Friday, October 4, 2024

ये हैं वो कहावतें और मुहावरे जो समय और शब्दों की गड़बड़ी के कारण बदल गए।

हमारे रोजमर्रा के जीवन में ऐसे अनेक मुहावरे या कहावतें है, ये मुहावरे या कहावतें जिस रूप में आज बोले जाते हैं, उस तरह नही थे। (Kahwaten and Muhaware changed over time) आइए जानते हैं…

समय और शब्दों की समझ की गड़बड़ी के कारण बनने वाले मुहावरे/कहावतें (Kahwaten and Muhaware changed over time)

हम लोगों ने सभी ने अनेक तरह के मुहावरे, कहावतें सुनी है, बोली हैं, बचपन में पढ़ीं है, लेकिन बहुत से कहावतों मुहावरों में शब्दों का हेरफेर हो गया कैसे? ये कहावतें और मुहावरे समय के साथ कैसे बदल गए? आइए जानते हैं…

हम सभी ने अपने बचपन से अनेक मुहावरे, कहावतें, लोकोक्तियां आदि सुनी होंगी। मुहावरों में जिन शब्दों का प्रयोग हुआ था, उन शब्दों का कहावत या मुहावरे के छिपी कहानी या उस अर्थ से कुछ ना कुछ संबंध रहा है, लेकिन कुछ कुछ मुहावरे ऐसे हो गए जिनमें प्रयोग किए गए शब्द मूल शब्दों से बदल गए। इन मूल शब्दों का अर्थ ज्यों का त्यों बना रहा, जबकि जो नए शब्द आए उनका इस मुहावरे के अर्थ से कोई संबंध नहीं बनता था और वह बेतुके प्रतीत होते थे। लोगों ने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया आइए। ऐसे कुछ कहावत/मुहावरों पर नजर डालते हैं।

पहली कहावत

धोबी का कुत्ता ना घर का न घाट का

ये एक मुहावरा है जो हमने अपने बचपन से सुना होगा। हमने अपने विद्यालय में इस मुहावरे का अनेक बार प्रयोग किया है। इस मुहावरे का ये अर्थ निकलता है, कि कोई ऐसी घटना हुई होगी जिसमें किसी धोबी ने कोई कुत्ता पाला होगा जिसे धोबी न अपने घर से निकला दिया होगा और जिसे धोबी अपने घाट पर भी नही आने देता होगा। या धोबी का कोई पालतू कुत्ता होगा जिसे धोबी अपने घर के अंदर नही घुसने देता होगा और उसे बाहर ही रखता होगा। लेकिन क्या आप जाने हैं कि असली मुहावरा क्या था।

असली मुहावरा था…

धोबी का कुतका न घर का न घाट का

कुतका एक प्रकार का लकड़ी का खूंटा होता है, जिस पर धोबी गंदे कपड़े टांगते थे। जब वह घाट पर कपड़े धोने को लेकर जाते तो घर के बार उस कुतके यानि खूँटे से कपड़े उतारकर घाट पर ले जाते थे। धोबी वह कुतका वह घर के बाहर ही लगाते थे। घाट एकदम खुला होता था तो वहाँ पर उन्हें घाट उस कुतके यानि खूंटे को लगाने के उन्हे कोई जरूरत ही नही थी।

इसलिये ये कहावत बनी कि धोबी का कुतका न घर का न घाट का। ये कहावत इसलिये बनी क्योंकि कुतका ना तो घर के अंदर लगाया जाता है और ना ही उसे घाट पर लगाया जाता है। चूँकि कुतका शब्द एक जानवर कुत्ते से मिलता-जुलता है इसलिये धीरे-धीरे कुतका शब्द कब कुत्ते में बदल गया, लोगो पता ही नही चला और कहावत बन गई।

धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट।

हमने कभी यह नहीं सोचा कि धोबी के पास कुत्ते का क्या काम ? धोबी को गधे पालते तो देखा है, जिस पर वह कपड़े का गट्ठर लाद कर नदी या घाट पर ले जाते थे। कुत्ते का धोबी के पास कोई उपयोग नहीं तो धोबी कुत्ता क्यों पालेगा?

तो इस इस कहावत में शब्दों की गड़बड़ी हुई और कुतका शब्द कुत्ते में बदल गया।

दूसरी कहावत

ना नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी

इस कहावत से यह भ्रम होता है कि जब नौ मन तेल होगा, तब नौ मन तेल सामने होने पर ही राधा नाम की कोई युवती नाचती होगी। यदि नौ मन तेल नहीं होगा तो राधा नहीं नाचती होगी। जबकि हमने यह नहीं सोचा कि मन किसी द्रव्य पदार्थ को मापने की इकाई नहीं है। मन किसी ठोस पदार्थ को तोलने की इकाई होती थी। मन से अनाज के वजन की मात्रा को दर्शाया जाता था।

इस कहावत के पीछे जो भी कहानी छुपी हो लेकिन इस कहावत जो का अर्थ बनता था, वह यह था कि कोई कठिन कार्य के लिए कोई विशेष परिस्थिति की आवश्यकता होती है। यदि वह परिस्थिति नहीं होगी तो वह काम भी नहीं होगा। यानि एक काम होने पर दूसरा काम होगा। साथ ही यह मूल कहावत यह नहीं थी। मूल कहावत क्या थी?

मूल कहावत थी…

ना नौमन नतेल होगा ना राधा नाचेगी

दरअसल पहले ग्रामीण इलाकों में नाटक कंपनियां होती थीं। ये नाटक कंपनियां गाँव आदि में मनोरंजन का साधन थीं। इन नाटक कंपनियों में नृत्य करने वाली युवतिया नर्तकियां भी होती थी और नाटक कंपनी का मालिक या कोई नर्तक पुरुष होता था, जिसे ‘नतेल’ कहा जाता था, क्योंकि वह या तो नाचने वाली युवती को नाचने का डायरेक्शन देता या उसके साथ नाचता भी थी। किसी नाटक कंपनी में ‘नौमन’ नाम का नतेल था। जो किसी बाहर के देश से आया था।

उसी नाटक कंपनी में राधा नाम की एक युवती नर्तकी थी। जब भी नृत्य कार्यक्रम होता तो ‘नौमन’ ‘नतेल’ अवश्य होता। उसी के निर्देश और उसी की जुगलबंदी पर राधा नृत्य करती थी, जिस दिन ‘नौमन’ नतेल नहीं होता, राधा नाचती नहीं थी।

इसीलिए यह कहावत बन गई कि…

न ‘नौमन’ ‘नतेल’ होगा, न राधा नहीं नाचेगी

बाद में धीरे-धीरे शब्दों का गड़बड़ होकर नौमन दो शब्दों में टूट गया ‘नौ’ और ‘मन’ तथा नतेल शब्द का ‘न’ गायब हो गया और ‘तेल’ रह गया।

और नई कहावत बनी..

न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी

इससे शब्दों का गड़बड़ होकर कहावत का मूल अर्थ दो वही रहा लेकिन शब्दों का हेर फेर होने से शब्दों का अर्थ बदल गया।

एक कहावत को और लेते हैं। यह कहावत है…

अपना उल्लू सीधा करना

इस कहावत का अर्थ यही है अपने स्वार्थ की पूर्ति करना। अपने मतलब के लिए कोई ऐसा करना जिससे स्वयं का फायदा हो, भले ही दूसरे का नुकसान क्यों ना हो। इस कहावत में उल्लू सीधा करना बात अटपटी लगती है। उल्लू तो एक पक्षी होता है। उल्लू सीधा करना बेतुकी बात लगती है।

यह कहावत ‘उल्लू’ नामक पक्षी के संदर्भ में नहीं है। दरअसल इसके पीछे बात यह है कि उल्लू एक उपकरण होता है, जो खेत में उस जगह पर लगाया जाता है। जहाँ एक खेत से दूसरे खेत में पानी जाता है। यह काठ यानि लकड़ी का बना उपकरण होता है, जिसे ‘उल्लू’ कहा जाता है।

यह खेत में पानी के प्रवाह वाली नहर में उस जगह पर लगाया जाता है, जहाँ दो खेतों के बीच विभाजक वाली रेखा हो। इसको लगाने से पानी का प्रवाह मोड़ा जा सकता है। यदि इस उपकरण को सीधा कर दिया जाये तो पानी का बहाव अपने खेत की ओर हो जाता है।

इसी कारण ये कहावत बनी और उल्लू नाम के काठ के उपकरण को सीधा करके पानी के बहाव को अपने खेत की ओर मोड़ लेना और ये अपने स्वार्थ की पूर्ति करने के संदर्भ में माना जाना लगा। यहाँ पर इस कहावत में उल्लू नाम के पक्षी का कोई लेना-देना नही था।

इस तरह हम देखते हैं, कि कहावतों मुहावरों का संसार अनोखा है। अनेक कहावत मुहावरे अतीत में घटी किसी घटना से उपजी हैं। उनमें प्रयुक्त शब्दों का संबंध में उसी घटना और कहावत के अर्थ से संबंध रखता रहा है। लेकिन कुछ कहावत, मुहावरों में प्रयुक्त शब्द समय के बदलते गये हैं।

हालाँकि कहावतों ने अपनी साथ जुड़ी घटना का मूल अर्थ तो बरकरार रखा लेकिन शब्दों के मूल रूप के बिगड़ने के कारण उनका संबंध कहावत के अर्थ से नही बनता है। ये तीनो मुहावरे उसी का प्रमाण हैं।

इस प्रकार ये कुछ कहावतें आदि थीं जो लोगों की शब्दों की समझ की कमी के कारण बदल गए। आगे और भी ऐसी कहावते/मुहावरें अपडेट की जाएंगी।


ये भी पढ़ें…

बाथरूम और वॉशरूम के बीच अंतर को समझें।

WhatsApp channel Follow us

संबंधित पोस्ट

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Follows us on...