नीम का पेड़ भारत के गाँव में लगभग हर घर के आंगन में पाया जाता है। नीम के पेड़ का हर भाग बेहद उपयोगी है। इसके अद्भुत गुणों और फायदे को (Benefits of Neem) जानते हैं… |
अपने घरेलू हकीम नीम के गुण और फायदों का जान लें (Benefits of Neem)
नीम का पेड़ भारतीय जनमानस में बेहद लोकप्रिय है। सभी भारतीय नीम के पेड़ से भली-भांति परिचित है। भारतीय घरों में नीम के पेड़ का पाया जाना एक आम बात थी, क्योंकि ग्रामीण लोग नीम के पेड़ के गुण और लाभ को जानते थे। नीम का पेड़ इतने अधिक गुणों से भरपूर है, कि नीम के साथ हकीम शब्द भी जुड़ गया। हकीम यानि वैद्य यानि घरेलु चिकित्सक। जीहाँ नीम का पेड़ है ही इतने अधिक गुणों से भरपूर। आइए नीम के फायदों को (Benefits of Neem) जानते हैं…
नीम का पेड़ क्या है?
नीम का पेड़ मूल रूप से भारतीय वृक्ष है। यह एक पर्णपाती वृक्ष है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में मुख्य रूप से पाया जाता है। हालांकि यह वृक्ष अब दुनिया के अन्य हिस्सों में भी पाया जाने लगा है, लेकिन मूल रूप से यह भारतीय वृक्ष ही है। इसलिए भारत में प्राचीन काल से ही नीम के पेड़ का अत्यधिक महत्व रहा है।
नीम के पत्तों का स्वाद कड़वा होता है, इसलिए नीम को एक कड़वा वृक्ष भले ही बोला जाता है, लेकिन यह जिंदगी में स्वास्थ्य की मिठास बोलता है और इसके द्वारा अनेक तरह के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं, जो किसी मिठास से कम नहीं है।
नीम का पेड़ 15 से 20 मीटर की ऊँचाई का एक पेड़ होता है। यह एक विशाल वृक्ष होता है, जिसका तना सीधा और छोटा होता है। नीम के पेड़ की छाल और पत्तियां और टहनियां सभी उपयोगी होती हैं। आयुर्वेद में नीम के पेड़ का महत्व है। नीम की पत्तियों और छाल में औषधीय गुण भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
नीम के पेड़ को अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नाम से जाना जाता है जो कि इस प्रकार हैं…
- हिंदी (Hindi) ➩ नीम, निम्ब
- संस्कृत (Sanskrit) ➩ निम्ब, अग्निधमन, पिचुमर्द, पिचुमन्द, सर्वतोभद्र, मालक, अर्कपादप, छर्दन, हिजु, काकुल, निम्बक, प्रभद्र, पूकमालक, पीतसारक, गजभद्रक, सुमना, सुभद्र, शुकप्रिय, शीर्षपर्ण, शीत, धमन, तिक्तक, अरिष्ट, हिङ्गुनिर्यास।
- अंग्रेजी (English) ➩ मार्गोसा ट्री (Margosa tree), नीम (Neem)
- उर्दू (Urdu) ➩ नीम
- पंजाबी (Punjabi) ➩ निम्ब, निप, बकम
- गुजराती (Gujarati) ➩ लिम्बा, कोहुम्बा
- मराठी (Marathi) ➩ बलन्तनिंब
- बंगाली (Bengali) ➩ निम, निमगाछ
- तमिल (Tami) ➩ बेम्मू, वेप्पु
- तेलुगु (Telugu) ➩ वेमू, वेपा
- कन्नड़ (Kannada) ➩ निम्ब, बेवू
- मलयालम (Malayalam) ➩ वेप्पु, निम्बम
- उड़िया (Oriya) ➩ नीमो, निम्ब
- नेपाली (Nepali) ➩ नीम
- अरबी (Arabic) ➩ अजाडेरिखत, मरगोसा, निम
- फारसी (Persian) ➩ नीब, निब, आजाद दख्तुल हिंद
नीम के फायदे
नीम औषधीय गुणों से भरपूर एक पौधा है इसमें इतनी अधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती।आयुर्वेदिक में नीम का बेहद ही महत्व है और नीम के पेड़ की पत्तियों, छाल, टहनियों, निंबोरी आदि से अनेक तरह की आयुर्वेदिक दवाई बनाई जाती हैं। नीम के उपयोग और फायदे इस प्रकार हैं….
त्वचा व चर्म रोगो में लाभकारी
- त्वचा संबंधित रोगों और चर्म रोगों में नीम बेहद ही फायदा देता है।
- नीम की कुछ पत्तियों को दही व शहद के साथ पीसकर उसका लेप लगाएं तो यह लेप दाद में लाभ देता है और किसी भी तरह के घाव को भरने में बेहद लाभकारी होता है।
- नीम की जड़ की ताजी छाल और नीम के बीज की गिरी दोनों की 10-10 ग्राम मात्रा लेकर नीम के पत्ते के ताजे रस में पीस लें और फिर उसमें और ताजे पत्तों का रस डालते जाएं कि यह एक उबटन की तरह बन जाए। इस उबटन को त्वचा पर होने वाली खुजली, दाद, गर्मी में होने वाले फोड़े फुंसियों आदि पर लगाने से बेहद लाभ मिलता है। यही लेप लगाने से शरीर की दुर्गंध भी कम होती है।
- यदि एक्जिमा रोग हो और वह पुराना और सूखा हो गया हो तो नीम के पत्ते के रस में पट्टी को भिगोकर एग्जिमा पर बांधे और निरंतर यह उपाय अपनाएं तो लाभ मिलता है।
- नीम के पत्ते के रस में कत्था, पित्त-पापड़ा, कलौंजी, नीला थोथा और सुहागा इन सभी की समान मात्रा लेकर मिलायें और खूब देर तक घोंटे। फिर उसकी की गोलियां बना लें। इस गोली को पानी में घिसकर किसी भी तरह के दाद लगाने से किसी भी तरह का दाद समाप्त हो जाता है।
- नीम के छाल को रात भर पानी में भिगोकर पानी के साथ दिन में आँवले के चूर्ण के साथ 2 बार लेने से पुराने से पुराना शीत-पित्त खत्म हो जाता है।
- किसी भी तरह के दाद, खाज, खुजली, फोड़ा, फुंसी, उपदंश (सिफलिश) तथा छाजन (एग्जीमा) आदि रोग होने पर 100 वर्ष पुराने नीम के पेड़ की सूखी छाल को महीन पीसकर चूर्ण बना लें और इसमें से 3 ग्राम चूर्ण को 250 मिलीलीटर रात भर पानी में भिगो दें। सुबह यह पानी छानकर शहद मिलाकर पीने से यह सारे चर्म रोग दूर हो जाते हैं।
चेचक रोग में लाभकारी
- नीम चेचक के रोग में बेहद लाभकारी होता है।
- नीम की सात लाल कोमल पत्तियों को लेकर सात काली मिर्च के दाने इसमें मिलाने दोनों को पीसकर 1 महीने तक नियमित सेवन करने से चेचक निकलने का भय नही रहता
- तीन ग्राम नीम की कोंपलों को 15 दिन तक लगातार खाने से चेचक निकलने का भय समाप्त हो जाता है।
- नीम के बीजों की 5 से 10 गिरी को पानी में भिगोकर पीसकर लेप लगाने से चेचक के दानों की जलन में आराम मिलता है।
- नीम की छाल को जलाकर उसके अंगारों को पानी में डालकर बुझा लिया जाए और इस पानी को चेचक के रोगी को पिलाने से उसकी प्यास बुझ जाती है और उसे अधिक प्यास नहीं लगती। यदि इस उपाय से पूरा आराम ना मिले तो 1 लीटर पानी में 10 ग्राम नीम की कोमल पत्तियों को उबालकर जब पानी आधा रह जाए तो उसे पिलाने से चेचक के रोगी को अधिक प्यास नहीं लगती।
- उसके साथ ही साथ यह चेचक के विष तथा तेज बुखार को भी हल्का करता है और चेचक के दानों को सूखने में मदद करता है।
- चेचक के दानों में अगर बहुत गर्मी हो तो नीम की 10 ग्राम कोमल पत्तियों को पीसकर इसका पतला लेप बना लें और चेचक के गानों पर लगाएं, इससे आराम मिलता है।
गठिया के रोग में लाभकारी
- गठिया के रोग में यदि नीम के बीज के तेल की मालिश की जाए तो लाभ होता है।
- नीम के 20 ग्राम पत्ते और कड़वे परवल के 20 ग्राम पत्तों को मिलाकर 300 मिलीलीटर पानी में उबालने और एक चौथाई पानी रह जाने पर इस पानी में शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खून शुद्ध होता है और वात दोष शांत होता है, जिससे गठिया के रोग में आराम मिलता है।
- गठिया के रोग में दर्द होने पर 20 ग्राम नीम की छाल को पानी के साथ खूब महीन पीसकर दर्द के स्थान पर लेप लगाने से दर्द में आराम मिलता है। दर्द के स्थान पर इसका लेप लगाने से तीन चार बार ऐसा करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।
स्त्रियों के रोगों में लाभकारी
- मासिक धर्म संबंधी किसी भी रोग में नीम की मोटी कुटी हुई छाल को 20 ग्राम मात्रा में लेकर इसे गाजर के बीज की 6 ग्राम मात्रा तथा ढाक के बीच की 6 ग्राम मात्रा के साथ काले तिल और पुराना गुड़ 20-20 ग्राम लेकर इन सभी को 300 मिलीलीटर पानी में पकाना चाहिए। जब केवल 100 मिलीलीटर पानी रह जाए तो उस पानी को मासिक धर्म से पीड़ित रोगी को 7 दिन तक लगातार पिलाने से संबंधित किसी भी विकार में लाभ प्राप्त होता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि इसे गर्भवती स्त्री को नहीं देना चाहिए।
- स्त्रियों को होने वाले योनि के दर्द में नीम की गिरी की तो नीम के पत्ते के रस में पीसकर उसकी गोली बना लेनी चाहिए। इस गोली को कपड़े के भीतर रखकर सुनकर उसमें एक डोरा (धागा) बांधा देना चाहिए और इस गोली को योनि मार्ग में रखने से योनि के दर्द में आराम मिलता है।
- नीम की छाल को पानी में धोकर उस पानी में रुई को भिगोकर योनि में रखने से, नीम की छाल को सुखाकर, जलाकर उसका धुआँ योनि के मुँह पर देने से और नीम के पानी से बार-बार योनि को धोने से ढीली योनि सख्त हो जाती है।
- नीम के बीज की गिरी और अरंडी के बीज की गिरी तथा नीम के पत्ते के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर की उसकी बत्ती बनाकर योनि में लगाने से योनि का दर्द ठीक हो जाता है।
- स्त्रियों को होने वाले श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में नीम की छाल और बबूल की छाल को बराबर मात्रा में मिलाकर इसका 10 से 30 मिलीलीटर काढ़ा बनाएं और इस 10 से 30 मिलीलीटर काढ़े को रोज सुबह-शाम सेवन करने से किसी भी तरह के श्वेत प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
- मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव हो रहा हो तो 10 ग्राम नीम के छाल को उतने ही बराबर गिलोय में पीसकर उसमें दो चम्मच शहद मिला लेना चाहिए और दिन में तीन बार रोगी को पिलाने से मासिक धर्म के दौरान होने वाले रक्तस्राव में आराम मिलता है।
- स्त्री प्रसव के दौरान ज्यादा दर्द होने पर 3 से 6 ग्राम नीम के बीज के चूर्ण का सेवन करने से प्रसव में आराम मिलता है।
- नीम की लकड़ी तो यदि प्रसव स्त्री के कमरे में जलाया जाए तो नवजात शिशु शिशु के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
- नीम की 6 ग्राम छाल को पानी के साथ पीसकर उसमें 20 ग्राम देशी घी मिलाकर कांजी के साथ पिलाने से प्रसव के बाद होने वाले रोग में लाभ प्राप्त होता है।
- नीम गर्भनिरोधक का भी काम करता है और नीम के शुद्ध तेल में रुई का फाहा भिगोकर संभोग करने से पहले योनि के भीतर रखने से गर्भ धारण नहीं होता।
- यदि 10 ग्राम नीम के गोंद को ढाई सौ मिलीलीटर पानी में गला कर कपड़े से छान लिया जाए और इस पानी में 45 सेंटीमीटर लंबा 45 सेंटीमीटर चौड़ा मलमल का कपड़ा भिगोकर छाया में सुखा लिया जाए और इस कपड़े के3 सेंटीमीटर व्यास के गोल-गोल टुकड़े काटकर 1 सीसी में भर दिए जाएं फिर संभोग करने से एक टुकड़ा पहले योनि के अंदर रख लिया जाए तो उसे गर्भ नहीं ठहरता
मधुमेह ( डायबिटीज ) के रोग में लाभकारी
- मधुमेह के रोग से पीड़ित होने पर यदि नीम के पत्तों को पीसकर उसकी टिकिया बना ली जाएं और उसमें मधुमेह के रोग से पीड़ित होने पर नीम के पत्तों को पीसकर उसकी टिकिया बना लें और इस टिकिया को गाय के घी में अच्छी तरह से तल लें। जब टिकिया पूरी तरह जल जाए तो इस घी को छानलें। इस घी को रोटी के साथ नियमित रूप से सेवन करने से मधुमेह के रूप में बेहद लाभ मिलता है।
- यदि 20 ग्राम नीम के पत्ते के रस में एक ग्राम नीला थोथा अच्छी तरह से मिलाकर सुखा लिया जाए और इसे कौड़ियों में रखकर जला कर भस्म बनाकर 250 मिलीग्राम भस्म को गाय के दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन किया जाए तो मधुमेह के रोग में लाभ मिलता है।
- 10 मिलीलीटर नीम के पत्ते के रस में शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से मधुमेह के रोग में लाभ प्राप्त होता है।
- नीम के छाल की 40 ग्राम मात्रा लेकर उसे मोटा मोटा कूट लें और फिर इसे ढाई लीटर पानी में डालकर मिट्टी के बर्तन में पकाएं। जब केवल 200 मिलीमीटर पानी शेष रह जाए तो उसे छानकर दोबारा से पानी में पकाएं और इसमें 20 या 25 ग्राम कलमी शोरा चुटकी से डालते जाएं और नीम की लकड़ी से पानी को हिलाते जाएं। जब पूरी तरह से सूख जाए तब इसे पीसकर छान लें और उसकी 250 मिलीग्राम की मात्रा रोजाना गाय के दूध के साथ सेवन करने से मधुमेह के रोग में लाभ मिलता है।
पीलिया के रोग में लाभकारी
- यदि नीम की सींक जोकि 6 ग्राम की हो और सफेद पुनर्नवा की जड़ जो 6 ग्राम की हो, इन दोनों को पानी में पीसकर लिया जाए और इस पानी को कुछ दिनों तक रोगी को पिलाते रहने से पीलिया के रोग में लाभ प्राप्त होता है।
- 10 मिलीलीटर नीम के पत्ते के रस में 10 मिलीमीटर अडूसा के पत्ते का रस और 10 ग्राम शहद मिलाकर खाली पेट सेवन करने से पीलिया के रोग में लाभ मिलता है।
- यदि पित्त की नली में रूकावट होने से पीलिया हो जाए तो 10 से 20 मिलीलीटर नीम के पत्ते के रस में 3 ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाएं और इसमें 6 ग्राम शहद को मिलाएं। यह मिश्रण को 3 दिन तक सुबह सुबह खाली पेट सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।
दमा के रोग में लाभकारी
- यदि नीम के बीज के तेल की 4-10 बूंदे पान में डालकर नित्य खायें जाए तो दवा, साँस फूलना तथा साँस के अन्य लोगों में बेहद लाभ मिलता है।
टीबी (तपेदिक) के रोग में लाभकारी
- यदि नीम के तेल की चार बूंदों को कैप्सूल में भरकर दिन में तीन बार सेवन किया जाए तो टीबी जैसे रोग में बेहद लाभ मिलता है।
पेट के रोग में लाभकारी
- यदि नीम की छाल के साथ इंद्रजौ और बायविडंग की बराबर मात्रा लेकर तीनों का चूर्ण बना लिया जाए और इस चूर्ण डेढ़ ग्राम मात्रा में चौथाई ग्राम भुनी हुई हींग मिलानी जाए फिर इस मिश्रण को शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से किसी भी तरह के पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
- बैगन या किसी भी दूसरी सब्जी के साथ नीम के आठ से दस पत्तों छौंककर खाने से पेट के सारे कीड़े मर जाते हैं।
दाँतों के लिए लाभकारी
- नीम दाँतों के रोग में नीम अत्यंत लाभकारी है। नीम की टहनी से बनी दातुन का प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है।
- इसके अलावा नीम की जड़ की छाल का 50 ग्राम चूर्ण, उसके साथ सोना गेरु की 50 ग्राम तथा सेंधा नमक की 50 ग्राम मात्रा लेकर इन तीनों को मिलाकर खूब महीन पीस लें। फिर इस मिश्रण को नीम के पत्ते के रस में भिगोकर छाया में सुखा लेंय़ इस तरह की यह भावना हुई। ऐसी ही 3 भावनाएं देकर जूएँ को पूरी तरह सुखाकर सीसी में भरने इस चूर्ण से रोज दाँतों को माँजने से दाँतों को बेहद लाभ मिलता है। दाँतों में से खून बहना बंद हो जाता है, दाँतों से पीव नहीं निकलता, मुँह में छाले नहीं पड़ते, मुँह की दुर्गंध जाती रहती है।
- नीम की जड़ की 100 ग्राम मात्रा को कूटकर आधा लीटर पानी में तब तक उबालें जब तक पानी एक चौथाई ना रह जाए। फिर इस पानी से कुल्ला करने से दाँतों के अनेक रोगों में लाभ मिलता है।
सिर के दर्द में लाभकारी
- यदि सूखे नीम के पत्ते और काली मिर्च तथा चावल की बराबर मात्रा को मिलाकर चूर्ण बना लिया जाए, तो ये चूर्ण आधासीसी यानी माइग्रेन के रोग में लाभकारी होता है। सूर्योदय से सिर के जिस हिस्से में दर्द हो रहा है, तो उसी ओर की नाक में वह चूर्ण डाल लिया जाये तो आधा सीसी में लाभ मिलता है।
- नीम के तेल को माथे पर लगाने से सर दर्द में लाभ होता है।
नकसीर में लाभाकारी
- नीम की पत्तियों को अजवाइन के साथ बराबर पीसकर कनपटियों पर उसका लेप करने से नाक से खून बहना यानि नकसीर बंद होती है।
रक्त विकार के रोगों में लाभकारी
- रक्त विकार संबंधी रोग में नीम बेहद लाभकारी है। रक्त विकार की स्थिति में नीम का काढ़ा बना कर दिया जाए या नीम का ठंडा रस बनाकर उसकी 5 से 10 मिली की मात्रा रोज पीने से किसी भी तरह के रक्त संबंधी रोग में बेहद लाभ प्राप्त होता है।
- यदि 20 मिली नीम के पत्ते के रस में अडूसा के पत्ते का रस मिलाकर उसमें थोड़ा शहद मिलाया जाए और दिन में 2 बार सेवन किया जाए तो रक्त शुद्ध होता है।
- नींद के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसका सेवन करने से रक्त की गर्मी की समस्या में लाभ प्राप्त होता है।
कुष्ठ के रोग में लाभकारी
- नीम कुष्ठ रोग में बेहद लाभकारी है। कुष्ठ रोग होने की स्थिति में कुष्ठ रोगी को 12 महीने नीम के पेड़ के नीचे रहने से उसे काफी लाभ प्राप्त होता है।
- कुष्ठ रोगी को नीम की लकड़ी की दातुन नियमित रूप से करनी चाहिए।
- कुष्ठ रोग होने की स्थिति में नीम के पत्तों के पानी से स्नान करना चाहिए।
- कुष्ठ रोगी को नीम की ताजी पत्तियों से बने बिस्तर पर सोना चाहिए ।
- रोज सुबह दस मिली नीम के पत्ते का रस का सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ प्राप्त होता है।
- नीम के तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर सफेद दाग पर लगाने से सफेद दाग में आराम मिलता है।
बुखार में लाभकारी
- यदि नीम की छाल, लाल चंदन, पद्मकाष्ठ, गिलोय, धनिया और सोंठ इन सब का काढ़ा बनाकर उसकी 10 से 30 मिली मात्रा का सेवन किया जाए तो बुखार में लाभ प्राप्त होता है।
- यदि 5 ग्राम मात्रा नीम की छाल और आधा ग्राम लौंग अथवा दालचीनी को मिलाकर चूर्ण बना लिया जाए और इस चूर्ण की 2 ग्राम मात्रा को सुबह-शाम पानी से लिया जाए तो किसी भी तरह का साधारण वायरल बुखार, मियादी बुखार, टाइफाइड बुखार आदि दूर होता है।
- नीम की छाल और गिलोय को बराबर मात्रा में मिलाकर 100 मिली पानी में काढ़ा बनाकर उसकी 20 मिली मात्रा को सुबह-शाम पीने से बुखार में लाभ प्राप्त होता है।
इसके अलावा नीम के अनेक उपयोग एवं लाभ हैं, जो कि इस प्रकार हैं…
- यदि दोपहर को नीम के पेड़ की शीतल छाया में बैठा जाए तो इससे शरीर स्वस्थ रहता है।
- मच्छरों का प्रकोप होने की स्थिति में शाम के समय यदि नीम की सूखी पत्तियों का धुआँ दिया जाए तो सारे मच्छर भाग जाते हैं।
- नीम की कोमल कोंपलों को चबाने से हाजमा ठीक होता है।
- रोज सुबह नीम की दातुन से दाँत साफ करने से दाँत बेहद मजबूत और स्वस्थ तथा चमकदार बनते हैं और मसूड़े मजबूत होते हैं।
- नीम के फूलों के काढ़े से कुल्ला करने पर भी दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं।
- नीम की जड़ को पानी में उबालकर खींचकर कील मुहांसों पर लगाने से कील मुंहासे खत्म हो जाते हैं।
- नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर स्नान करने से अनेक तरह के चर्म रोगों से आराम मिलता है।
- नीम के पानी से सिर धोने से बालों के जुएँ मर जाते हैं।
- नीम के पत्तों का रस खून को साफ करता है और यह खून को बढ़ाने में भी सहायक है।
- इसके पत्तों के रस की 5 से 10 मिली की मात्रा का रोज सेवन करना चाहिए।
- नीम की पत्तियों को यदि अनाज में रखा जाए तो अनाज में कीड़े नहीं पड़ते।
Benefits of Neem
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Disclaimer |
ये सारे उपाय इंटरनेट पर उपलब्ध तथा विभिन्न पुस्तकों में उपलब्ध जानकारियों के आधार पर तैयार किए गए हैं। कोई भी उपाय करते समय अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य ले लें। इन्हें आम घरेलू उपायों की तरह ही लें। इन्हें किसी गंभीर रोग के उपचार की सटीक औषधि न समझें। |
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