Saturday, July 27, 2024

श्री गुरुनानक देव जी – सिखों के प्रथम गुरु और भारत के दिव्य संत के जीवन को जानें।

सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी से कौन परिचित नही है। वह भारत के ओजस्वी आध्यात्मिक संत रहें है, जिन्होंने भारत में भक्ति की अलख जगाई और भारत में सिख धर्म की नींव भी रखी। उनके जीवन का आकलन (Guru Nanakdev ji Biography) करते हैं।

हमारे बड़े-बुजुर्ग हमारे लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं होते है। हमारे बुजुर्ग हमारा साथ कभी नहीं छोड़ते है। वह हमेशा हमारे साथ होते है। हमें अपने बुजुर्गों का हमेशा सत्कार करना चाहिए। यह हमेशा हमें अपने जीवन के अनुभव के साथ सिखाते है। बुजुर्ग हमारा साथ कभी नहीं छोड़ते है। हमें अपने बुजुर्गों की बताई हुई बातों को हमेशा याद रखना चाहिए। बुजुर्गों के बिना हमारा कोई वजूद नहीं है। हमें हमेशा उनकी इज्जत करनी चाहिए।

गुरुनानक देव जी का जीवन परिचय (Guru Nanakdev ji Biography)

भारत सदैव से संत और सिद्ध महापुरुषों, ऋषि-मुनियों की धरती रही है। भारत में एक से बढ़कर सिद्ध महात्मा, महान पुरुष रहे हैं। भारत के कुछ प्रसिद्ध संतों की बात की जाए तो उन में से गुरु नानक देव जी एक है।

गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी। वह सिखों के पहले गुरु थे। गुरु नानक जी के दोहे आज तक हमें ज्ञान देते है। गुरु नानक जी ने सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने अपने जीवन में मूर्ति पूजा को निरर्थक माना और रूढ़िवादी सोच का विरोध किया।

गुरु नानक जी ने समाज में एकता का प्रचार किया था। सभी को मानवता और दया का पाथ पढ़ाया था। नानक जी के दोहे आज भी हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते है।

गुरु नानकदेव जी का जन्म और परिवार

गुरु नानक देव जी का जन्म पंजाब में रावी नदी के तट पर स्थित तलवंडी नामक गाँव में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हुआ था। तलवंडी नामक गाँव वर्तमान समय मे पाकिस्तान में स्थित है जिसे ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।

कुछ विद्वान के मतानुसार उनकी जन्मतिथि 15 अप्रेल 1469 को मानते हैं, लेकिन सामान्यत उनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा दिवाली के ठीक 15 दिन बाद आती है।

गुरु नानक देव जी के पिता का नाम कल्याण दास बेदी उर्फ कालू चंद्र खत्री था। उन्हें सामान्यतः कालू मेहता कहा जाता था। उनकी माता का नाम तृप्ता देवी था। नानक देव जी का जन्म एक हिंदू पंजाबी खत्री कुल में हुआ। नानक देव जी के दादा का नाम शिवराम बेदी और परदादा का नाम राम नारायण बेदी था। उनके पिता हिंदू ब्राह्मण थे और एक व्यापारी भी थे। गुरु नानक देव जी एक बहन भी थी जिनका नाम नानकी था, जो उनके पाँच वर्ष बढ़ी थीं। सन् 1475 में उनका विवाह हो गया और उनके पति का नाम जयराम जो तत्कालीन दिल्ली सल्तनत के लाहौर प्रांत के गर्वनर दौलत खान के यहाँ अधिकारी थे।

जीवन यात्रा

बचपन से ही गुरु नानक देव जी बेहद प्रखर बुद्धि के धनी थे। उनके अंदर प्रतिभा कूट-कूट कर भरी हुई थी। वह बचपन से ही सांसारिक जीवन के प्रति उदासीन रहा करते थे और उनका मन ईश्वर के प्रति चिंतन में अधिक लगता था। इसी कारण वह बहुत अधिक शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए और मात्र 8 वर्ष की आयु के बाद ही उन्होंने पाठशाला त्याग दी और प्रभु के चिंतन में स्वयं को रमा लिया।

अब  वह अपना अधिकतर जीवन आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में बिताते थे। उनके द्वारा ऐसी चमत्कारिक घटनाएं भी हुईं जिससे उनके गाँव के लोग उन्हें दिव्य पुरुष मानने लगे।

मात्र 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह पंजाब के गुरदासपुर जिले के लाखौकी नामक गाँव सुलक्खिनी देवी से हुआ। उसके बाद गुरु नानक देव जी आध्यात्मिक चिंतन करते हुए गृहस्थ जीवन भी व्यतीत करने लगे। विवाह की काफी लंबे समय के बाद 32 वर्ष की आयु में उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जब उनके पहले पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। उनके बड़े पुत्र के बाद श्रीचंद्रमुनि के नाम से जाना गया जिन्होंने उदासीन संप्रदाय की स्थापना की। पहले पुत्र के जन्म के ठीक 4 वर्ष बाद उनके दूसरे पुत्र लख्मीचंद का जन्म हुआ।

इस तरह दो पुत्रों के जन्म के बाद सन् 1507 ईस्वी में गुरु नानक देव जी ने अपना भरा-पूरा परिवार छोड़ दिया और परिवार का उत्तरदायित्व अपने ससुर को सौंपते हुए वह आध्यात्मिक चिंतन और ईश्वर की खोज में निकल पड़े।

उनके साथ उनके उनके चार शिष्य बाला, मरदाना, लहना और रामदास भी थे। अपने चारों शिष्यों के साथ वह तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े। वह अनेक स्थानों पर जाते, वहाँ पर सत्संग करते, भजन कीर्तन करते, लोगों को उपदेश देते।

गुरु नानक देव जी अपने चारों शिष्यों के साथ-साथ जगह-जगह घूम कर उपदेश देने लगे। 1507 से 1521 ई के बीच 17 वर्षों में उन्होंने अपने चार यात्रा चक्र पूरे किए, जिसमें उन्होंने भारत सहित अफगानिस्तान, फारस और अरब सहित कई जगहों का भ्रमण किया। उनकी इन आध्यात्मिक यात्राओं को पंजाब सिख धर्म में उदासियां कहा जाता है।

अपनी यह यात्राएं पूरी करते-करते वह एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक संत बन चुके थे और उनके हजारों लाखों अनुयाई बन चुके थे वह वापस पंजाब लौटकर आ चुके थे और 55 वर्ष की आयु में मैं पंजाब के करतारपुर साहिब में स्थाई रूप से बस गए और अपनी मृत्यु पर्यंत वहीं पर रहे।

बीच-बीच में वह कई छोटी-छोटी यात्राओं पर गए थे, लेकिन उन्होंने अपना स्थाई निवास करतारपुर में ही बना दिया। करतारपुर पाकिस्तान के नारोवाल जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। ये भारत की सीमा से केवल 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच करतापुर साहिब कारीडोर बना है, जो भारत के जाने वाले सिख तीर्थयात्रियों के लिए बनाया गया है।

करतारपुर में निवास करते-करते इस अवधि में पंजाब और आसपास के क्षेत्र में उनके लाखों अनुयाई बन चुके थे जो उनके द्वारा बताए गए उपदेशों पर चलते थे।

गुरु नानक देव जी ने स्पष्ट रूप से खालसा पंथ यानी सिख धर्म की नींद नहीं रही की थी, लेकिन उनके द्वारा एक नई परंपरा का प्रचलन हो गया था और इसी परंपरा के उत्तराधिकारी के तौर पर उन्होंने अपने शिष्य लहना को चुना और उनका नाम बदलकर गुरु अंगद देव रखा गया, जो सिखों के दूसरे गुरु कहलाए।

देहावसान

अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करने के कुछ समय बाद ही गुरु नानक देव जी का देहावसान 22 सितंबर 1539 को 70 वर्ष की आयु में करतारपुर साहिब में ही हो गया। करतारपुर में उनका स्मृति में एक विशाल गुरुद्वारा है।

उनके देहावसन के संबंध में एक कथा प्रचलित है कि जब उनका देहावसान हुआ तो उनके शिष्य हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म से थे तो दोनों उनके दाह संस्कार को लेकर आपस में झगड़ने लगे। इसलिए जब उन्होंने उनके शरीर को ढकने वाली चादर को खींचा गया तो वहाँ पर गुरु नानक देव जी का शरीर नहीं मिला और वहाँ पर उन्हें फूलों का ढेर मिला।

गुरनानक देव जी के सिद्धांत

एक ओंकार : एक ओंकार का अर्थ है, ईश्वर एक है, ईश्वर का नाम एक ही है, ईश्वर हम सब के अंदर है हमें ईश्वर को बाहर नहीं खोजना चाहिए। गुरु नानक जी कहते थे कि एकता और एकपन में भूत ताक़त होती है।

सतनाम : सतनाम का अर्थ होता है, सत्य का नाम। हमेशा सत्य और ईमानदारी और दया, धर्म के रास्ते पर चलना चाहिए। अंत में हमारे कर्म हमारे साथ जाते है।

करता करीम : नानक जी ने हमेशा समझाते थे, ईश्वर की कृपा, दया और उनकी महर हमेशा हमारे ऊपर बनी रहती है।

नाम जपो : गुरु नानक जी ने हमेशा नाम का भजन-सिमरन करने को कहा है। नाम का सिमरन करने से आत्मा को शांति और आनंद मिलता है।

गुरुनानक देव जी की शिक्षाएं

गुरु नानक देव जी ने सदैव ईश्वर एक है, यानी एक ओंकार यानी ईश्वर एक है पर जोर दिया। गुरु नानक देव जी कहते हैं की सदैव ईश्वर की उपासना करो ईश्वर एक है और वह सर्वत्र व्याप्त है।

नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान है और इस सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपासना करने वाले को अन्य किसी का भय नहीं रहता।

नानक देव जी कहते हैं कि अपना जीवन सदैव ईमानदारी से निर्वाह करना चाहिए। ईमानदारी से परिश्रम करके अपने जीवन को सात्विक तरीके से बिताना चाहिए।

नानक देव जी के अनुसार कभी भी ना तो कोई बुरा कार्य करने के बारे में सोचें और ना ही कोई बुरा कार्य करें।

नानक देव जी कहते हैं कि कभी किसी को न सताएं। ना किसी को दिल दुखाएं। किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं।

नानक देवी जी कहते हैं कि अपनी गलतियों के लिए बिना किसी संकोच के सदैव ईश्वर से क्षमा मांग लेनी चाहिए।

नानक देव जी कहते हैं कि अपने परिश्रम से कमाए हुए धन से कुछ हिस्सा कि जरूरतमंदों और गरीबों की सहायता के लिए अवश्य देना चाहिए।

नानक देव जी के अनुसार स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं होता। स्त्री और पुरुष दोनों समान हैं। नानक देव जी ने जाति प्रथा को भी पूरी तरह नकार दिया था। उनके अनुसार समाज में कोई ऊँचा-नीचा नहीं होता, सब बराबर हैं।

नानक देव जी किसी भी तरह लोभ-लालच और संग्रह करने की प्रवृत्ति से दूर रहने की शिक्षा देते हैं। उनके अनुसार केवल उतना ही रखना चाहिए जिससे वर्तमान जरूरत पूरा हो। किसी भी तरह का संग्रह करने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए क्योंकि संग्रह करने की प्रवृत्ति मन में लोभ-लालच को जन्म देती है और लोभ-लालच पतन की ओर ले जाता है।

गुरु नानक देव जी से संबंधित के जीवन से संबंधित प्रमुख बातें

  • नानक देव जी का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। उनका जन्म पाकिस्तान के तलवंडी नामक गांव में हुआ जो वर्तमान समय में नानकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।
  • नानक देव जी एक हिंदू परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता हिंदू ब्राह्मण खत्री थे, लेकिन नानक देव जी ने जीवन पर्यंत ना तो स्वयं को हिंदू-मुस्लिम से परे माना।
  • नानक देव जी के अंदर बचपन से ही प्रतिभा कूट-कूट कर भरी थी, जितनी समय वह पाठशाला में पढ़े, अपनी सहज बुद्धि से शिक्षकों के प्रश्नों का उत्तर तुरंत दे देते थे और कभी-कभी अपने शिक्षकों से विचित्र सवाल भी पूछ लेते थे, जिनका जवाब उनके शिक्षकों के पास नहीं होता था।
  • नानक देव जी बचपन से ही सांसारिक विषय वासनाओं से उदासीन रहा करते थे और उनका अधिकतर समय ईश्वर के चिंतन और सत्संग में व्यतीत होता था।
  • नानक देव जी ने बचपन से ही कुछ ऐसी चमत्कारिक घटनाएं करनी शुरू कर दी थी, जिससे लोग उन्हें दैविक शक्ति से युक्त दिव्य पुरुष मान्य लगे थे।
  • नानक देव जी का विवाह 16 वर्ष की आयु में ही हो गया था और 32 वर्ष की आयु में उनके श्रीचंद नाम के पहले पुत्र तथा 36 वर्ष की आयु में लक्ष्मीदास नाम के दूसरे पुत्र हुए।
  • उनके पहले पुत्र श्रीचंद ने उदासी नामक संप्रदाय की स्थापना की थी।
  • नानक देव जी ने 1507 ई से 1521 ई के बीच 17 वर्ष तक विश्व के कई प्रमुख स्थान का भ्रमण किया, जिनमें भारत के अलावा अफगानिस्तान, ईरान, फारस (वर्तमान ईरान) अब जैसे स्थान शामिल थे। वह अरब के मक्का भी गए थे।
  • नानक देव जी ने सदैव ‘इक ओंकार’ का नारा दिया यानी ईश्वर एक है।
  • नानक देव जी ने ही सार्वजनिक रसोई की परंपरा शुरु की जो बाद में सिख धर्म में लंगर का नाम से प्रसिद्ध हुई। आज लंगर और सिख धर्म के एक-दूसरे पर्याय बन चुके हैं।
  • नानक देव जी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्य लहना अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था जो बाद में गुरु अंगद देव कहलाए।

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