वाराणसी का स्वर्वेद महामंदिर जो संसार का सबसे बड़ा ध्यान केंद्र है, जानें इसके बारे में। (Swarved Temple Varansi Largest Meditation Centre)
18 दिसंबर 2023 को वाराणसी के स्वर्वेद महामंदिर (Swarved Temple Varansi) का लोकार्पण होने वाला है। यह महामंदिर वाराणसी के उमरहा गाँव में स्थित संसार का सबसे बड़ा ध्यान केंद्र है। 18 दिसंबर को एक विशेष कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सबसे बड़े ध्यान केंद्र रूपी महामंदिर का लोकार्पण करेंगे।
सात तल वाला इस विशाल भव्य मंदिर अपने आप में एक अनूठा मंदिर है और यह संसार का सबसे बड़ा ध्यान केंद्र है। इस ज्ञान केंद्र में 20 हजार व्यक्ति एक साथ ध्यान अवस्था में बैठ सकते हैं।
इस भव्य विशाल मंदिर के बारे में जानते हैं
स्वर्वेद महामंदिर वाराणसी के निकट उमरहा नामक क्षेत्र में स्थित एक विशाल मंदिर है। कहने को इसका नाम मंदिर है, लेकिन यहाँ पर किसी देवता की पूजा नहीं होती है। यहाँ पर किसी भगवान की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की गई है। यह मंदिर किसी भी भगवान की प्रतिमा से रहित मंदिर है।
जिस तरह हिंदू धर्म में किसी पवित्र स्थान को मंदिर की संज्ञा दी जाती है। आवश्यक नहीं कि वहां पर कोई देव प्रतिमा ही स्थापित हो, जैसे स्कूल को विद्या का मंदिर कहा जाता है। ससंद भवन को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है। उसी तरह यह मंदिर एक पवित्र जगह है, जहां पर ध्यान लगाया जाता है। यह ध्यान की शैली के लिए प्रसिद्ध एक विशाल भव्य मंदिर है।
स्वर्वेद मंदिर लगभग 18 साल से नियमित तौर पर बन रहा है और अब लगभग पूरा होने वाला है। 7 तलों में बने इस मंदिर में कोई भी कमरा नहीं है बल्कि हर तल पर विशाल हाल हैं, जहां पर ध्यान के इच्छुक साधन ध्यान अवस्था में बैठ सकते हैं। हर तल पर अलग-अलग ध्यान की अवस्था के लिए नियोजित किया गया है।
उमराह गांव में लगभग 64000 स्क्वायर फीट में फैले इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है। इस मंदिर का निर्माण मकराना मार्बल पत्थरों से किया गया है। यह मंदिर अभी से नहीं बन रहा है बल्कि इसको बनते हुए लगभग 18 साल से अधिक की अवधि हो चुकी है। जैसे-जैसे साधक-श्रद्धालु अपना योगदान देते गए वैसे-वैसे मंदिर के निर्माण की प्रगति होती गई। अब यह मंदिर अपनी पूर्णता की ओर अक्सर है और लगभग पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो गया है।
मंदिर की विशेषताएं
- स्वर्वेद महामंदिर संसार का सबसे बड़ा विशाल ध्यान केंद्र है।
- इस मंदिर में सात मंजिल यानी सात तल हैं, जो ज्ञान की अलग-अलग अवस्थाओं के लिए बनाए गए हैं।
- मंदिर 64000 स्क्वायर फीट जगह में बना हुआ है।
- मंदिर की लगभग अनुमानित लागत 35 करोड़ बताई जा रही है।
- मंदिर के भवन की ऊंचाई लगभग 180 फिट है।
- इस मंदिर का निर्माण मकराला मार्बल के पत्थरों तथा गुलाबी बलुआ पत्थरों से किया गया है और इसको नागर स्थापत्य शैली में बनाया गया है।
- मंदिर के दीवारों पर 3137 स्वर्वेद के दोहे लिखे गए हैं। मंदिर की दीवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है।
- मंदिर के सबसे ऊपर विशाल 125 पंखुड़ियों वाले कमल के आकार का गुंबद बना हुआ है, जो मंदिर को एक भव्य सुंदरता प्रदान करता है।
- भवन पूरी तरह भारतीय विरासत को समर्पित है, भारतीय संस्कृति की झलक देखनी मिलती है।
- भवन का निर्माण विहंगम योग संस्थान द्वारा किया गया है। ये संस्था विहंगम योग सिखाने का कार्य करती है।
- मंदिर के आगे एक विशाल मैदान है, जहाँ पर 25000 यज्ञ कुंड स्थापित किए गए हैं। हर यज्ञ कुंड पर चार परिवार यज्ञ कर सकते हैं। इस तरह इस विशाल मैदान में एक लाख परिवार एक साथ यज्ञ संपन्न कर सकते हैं।
कहाँ पर स्थित है, मंदिर?
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी के उमरहा क्षेत्र में स्थित है। उमरहा वाराणसी से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित है।
मंदिर कैसे जाएं?
मंदिर जाने के लिए वाराणसी जाकर वहाँ से उमरहा जाया जा सकता है। सारनाथ और कादीपुर स्टेशन के बीच तराया नामक स्टेशन पर उतरकर मंदिर जाना बेहद आसान है। तराया स्टेशन फिलहाल निर्माणाधीन है और शीघ्र ही यह स्टेशन आम जनता के लिए खुल जाएगा। यहाँ से मंदिर जाना बेहद सरल होगा। यह स्टेशन विशेष रूप से मंदिर तक पहुंचाने के लिए ही बनाया जा रहा है।
फिलहाल सारनाथ अथवा कादीपुर रेलवे स्टेशन जाकर वहाँ से मंदिर आराम से पहुंचा जा सकता है। वाराणसी रेल्वे स्टेशन से उमरहा 12 किलोमीटर दूर है। यहाँ से उमरहा के लिए बस अथवा टैक्सी द्वारा जाया जा सकता है।
विहंगम योग क्या है?
विहंगम योग ध्यान की एक शैली है। विहंगम योग शैली का आविष्कार स्वामी सदाफलदेव महाराज ने किया था। उन्होंने इस संस्था की स्थापना 1924 में की थी।
विहंगम योग की यह शैली इतनी अधिक लोकप्रिय हो गई कि संसार के 50 से अधिक देशों में विहंगम योग की शाखाएं चलती हैं। ध्यान की यह एक बेहद शक्तिशाली तकनीक है जो मन को आंतरिक शांति प्रदान करने और स्वयं को पहचानने का मार्ग प्रशस्त करती है। विहंगम योग संस्थान की तरफ से एक त्रैमासिक पत्रिका भी निकलती है, जिसका नाम ‘विहंगम योग संदेश’ है। इसके अलावा सदाफलदेव संदेश नाम एक अन्य पत्रिका भी निकलती है।
सदाफल देव महाराज कौन हैं?
सदाफल देव जी महाराज का जन्म 25 अगस्त 1888 को बलिया उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के पकड़ी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम स्कंभ मुनि और माता का नाम मुक्तिदेवी था। वह बचपन से अध्यात्म में रम गए थे। अपने गुरु के मार्गदर्शन में उन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त किया और विहंगम योग प्रतिपादित किया। फिर उन्होंने विहंगम योग के प्रचार-प्रसार के लिए विहंगम योग संस्थान की स्थापना 1924 में की थी।
सन 1954 में माघ शुक्ल पक्ष की तिथि के दिन प्रयागराज में संगम के तट पर उन्होंने अपने देह का त्याग करते हुए स्वयं को योगमुद्रा में लीन कर लिया। उनके बाद उनकी परंपरा को संस्थान में आचार्य श्रीप्रभु बढा़ते रहे। 1967 उनके देहत्याग के बाद आचार्य स्वतंत्र देव जी महाराज संस्थान के प्रमुख के रूप में विहंगम योग को आगे बढ़ाते रहे।
आज विहंगम योग विश्व के 50 से अधिक देशों में लोकप्रिय है। वाराणसी के उमरहा गाँव में इसका मुख्यालय है जहाँ पर ये विशाल स्वर्वेद महामंदिर स्थित है।
18 दिसंबर को विहंगम योग संस्थान के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक विशाल भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महामंदिर के विशाल भवन का लोकार्पण करेंगे। उसी दिन विशाल यज्ञ समारोह आयोजित किया जाएगा जो मंदिर के प्रागंण मे स्थित विशाल मैदान में 25000 यज्ञ कुंडो मे किया जाएगा। 1 लाख परिवार एक साथ यज्ञ की आहुति देंगे।
अल्मोड़ा में गोलू देवता का मंदिर जहाँ प्रार्थना नही शिकायत की जाती है।
स्वर्वेद महामंदिर की वेबसाइट
https://www.swarved-mahamandir.org/
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