Sunday, December 1, 2024

बिहार के जननायक नेता – कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर को देश का 49वां भारत रत्न देने के घोषणा हुई है। कर्पूरी ठाकुर कौन हैं? उनके बारे में Karpoori Thakur Biography) जानते हैं…

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जननायक कहलाने वाले नेता कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur Biography)

2019 के बाद 2024 में भारत सरकार ने फिर से भारत रत्न के लिए किसी विभूति को चुना है। उसे विभूति का नाम कर्पूरी ठाकुर है। इस तरह कर्पूरी ठाकुर को 49 वन भारत रत्न प्रदान किया जाएगा।

बिहार के जननायक नेता कहे जाने वाले और पिछड़ों के नेता के नाम बिहार के दो बार के मुख्यमंत्री एक बार के उपमुख्यमंत्री बनने वाले तथा पिछड़ों के नेता कहे जाने वाले और बिहार के जननायक नेता के तौर पर मशहूर कर्पूरी ठाकुर का जन्मदिन भी 24 जनवरी को ही है, जिस दिन उन्हें भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा की गई।

कर्पूरी ठाकुर बिहार के एक बेहद ईमानदार नेता थे, जिन्होंने अपने जीवन में दलित, शोषित और पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए कार्य किया और पूरे जीवन उनके लिए संघर्ष करते रहे। वह बेहद सादा जीवन जीने वाले सरल स्वभाव स्पष्ट विचार वाले ईमानदार नेता थे, जो आज की घोटाला वाली राजनीति से इधर एक ऐसे ईमानदार नेता थे जिनका नाम सुनकर विश्वास नहीं होता कि राजनीति में ऐसे ईमानदार नेता भी हो सकते हैं।

कर्पूरी ठाकुर का जन्म और परिचय

कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर के पिंतौझिया गाँव में हुआ था। इस गाँव को अब उनके नाम पर कर्पूरीग्राम कहा जाता है। उनके पिता का नाम श्री गोकुल तथा माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था।

उनके पिता एक किसान थे और उसके साथ-साथ अपना पेशेवर काम यानि बाल काटने का कार्य भी करते थे, क्योंकि वह नाई जाति से संबंध रखते थे।

कर्पूरी ठाकुर की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके गाँव में ही हुई। फिर उन्होंने 1940 में पटना विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसके बाद पढ़ाई छोड़ दी।

राजनीतिक जीवन और करियर

1940 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद, वह भारत के स्वाधीनता संग्राम से जुड़ गए क्योंकि उसे समय भारत का स्वाधीनता संग्राम अपने चरम पर था। उन्होंने 1942 में गांधी जी द्वारा चलाया जाए सहयोग आंदोलन में भाग लिया और इस आंदोलन के कारण उन्होंने 26 महीने तक जेल की सजा भी कटी। इस दौरान वह दो बार जेल गए थे। 1945 में जेल से बाहर आए और फिर वह सक्रिय राजनीति से जुड़ गए। 2 साल तक वह राजनीति में सक्रियता निभाने रहे। 1947 में भारत को आजादी मिल गई और कर्पूरी ठाकुर भी बिहार की सक्रिय राजनीति से जुड़ते गए।

1945 में वह जयप्रकाश नारायण और आचार्य नरेंद्र देव द्वारा संचालित संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो चुके थे और 1948 में इस सोशलिस्ट पार्टी के प्रादेशिक मंत्री बने। 1947 में देश आजाद हो गया और वह निरंतर राजनीति में सक्रिय रहे।

कर्पूरी ठाकुर का पूरा नाम कर्पूरी ठाकुर नहीं था, बल्कि उनका असली नाम कर्पूरी ही था, लेकिन ठाकुर उपनाम उनके नाम के साथ तब जुदा जब समस्तीपुर में हुए घटनाक्रम में उनके लिए उनके द्वारा दिए गए ओजस्वी भाषण के कारण तत्कालीन समाजवादी नेता रामनंदन मिश्रा ने उन्हें ठाकुर उपनाम दिया और उनसे कहा कि वह कर्पूरी नहीं बल्कि कर्पूरी ठाकुर हैं। तब से वह कर्पूरी ठाकुर के नाम से मशहूर हो गए।

कर्पूरी ठाकुर बिहार के दो बार मुख्यमंत्री बने। पहली बार मुख्यमंत्री वह 1970 में बने तो दूसरी बार मुख्यमंत्री 1977 मे बने।

1967 में जब उनके पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने बड़ी संख्या में सीट पाई। तब वह 1967 में बिहार के उपमुख्यमंत्री बने और 1970 में वे पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।

उन्होंने 22 दिसंबर 1970 को बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली, लेकिन उनका पहला मुख्यमंत्री कार्यकाल बेहद छोटा रहा और वह केवल 5 महीने यानि कुल 163 दिनों महीने तक ही मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा।

1973 के बाद जयप्रकाश नारायण का छात्र आंदोलन काफी जोर पकड़ रहा था और वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा चलाए जा रहे छात्र आंदोलन से जुड़ गए।

1977 में वह पहली बार समस्तीपुर संसदीय निवड निर्वाचन क्षेत्र सांसद बने और पहली बार चुनकर लोकसभा पहुंचे। 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी को पूरे देश में भारी जीत हासिल हुई थी। बिहार में भी जनता पार्टी को भारी जीत मिली थी और तब कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। इस बार भी वह केवल 2 साल तक ही मुख्यमंत्री रहे।

अपने मुख्यमंत्री कार्य दोनों मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने पिछड़े दलित और शोषितों के उत्थान के लिए अनेक कार्य किया। उन्होंने बिहार में मैट्रिक तक की पढ़ाई मुफ्त की। उन्होंने बिहार शिक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता और वर्चस्व को खत्म किया। उन्होंने बिहार के सभी स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किया। इससे बिहार के गाँवों और दूर-दराज क्षेत्रों के छात्रों को भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मार्ग खुलता गया।

उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ाओं के उत्थान के लिए ऐसे अनेक कार्य किया, जिसने बिहार की राजनीति की दिशा बदल दी।

वह पूरे जीवन भर बेहद ईमानदार मुख्यमंत्री रहे और उनकी ईमानदारी के चर्चे इतने थे कि उनके पास अपना एक वाहन तक नहीं था। वह वहीं कहीं आने-जाने के लिए रिक्शा आदि का इस्तेमाल करते थे अथवा उन्हें इमरजेंसी में यदि कहीं जाना पड़ता था तो वह अपने किसी परिचित की गाड़ी उठाकर मांग कर ले जाते थे।

कर्पूरी ठाकुर का जब निधन हुआ, तब भी उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी। वह अपने पीछे स्वयं का मकान तक नहीं छोड़ कर गए ना ही उनेक पास कोई बड़ा बैंक-बैलेंस था। इससे उनकी ईमानदारी की बात पर मोहर लगती है।

अपने जीवन काल में वह अलग-अलग पार्टियों में शामिल रहे जिसमें सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रांति दल, जनता पार्टी और लोकदल शामिल हैं।

कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री पहली बार 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक रहे तथा दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक रहे।

बिहार के उपमुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने 5 मार्च 1967 से 31 जनवरी 1968 तक कार्य किया। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिंह थे।

कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।


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