एस स्वामी नाथन भारत में हरित क्रांति के जनक के तौर पर जाने जाते हैं, उन्होंने भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में अपना योगदान दिया था। एस स्वामीनाथन कौन थे? (S. Swaminathan biography) उनका भारत के कृषि क्षेत्र में क्या योगदान रहा है, उनके बारे में जानते हैं… |
भारत सरकार ने एस स्वामीनाथन को भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया है। भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। एस स्वामीनाथन को 9 फरवरी 2024 को भारत सरकार द्वारा की गई घोषणा के द्वारा भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा हुई है। इस तरह वह भारत रत्न सम्मान पाने वाले 53वें व्यक्ति बन गए।
एस स्वामीनाथन भारत में हरित क्रांति के जनक के तौर पर जाने जाते है। उन्हें भारत रत्न सम्मान से पहले भारत के अन्य नागरिक सम्मान पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री भी मिल चुके हैं। भारत के चारों सर्वोच्च नागरिक सम्मान वाले भारत की हरित क्रांति के जनक एस स्वामीनाथन ही थे जिन्होंने 1960 के दशक में हुई भारत की हरित क्रांति के कार्यक्रम का खाका तैयार किया था, जिस कारण भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन गया था।
एस स्वामीनाथन का जीवन परिचय (S. Swaminathan biography)
एम एस स्वामीनाथन भारत के एक कृषि वैज्ञानिक थे। जिन्होंने भारत को कृषि के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। हरित क्रांति से तात्पर्य उस क्रांति से है, जो 1960 के दशक में भारत में खाद्यान्न को आत्मनिर्भर बनाने के लिए की गई थी। हरित क्रांति कृषि क्षेत्र से संबंधित आंदोलन था, और इसके अन्तर्गत आधुनिक तकनीक और उपायों द्वारा कृषि की उपज बढ़ाने का प्रयास किया गया था, इसीलिए इसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है। भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व एस एस स्वामीनाथन द्वारा किया गया थ।
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत उन्होंने ही की थी इसी कारण से उन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक कहा जाता हैं। इसके अलावा भी उन्होंने कृषि के लिए काफी कार्य किए थे, उन कार्यों के कारण ही भारत कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सका।
जन्म और व्यक्तिगत जीवन और परिवार
एम एस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ. एमके सांबासिवन और माता का नाम पार्वती थंगम्मल सांबासिवन था। बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था और उनका पालन-पोषण उनके चाचा ने किया था।
वर्तमान समय में उनके परिवार में उनकी पत्नी मीना स्वामीनाथन और एक पुत्र नित्य स्वामीनाथन और दो पुत्रियां सौम्या स्वामीनाथन और मधुरा स्वामीनाथन हैं।
शिक्षा-दीक्षा और करियर
स्वामीनाथन बचपन से ही प्रतिभा के धनी थे। इसलिए इसी पढ़ाई में वह काफी अच्छे थे। परंतु वह कृषि क्षेत्र से ना जुड़कर किसी अन्य क्षेत्र से जुड़ना चाहते थे लेकिन उस वक्त भारत की स्थिति कृषि के क्षेत्र में बहुत ही खराब थी जिसे देखते हुए उन्होंने कृषि की ओर अपना रुख किया जिसके लिए एग्रीकल्चर में शिक्षा ग्रहण की।
स्वामीनाथन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कुंभकोणम के कैथोलिक लिटिल फ्लावर स्कूल से की। 1940 में उन्होंने केरल के महाराज कॉलेज से जूलॉजी में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की।
उसके बाद उन्होंने मद्रास के एग्रीकल्चर कॉलेज में दाखिला लिया और वहा से इन्होंने बीएससी में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया, जिसके बाद इन्हें बैचलर ऑफ़ साइंस की उपाधि मिली।
फिर 1949 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से जेनेटिक्स में एसोसिएटशिप की डिग्री प्राप्त की तथा 1952 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अनुवांशिकी में पीएचडी की उपाधि हासिल की।
कृषि में पीएचडी करने के बाद वह घोर अनुसंधान में जुट गए और भारत में कृषि की पैदावार को बढ़ाने के उपायों पर काम करने लगे क्योकि उस भारत में कृषि की दशा अच्छी नही थी। भारत अपने नगारिकों के पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न नही उत्पन्न नहीं कर पाता था और उसे बाहर के देशों से अनाज मंगाना पड़ता था।
उन्होंने 1954 से 1972 के बीच कटक के कृषि संस्थान तथा नई दिल्ली में पूसा स्थित प्रतिष्ठित कृषि संस्थानों में काफी शोध कार्य किया। वे 1963 में हेग में हुई अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष भी बनाए गए।
1966 में जेनेटिक्स वैज्ञानिक स्वामीनाथ ने भारत के बीजो को विदेशी बीजो की किस्म के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किए। स्वामीनाथन का ये प्रयास सफल रहा और पहले ही वर्ष देशभर में काफी पैदावार हुई। 1969 में डॉ. स्वामीनाथन इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के सचिव बनाए गए साथ वे इसके फेलो मेंबर भी बने।
1972 में भारत सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान परिषद का महानिदेशक नियुक्त किया। साथ ही उन्हें भारत सरकार में सचिव भी नियुक्त किया। 1979 से 1980 तक वे मिनिस्ट्री ऑफ़ एग्रीकल्चर फ़ॉर्म के प्रिंसिपल सेक्रेटरी भी बने। उन्होंने 1982 से 88 तक जनरल डायरेक्टर के पद पर रहते हुए इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट की सेवा भी की।
इसके साथ ही उन्होंने विदेशी और भारत के बीजो की किस्मों के मिश्रण को भी जारी रखा। इस बार उन्होंने पिछली बार से भी ज्यादा उन्नत किस्म के बीज की उपज करके अन्न के उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया और देश में हरित क्रांति लेकर आए। जिससे देश में सभी जगह से अन्न की समस्या खत्म हो गई।
1988 मैं इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज के प्रेसिडेंट भी बने। 1999 में टाइम पत्रिका ने उन्हें 20वीं सदी के 200 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया।
भारत में उस समय पुराने तरीकों से कृषि की जाती थी जिससे बहुत अधिक पैदावर नही होती थी। इसी कारण भारत एक कृषि प्रधान देश होने के बावजूद कृषि के मामले में बेहद पिछड़ा हुआ था। इसी कारण वह कृषि के उन्नत तरीकों और उन्नत बीजों के विकास के लिए काम करते रहे। उन्होंने विदेशी बीजों को भारत की किस्म के बीजों के साथ मिश्रित करके एक उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की किस्म तैयार की।
उनके इस प्रयोग के कारण वजह से भारत में अन्न की भरपूर पैदावार होने लगी। इसी कारण 1960 के दशक में भारत में हरित क्रांति सम्पन्न हुई जिसका नेतृत्व एस. स्वामीनाथन ने ही किया था।
एस स्वानीनाथन के प्रयासों के कारण ही भारत कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन और उन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है।
एम एस स्वामीनाथन ने वर्ष 1990 के दशक के आरंभिक वर्षों में अवलंबनीय कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए चेन्नई में एकशोध केंद्र की स्थापना की।
स्वामीनाथन की उपलब्धियां और पुरुस्कार
एस स्वामीनाथन को अपने जीवन में अनेक पुरुस्कार मिल चुके हैं, जो कि इस प्रकार हैं…
उपलब्धियां
- एस स्वामीनाथन 2007 से 2013 तक राज्य सदन में मनोनित संसद सदस्य भी रहे।
- एस स्वानीनाथन को 1999 में अमेरिका की टाइम पत्रिका ने उन्हें 20वी सदी के 200 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया।
- उन्हें कृषि के क्षेत्र में बेतरीन योगदान के लिए पद्म श्री, पद्म भूषण तथा पद्म विभूषण तथा भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।
- भारत में हरित क्रांति के जनक के नाम से जाने जाते हैं।
पुरुस्कार
- 2024 : भारत रत्न
- 1967 : पद्म श्री
- 1972 : पद्म भूषण
- 1989 : पद्म विभूषण
- 1987 : विश्व खाद्य पुरस्कार
- 1971 : सामुदायिक नेतृत्व के लिए ‘मैग्सेसे पुरस्कार’
- 1986 : ‘अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार’
- 1987 : पहला ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’
- 1991 : अमेरिका में ‘टाइलर पुरस्कार’
- 1994 : पर्यावरण तकनीक के लिए जापान का ‘होंडा पुरस्कार’
- 1997 : फ़्राँस का ‘ऑर्डर दु मेरिट एग्रीकोल’ (कृषि में योग्यताक्रम)
- 1998 : मिसूरी बॉटेनिकल गार्डन (अमरीका) का ‘हेनरी शॉ पदक’
- 1999 : ‘वॉल्वो इंटरनेशनल एंवायरमेंट पुरस्कार’
- 1999 : ही ‘यूनेस्को गांधी स्वर्ग पदक’ से सम्मानित
अंतिम यात्रा
भारत के महान कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक एस स्वामीनाथन का निधन 28 सितंबर 2023 को 98 वर्ष की आयु में हुआ।
2024 में भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया है।
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