि 2 अगस्त 2024 को पड़ेगी। पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि का आरंभ 2 अगस्त को दोपहर 3:26 बजे होगा और 3 अगस्त को दोपहर 3:50 बजे समाप्त होगा। निशिता काल में शिवरात्रि की पूजा की जाती है, इसलिए यह व्रत 2 अगस्त को ही मनाया जाएगा।

इस प्रकार, सावन का महीना भगवान शिव की आराधना और विशेष व्रतों के लिए महत्वपूर्ण होता है, जो जीवन में सुख और समृद्धि लाता है।

श्रावण मास का सारा विवरण

श्रावण के इस पवित्र महीने में भगवान शिव की भक्ति करके उनकी कृपा का कैसे लाभ उठाएं और हम क्या कार्य ना करें जो कि इस माह में वर्जित है आइए जानते हैं…

श्रावण में कैसे पूजा करें?

श्रावण मास पूरी तरह भगवान शिव को समर्पित महीना होता है, और इस महीने में भगवान शिव की सबसे अधिक आराधना की जाती है। कहते हैं कि इस महीने में ही देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू की थी और उनके तरफ से प्रसन्न होकर ही शिव जी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी मनोइच्छा पूरी की। इस महीने के बारे में मान्यता है कि पूर्ण श्रद्धा भाव से भगवान शिव की आराधना करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

श्रावण मास में भक्तजन भगवान प्रत्येक सोमवार को व्रत-उपवास रखते हैं। श्रावण मास में सामान्यतः चार सोमवार पड़ते हैं। कभी-कभी सावन मास में चार की जगह 3 सोमवार ही आते हैं। कभी-कभी श्रावण मास में 8 सोमवार भी आते हैं, जो तब आते है, जब मलमास होता है। 2023 में श्रावण दो महीने तक रहा क्योंकि उसमे मलमास भी था और आठ सोमवार आए थे।

श्रावण मास में क्या करें?

श्रावण मास का व्रत रखने के लिए प्रत्येक सोमवार को व्रत रखना चाहिए तथा शिव मंदिर में जाकर या घर पर भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। भगवान शिव की आराधना के लिए गंगाजल, शुद्ध जल, दूध, दही, मधु, शक्कर मिलाकर पंचामृत बनाकर विधि-विधान से भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।

भगवान शिव को बेलपत्र, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा जैसे पदार्थ अर्पित करने चाहिए। उन्हें धूप और दीप आदि अर्पित करना चाहिए। बेलपत्र भगवान शिव को प्रिय पत्र हैं। केवल बेल पत्र से पूजा करने से भी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

श्रावण मास में पूरे महीने भक्त को सात्विक रूप से शुद्ध मन से रहना चाहिए, सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए तथा तामसिक पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। शिव पंचाक्षर मंत्र का निरंतर जाप करना चाहिए।

ॐ    नमः शिवाय।

महामृत्यु मंत्र के इस विशिष्ट मंत्र का जाप करना चाहिए।

ॐ   हौं जूं सः  ॐ   त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्  ॐ     स्वः भुवः भूः  ॐ     सः जूं हौं  ॐ    ॥

श्रावण मास में क्या न करें?

श्रावण मास में कुछ कार्य वर्जित हैं, जिन्हें करने से बचना चाहिए नहीं तो विपरीत प्रभाव मिल सकता है।

  • शास्त्रों में वर्णित मान्यता के अनुसार भगवान शिव की आराधना करते समय कभी भी हल्दी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • श्रावण मास में अपने शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए, ऐसा करने से विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  • श्रावण मास में भगवान शिव को केतकी का फूल कभी भी अर्पित नहीं करना चाहिए। केतकी का फूल अर्पित करने से अशुभ फल की प्राप्ति होती है।
  • पूजा करते समय भगवान शिव को कुंकुम अर्पित नही करना चाहिए। उन्हें केवल चंदन ही अर्पित करना चाहिए।
  • श्रावण मास में किसी भी तरह का मांसाहारी पदार्थ की मात्रा का सेवन नहीं करना चाहिए। मदिरा व अन्य उत्तेजक पदार्थ जैसे तम्बाकू, गुटखा, पान मसाला, सिगरेट का सेवन नही करना चाहिए।
  • श्रावण मास में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि वह दूध शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव को अर्पित करना चाहिए।
  • श्रावण मास में पेड़ों को काटने से बचना चाहिए।
  • मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में बैगन और साग जैसी सब्जियों का सेवन करने से बचना चाहिए।

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उत्तराखंड में रामनगर के पास है, वह जगह जहाँ माता सीता धरती में समाई थीं।

सीताबनी (Sitabani) रामायण में विशेष स्थान रखता है, क्योंकि यहीं पर देवी सीता ने अपने जुड़वां पुत्र लव और कुश को जन्म दिया और उनका पालन-पोषण किया था। यहाँ के मंदिर में देवी सीता के साथ उनके दोनों पुत्रों की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।

सीताबनी जहाँ माता सीता ने समाधि ली (Sitabani where Mata Sita took Samadhi in Ramayana)

सीताबनी का मंदिर घने जंगल के बीच एक खुले मैदान में स्थित है। मान्यताओं के अनुसार, माता सीता और भगवान राम ने वैशाख मास में इसी स्थान पर महादेव का पूजन किया था। इसीलिए इसे सीतेश्वर महादेव का मंदिर कहा जाता है।

यहाँ एक कुंड भी है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसमें ही माता सीता ने अंतिम समय में समाहित हुई थीं। सीताबनी में जल की तीन धाराएं बहती हैं, जिन्हें सीता-राम और लक्ष्मण धारा कहा जाता है। इन धाराओं की विशेषता है कि गर्मियों में इनका जल ठंडा और सर्दियों में गर्म रहता है।

कहाँ पर है सीताबनी?

सीताबनी उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ मंडल के रामनगर से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राकृतिक वन्य क्षेत्र है। ये पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है।

ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व

सीताबनी का मंदिर पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है और इसे त्रेता युग का बताया जाता है। इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए वन विभाग से अनुमति लेनी होती है। यह मंदिर बाल्मीकि समाज के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है, क्योंकि यहाँ महर्षि बाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था।

पर्यटन और धार्मिक आयोजन

शिवरात्रि के मौके पर यहाँ भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु माता सीता का आशीर्वाद लेने आते हैं। सीताबनी का क्षेत्र अब एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन चुका है, जहाँ हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। इससे वन विभाग को अच्छा खासा राजस्व भी प्राप्त होता है।

सीताबनी का यह अनूठा संगम धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो हर किसी को मोहित कर देता है।


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भारत ने टी20I में रचा इतिहास – 150वीं जीत के साथ ये कारनामा करने वाली पहली टीम बनी।

शुभमन गिल की कप्तानी में टीम इंडिया ने जिम्बाब्वे के खिलाफ तीसरे टी20I मैच में जीत (Team India 150 wins in T20I) हासिल कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। इस जीत के साथ ही भारत ने टी20I क्रिकेट में 150 जीत दर्ज करने वाली पहली टीम बनने का गौरव प्राप्त किया।

टी20I में भारत का प्रदर्शन (Team India 150 wins in T20I)

भारत ने अब तक 230 टी20I मुकाबलों में हिस्सा लिया है, जिनमें से 150 मैच जीते हैं। 69 मैचों में हार का सामना करना पड़ा, जबकि 1 मैच टाई रहा और 4 मुकाबले टाई ब्रेकर में जीते गए हैं। 6 मुकाबलों के नतीजे नहीं निकल पाए। इस ऐतिहासिक जीत ने टीम इंडिया को क्रिकेट की दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।

अन्य प्रमुख टीमें

भारत के बाद सबसे ज्यादा टी20I मैच जीतने वाली टीम पाकिस्तान है, जिसने 142 मुकाबले जीते हैं। अन्य टीमों में न्यूजीलैंड (111), ऑस्ट्रेलिया (105), साउथ अफ्रीका (104) और इंग्लैंड (100) शामिल हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत ने इस फॉर्मेट में सबसे अधिक प्रभावशाली प्रदर्शन किया है।

  1. भारत – 150
  2. पाकिस्तान – 142
  3. न्यूजीलैंड – 111
  4. ऑस्ट्रेलिया – 105
  5. साउथ अफ्रीका – 104
  6. इंग्लैंड – 100

इस ऐतिहासिक जीत ने ना सिर्फ भारतीय क्रिकेट का मान बढ़ाया है, बल्कि खिलाड़ियों के अद्वितीय प्रदर्शन को भी मान्यता दी है। टीम इंडिया की यह उपलब्धि भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए गर्व का विषय है।


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भारतीय क्रिकेट टीम के हेड कोच का लिस्ट (List of All Head Coaches of Indian Mens Cricket Team)

गौतम गंभीर को भारतीय मेंस क्रिकेट टीम का नया हेड कोच नियुक्त किया गया है। क्रिकेट सलाहकार समिति (CAC) की अनुशंसा पर भारतीय क्रिकेट बोर्ड के सचिव जय शाह ने उनके नाम पर मुहर लगाई। गौतम गंभीर का कार्यकाल तीन साल का होगा। इस दौरान उन्हें टी-20 वर्ल्ड कप, वनडे वर्ल्ड कप, वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप और चैंपियंस ट्रॉफी जैसे बड़े आईसीसी इवेंट्स का सामना करना होगा।

भारतीय क्रिकेट टीम को उसका पहला कोच 90 के दशक में मिला। इससे पहले फुल टाइम कोच की जगह मैनेजर नियुक्त किए जाते थे। आइए, 1990 से अब तक के सभी हेड कोचों के सफरनामे पर एक नज़र डालते हैं।

 

बिशन सिंह बेदी (1990-91)

1983 विश्व कप विजेता टीम के स्पिनर बिशन सिंह बेदी भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कोच बने। उनके कार्यकाल में भारतीय टीम का प्रदर्शन खराब रहा।

अब्बास अली बेग (1991-92)

बिशन सिंह बेदी के बाद अब्बास अली बेग को टीम इंडिया का हेड कोच बनाया गया। उनके कार्यकाल में भारत को पाँच में से चार टेस्ट मैचों में हार का सामना करना पड़ा और टीम 1992 विश्व कप के सेमीफाइनल में नहीं पहुँच पाई।

अजीत वाडेकर (1992-96)

अब्बास अली बेग के बाद अजीत वाडेकर ने कोचिंग की कमान संभाली। वाडेकर के कार्यकाल में सचिन तेंदुलकर और मोहम्मद अजहरूद्दीन कप्तान बने।

संदीप पाटिल (1996)

1996 वर्ल्ड कप में अजीत वाडेकर के असिस्टेंट मैनेजर संदीप पाटिल को बाद में टीम का कोच बनाया गया। लेकिन टोरंटो में सहारा कप में पाकिस्तान से हार के बाद उन्हें हटा दिया गया।

मदन लाल (1996-1997)

1983 विश्व कप विजेता मदन लाल एक साल के लिए भारतीय टीम के कोच रहे।

अंशुमान गायकवाड़ (1997-1999, 2000)

मदन लाल के बाद अंशुमन गायकवाड़ ने कोचिंग की। उनके कार्यकाल में अनिल कुंबले ने पाकिस्तान के खिलाफ 10 विकेट लिए थे।

कपिल देव (1999-2000)

1983 विश्व कप विजेता कप्तान कपिल देव का कार्यकाल विवादों में रहा। उन्हें मनोज प्रभाकर के स्टिंग ऑपरेशन में मैच फिक्सिंग के आरोपों के बाद इस्तीफा देना पड़ा।

जॉन राइट (2000-2005)

भारतीय टीम के पहले विदेशी कोच जॉन राइट ने टीम को 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में जीत दिलाई और 2003 के विश्व कप फाइनल में पहुँचाया।

ग्रेग चैपल (2005-07)

ग्रेग चैपल का कार्यकाल विवादों से भरा रहा, खासकर सौरव गांगुली के साथ उनके रिश्ते। भारतीय टीम का प्रदर्शन भी खराब रहा।

गैरी कर्स्टन (2008-11)

गैरी कर्स्टन के कार्यकाल में भारत ने 28 साल बाद 2011 में विश्व कप जीता।

डंकन फ्लेचर (2011-2015)

डंकन फ्लेचर के कार्यकाल में भारतीय टीम ने 2015 वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल तक का सफर तय किया, लेकिन टेस्ट में प्रदर्शन निराशाजनक रहा।

रवि शास्त्री (2014-16, 2017-2021)

रवि शास्त्री का कार्यकाल दो बार का रहा। पहले 2014 से 2016 तक और फिर 2017 से 2021 तक। उनके कार्यकाल में टीम ने कई द्विपक्षीय सीरीज जीतीं, लेकिन कोई आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीती।

अनिल कुंबले (2016-17)

अनिल कुंबले के कार्यकाल में टीम का प्रदर्शन शानदार रहा, लेकिन विराट कोहली के साथ अनबन के कारण उन्हें एक साल में ही इस्तीफा देना पड़ा।

राहुल द्रविड़ (2021-2024)

राहुल द्रविड़ ने अपने कार्यकाल में भारत को आईसीसी ट्रॉफी जिताई। रोहित शर्मा की कप्तानी में टीम ने कई बड़े टूर्नामेंट जीते।

निष्कर्ष

गौतम गंभीर का कार्यकाल चुनौतीपूर्ण रहेगा, लेकिन उनकी कुशलता और अनुभव भारतीय टीम को नए ऊँचाइयों तक पहुँचाने में मददगार साबित होंगे। भारतीय क्रिकेट में कोचों का सफरनामा अनूठा और प्रेरणादायक रहा है। आशा है कि गंभीर भी इस कड़ी में सफल होंगे।


List of All Head Coaches of Indian Mens Cricket Team


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ये जरूरी सरकारी मोबाइल एप आपके बड़े काम के हैं। आज ही अपने मोबाइल में इंस्टाल करें।

Important government mobile apps

भारत सरकार ने नागरिकों की सुविधा और प्रशासनिक प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए विभिन्न मोबाइल ऐप्स (important government mobile apps) लॉन्च किए हैं। ये ऐप्स न केवल प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता लाने का काम करते हैं, बल्कि नागरिकों के जीवन को भी आसान बनाते हैं। आइए, जानते हैं पाँच महत्वपूर्ण सरकारी मोबाइल ऐप्स के बारे में:

MyGov App

नागरिक और सरकार के बीच साझेदारी : MyGov ऐप नागरिकों और सरकार के बीच एक पुल का काम करता है। इस ऐप के माध्यम से नागरिक सीधे सरकार से जुड़ सकते हैं, अपने विचार साझा कर सकते हैं और सरकार की विभिन्न योजनाओं और नीतियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

भारतीय राजनीति और सरकारी अपडेट : इस ऐप से आप भारत सरकार और भारतीय राजनीति के सभी नवीनतम अपडेट प्राप्त कर सकते हैं। इसमें सरकार की नवीनतम नीतियों, योजनाओं और विकास कार्यों के बारे में जानकारी दी जाती है।

जनभागीदारी : MyGov ऐप पर विभिन्न अभियान और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जिसमें नागरिक सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं। इससे सरकार को जनता की प्रतिक्रियाएँ प्राप्त होती हैं और नागरिक भी नीति निर्माण प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं।

M-Aadhaar App

आधार कार्ड का डिजिटल रूप : यूआईडीएआई द्वारा संचालित M-Aadhaar ऐप नागरिकों को उनके आधार कार्ड का डिजिटल रूप प्रदान करता है। इससे नागरिक अपने आधार कार्ड को हमेशा अपने साथ रख सकते हैं।

सुरक्षा और सुविधा : यह ऐप विभिन्न सेवाओं के लिए आधार आधारित प्रमाणीकरण को आसान बनाता है। इससे नागरिकों को आधार कार्ड की हार्ड कॉपी ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती और वे अपने डिजिटल आधार कार्ड का उपयोग कर सकते हैं।

डेटा सुरक्षा : M-Aadhaar ऐप में सुरक्षा का उच्च स्तर है, जिससे नागरिकों का व्यक्तिगत डेटा सुरक्षित रहता है। यह ऐप बायोमेट्रिक लॉक और पासकोड सुरक्षा के साथ आता है।

Passport Seva App

पासपोर्ट सेवा केंद्र का पता : इस ऐप की मदद से नागरिक अपने निकटतम पासपोर्ट सेवा केंद्र का पता लगा सकते हैं। इससे उन्हें केंद्र तक पहुँचने में आसानी होती है।

आवेदन की स्थिति पर नजर : इस ऐप से नागरिक अपने पासपोर्ट आवेदन की स्थिति की जांच कर सकते हैं। इससे उन्हें आवेदन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की जानकारी मिलती है और वे अपनी यात्रा की योजना को सही ढंग से बना सकते हैं।

सहायता और जानकारी : ऐप में पासपोर्ट से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी और सहायता उपलब्ध होती है। इससे नागरिकों को पासपोर्ट आवेदन प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।

GST Rate Finder App

जीएसटी दरों की जानकारी : इस ऐप की मदद से नागरिक जीएसटी दरों के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इससे वे बाजार या रेस्तरां में किसी भी वस्त्र या सेवा की जीएसटी दर को रियल टाइम में जान सकते हैं।

सुविधाजनक खोज : ऐप में उपयोगकर्ता विभिन्न वस्त्रों और सेवाओं के लिए जीएसटी दरों की खोज कर सकते हैं। इससे व्यापारियों और उपभोक्ताओं दोनों को जीएसटी दरों की जानकारी प्राप्त करने में आसानी होती है।

व्यवसायिक उपयोग : यह ऐप व्यापारियों के लिए भी बहुत उपयोगी है, क्योंकि इससे वे अपने उत्पादों और सेवाओं की जीएसटी दरों को समझ सकते हैं और सही तरीके से बिलिंग कर सकते हैं।

DigiLocker App

डिजिटल डॉक्यूमेंट्स का संग्रह : DigiLocker ऐप नागरिकों को उनके महत्वपूर्ण दस्तावेजों को डिजिटल रूप में संग्रहित करने की सुविधा प्रदान करता है। इसमें आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड और व्हीकल इंश्योरेंस जैसी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को संग्रहित किया जा सकता है।

सुरक्षित एक्सेस : ऐप में दस्तावेजों को सुरक्षित रूप से संग्रहित और एक्सेस किया जा सकता है। इससे नागरिकों को अपने दस्तावेजों की हार्ड कॉपी की जरूरत नहीं पड़ती और वे कहीं भी और कभी भी अपने दस्तावेजों को एक्सेस कर सकते हैं।

सरकारी सेवाओं के लिए उपयोग : DigiLocker ऐप का उपयोग विभिन्न सरकारी सेवाओं के लिए किया जा सकता है। इससे नागरिकों को सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने में आसानी होती है और वे अपने दस्तावेजों का डिजिटल रूप प्रस्तुत कर सकते हैं।

ये पाँच मोबाइल ऐप्स न केवल नागरिकों की सुविधा बढ़ाने का काम करते हैं, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं को भी सरल और पारदर्शी बनाते हैं। इन ऐप्स के माध्यम से नागरिक सरकार के साथ अधिक प्रभावी ढंग से जुड़ सकते हैं और विभिन्न सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।


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कभी एक समय में माधुरी दीक्षित और जूही चावला में जबरदस्त होड़ थी। दोनों एक दूसरे के साथ काम करना पसंद नहीं करती थीं।

Madhuri Dixit Juhi Chawla Rivalry Story – 90 के दशक की सुपरस्टार्स अभिनेत्रियों की आपसी होड़ का किस्सा

जूही चावला और माधुरी दीक्षित 90 के दशक की दो प्रमुख अभिनेत्रियाँ रही हैं, जिन्होंने बॉलीवुड को कई शानदार फिल्में और यादगार किरदार दिए। इनके स्टारडम का आलम यह था कि दोनों ही कोई भी फिल्म करने से पहले यह सुनिश्चित करती थीं कि उन्हें प्रमुख भूमिकाएं मिलें। दोनों उस समय केवल लीड रोल को ही प्राथमिकता देती थीं। उन्हें किसी भी कीमत पर साइड रोल करना मंजूर नही था। ये बात और है कि दोनों अपनी शुरुआती फिल्मे सपोर्टिंग रोल के तौर पर हीं की थीं। एक ऐसा ही दिलचस्प किस्सा है जब जूही चावला ने दिल तो पागल है फिल्म इसी प्रतिद्वंदिता के कारण छोड़ दी थी।

90 का दशक दोनों अभिनेत्रियों के स्टारडम का युग

जूही चावला और माधुरी दीक्षित ने अपने करियर की शुरुआत लगभग एक ही समय में की थी। माधुरी दीक्षित की पहली फिल्म अबोध 1984 में ही आई थी जो राजश्री प्रोडक्शन हाउस में बनी थी तो जूही चावला की पहली फिल्म सल्तनत थी जिसमें वह धर्मेंद, सनी देओल, श्रीदेवी जैसे कलाकारों के साथ काम तो कर रहीं थी। उसमें वह करण कपूर की हीरोइन बनीं थीं। करण कपूर फिल्म अभिनेता शशि कपूर के बेटे थे।

दोनों की शुरुआती फिल्में भले ही नहीं चली लेकिन 1988 में दोनों की एक साथ सफलता मिली। 1988 में अप्रेल में जूही चावला की आमिर खान के साथ कयामत से कयामत रिलीज जिसने उन्हें रातो रात सुपरस्टार बना दिया। 1988 में ही नवंबर में माधुरी दीक्षित की अनिल कपूर के साथ तेजाब रिलीज हुई जिसने माधुरी दीक्षित को लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुँचा दिया था।

दोनों ही बहुत जल्दी सुपरस्टार बन गईं। अब समय उनका था इसके साथ ही दोनों में प्रतिद्वंदिता भी होने लगी। इसी कारण अपने स्टारडम के दौर में दोनों ने कोई भी फिल्म साथ नहीं की।

जूही चावला ने यशराज बैनर के साथ कई सफल फिल्में कीं थीं। जब यशराज फिल्म्स ने ‘दिल तो पागल है’ की घोषणा की, तो उन्होंने माधुरी दीक्षित को मुख्य भूमिका के लिए चुना और जूही चावला को सपोर्टिंग रोल ‘निशा’ के लिए चुना। लेकिन जूही चावला ने माधुरी के साथ साइड रोल करने से इनकार कर दिया। ये रोल बाद में करिश्मा कपूर के हिस्से आया।

जब ‘दिल तो पागल है’ रिलीज हुई, तो यह फिल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई। फिल्म में शाहरुख खान, माधुरी दीक्षित और करिश्मा कपूर की त्रिकोणीय प्रेम कहानी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। इस फिल्म के गाने आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।

वर्षों बाद, जूही चावला ने एक इंटरव्यू में इस फिल्म को ठुकराने की वजह बताई। उन्होंने स्वीकार किया कि उस समय उन्हें अपने ईगो की समस्या हो गई थी। वह माधुरी दीक्षित से प्रतिद्वंदिता कर रही थीं और उनके सामने कमतर नहीं पढ़ना चाहती थीं। इसी कारण उन्हें वह फिल्म करने में कोई रूचि नहीं दिखाई जिसमें वह माधुरी दीक्षित के सामने सपोर्टिंग एक्टर लगें। इसी कारण उन्होने ये फिल्म करने से मना कर दिया। उन्हें ये पता था कि वह एक बड़े बैनर की फिल्म को ठुकरा रहीं हैं जिसने उन्हे डर जैसी सुपरहिट फिल्म दी थी।

करिश्मा कपूर को मिली नई पहचान

जो रोल जूही चावला ने ठुकराया था वह करिश्मा कपूर के हिस्से आया था। करिश्मा कपूर फिल्मों में तो आ चुकी थीं लेकिन जब उन्होंने ये फिल्म साइन की थी तब तक उनकी कोई बड़ी सुपर हिट फिल्म नहीं आई थी। लेकिन दिल तो पागल रिलीज होने से पहले ही 1996 में उनकी राजा हिंदुस्तानी उस साल की सुपरहिट फिल्म साबित हुई और उनका भी काफी नाम हो चुका था।

‘दिल तो पागल है’ फिल्म में उनके रोल ने भी उनको एक अलग पहचान थी। इस फिल्म को कुल 11 फिल्मफेयर नामांकन मिले थे और इसने 7 श्रेणियों में पुरस्कार जीते थे। करिश्मा कपूर को इस फिल्म के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड भी मिला।

जूही चावला और माधुरी दीक्षित की आपसी होड़ का ये दौर उनके पूरे स्टारडम में जारी रहा। दोनों साथ मे कोई फिल्म नहीं की। जब दोनों के स्टारडम का दौर खत्म हो गया तो अंततः  जूही चावला और माधुरी दीक्षित ने 2014 में ‘गुलाब गैंग’ फिल्म में एक साथ काम किया और उनके बीच की नाराजगी भी खत्म हो गई। अब ये दोनों एक-दूसरे की अच्छी दोस्त हैं।


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सभी ओलंपिक खेलों में भारत का प्रदर्शन।

ओलंपिक में भारत (India performance in all Olympic Games) का कोई बहुत विशेष प्रदर्शन नहीं रहा है। ओलंपिक के 120 साल से अधिक के इतिहास में भारत ने कुल 35 पदक जीते हैं। इनमें केवल दो स्वर्ण पदक हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भारत का भारत जैसे विशाल देश का प्रदर्शन ओलंपिक में उतना अधिक उल्लेखनीय नहीं रहा है जितना कि होना चाहिए था। ओलंपिक इतिहास में भारत के प्रदर्शन पर एक नजर डालते है…

ओलंपिक में भारत (India in all Olympics)

भारत के लिए सबसे पहला पदक यूं तो एक अंग्रेज ने जीता था, क्योंकि उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था और जिस अंग्रेज ‘नार्मन प्रिचर्ड’ ने भारत के लिए पहला पदक जीता था। उसने भारत की तरफ से ओलंपिक में भाग लिया था इसलिए भारत के पहला पदक ‘नॉर्मन प्रिचर्ड’ के नाम है।

1900 के ओलंपिक खेल

भारत ने पहली बार 1900 के ओलंपिक में भाग लिया। जहां पर नॉर्मन प्रिचर्ड’ ने भारत की तरफ से एकमात्र प्रतिनिधि के तौर पर ओलंपिक खेलों में भागीदारी की थी और 200 मीटर स्प्रिंट की 200 मीटर बाधा दौड़ में दो रजत पदक जीते थे।

1920 के ओलंपिक खेल

भारत ने 1920 में अपना पहला ओलंपिक दल एंटवर्प ओलंपिक’ में भेजा, जहां 5 एथलीटों ने हिस्सा लिया था। इसमें भारत में कोई पदक नहीं जीता।

1924 के ओलंपिक खेल

1924 के ओलंपिक में भारत ने अपना दल भेजा और टेनिस में भारत ने अपना डेब्यू किया। कुल 5 खिलाड़ियों जिनमें 4 पुरुष और 1 महिला थी, ने एकल स्पर्धा में भाग लिया था। लेकिन इसमें भी भारत में कोई पदक नहीं जीता।

1928 के ओलंपिक खेल

भारत ने अपना पहला स्वर्ण पदक 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक’ खेलों में ‘हॉकी’ के खेल में जीता। यहीं से भारत की हॉकी के स्वर्णिम दौर की शुरुआत हुई। इस स्वर्ण पदक की जीत में सबसे बड़ा योगदान हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का था। ध्यानचंद ने नीदरलैंड के खिलाफ कुल 14 गोल किए थे, जिसमें एक हैट्रिक भी थी।

1932 के ओलंपिक खेल

1932 के लास एंजिलस’ ओलंपिक में भी भारत ने हॉकी में स्वर्ण पदक जीता। इस जीत मे भी ध्यानंचद का मुख्य योगदान था। 1932 के ओलंपिक खेलों में ध्यानचंद के अलावा उनके छोटे भाई रूप सिंह का भी अहम योगदान था। दोनों भाईयों नें भारत की स्वर्ण पदक जीत में अहम भूमिका निभाई।

1936 के ओलंपिक खेल

1936 के ओलंपिक में भारत ने स्वर्ण पदक जीता और तीन लगातार बार स्वर्ण पदक जीतने की हैटट्रिक पूरी की। 1936 के बर्लिन ओलंपिक’ में भी भारत की जीत में ध्यानचंद का मुख्य योगदान रहा था। उसके बाद आगे के कुछ ओलंपिक खेलों का आयोजन द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण नहीं हो पाया था।

1948 के ओलंपिक खेल

1948 के लंदन ओलंपिक में भारत ने स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पहली बार ओलंपिक खेलों में भाग लिया था और इसमें भारत ने अब तक अपना अपना सबसे बड़ा दल भेजा था, जिसमें लगभग 86 खिलाड़ी थे। भारत ने 9 खेलों में भागीदारी की थी।

“भारत ने हॉकी में फिर इस बार स्वर्ण पदक जीता और यह स्वतंत्र भारत का ‘पहला ओलंपिक पदक’ था।”

1952 के ओलंपिक खेल

1952 के हेलसिंकी ओलंपिक’ और 1956 के ओलंपिक खेलों में भारत ने हॉकी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता इस तरह यहां पर भी बाकी ने भारत में हॉकी की हैट्रिक पूरी की और स्वतंत्र भारत के रूप में भी लगातार तीन बार हाकी के स्वर्ण पदक जीते।

हॉकी के अलावा भारतीय टीम ने 1948 के लंदन ओलंपिक में फुटबॉल टीम के रूप में भी पदार्पण किया था, लेकिन वह अपने पहले मैच में ही फ्रांस से हार गई थी।

स्वतंत्र भारत में व्यक्तिगत रूप से भारत के लिए कोई पहला पदक जीतने वाला खिलाड़ी का नाम ‘केडी जाधव’ था, जिन्होंने 1952 के ‘हेलसिंकी ओलंपिक’ में कुश्ती की स्पर्धा में ‘कांस्य पदक’ जीता था। इस तरह ‘के डी जाधव’ व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने।

1954 के ओलंपिक खेल

1956 के ओलंपिक में भारतीय भारत की फुटबॉल टीम कांस्य पदक के लिए संघर्ष करते हुए प्लेऑफ में हार गई और चौथे स्थान पर रही थी। उसके बाद 1960 के ओलंपिक खेलों में भारत का स्वर्ण पदक अभियान टूट गया और पहली बार उसे रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा। यही वह ऐतिहासिक ओलंपिक थे, जिसमें भारत के प्रसिद्ध खिलाड़ी उड़न सिख’ के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह 400 मीटर की दौड़ में कांस्य पदक जीतने से चूक गये थे।

1664 के ओलंपिक खेल

1964 के ओलंपिक खेलों में भारत ने फिर स्वर्ण पदक जीता। ये ओलंपिक में भारत का छठा स्वर्ण पदक था। 1968 के मेक्सिकों ओलंपिक’ खेलों में भारत का फिर निराशाजनक प्रदर्शन रहा और भारतीय हॉकी टीम पहली बार शीर्ष दो टीमों में स्थान बनाने से चूक गई थी। अंत में भारतीय टीम को केवल कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा था। वह तीसरे स्थान पर रही।

1972 के ओलंपिक खेल

1972 में म्यूनिख ओलंपिक’ में भी भारत का को केवल कांस्य पदक ही प्राप्त हुआ। वह कांस्य पदक भारत ने हॉकी में ही जीता जिसमें भारतीय हॉकी टीम तीसरे स्थान पर रही।

1976 के ओलंपिक खेल

1976 का मांट्रियल ओलंपिक’ भारतीय टीम के नजरिए से बिल्कुल सबसे निराशाजनक रहा, क्योंकि 1924 में जब से भारत ने हॉकी में ओलंपिक स्पर्धा में भाग लेना शुरू किया था, तब से यह सबसे अधिक निराशाजनक प्रदर्शन था। इन ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम सातवें स्थान पर रही और भारत को ओलंपिक खेलों में हॉकी की प्रतिस्पर्धा में कोई भी पदक नहीं मिला।

1980 के ओलंपिक खेल

1980 के मॉस्को ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने एक बार स्वर्ण पदक जीता। हालाँकि भारत का स्वर्ण पदक जीतना उतना उल्लेखनीय नही रहा क्योंकि मॉस्को ओलंपिक खेलों में अधिकतर प्रमुख देशों ने भाग नहीं लिया था।

उसके बाद भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन ओलंपिक में निराशाजनक ही रहा। ओलंपिक में भारत की निराशा का दौर शुरू हो गया। व्यक्तिगत रूप से तो भारत के अब तक एक ही खिलाड़ी ने केवल कांस्य पदक जीता था। केवल भारतीय हॉकी टीम ने आठ बार ओलंपिक स्वर्ण पदक और दो कांस्य पदक जीते थे। लेकिन 1980 के बाद और हॉकी के पतन का भी दौर शुरू हो गया।

1984 के ओलंपिक खेल

1984 के लास एंजिल्स ओलंपिक’ खेलों में भारत को ना हॉकी और में ना ही किसी अन्य खेल में कोई भी पदक नहीं मिला। हाँ इस इन खेलों में एक उल्लेखनीय बात यह रही कि भारत की उड़नपरी’ के नाम से मशहूर प्रसिद्ध पीटी उषा’ 400 मीटर की बाधा दौड़ में चौथे स्थान पर रह गई थी और कुछ ही सेकेंड के अंतर से कांस्य पदक जीतने से चूक गई थी।

1988 के ओलंपिक खेल

1988 के सिओल ओलंपिक’ खेलों में भारत को किसी भी खेल में कोई पदक नहीं प्राप्त हुआ और भारतीय दल खाली हाथ लौटा।

1992 के ओलंपिक खेल

1992 के बार्सिलोना ओलंपिक’ में भी भारत को कोई भी पदक नहीं मिला। भारत की हॉकी टीम सहित पूरे भारतीय दल ने निराश किया।

1996 के ओलंपिक खेल

भारत के ओलंपिक पदक का सूखा 1996 में खत्म हुआ, जब टेनिस खिलाड़ीलिएंडर पेस’ ने 1996 के अटलांटा ओलंपिक’ खेलों में टेनिस की एकल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। यह भारत का दूसरा व्यक्तिगत पदक था।

2000 के ओलंपिक खेल

व्यक्तिगत पदक जीतने का सिलसिला अब शुरु हो गया था और अगले ओलंपिक खेलों यानि सन् 2000 के सिडनी ओलंपिक’ खेलों में भारतीय महिला भारोत्तोलक (वेटलिफ्टर) कर्णम मल्लेश्वरी’ ने कांस्य पदक जीता और वह ओलंपिक खेलों में कोई पदक जीतने वाली पहली महिला बन गई।

2004 के ओलंपिक खेल

सन 2004 के अटलांटा ओलंपिक’ खेलों में भारत के निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौर’ ने रजत पदक जीतकर एक और इतिहास लिखा क्योंकि यह भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक रजत पदक था।

2008 के ओलंपिक खेल

2008 के बीजिंग ओलंपिक’ खेलों में अभिनव बिंद्रा ने ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की, जब उन्होंने भारत के लिए पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत के लिए देश का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता।

अभिनव बिंद्रा ने ओलंपिक के इतिहास में भारत के लिए पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता था, जो उन्होंने 2008 में निशानेबाजी की स्पर्धा में जीता था।

उनके अलावा बॉक्सर विजेंद्र सिंह’ और पहलवान सुशील कुमार’ ने भी कांस्य पदक जीते थे। 1952 के ओलंपिक खेलों में जब भारत ने एक स्वर्ण पदक और एक कांस्य पदक जीता था। उसके बाद यह दूसरा मौका था, जब भारत ने 2008 में एक से अधिक ओलंपिक पदक जीते।

2012 के ओलंपिक खेल

2012 के लंदन ओलंपिक’ खेलों में बैडमिंटन खिलाड़ी ‘साइना नेहवाल’ ने भारत के लिए बैडमिंटन में कांस्य पदक जीता। इसके साथ ही पहलवान सुशील कुमार ने दूसरा ओलंपिक पदक रजत पदक के रूप में जीता। इस तरह वे दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने। 2012 लंदन ओलंपिक’ में ही ‘गगन नारंग’ ने निशानेबाजी स्पर्धा में कांस्य पदक, विजय कुमार ने निशानेबाज की स्पर्धा में रजत पदक, मैरीकॉम’ ने मुक्केबाजी की स्पर्धा में कांस्य पदक और योगेश्वर दत्त ने कुश्ती स्पर्धा में कांस्य पदक जीते। इस तरह यह भारत का तब तक का सबसे सफल साबित हुआ था, जब ओलंपिक में भारत ने दो रजत और चार कांस्य सहित कुल 6 पदक जीते थे।

2016 के ओलंपिक खेल

2016 के रियो डी जेनेरियो ओलंपिक’ खेलों में भारत ने केवल 2 पदक जीते, जब बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु’ ने रजत पदक जीता और पहलवान महिला पहलवान साक्षी मलिक’ ने कांस्य पदक जीता। इस बार केवल महिलाओं ने ही बाजी मारी और दोनों पदक महिलाओं ने ही जीते थे।

2020 के ओलंपिक खेल

2020 का टोक्यो ओलंपिक’ खेल जो कि 2021 में कोरोना महामारी के कारण 2021 में खेले गए थे, वह भारत के अब तक के सबसे सफल ओलंपिक खेल रहे हैं। जब भारत में कुल एक स्वर्ण पदक, दो रजत पदक और चार कांस्य पदक सहित कुल सात पदक जीते।

2020 के टोक्यो ओलंपिक’ खेलों में भारत के नीरज चोपड़ा’ ने पुरुष भाला फेंक (मेंस जैवलिन थ्रो) में स्वर्ण पदक जीता। भारत की पुरुष हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक खेलों में 30 साल का सूखा खत्म किया जब उसने 1980 के मास्को ओलंपिक खेलों के बाद कोई पदक जीता था।

इसके अलावा ‘रवि कुमार दहिया’ ने फ्री स्टाइल कुश्ती में रजत पदक जीता। मीराबाई चानू’ ने वेटलिफ्टिंग स्पर्धा में रजत पदक जीता। महिला मुक्केबाज लोवलीना बोरहोगेन’ ने कांस्य पदक जीता। महिला बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु’ ने कांस्य पदक जीता। पुरुष पहलवान बजरंग पुनिया’ ने कुश्ती स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। इस तरह टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारत ने एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य सहित कुल सात पदक जीते। यह भारत के अब तक सबसे सफल ओलंपिक खेल रहे।

2024 के पेरिस ओलंपिक

2024 के ओलंपिक खेल फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित किए गए। यह ओलंपिक खेल 26 जुलाई 2024 से 11 अगस्त 2024 तक संपन्न हुए।

इन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रदर्शन पिछले ओलंपिक खेलों से कम रहा और भारत ने कुल 6 पदक जीते, जिनमें कोई भी स्वर्ण पदक नहीं था।

पिछले टोक्यो ओलंपिक खेलों में जैवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा इस बार जैवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीतने से चूक गए और उन्होंने रजत पदक जीता।

भारत में इसके अलावा पाँच ब्रांज मेडल जीते। भारत का पहला मेडल निशानेबाज मनु भाकर ने जीता। मनु भाकर ने निशानेबाजी की 20 मीटर पिस्टल स्पर्धा में ब्रांज मेडल जीतकर भारत के मेडल अभियान की शुरुआत की। उसके बाद मनुभाकर ने सरबजोत सिंह के साथा मिलकर 20 मीटर पिस्टल में ही दूसरा ब्रांज मेडल जीता।

इस तरह ‘मनु भाकर’ एक ओलंपिक खेलों में दो ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय बन गईं।

इसके बाद निशानेबाजी में ही भारत का तीसरा ब्रॉन्ज मेडल आया, जब स्वप्निल कुसाले ने जब 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन में भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता। उसके बाद भारत के कुछ प्रतिष्ठित खिलाड़ी जैसे पीवी सिंधु, लक्ष्य सेन, मनिका बत्रा, अंतिम पंघाल, विनेश फोगाट, दीपिका कुमारी जैसे खिलाड़ी मेडल जीतने से चूक गए।

भारत के लिए चौथा ब्रॉन्ज मेडल भारतीय हॉकी टीम ने जीता, किसने स्पेन को 3-2 से हराकर भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता। भारत के लिए पांचवा ब्रॉन्ज मेडल पहलवान अमन सहरावत ने कुश्ती में जीता।

इस ओलंपिक में भारतीय पहलवान विनेश फोगाट के साथ अन्याय भी हुआ जब उन्होंने 50 किलोग्राम भार वर्ग के फाइनल में जगह बनाकर भारत के लिए कम से कम रजत पदक पक्का कर दिया था लेकिन फाइनल वाले दिन 100 किलोग्राम वजन ज्यादा पाये के कारण उन्हें फाइनल के लिए अयोग्य घोषित कर दिया और वह कोई मेडल नहीं जीत पाईं।


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इन बॉलीवुड सितारों की संघर्ष यात्रा में परिवार का विरोध भी इन्हें कलाकार बनने से नहीं रोक सका

कलाकारों का संघर्ष और परिवार से बगावत (Bollywood actors whose family did not want them to become actors)

बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया में कदम रखना आसान नहीं होता। हर साल हजारों कलाकार मायानगरी की ओर रुख करते हैं, लेकिन कुछ ही लोग अपनी मेहनत और हुनर से सफल हो पाते हैं। कई बार अपने सपनों को पूरा करने के लिए इन्हें परिवार का विरोध भी झेलना पड़ता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे सितारों के बारे में जिन्होंने अपने परिवार से बगावत कर फिल्मी दुनिया में अपना नाम बनाया।

कंगना रनौत

बॉलीवुड की निडर और मुखर अभिनेत्री कंगना रनौत का नाम सबसे पहले आता है। उनके पिता चाहते थे कि कंगना डॉक्टर बने, लेकिन कंगना का दिल अभिनय में था। छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने परिवार से बगावत कर घर छोड़ दिया और मुंबई आ गईं। आज कंगना एक सफल अभिनेत्री हैं और उनके रिश्ते परिवार से भी सुधर गए हैं।

इरफान खान

हिंदी सिनेमा के महान अभिनेता इरफान खान ने भी अपने परिवार के विरोध का सामना किया। उनके परिवार वाले नहीं चाहते थे कि वह अभिनेता बने। अपने सपने को पूरा करने के लिए इरफान ने घरवालों से झूठ बोलकर दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया। इरफान ने न केवल बॉलीवुड में बल्कि हॉलीवुड में भी अपनी एक खास पहचान बनाई।

करिश्मा कपूर

करिश्मा कपूर का नाम भी इस सूची में शामिल है। कपूर परिवार की परंपरा के अनुसार, परिवार की महिलाएं फिल्म उद्योग में काम नहीं करती थीं। उनके पिता रणधीर कपूर ने करिश्मा के फिल्मों में आने के फैसले का कड़ा विरोध किया। लेकिन करिश्मा ने 15 साल की उम्र में ही अपने करियर की शुरुआत कर दी और इंडस्ट्री में अपनी जगह बना ली।

राधिका आप्टे

राधिका आप्टे के माता-पिता चिकित्सा पेशे से जुड़े थे और चाहते थे कि उनकी बेटी भी इसी क्षेत्र में करियर बनाए। लेकिन राधिका का दिल अभिनय में था। उनके पिता ने अभिनय को ‘दिमागहीन पेशा’ कहा, लेकिन राधिका ने अपने दिल की सुनी और अपने सपनों को पूरा किया। आज वह एक सफल अभिनेत्री हैं।

नसीरुद्दीन शाह

दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को भी अभिनेता बनने के लिए परिवार का विरोध झेलना पड़ा। परिवार के विरोध के चलते नसीरुद्दीन को घर छोड़ना पड़ा। 16 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और अभिनेता बनने के सफर पर निकल पड़े। आज नसीरुद्दीन शाह भारतीय सिनेमा के महानतम अभिनेताओं में से एक हैं।

परिवार से बगावत करके अपनो सपनों की उड़ान दी और सफलता के शिखर पर पहुँचे

इन सभी कलाकारों ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए परिवार का विरोध सहा और अपने जुनून की राह पर चले। उनकी संघर्ष यात्रा हमें यह सिखाती है कि यदि आपके सपने के प्रति सच्ची लगन और मेहनत हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता आपको रोक नहीं सकता।


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अपने आधार कार्ड को कहीं पर शेयर करने से पहले ये सुरक्षा जरूर कर लें, नही तो आपके आधार कार्ड का दुरुपयोग हो सकता है।

आधार कार्ड का उपयोग करते समय आपको कई बातों का ध्यान रखना होता है। एक छोटी सी गलती भी आपको भारी नुकसान पहुंचा सकती है। आज हम आपको कुछ ऐसे तरीकों (AADHAR Card Protection tips) के बारे में बताएंगे, जिनकी मदद से आप अपने आधार कार्ड का सही तरीके से उपयोग कर सकते हैं। खासकर, हम आपको मास्क आधार के बारे में जानकारी देंगे, जो आपके आधार को सुरक्षित रखने में मदद करेगा। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें आपके आधार नंबर को मास्क किया जाता है।

क्यों जरूरी है मास्क आधार?

आधार कार्ड के नंबर्स को लेकर आपको हमेशा सतर्क रहना चाहिए। यही कारण है कि मास्क आधार आपके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। मास्क आधार में आपके आधार नंबर को छिपाया जाता है, जिससे आपके पूरे आधार नंबर नजर नहीं आते। यह आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है, खासकर जब आप इसे सही तरीके से फॉलो करते हैं। मास्क आधार आपके व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा करता है और आपके आधार नंबर को गैर-अधिकृत उपयोग से बचाता है।

कैसे करें डाउनलोड?

मास्क आधार कार्ड डाउनलोड करना एक आसान प्रक्रिया है। इसके लिए आपको कुछ विशेष करने की आवश्यकता नहीं होती। सबसे पहले आपको UIDAI की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा। वहां आपको अपना 12 अंकों का आधार नंबर दर्ज करना होगा। इस प्रक्रिया के दौरान आपको मास्क आधार का विकल्प नजर आएगा, जिसे चुनना होगा। इसके बाद आपको कैप्चा कोड को ध्यान से भरना होगा। इसके बाद आपके मोबाइल पर एक OTP भेजा जाएगा, जिसे दर्ज कर वेरिफिकेशन पूरा करना होगा। वेरिफिकेशन के बाद आपका मास्क आधार कार्ड डाउनलोड हो जाएगा। इसके साथ ही आप E-Aadhaar की कॉपी भी आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं।

इस प्रकार, मास्क आधार का उपयोग करके आप अपने आधार कार्ड की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं और किसी भी संभावित जोखिम से बच सकते हैं। यह प्रक्रिया सरल और प्रभावी है, जिससे आपके व्यक्तिगत जानकारी को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।

नोट : मास्क आधार कार्ड कैसे बनाएं इसके बारे में जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं।


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Shiv Tandav Stotram – शिव तांडव स्तोत्र (संपूर्ण 18 श्लोक) अर्थ सहित।

शिवतांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram) भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है। इस स्तोत्र की रचना रावण ने की थी। रावण शिव का परम भक्त माना जाता है। शिव तांडव स्तोत्र की रचना रावण ने तब की थी, जब एक बार वह रास्ते में पुष्पक विमान से अपनी लंका नगरी को जा रहा था तो रास्ते में कैलाश पर्वत पड़ा। कैलाश पर्वत के मार्ग में आने के कारण रावण के पुष्पक विमान की गति धीमी हो गई थी। तब उसने अहंकार और क्रोध में आकर कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश की।

उस समय कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साधनारत थे। भगवान शिव के गण नंदी ने रावण को ऐसा करने से मना किया और कहा भगवान शिव यहाँ पर साधना रहते हैं। उनकी साधना में विघ्न पड़ेगा लेकिन रावण उस समय अहंकारी हो चुका था। उसने अहंकार में आकर किसी की बात नहीं सुनी और कैलाश पर्वत को उठाने लगा। जैसे ही अपने उसने अपनी दोनों भुजाएं कैलाश पर्वत को उठाने के लिए कैलाश पर्वत के नीचे लगाईं, तभी भगवान शिव जोकि साधनारत थे, उन्हें सब पता चल गया और उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया, जिससे कैलाश पर्वत वहीं पर स्थिर हो गया और रावण की दोनों भुजाएं कैलाश पर्वत के नीचे दब गईं। इस कारण रावण दर्द के मारे छटपटाने लगा। वह भयंकर चीत्कार करने लगा। उसकी चीत्कार इतनी तेज थी कि सारी पृथ्वी पर भूचाल सा आ गया। तब रावण के शुभचिंतकों ने रावण को सलाह दी कि वह भगवान शिव की स्तुति करें और उन्हें प्रसन्न करें, तभी शिव उसे मुक्त कर सकते हैं। तब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जिस स्तोत्र का पतन शुरू करना शुरू कर दिया, वही स्त्रोत शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जाना गया।

रावण शिव तांडव स्तोत्र को गाता रहा। स्तोत्र के पूरा होने पर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने पर्वत से अपने पैर के अंगूठे को हटा लिया। जिससे रावण की दोनों भुजाएं मुक्त हो सकीं और वह शिव से क्षमा मांग कर वहां से चला गया।

तभी से यह शिव तांडव स्त्रोत प्रसिद्ध हो गया। जो मन वचन और ध्यान से इस स्तोत्र का पाठ करता है उस पर भगवान शिव अपनी कृपा जरूर बरसाते हैं।

अक्सर इंटरनेट पर शिवतांडव स्तोत्र पूरे रूप में हीं मिल पाता है। इसमें 18 श्लोक है, लेकिन अधिकतर 16 या 17 श्लोंक वाल संस्करण ही देखने को मिलता है। यहाँ पर हम पूरे 18 श्लोकों वाला शिव तांडव संतोत्र को दे रहे है। इस स्तोत्र मन-वचन से नित्य पाठ भगवान शिव की कृपा पाने के लिए उत्तम साधन है…

शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram)

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटा कटाह संभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुबंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटाक्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

जटा भुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधामयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजटालमस्तु नः ॥6॥

कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबद्धबंधकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमप्रभा-
वलंबि कंठकंधलि रुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भवातकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलिमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

नमामि पार्वतीपतिं नमामि जाह्ववी पतिं
नमामि भक्तवत्सलं नमामि फाललोचनम्
नमामि चन्द्रशेखरं नमामि दुखमोचनम्
तदीय पादपंकजम् स्मराम्यहम् नटेश्वरम्।।16।।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना सु शंकरस्य चिंतनम ॥17॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥18॥

॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥

सभी 18 श्लोकों का अर्थ और व्याख्या

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

अर्थ : भगवान शिव की जटाओं (बालों) निरंतर पवित्र जल बह रहा है। उनके कंठ (गले) में जो सांप है वो हार के रूप में उनके कंठ में विराजमान है। शिव के डमरू से लगातार डमड् डमड् की ध्वनि निकल रही है। डमरू से निकली ध्वनि से ताल मिलाते हुए शिव तांडव नृत्य कर रहे हैं। सबको सम्पन्नता प्रदान करने वाले तांडव नृत्य करते भगवान शिव को नमन है।

जटा कटाह संभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोल वीचि वल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

अर्थ : वो भगवान शिव जिनके सिर पर आलोकिक गंगा नदी अपनी बहती धाराओं के रूप मे सुसज्जित है। ये गंगा नदी भगवान शिव के बालों की जटाओं में उलझी हुई उनके सिर की शोभा को बढ़ा रही है। उनके मस्तक पर चारों तरफ अग्नि के जैसा आलोकिक तेज उनके मस्तक की शोभा को बढ़ा रहा है। उनके मस्तक पर अर्द्ध चंद्र के जैसा आभूषण सुसज्जित है, जो बेहद आकर्षण प्रतीत हो रहा है।

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटाक्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
अर्थ : मेरा मन भगवान शिव में ही रम जाना चाहता है। इस संसार के इस ब्रह्मांड के सारे प्राणी भगवान शिव के अंदर ही समाहित हैं। मेरा मन भगवान शिव में ही अपने प्रसन्नता को खोजना है। भगवान शिव जी की अर्धांगिनी पर्वत राज की पुत्री पार्वती हैं ऐसे भगवान शिव जो अपने करुणा दृष्टि से कठिन से कठिन आपदा को दूर कर सकते हैं। जो इस ब्रह्मांड में सर्वत्र व्याप्त हैं और सभी दिव्या लोकों को अपनी पोशाके की तरह धारण करते हैं। ऐसे भगवान शिव को प्रणाम।
जटा भुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
अर्थ : भगवान शिव का स्मरण करने से मुझे अपार सुख की प्राप्ति होती है। वह भगवान शिव जो सभी प्राणियों के जीवन की रक्षा करते हैं। उनके गले में भूरे रंग के सांप हैं, तो सिर सफेद चमक बिखेरती मणि सुसज्जित है। वह शिव जो मस्त मस्त हाथी की चाल की तरह चलते चले जाते हैं, ऐसे भगवान भगवान शिव हम सबको सुख-समृद्धि और संपन्नता प्रदान करें।
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
अर्थ : जिनकी चरण पादुकाएं इंद्र आदि देवताओं के निरंतर वंदन करने फूलों की  धूल से धूसरित हो गई है। से निकने जिनके बालों की जटाएं लाल नाग रूपी हारों से बंधी हैं। ऐसे भगवान चंद्रशेखर में चिरस्थायी संपत्ति प्रदान करें।
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधामयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
अर्थ : जिनके मस्तक रूपी वेदी पर जलती हुई अग्नि के तेज से कामदेव भस्म हो गया था, जिनको इंद्र आदि जैसे देवता नित्य नमस्कार किया करते हैं। जिनके सिर पर चंद्रमा की सभी कलाओं से सुशोभित मुकुट लगा हुआ है। ऐसे विशाल उन्नत ललाट वाले भगवान शिव को मेरा प्रणाम।
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
अर्थ : जो भगवान शिव ने अपने विकराल भालपट्ट पर धक-धक जलती हुई अग्नि में कामदेव को भस्म कर देते हैं। वह भगवान शिव जो गिरिराज किशोरी के स्तनों पर आकर्षण रेखाओं की रचना करने में निपुण हैं, ऐसे भगवान त्रिलोचन शिव में मेरा ध्यान लग रहे।
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबद्धबद्धकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
अर्थ : जिन भगवान शिव के कंठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समान फैली हुई घोर अंधकार की सघनता है। जो अपने शरीर पर गजचर्म को लपेटे हुए हैं, ऐसे पूरे संसार के भार को धारण करने वाले मनोहर कांति वाले भगवान शिव मेरी संपत्ति का विस्तार करें।
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमप्रभा-
वलम्बि कंठकंदंली रुचि प्रबद्धकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अर्थ : जिनका गला खिले हुए नीलकमल समूह की शाम प्रभा का अनुकरण करने वाली हिरानी के समान सुशोभित हैं। जो कामदेव, तिप्रुर, भव यानि संसार, हाथी, अंधकासुर और यमराज का भी उच्चाटन यानी संहार करने वाले हैं, ऐसे भगवान शिव को मैं नित्य प्रति ध्यान करता हूँ।
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
अर्थ : जो शिव अभियान से विरक्त पार्वती की कलारूप माधुरी का पान करने वाले भंवरे हैं, जो कामदेव, त्रिपुर, भवसंसार, दक्ष यज्ञ, अंधकासुर और यमराज का भी अंत करने वाले हैं, ऐसे भगवान शिव का में ध्यान करता हूँ।
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥11॥
अर्थ :जिन भगवान शिव के मस्तक पर वह भयंकर अग्नि प्रज्जवलित होती है, जो शिव के गले में विराजमान भयंकर साँपों के फुफकारने से उत्पन्न होती है। धिधि-धिमि की मधुर ध्वनि से बजते मृदंग के मंगल धोष से जो तांडव कर रहे हैं, ऐसे भगवान शिव की जय हो।
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥12॥
अर्थ : जब मैं पत्थर और सुंदर बिछौनों में, साँपों और मुक्ता की माला में, बहुमूल्य रत्नों और मिट्टी के ढेले में, मित्र और शत्रुओं में, कमजोर कृशकाय या कमल के समान आँखों वाली सुंदरी में, सामान्य प्रजा और राजाधिराज महाराज में समान भाव रख सकूंगा तो कब मैं सदाशिव को भजूं सकूंगा।
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥
अर्थ : सुन्दर ललाट वाले भगवान चन्द्रशेखर में मेरा मन एकदम रम जाए। मैं अपने मन के कुविचारों को त्यागकर गंगा के समान पवित्र भाव को अपने अंदर समाहित करता, अपने दोनों हाथों को जोड़ता हुआ सिर पर हाथों के रखता हूँ डबडबाई आँखों से शिव मंत्र का उच्चारण कर रहा हूँ। मैं कब शिव की कृपा को प्राप्त करके सुखी होऊंगा?
तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़ डबडबाई हुईं विह्वल आंखों से ‘शिव’ मंत्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊंगा?
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
अर्थ : जिनके सिर में गुथे पुष्पों की माला से झड़ने वाली सुगंध से और मनोहर स्वरूप वाले और शोभायमान रूप वाले महादेव के सुंदर अंगों की सुंदरता का आंनद मन की प्रसन्नता का बढ़ा रहा है, ऐसे भगवान शिव को नमन।
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥
अर्थ : जो प्रचण्ड बड़वानल के समान पापों को भस्म करने में सक्षण हैं, जो प्रचंड अमंगलों का विनाश करने वाले हैं। अष्ट सिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली कन्याओं द्वारा शिव विवाह समय गान की मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित संसारिक दुःखों का नाश हो और विजय प्राप्त हो।
नमामि पार्वतीपतिं नमामि जाह्ववी पतिं
नमामि भक्तवत्सलं नमामि फाललोचनम्
नमामि चन्द्रशेखरं नमामि दुखमोचनम्
तदीय पादपंकजम् स्मराम्यहम् नटेश्वरम्।।16।।
अर्थ : पार्वती के पति शिव को नमन है। गंगा के पति शिव को नमन है। भक्तों पर कृपा बससाने वाले शिव को नमन है। मनमोहक नयनों वाले शिव को नमन है। सिर पर चंद्रमा को धारण करने वाले शिव को नमन है। दुखों का हरण करने वाले शिव को नमन है। चरणों में जिनके कमल है, ऐसे नटेश्वर भगवान शिव को नमन है।
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना सु शंकरस्य चिंतनम ॥17॥
अर्थ : इस स्तोत्र को जो भक्त पढ़ता है, इसका स्मरण करता है, इसको दूसरों को सुनाता है। वह शिवभक्त सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु भगवान शिव की भक्ति पाता है। जो स्वयं में गुरुओं के गुरु और योगीश्वर हैं। उनकी भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है। हर समय भगवान शिव का चिंतन करना चाहिए।
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥18॥
अर्थ : जो भक्त प्रातःकाल नित्य पूजा में इस रावणकृत शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करता है, उसके घर में सदैव लक्ष्मी का स्थिर वास रहता है। ऐसा भक्त रथ, गज, घोड़ा (आज के समय में कार, बाइक जैसे वाहन) तथा हर तरह की सम्पत्ति से युक्त रहता है, और सुखी और सम्पन्न रहता है।

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लोहे की कढ़ाई में ये सब्जियां पकाने से बचें, नहीं तो सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।

लोहे की कढ़ाई भारतीय रसोई का एक अभिन्न अंग है, जो न केवल पारंपरिक पाक कला का प्रतीक है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक माना जाता है। इसका उपयोग भोजन में आयरन की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है, जो रक्ताल्पता जैसी समस्याओं से बचाव में सहायक होता है। हालांकि, यह जानना महत्वपूर्ण है कि कुछ खाद्य पदार्थों को लोहे की कढ़ाई में पकाना हानिकारक हो सकता है।

जी हां, कुछ ऐसी सब्जियां भी है, जिन्हें लोहे की कढ़ाई में नहीं पकाना चाहिए। इन्हें लोहे की कढ़ाई में पकाने से ये सब्जिया सेहत की हानिकारक बन जाती है। आइए जानते हैं, वो सब्जियां कौन सी हैं…

पालक (Spinach)

पालक मौजूद ऑक्सालिक एसिड लोहे से प्रतिक्रिया कर सकता है, जिससे न केवल पालक का रंग बदल सकता है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकता है। इसे स्टेनलेस स्टील या नॉन-स्टिक बर्तन में पकाना बेहतर विकल्प है।

टमाटर (Tomato)

टार्टरिक एसिड से भरपूर टमाटर लोहे की कढ़ाई में पकाने से अत्यधिक नरम हो सकते हैं और भोजन में धातु जैसा स्वाद आ सकता है। टमाटर को पकाने के लिए स्टील या मिट्टी के बर्तन सर्वाधिक उपयोगी है।

चुकंदर (Beetroot)

चुकंदर में प्राकृतिक रूप से मौजूद आयरन लोहे की कढ़ाई से अतिरिक्त प्रतिक्रिया कर सकता है, जिससे खाने का रंग और स्वाद बिगड़ सकता है। चुकंदर को भी स्टील के बर्तन नें पकाएं अथवा मिट्टी या पीतल के बर्तनों का उपयोग करें।

नींबू (Lemon)

नींबू अत्यधिक अम्लीय होने के कारण, नींबू लोहे से प्रतिक्रिया करके न केवल भोजन का स्वाद खराब कर सकता है, बल्कि पाचन संबंधी समस्याएं भी पैदा कर सकता है। इसलिए खाना पकाते समय लोहे की कढ़ाई में नींबू का रस कभी नहीं डाले और ना ही ऐसा भोजन लोहे की कढ़ाई में पकाएं जिसमें नीबूं पढ़ा हो। नींबू का रस निचोड़ने या इसका उपयोग करने के लिए लकड़ी या धातु के बर्तन का प्रयोग करें।

लोहे की कढ़ाई में पकाते समय निम्न बातों का ध्यान रखें…

1. लोहे की कढ़ाई का उपयोग दाल, सब्जियों और मांस जैसे गैर-अम्लीय खाद्य पदार्थों के लिए करें।
2. कढ़ाई को हमेशा अच्छी तरह से साफ और सूखा रखें ताकि जंग न लगे।
3. नए लोहे के बर्तन को पहली बार उपयोग करने से पहले ‘सीजन’ करना न भूलें।
4. लोहे की कढ़ाई में पके भोजन को समय तक न रखें, क्योंकि यह अतिरिक्त आयरन अवशोषित कर सकता है।

लोहे की कढ़ाई का समझदारी से उपयोग करने से आप इसके स्वास्थ्य लाभों का आनंद ले सकते हैं और साथ ही संभावित नुकसान से बच सकते हैं।

अपने आहार में विविधता लाएं और विभिन्न प्रकार के बर्तनों का उपयोग करें ताकि सभी पोषक तत्वों का संतुलित सेवन सुनिश्चित हो सके। स्वस्थ खाना पकाने की कला में निपुणता हासिल करने के लिए इन सुझावों का पालन करें और अपने परिवार के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।


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गौतम गंभीर – एक छोटा सा जीवन आकलन

गौतम गंभीर: भारत के क्रिकेट नायक की अनकही कहानी

गौतम गंभीर, जिन्हें अक्सर गौती या जीजी के नाम से जाना जाता है, एक ऐसे क्रिकेटर हैं जिनके बिना आधुनिक भारतीय क्रिकेट की कहानी अधूरी है। एक आक्रामक बल्लेबाज और लाल बल्लेबाज के रूप में प्रसिद्ध, गंभीर ने अपनी विशिष्ट शैली और साहस के साथ कई महत्वपूर्ण मैचों में अपनी छाप छोड़ी है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

गौतम गंभीर का जन्म 14 अक्टूबर, 1981 को दिल्ली में हुआ था। क्रिकेट के प्रति उनकी रुचि बहुत कम उम्र से ही शुरू हो गई थी और 10 साल की उम्र में ही उन्होंने इस खेल को गंभीरता से अपनाना शुरू कर दिया था। लाल बहादुर शास्त्री क्रिकेट अकादमी में शामिल होकर, गंभीर को संजय भारद्वाज और राजू टंडन जैसे दिग्गज कोचों से प्रशिक्षण मिला।

परिवार और निजी जीवन

गौतम गंभीर के पिता दीपक गंभीर टेक्सटाइल बिजनेसमैन हैं और उनकी माँ का नाम सीमा है। उनकी एक छोटी बहन एकता भी है। अपने जन्म के 18 दिनों के भीतर ही, गंभीर को उनके दादा-दादी ने गोद ले लिया था और वे उनके साथ ही रहे। उनके मामा पवन गुलाटी ने भी उनके क्रिकेट करियर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गंभीर उन्हें अपना गुरु मानते हैं। अक्टूबर 2011 में, गंभीर ने नताशा जैन से शादी की और वे दिल्ली के राजेंद्र नगर में रहते हैं।

खेल करियर

अंतरराष्ट्रीय पदार्पण और आरंभिक वर्ष

गौतम गंभीर ने 2003 में बांग्लादेश के खिलाफ अपना पहला वनडे मैच खेला और अगले वर्ष ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेला। हालांकि, आरंभिक वर्षों में उनकी प्रगति धीमी रही और उन्हें 2007 विश्व कप के लिए भारतीय टीम में जगह नहीं मिली, जिससे वे काफी निराश हुए।

सफलता का दौर: 2007-2011

2007 आईसीसी टी20 विश्व कप गंभीर के करियर का एक मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में 75 रनों की शानदार पारी खेली और भारत को खिताब दिलाने में अहम योगदान दिया। 2008 और 2009 में, गंभीर ने अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किए और 2009 में आईसीसी टेस्ट प्लेयर ऑफ द ईयर चुने गए।

उपलब्धियां

2011 विश्व कप फाइनल में गंभीर ने श्रीलंका के खिलाफ 97 रनों की विजयी पारी खेली और भारत को खिताब दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, उन्होंने कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए 2012 और 2014 में आईपीएल खिताब भी जीते।

करियर का अंतिम पड़ाव

2016 तक, गंभीर फॉर्म में लौट आए और उन्हें टीम में वापस बुलाया गया। हालांकि, उनकी गति धीरे-धीरे कम होने लगी और उन्होंने दिसंबर 2018 में सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा कर दी।

गौतम गंभीर का अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में रिकार्ड

प्रारूपखेले गए मैचरन बनाएउच्चतम स्कोरस्ट्राइक रेटऔसत बल्लेबाजीशतकअर्द्धशतक
टेस्ट58415420651.4941.95922
वनडे1475238150*85.2539.681134
टी-20 इंटरनेशनल3793275119.0227.4107

गौतम गंभीर के आईपीएल आंकड़े

वर्षटीमखेले गए मैचरनउच्चतम स्कोरस्ट्राइक रेटऔसत50
2008डीडी1453486140.8941.075
2009डीडी1528671*102.8722.001
2010डीडी1127772127.6430.772
2011केकेआर1537875*119.2434.362
2012केकेआर1759093143.5539.336
2013केकेआर1640660118.3625.374
2014केकेआर1633569114.3322.333
2015केकेआर१३32760117.6225.153
2016केकेआर1550190*121.8938.535
2017केकेआर1649876*128.0241.504
2018डीडी6855596.5917.001
कुल 154421793123.8831.2436

राजनीतिक करियर और पुरस्कार

2019 में, गौतम गंभीर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और पूर्वी दिल्ली से लोकसभा सदस्य चुने गए। उनके द्वारा प्राप्त प्रमुख पुरस्कारों में अर्जुन पुरस्कार (2008) और पद्मश्री (2019) शामिल हैं।

गौतम गंभीर की विरासत एक अनूठी और अविस्मरणीय है। उनके साहस और दृढ़ इरादों ने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयां दीं। जबकि टीम के सदस्य आते और जाते रहे हैं, लेकिन गंभीर की छाप हमेशा बनी रहेगी।

गौतम गंभीर – लाइफ स्कैन शार्ट में

वास्तविक नाम : गौतम गंभीर
उपनाम : गौटी
व्यवसाय : पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी, वर्तमान समय भारतीय क्रिकेट टीम के कोच

शारीरिक संरचना

लम्बाई : 1.67 मीटर (5’6″)
वजन : लगभग 66 किग्रा
आँखों का रंग : हल्का भूरा
बालों का रंग : काला

क्रिकेट करियर

अंतर्राष्ट्रीय पदार्पण : वनडे (11 अप्रैल 2003), टेस्ट (13 नवंबर 2004), टी-20 (13 सितंबर 2007)
जर्सी नंबर : #4 (भारत), #5 (आईपीएल, कोलकाता नाइट राइडर्स)
डोमेस्टिक/स्टेट टीम : दिल्ली
आईपीएल टीम : दिल्ली डेयरडेविल्स, कोलकाता नाइट राइडर्स, दिल्ली कैपिटल्स (पूर्व दिल्ली डेयरडेविल्स)
मैदान पर प्रकृति : बहुत आक्रामक
मुख्य कीर्तिमान : लगातार 5 टेस्ट शतक, लगातार 11 टेस्ट अर्धशतक, एक साल में सर्वाधिक रन आदि।

सम्मान/पुरस्कार

आईसीसी टेस्ट प्लेयर ऑफ़ द इयर (2009)
अर्जुन पुरस्कार (2009)

विवाद

विराट कोहली, धोनी, शाहिद अफरीदी, कामरान अकमल के साथ मैदानी विवाद
अपने नाम से चलने वाले पब को लेकर विवाद

व्यक्तिगत जीवन

जन्मतिथि : 14 अक्टूबर 1981 (आयु 36 वर्ष)
जन्मस्थान : नई दिल्ली, भारत
परिवार : पत्नी नताशा जैन, बेटी आजीन
शौक : यात्रा करना, पुस्तकें पढ़ना
पसंदीदा चीजें : राजमा चावल, बटर चिकन, फिल्में कहानी और विकी डोनर आदि।

 


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Fathers Day History – पिता – इस दुनिया का सबसे बड़ा योद्धा। फादर्स डे का इतिहास और पिता का महत्व जानें। (फादर्स डे स्पेशल)

दिल का दर्द छुपाकर मुसकुराते हैं पापा,
कंधे पर उठाकर दुनिया दिखते हैं पापा,
ना जाने कैसे मेरे कुछ कहे बिना,
मेरे दिल की बात समझ जाते हैं पापा ।

फादर्स डे: पिताओं के सम्मान में मनाया जाने वाला उत्सव (Fathers Day History History)

पिता का महत्व किसके जीवन में नहीं होता। माता-पिता दोनों का महत्व एक व्यक्ति के जीवन में सर्वोपरि होता है क्योंकि यहीं दो किसी व्यक्ति के जीवन की आधारशिला होते है। माता-पिता ही अपने बच्चे के जीवन की नींव को रखते हैं। जिस पर बच्चे के भविष्य की सुनहरी इमारत खड़ी होती है। माता-पिता की भूमिका किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है। दोनों की भूमिकाए अलग-अलग होती हैं और माता-पिता दोनों अपनी संतान के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह पूरी तरह करते हैं। आज किसी व्यक्ति के जीवन में पिता के महत्व को जानेंगे।

फादर्स डे पिता के सम्मान में मनाया जाना वाले वो विशेष दिन है, जिस दिन दुनिया भर की संताने अपने-अपने पिता के प्रति प्रेम और श्रद्धांजलि प्रकट करते हैं।

फादर्स डे कब से मनाया जाता है। इसको मनाने के पीछे क्या कारण हैं? सब कुछ जानते हैं…

फादर्स डे दुनिया भर के कई देशों में पिताओं और पितातुल्य व्यक्तियों के सम्मान में मनाया जाने वाला एक विशेष अवसर है। यह दिन परिवार और समाज में पिताओं की भूमिका के लिए उनके प्रति प्रशंसा, प्रेम और कृतज्ञता दिखाने के लिए समर्पित है। आइए फादर्स डे कब और क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे क्या कारण हैं और इस महत्वपूर्ण पालन का इतिहास क्या है, इस बारे में विस्तार से जानें।

फादर्स डे कब मनाया जाता है?

फादर्स डे आमतौर पर किसी भी वर्ष जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने का प्रचलन कई देशों में है, जिनमें यूनाइटेड स्टेट्स, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और अन्य कई यूरोपीय देश शामिल हैं। हालाँकि, अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी तिथि अलग-अलग हो सकती है, कुछ देश इसे अन्य तिथियों पर मनाना पसंद करते हैं।

हम फादर्स डे क्यों मनाते हैं?

फादर्स डे अपने बच्चों और परिवारों के जीवन में पिताओं और पितातुल्य व्यक्तियों द्वारा किए गए योगदान और बलिदान को पहचानने और सम्मान देने का समय है। यह पिता द्वारा दिए जाने वाले मार्गदर्शन, सहायता और प्यार के लिए आभार, प्रेम और सम्मान व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।

फादर्स डे का इतिहास

फादर्स डे का इतिहास संयुक्त राज्य अमेरिका में 20वीं सदी की शुरुआत में देखा जा सकता है। पिताओं को एक विशेष दिन के साथ सम्मानित करने का विचार मदर्स डे के पहले से ही स्थापित उत्सव से प्रेरित था। स्पोकेन, वाशिंगटन की सोनोरा स्मार्ट डोड को अक्सर फादर्स डे की मनाने की शुरुआत करने श्रेय दिया जाता है। वह अपने पिता विलियम जैक्सन स्मार्ट के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए एक विशेष दिन को समर्पित करना चाहती थीं। सोनोरा की माँ का देहांत बचपन में ही हो गया था। सोनोरा व उसके भाई बहनों को उसके पिता ने ही पालपोस कर बड़ा किया था।

सोनोरा अपने पिता का अपनी संतान के प्रति इस समर्पण से कृतज्ञ थीं और अपने पिता को सम्मान में किसी विशेष दिन को समर्पित करना चाहती थीं। उस समय मदर्स डे मनाने की परंपरा शुरु हो चुकी थी और सोनोरा ने लोगों को मदर्स डे मनाते हुए देखे था। अपने पिता के सम्मान में कोई दिन मनाना चाहती थीं।

1909 में, सोनोरा स्मार्ट डोड ने अपने स्थानीय चर्च और समुदाय को अपने पिताओं की तरह पिताओं का सम्मान करने के लिए फादर्स डे का विचार प्रस्तावित किया। पहला फादर्स डे 19 जून, 1910 को स्पोकेन में मनाया गया था, जिसमें पिताओं के सम्मान में विशेष सेवाएँ और गतिविधियाँ आयोजित की गई थीं। समय के साथ, इस उत्सव ने लोकप्रियता हासिल की और अन्य राज्यों और देशों में फैल गया।

फादर्स डे का विकास

शुरू में, फादर्स डे को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली और इसे व्यापक मान्यता नहीं मिली। 1920 और 1930 के दशक तक फादर्स डे को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में स्थापित करने के प्रयासों ने गति नहीं पकड़ी। 1972 में, राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने फादर्स डे को संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय अवकाश बनाने की घोषणा पर हस्ताक्षर किए।

आज, फादर्स डे दुनिया भर में विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है, जैसे बच्चे अपने पिता को उपहार देते हैं, कार्ड देते है, अपने पिता के साथ समय बिताते हैं, उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। ये दिन पूरी तरह पिता के लिए समर्पित रहता है।

फादर्स डे का महत्व

फादर्स डे का बहुत महत्व है क्योंकि यह बच्चों के पालन-पोषण में पिता की भूमिका के प्रति सम्मान प्रकट करता है। यह दिन बेटा-बेटी का अपने पिता के साथ संबंधों को और अधिक मजबूत करने का पर्व है।

अंत में,

फादर्स डे एक विशेष अवसर है जो पिता, पितृत्व का बंधन और पिता के योगदान को प्रकट करने उनके लिए समर्पित है। यह पिता द्वारा अपने परिवारों को दिए जाने वाले निस्वार्थ समर्पण और देखभाल के लिए आभार, प्रेम और सम्मान व्यक्त करने का दिन है। फादर्स डे का इतिहास और विकास हमारे जीवन में पैतृक प्रभाव का सम्मान करने और उसे संजोने के महत्व को उजागर करता है।

फादर्स के डे अवसर पर अपने पिता के लिए समर्पित एक कहानी।

आइए दोस्तों आज मैं आपको एक कहानी सुनाती हूँ। ध्यान से सुनना, क्योंकि यह कोई कहानी नहीं है, सच है मेरा सच ।

मेरा नाम रिंकू है, अरे ! मैं जानती हूँ कि आप सोच रहे होंगे कि ये कैसा लड़कों जैसा नाम है? दरअसल मैं जब बहुत छोटी थी तो मैं काफी गोलू-मोलू सी थी, बिल्कुल अपने पापा जैसी इसलिए मेरा नाम रिंकू रख दिया । मैं अपने पापा से बहुत प्यार करती हूँ। उन्होंने हमेशा मेरी हर ख्वाहिश को पूरा किया है ।

यह बात उस समय की है जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ती थी । एक शाम जब मेरे पिता जी दफ्तर से घर आए तो मैंने उनके पास एक पैकेट देखा तो उसमें एक उपहार था। अगले दिन मेरा वार्षिक परिणाम घोषित होने वाला था तो उस समय मेरा वार्षिक परीक्षा का परिणाम आने वाला था। मेरे पिता जी शाम को घर आए थे तो उनके पास एक बड़ा सा थैला था। मैंने सोचा कि पापा रोज़ की तरह कुछ खाने को लाए होंगे मैंने जल्दी–जल्दी थैला खोला तो उसमें खाने की चीजों के साथ एक छोटा सा लिफाफा था ।

मैंने जल्दी–जल्दी से उसे खोलकर देखा तो उसमें एक बहुत ही सुन्दर घड़ी थी । मैं बहुत खुश हुई क्योंकि पिता जी ने कहा था कि अगर तुम्हारे 80% अंक आएंगे तो मैं तुम्हें तोहफे मैं घड़ी दूंगा ।

अगले दिन मेरा वार्षिक परिणाम आने वाला था और में ढंग से सो नहीं पाई थी। ठीक से खाना भी नहीं खाया पाई थी और मेरे पिता जी मुझसे भी ज्यादा परेशान थे। मेरे वार्षिक परिणाम को लेकर नहीं बल्कि इस बात से कि मैंने अच्छे से खाना नहीं खाया था ।

मेरा परिणाम आया मैं पास हो गई थी लेकिन मैं बहुत दुखी थी। इसलिए नहीं कि मेरे अंक कम आए थे बल्कि इसलिए क्योंकि अब मुझे घड़ी नहीं मिलेगी । मैं घर आकर बहुत रोई। पर पापा तो पापा होते है। वह शाम को घर आए। हाथ में मिठाई का डिब्बा लेकर और दूसरे हाथ में वही घड़ी का लिफाफा जो मैंने पिछले दिन उनके थैले में देखा था।

मैंने जल्दी से बोल दिया कि मेरे अंक 80% से कम है, पिता जी। पिता जी ने मुझे बड़े प्यार से गले लगाया और मेरे माथे को चूम और मुसकुराते हुए बोले, कोई बात नहीं अगली साल ले आना 80% पर बस रोना नहीं, चलो अब सब को मिठाई खिलाओ सब को पर पहले भगवान जी को भोग लगाओ ।

उनकी जेब खाली होती थी, फिर भी मना करते नहीं देखा, मैंने पापा से अमीर इंसान कभी भी नहीं देखा ।

चलिए अब एक ओर किस्सा सुनाती हूँ। मेरी एक सहेली थी उसके पिता जी उसके लिए कंप्यूटर ले आए बस फिर क्या था फिर तो शाम का इंतजार का इंतजार होने लगा कि कब पिता जी आएं। ठीक उसे समय दरवाज़े की घंटी की आवाज़ आई और मैं भाग कर दरवाज़े पर गई तो सामने पापा खड़े थे ।

मैंने उन्हें फटाफट फ्रिज से ठंडा पानी निकाल कर पिलाया और उनके पास बैठ गई तो उनका पहला सवाल था , क्या चाहिए बेटा । मैं मुसकुराई और मैंने पापा को बताया कि आज मेरी एक सहेली के पापा उसके लिए कंप्यूटर लेकर आए हैं।

रसोई से माँ की आवाज आई कोई जरूरत नहीं है, इन फालतू चीजों की। ये तुम्हारे किसी काम की नहीं है और वैसे भी अभी मार्च का महीना है। तनख्वाह भी थोड़ी देर से मिलेगी। और तो और टैक्स भी इसी महीने जमा करवाना है और फिर तुम्हारी फ़ीस की भी आखिरी तारीख इसी महीने है। पर पापा ने  एक शब्द भी नहीं कहा और न ही मैंने कुछ कहा, बस चुप–चाप बैठ गई ।

कुछ दिनों तक ना तो मैं घर से बाहर खेलने गई और ना किसी से ज्यादा कुछ बात करती थी। तीन–चार दिन बीत जाने के बाद एक दिन मैं अपने कमरे में बैठ कर पढ़ाई कर रही थी। उसी समय पापा की आवाज सुनाई दी और उनके साथ कोई और भी था। वह घर के अंदर आए पर मैं कमरे से बाहर नहीं आई।

पापा ने आवाज़ लगाई रिंकू बेटा बाहर आना ज़रा। मैं उठ कर बाहर कमरे गई तो पापा बोले बेटा बताओ इसे कहाँ लगाना है, यह कंप्यूटर, तुम्हारे कमरे में ? मेरी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा, वह मेरे लिए कंप्यूटर लेकर आए थे।

मैंने जल्दी–जल्दी कंप्यूटर अपने कमरे में लगवाया और उस रात तो मैंने खाना भी अपने कमरे में ही खाया था और मैंने ये जानने तक की भी कोशिश तक नहीं कि वह कितने का है, उसके लिए उनके पास पैसे कहाँ से आए। कुछ दिनों तक तो मैं सुबह उठते ही कंप्यूटर के आगे बैठ जाती थी और रात को देर तक कंप्यूटर पर बैठी रहती थी।

आप सोच रहे होंगे कि मैं कुछ काम तो जरूर करती होंगी तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं था मैं तो कंप्यूटर पर गेम खेलती रहती थी। आज कम से कम दो महीने होंगे, मैंने कंप्यूटर की तरफ देखा भी नहीं है। आज मैं और मेरी माँ बहुत दिनों बाद एक साथ बैठे थे।

माँ बोली, क्या बात है, आजकल कंप्यूटर की तरफ कोई ध्यान ही नहीं, उस पर कितनी धूल जम गई थी। बस हो गया, शौक पूरा पैसे ही खर्च करने थे। क्या तुम्हें मालूम भी है कि तुम्हारे पापा ने इस कंप्यूटर को कैसे खरीदा था? जानती भी हो उनकी पचास हजार की एक सावधि (Fix deposit) जमा थी। वह उन्होंने तुम्हारे इस कंप्यूटर पर खर्च कर दी और जानती हो कि वह तुम्हारे लिए इतनी कीमती घड़ी लेकर आए जबकि उनकी खुद की घड़ी तुम्हारी इस घड़ी से भी आधी कीमत की ही थी।

ऐसे होते है, पिता अपनी इच्छाओं को मार कर अपने बच्चों की खुशियों में खुश होते हैं। मैं जानती हूँ कि मेरे पापा मुझसे बहुत प्यार करते थे और मैं भी अपने पापा से बहुत प्यार करती थी, हूँ और करती रहूँगी।

(I love you and miss you papa)

पापा भले ही आज आप हमसे दूर चले गए हों ,

लेकिन आपका प्यार और दुआ हमेशा मेरे साथ ही चलती है ।


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NDA Government Cabinet List – नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की पूरी कैबिनेट की लिस्ट जानिए।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA सरकार का गठन हो गया है। भले ही भारतीय जनता पार्टी को अकेले अपने दम पर पूर्ण नहीं मिला हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल गया है और 10 जून को मोदी सरकार 3.0 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नए मंत्रियों नें शपथ ले ली है। मोदी सरकार की नई कैबिनेट मे कई सांसदों को दुबारा मंत्री बनने का मौका मिला है तो कई नए चेहरों को भी मंत्री बनने का मौका मिला है। इस बार गठबंधन की सरकार होने के कारण बीजेपी के कई सहयोगी दलों को सासंदों को भी प्रमुखता दी गई है जिनमें तेलुगु देशम और जनता दल यूनाइडेट जैसी पार्टियां प्रमुख हैं।

नई सरकार में किसको मंत्री बनने का मौका मिला और किसको कौन का विभाग मिला सब सारी लिस्ट जानिए।

कैबिनेट मंत्री

क्रम
मंत्री का नाम
विभाग
राजनीतिक दल
1नरेंद्र मोदी (प्रधानमंत्री)प्रधानमंत्रीभारतीय जनता पार्टी
2राजनाथ सिंहरक्षा मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
3अमित शाहगृह मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
4नितिन गडकरीसड़क और परिवहन मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
5जेपी नड्डास्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, रसायन और उर्वरक मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
6शिवराज सिंहकृषि और पंचायती राज मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
7निर्मला सीतरमणवित्र मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
8एस जयशंकरविदेश मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
9मनोहर लाल खट्टरऊर्जा मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
10एचडी कुमारस्वामीभारी उद्योग मंत्री और इस्पात मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
11पीयूष गोयलवाणिज्य और उद्योग मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
12धर्मेंद्र प्रधानशिक्षा मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
13जीतनारम मांझीसूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालयहिंदुस्तानी अवामी मोर्चा
14राजीव रंजन उर्फ ललन सिंहपंचायती राज मंत्री, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री
सर्बानंद सोनोवाल – बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय
भारतीय जनता पार्टी
15सर्वानंद सोनेवालबंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
16डॉक्टर वीरेंद्र कुमारसामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
17राम मोहन नायडूनागरिक उड्डयन मंत्रीतेलुगु देशम
18प्रह्लाद जोशीउपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
19जुएल ओरांवजनजातीय मामलों का मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
20गिरिराज सिंहकपड़ा मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
21अश्विनी वैष्णवरेल मंत्रालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
22ज्योतिरादित्य सिंधियासंचार मंत्रालय, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
23भूपेंद्र यादवपर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
24गजेंद्र सिंह शेखावतसंस्कृति मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
25अन्नपूर्णा देवीमहिला और बाल विकास मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
26किरण रिजिजूसंसदीय कार्य मंत्रालय, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
27हरदीप पुरीपेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
28मनसुख मांडवियाश्रम और रोजगार मंत्रालय, युवा मामले और खेल मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
29जी किशन रेड्डीकोयला मंत्रालय, खान मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
30चिराग पासवानखाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालयलोक जनशक्ति पार्टी
31सीआर पाटिलजल शक्ति मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी

राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

क्रम
मंत्री का नाम
विभाग
राजनीतिक दल
32राव इंद्रजीत सिंहयोजना मंत्रालय, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
33जितेंद्र सिंहपृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभागभारतीय जनता पार्टी
34अर्जुन राम मेघवालकानून एवं न्याय मंत्रालय, संसदीय कार्य मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
35प्रतापराव गणपतराव जाधवआयुष मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालयशिवसेना
36जयंत चौधरीशिक्षा मंत्रालय, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालयराष्ट्रीय लोकदल

राज्य मंत्री

क्रम
मंत्री का नाम
विभाग
राजनीतिक दल
37जितिन प्रसादवाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
38श्रीपद यशो नाइकऊर्जा मंत्रालय में राज्य मंत्री, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
39पंकज चौधरीवित्त मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
40कृष्णपाल गुर्जरसहकारिता मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
41रामदास अठावलेसामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालयआरपीआई
42रामनाथ ठाकुरकृषि और किसान कल्याणभारतीय जनता पार्टी
43नित्यानंद रायगृह मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
44अनुप्रिया पटेलस्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, रसायन और उर्वरक मंत्रालयअपना दल
45वी सोमन्नाजल शक्ति मंत्रालय, रेल मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
46चंद्रशेखर पेम्मासानीग्रामीण विकास मंत्रालय, संचार मंत्रालयतेलुगु देशम
47एसपी सिंह बघेलमत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
48शोभा करांदलाजेसूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, श्रम और रोजगार मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
49कीर्तिवर्धन सिंहपर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, विदेश मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
50बीएल वर्माउपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
51शांतनु ठाकुरबंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
52सुरेश गोपीपेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
53एल मुरगनसूचना और प्रसारण मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
54अजय टम्टासड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
55बंदी संजयगृह मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
56कमलेश पासवानग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्रीभारतीय जनता पार्टी
57भागीरथ चौधरीकृषि और किसान कल्याण मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
58सतीश दुबेकोयला मंत्रालय, खान मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
59संजय सेठरक्षा मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
60रवनीत सिंह बिट्टूखाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, रेल मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
61दुर्गादास सुइकेजनजातीय मामलों का मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
62रक्षा खडसेयुवा मामले और खेल मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
63सुकांता मजूमदारशिक्षा मंत्राल, पूर्वोत्तर विकास मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
64सावित्री ठाकुरमहिला एवं बाल विकास मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
65तोखन साहूआवास और शहरी मामलों का मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
66राजभूषण चौधरीजलशक्ति मंत्रालभारतीय जनता पार्टी
67श्रीनिवास वर्माभारी उद्योग मंत्रालय, इस्पात मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
68हर्ष मल्होत्राकारपोरेट मामलो का मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
69नीमूबेन बमभानियाउपभोक्ता मामले का मंत्रालय, खाद्य एवं सार्वजनकि वितरण मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
70मुरलीधर मोहोलसहकारिता मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
71जॉर्ज कुरियनअल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी
72पबित्रा मार्गेरिटाविदेश मंत्रालय, वस्त्र मंत्रालयभारतीय जनता पार्टी

 


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Ramvriksha Benipuri Biography – रामवृक्ष बेनीपुरी – क्रांतिकारी साहित्यकार – जीवन परिचय

रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी साहित्य के एक महान साहित्यकार रहे थे, जिन्होंने ना केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया बल्कि भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी अपना योगदान दिया। वह एक महान साहित्यकार होने के साथ-साथ महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे। आइये उनके जीवन (Ramvriksha Benipuri Biography) को समझते हैं…

रामवृक्ष बेनीपुरी (Ramvriksha Benipuri Biography)

रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी साहित्य के एक महान साहित्यकार थे। वह साहित्यकार होने के साथ-साथ एक क्रांतिकारी भी थे। इसके अलावा उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में पत्रकार, संपादक, गद्य लेखक, शैलीकार आदि भूमिका निभाई। उन्होंने अनेक ललित निबंध, संस्मरण, रिपोर्ताज, ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक, उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य आदि की रचना की। उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने अपनी अनोखी गद्य रचनाओं से हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध किया।

जन्म

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक गाँव में हुआ था।

जीवन परिचय

उनके पिता का नाम फूलवंत सिंह था, जो कि एक भूमिहार ब्राह्मण किसान थे। उनके माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। इस कारण रामवृक्ष बचपन में ही अनाथ हो गए और उनका पालन पोषण उनकी मौसी ने किया था।

चूँकि रामवृक्ष का नाम तो रामवृक्ष सिंह था, लेकिन उन्होंने ‘बेनीपुर’ नामक गाँव में जन्म लिया था, इसी कारण उन्होंने ‘बेनीपुरी’ को अपना साहित्यिक उपनाम बनाया।

रामवृक्ष बेनीपुरी की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके गाँव बेनीपुर में ही हुई। बाद में इनकी मौसी के साथ वह ननिहाल चले गए और वहाँ इन की शिक्षा दीक्षा हुई। मैट्रिक परीक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। वह 1920 का वर्ष था। तब वे महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर उस आंदोलन में शामिल हो गए। बाद में उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा और ‘ हिंदी विशारद’ की उपाधि प्राप्त की। इसी बीच में भारत के स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़े रहें और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कई बार जेल भी गए।

जीवन यात्रा

1930 से 1942 ईस्वी के बीच उन्होंने अपना अधिकांश समय जेल में ही बिताया था। इसी अवधि में वह साहित्य सृजन करते रहे और पत्रकारिता से भी जुड़े। उन्होंने हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दियाय़ हिंदी साहित्य सृजन करने के साथ-साथ भारत के स्वाधीनता संग्राम में भाग लेते रहे और दोनों क्षेत्रों में समान रूप से सेवा करते रहे।

भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा था। उन्होंने राष्ट्रवाद की भावना को लोगों में खूब प्रचारित किया और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अपनी संघर्ष को निरंतर जारी रखा। 1931 में उन्होंने समाजवादी दल की भी स्थापना की थी।

1942 में अगस्त क्रांति आंदोलन में भी सक्रिय रूप से शामिल होकर हजारीबाग जेल में भी रहे।

अपनी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से देशभक्ति की भावना प्रचार करने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ता था।

वह सामाजिक कुरीतियों के भी विरुद्ध रहे थे और उन्होंने हजारीबाग जेल में जनेऊ तोड़ो अभियान भी चलाया जो कि जातिवाद व्यवस्था के विरुद्ध अभियान था।

वह भारत की स्वतंत्रता के बाद 1957 राजनीति में भी शामिल हुए। वह ‘समाजवादी दल’ नामक राजनीतिक दल में बिहार विधानसभा के सदस्य भी बने।

साहित्य यात्रा

रामवृक्ष बेनीपुरी स्वाधीनता संग्रामी, पत्रकार और साहित्यकार सभी कुछ थे।

साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान की बात करें तो उन्होंने अनेक उपन्यास, नाटक, संस्मरण, रेखाचित्र, कहानी जैसी गद्य विधाओं की रचना की।

वे साहित्य की हर गद्य विधा में पूरी तरह पारंगत थे। उनकी समस्त गद्य रचनाएं एक से बढ़कर एक रही हैं।

रामवृक्ष बेनीपुरी ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया जिनमें तरुण भारती, बालक, युवक, किसान, मित्र, जनता, योगी, कैदी, हिमालय, नई धारा, चुन्नू-मुन्नू जैसी पत्रिकाओं के नाम प्रमुख थीं।

बाल साहित्य में भी उनको समान महारत हासिल थी।

साहित्यिक कृतियां

रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित कृपया इस प्रकार हैं

नाटक

  • अमर ज्योति
  • तथागत
  • सिंहल विजय
  • शकुन्तला
  • नया समाज
  • विजेता
  • बैजू मामा
  • रामराज्य
  • नेत्रदान
  • गाँव के देवता
  • अम्बपाली
  • सीता की माँ
  • संघमित्रा

यात्रा वर्णन

  • पैरों में पंख बांधकर.

सम्पादन एवं आलोचन

  • विद्यापति की पदावली
  • बिहारी सतसई की सुबोध टीका

जीवनी

जयप्रकाश नारायण

रेखा चित्र

  • माटी की मूरत

संस्मरण तथा निबन्ध

  • पतितों के देश में
  • चिता के फूल
  • लाल तारा
  • कैदी की पत्नी
  • माटी
  • गेहूँ और गुलाब
  • जंजीरें और दीवारें
  • उड़ते चलो, उड़ते चलो
  • मील के पत्थर
  • ललित गद्य
  • वन्दे वाणी विनायक

पुरुस्कार एवं सम्मान

पुरस्कार एवं सम्मान की बात की जाए तो ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ के सम्मान में 1999 में भारतीय डाक सेवा द्वारा राष्ट्रीय डाक टिकट जारी किया गया, जो उनकी जन्मशती के उपलक्ष में जारी किया गया था। बिहार सरकार द्वारा उनके नाम पर ‘अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार’ भी दिया जाता है।

देहावसान

हिंदी साहित्य के अनोखे साहित्यकार रामवृक्ष