Saturday, July 27, 2024

पॉलिग्राफ (Polygraph Test) टेस्ट और नार्को (Narco Test) क्या हैं?

हम अक्सर समाचारों में, न्यूज़ चैनल्स में, अखबारों में, नार्को टेस्ट पॉलीग्राफ टेस्ट आदि के बारे में सुनते रहते हैं। कभी कोई अपराध होता है, तो उस अपराधी के संबंध में नारको टेस्ट या पॉलीग्राफ़ टेस्ट के बारे में सुनते रहते हैं, तब हमारे मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती होगी, यह नारको टेस्ट या पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test-Narco Test) क्या है? इसके बारे में जानते हैं।

पॉलिग्राफ टेस्ट और नार्को टेस्ट के बारे में जानें (Polygraph Test-Narco Test)

पॉलीग्राफ़ टेस्ट और नार्को टेस्ट अपराधियों से किसी अपराध के संबंध में सच्चाई उगलवाने की दो वैज्ञानिक और चिकित्सीय विधि हैं, जिनके सहायता से अपराधियों से वह सच उगल वाया जा सकता है जो अपराधी सामान्य तौर पर पूछताछ में नहीं बताते।

यह टेस्ट अक्सर कड़ी प्रवृत्ति वाले अपराधियों पर आजमाया जाता है, जो पुलिस द्वारा कड़ी पूछताछ में भी सच नहीं बताते और सच को छुपाते रहते हैं। ऐसी स्थिति में जब कोई पुलिस या जाँच एजेंसी को ये अंदाजा हो जाता है कि अपराधी सच को छुपा रहा है और आसानी से नही बतायेगा तो उस पर पॉलिग्राफ टेस्ट और नार्को टेस्ट आजमाया जाता है। ये टेस्ट लगभग सटीक परिणाम देते है, हालाँकि 100% रिजल्ट की गारंटी नही होती।

पॉलिग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) क्या है?

पॉलिग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) की खोज सबसे पहले 1921 में एक अमेरिकन फिजियोलॉरिस्ट जॉन ए लार्सन ने की थी। पॉलिग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) पॉलिग्राफ अपराधी द्वारा बोले जाने वाले झूठ को पकड़ने ही एक टेक्निक है, जो एक मशीन की सहायता से की जाती है।

यह अपराधी की गतिविधियों के आधार पर निष्कर्ष निकालने की एक टेक्निक है। इस टेक्निक में अपराधी से कुछ सवाल पूछे जाते हैं और जब उन सवालों का जवाब देता है तो उसकी गतिविधियों को पकड़ा जाता है। जब अपराधी सवाल का जवाब दे रहा होता है तो उसकी एक्टिविटी को नोट किया जाता है।

उसके होठों द्वारा बोलने की दशा, उसके दिमाग में हो रही गतिविधि, उसकी आँखों की गतिविधि, उसकी दिल की धड़कन, नाड़ी की गति, साँस लेने की दर तथा पसीने निकलने आदि को नोट किया जाता है। हम सब जानते हैं कि झूठ बोलने की स्थिति में मनुष्य के अंदर कुछ अलग परिवर्तन होते हैं।

झूठ बोलने व्यक्ति के अंदर हमेशा कुछ न कुछ डर रहता है, पॉलिग्राफ टेस्ट इसी सिद्धांत पर काम करता है। यदि अपराधी झूठ बोल रहा होता है तो उसके शरीर में कुछ अलग परिवर्तन होते हैं। उसके दिमाग में कुछ हलचल हो रही होती है,  दिल की धड़कन अलग हो सकती है, यह सभी गतिविधि पॉलीग्राफ टेस्ट में नोट की जाती ,है जिसके लिए एक मशीन का प्रयोग किया जाता है। इस टेस्ट को लाई डिटेक्टर टेस्ट यानि झूठ पकड़ने वाली मशीन भी कहा जाता है।

पॉलिग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) कैसे करते हैं?

पॉलीग्राफ टेस्ट करते समय मशीन को अपराधी के शरीर के अलग-अलग हिस्सों के साथ जोड़ दिया जाता है, ताकि उसके शरीर के बाहरी और अंदरूनी अंगों की गतिविधि को नोट किया जा सके। प्रश्न कर्ता उस अपराधी से प्रश्न पूछता है और जब व्यक्ति जवाब देता है तो जवाब देते समय उसके शरीर की क्या गतिविधियां होती हैं। वह सब सिग्नल मशीन में नोट कर दिए जाते हैं उसके आधार पर सारी गतिविधियों का एनालिसिस किया जाता है और उसके आधार पर रिजल्ट निकाला जाता है।

टेस्ट करने से पहले मशीन से अपराधी के अलग-अलग प्वाइंट को जोड़ा जाता है, उसके सीने पर एक बेल्ट बाँधी जाती है, जिसे  न्यूमोग्राफ ट्यूब (Pneumograph Tube) कहते हैं। जो अपराधी के दिल की धड़कन को नापती है। अपराधी की उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स (Lombroso Gloves) बांधे जाते हैं, उंगलियों के मूवमेंट पर नजर रखते हैं।

अपराधी की बाहों पर बाजू पल्स कफ (Pulse Cuff) बांधे जाते है, जो उसके घटते-बढ़ते ब्लड प्रेशर पर नजर रखते हैं। ये सारी एक्टिविटी एक स्क्रीन पर दिखती रहती हैं और एक्सपर्ट बारीकी से उस पर नजर रखते हैं। सवालों के जवाब के समय अपराधी की सारी गतिविधियों को बारीकी से नोट किया जाता है

पॉलिग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) किस पर किया जाता है?

पॉलीग्राफ़ टेस्ट किसी आम अपराध के लिए नहीं किया जाता। यह टेस्ट करने के लिए विशेष परिस्थिति में बेहद संगीन अपराधों के लिये ही किया जाता है और इस टेस्ट के लिए अदालत से परमिशन लेनी पड़ती है। भारत में पॉलीग्राफ टेस्ट कराने के लिए अदालत से परमिशन लेने के बाद ही जांच एजेंसी अपराधी का पॉलिग्राफ टेस्ट कर सकती है। पॉलिग्राफ टेस्ट के लिए अपराधी की सहमति होनी भी जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार अपराधी की इच्छ के विरुद्ध उस पर पॉलिग्राफ टेस्ट नही कराया जा सकता है।

पॉलीग्राफ़ टेस्ट किन किन मामलों में किया जा सकता है?

जब यह टेस्ट अधिकतर बेहद संगीन अपराधों के मामले में किया जाता है। जब अपराधी ने बहुत गंभीर अपराध किया हो और वह पुलिस के साथ सहयोग नहीं कर रहा हो और अपराध बेहद हाई प्रोफाइल मामले से संबंधित हो। तब पुलिस जांच एजेंसी अपराधी पर जवाब देने का निर्णय लेती है, उसके लिए उसे अदालत से परमिशन लेनी पड़ती है।

पॉलिग्राफ टेस्ट किन मामलों में किया जा सकता है?

ये टेस्ट यौन दुर्व्यवहार, रेप, हत्या, नशीली दवाओं के प्रयोग, बैंक फ्रॉड, वित्तीय फ्रॉड आदि के मामले में पॉलीग्राफ टेस्ट किया जा सकता है। अदालत केवल विशेष परिस्थितियों में ही पॉलीग्राफ टेस्ट की अनुमति देती है। यह परीक्षण जांच एजेंसियों के अधिकारियों, एक्सपर्ट तथा डॉक्टरों आदि देखरेख मे किया जाता है, इसकी वीडियो रिकार्डिंग भी की जाती है।

क्या ये टेस्ट सटीक रिजल्ट देता है?

बहुत शातिर अपराधी जिन्हें टेस्ट के बारे में पहले से पता है, जो प्रोफेशनल अपराधी है। वह स्वयं को मानसिक रूप से ऐसा तैयार कर सकते हैं कि अपने शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित कर लें। लेकिन बहुत कम मामलों में ऐसा हो पाता है। अधिकतर मामलों में यह टेस्ट सटीक रिजल्ट देता है। हालांकि 100% रिजल्ट नही मिले ऐसा जरूरी नही लेकिन अधिकतर मामलों में इस टेस्ट से सही रिजल्ट ही मिलते हैं।

क्या पॉलीग्राफ टेस्ट के रिजल्ट को साक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जा सकता है?

नहीं। पॉलीग्राफ टेस्ट का रिजल्ट सीधे साक्ष्य के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता बल्कि उसके आधार पर आगे की जांच में यदि कोई ऐसा सबूत मिलता है, जो अपराधी द्वारा पॉलीग्राफ टेस्ट में पूछे गए सवालों के जवाब को सही सिद्ध करता हो, तो उन सबूतों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। पॉलीग्राफ़ टेस्ट इन्वेस्टीगेशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद करता है और यह साक्ष्य जुटाने में मददगार होता है।

नार्को टेस्ट (Narco Test) क्या है?

नार्को टेस्ट भी बेहद संगीन अपराध के मामले में किया जाने वाला टेस्ट है। यह बेहद गंभीर और विशेष परिस्थिति में ही किया जाता है। यह टेस्ट हर किसी अपराधी पर नहीं किया जा सकता है। इसके लिए अपराधी की शारीरिक और मानसिक स्थिति तथा उसकी उम्र और स्वास्थ्य आदि को ध्यान में रखकर ही टेस्ट किया जा सकता है। इस टेस्ट को करने के लिए अदालत से विशेष परमिशन की जरूरत पड़ती है।

यह टेस्ट पॉलीग्राफ टेस्ट से अधिक जटिल टेस्ट है. क्योंकि इसमें विशेष प्रकार की ड्रग्स को इंजेक्शन आदि द्वारा अपराधी के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है, जिससे उसके शरीर और दिमागी स्थिति अलग अवस्था में पहुंच आती है। उसका दिमाग ना तो खुद के कंट्रोल में रहता है और ना ही वो पूरी तरह बेहोश हुआ होता है, यानी अपराधी होश और बेहोश की बीच की अवस्था में होता है। ऐसी अवस्था में वह जो कुछ बोलता है, वह वही बोलता है जो सच होता है। वह चाह कर भी झूठ नहीं बोल पाता।

नार्को (Narco Test) कैसे करते हैं?

नार्को टेस्ट करने के लिए अपराधी को ‘ट्रुथ सिरम’ नाम का एक ड्रग दिया जाता है। इस ड्रग को ट्रुथ ड्रग भी कहा जाता है। उसके बाद अपराधी को ‘सोडियम पेंटोथल’ का इंजेक्शन लगाया जाता है। इन दोनों दवाओं के असर होते ही व्यक्ति अर्थ चेतन की अवस्था में पहुंच जाता है अर्थात ना तो वह पूरी तरह होश में रहता है और ना ही बेहोश हुआ होता है।

इन दवाइयों के असर से व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है और केवल उसका अंदरूनी चेतन मस्तिष्क काम कर रहा होता है। इस कारण वह ऐसी वही सवालों का जवाब देता है, जो उससे पूछे जाते हैं। उसका खुद पर कंट्रोल ना होने के कारण वह बातों को इधर-उधर घुमा-फिरा कर और झूठ नही बोल सकता है।

झूठ बोलने के लिए व्यक्ति को काफी कुछ सोचना पड़ता है और वह बातों को घुमाने की कोशिश करके बोलने की कोशिश करता है, लेकिन टेस्ट के दौरान दवाओं के प्रभाव से व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है और वह हर सवाल का सीधा जवाब देता है, ऐसी स्थिति में उसके द्वारा झूठ बोलने की गुंजाइश खत्म हो जाती है।

नार्को (Narco Test) किन पर किया जाता सकता है?

नार्को टेस्ट भी पॉलीग्राफ टेस्ट की तरह विशेष परिस्थितियों में ही विशेष अपराधी पर किया जा सकता है। बल्कि कहें तो पॉलीग्राफ टेस्ट तो बहुत से अपराधियों पर आसानी से किया जा सकता है, लेकिन नार्कोटेस्ट के लिए तो बहुत विशेष परिस्थिति की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि इसमें अपराधी के स्वास्थ्य, उसकी उम्र आदि का भी ध्यान रखना पड़ता है।

यदि अपराधी को कोई बीमारी है तो उस पर नारको टेस्ट नहीं आजमाया जा सकता क्योंकि उस पर ड्रग का दुष्प्रभाव पड़ सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है। नार्को टेस्ट में जो ट्रक दी जाती है वह काफी हाई पावर की ड्रग होती हैं। थोड़ी सी भी ज्यादा ड्रग मिलने पर अपराधी की मौत भी हो सकती है।

नार्को टेस्ट करने के लिए भी जांच एजेंसी को अदालत की विशेष परमिशन लेनी पड़ती है। नार्कोटेस्ट कराने से पूर्व व्यक्ति के स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति की जांच की जाती है। उसकी उम्र को भी ध्यान में रखा जाता है तथा ड्रग के दबाव को सहने की उसकी क्षमता आदि को ध्यान में रखा जाता है। इसके अलावा अपराध की सहमति होना भी आवश्यक है। इसके बाद ही अदालत की परमिशन ली जाती है। अदालत अपराध की संगीनता और केस की स्थिति को देखते हुए ही परमिशन देती है।

नार्को टेस्ट विशेष एक्सपर्ट्स की देखरेख में किया जाता है, क्योंकि इसके लिए बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता पड़ती है इसमें जांच अधिकारी के अलावा, चिकित्सक, विशेष नार्को एक्सपर्ट और मनोचिकित्सक शामिल होते हैं। टेस्ट की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाती है ताकि उसकी विश्वसनीयता पर कोई सवाल ना कर सके। विश्व का सबसे नारको टेस्ट 1922 में किया गया था। यह टेस्ट अमेरिका में किया गया था और कैदियों पर इसको आजमाया गया था।

क्या नार्को टेस्ट (Narco Test) एकदम सटीक रिजल्ट देता है?

नार्कों टेस्ट अधिकतर मामलों में एकदम सटीक रिजल्ट ही देता है। बहुत कम मामले ऐसे हुए हैं, जिसमें नार्को को टेस्ट को से सही रिजल्ट नहीं मिला हो नहीं तो अधिकतर इस मामले में लगभग सटीक रिजल्ट ही मिलता है। नार्कोटेस्ट अपराधियों द्वारा सच्चाई उगलवाने के लिए एक सटीक टेक्निक है, जिसके माध्यम से अपराधी से बिल्कुल सच उगलवाया जा सकता है, लेकिन यह हर अपराधी पर नहीं आजमाया जा सकता है। इसलिए इसका लाभ हर मामले में नहीं मिल पाता।

पॉलिग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) एवं नार्को टेस्ट (Narco Test) में अंतर

पॉलीग्राफ टेस्ट मशीन के आधार पर अपराधियों द्वारा झूठ बोलने की गतिविधि को पकड़ने का एक टेस्ट है, जिसमें एक उपकरण के माध्यम से अपराधी की गतिविधियों को रिकॉर्ड करके उनके आधार पर निष्कर्ष निकाला जाता है, जबकि नार्को टेस्ट दवाओं के माध्यम से अपराधी को आधी बेहोशी की स्थिति में लाकर उससे सच उगलवाने की एक टेक्निक है, जिसमें अपराधी अधिकतर मामलों में सच बोल ही देता है।

दोनों टेस्ट में नार्को टेस्ट अधिक सटीक रिजल्ट देता है। तो हमने जाना कि पॉलीग्राफ टेस्ट एवं नार्को टेस्ट क्या होते हैं। आशा है आपको इसके बारे में बहुत कुछ जानने को मिला होगा। आपको यह पोस्ट कैसी लगी इसके बारे में अपनी राय नीचे कमेंट दें।

Polygraph Test Narco Test 


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