दिल का दर्द छुपाकर मुसकुराते हैं पापा,
कंधे पर उठाकर दुनिया दिखते हैं पापा,
ना जाने कैसे मेरे कुछ कहे बिना,
मेरे दिल की बात समझ जाते हैं पापा ।
फादर्स डे: पिताओं के सम्मान में मनाया जाने वाला उत्सव (Fathers Day History History)
पिता का महत्व किसके जीवन में नहीं होता। माता-पिता दोनों का महत्व एक व्यक्ति के जीवन में सर्वोपरि होता है क्योंकि यहीं दो किसी व्यक्ति के जीवन की आधारशिला होते है। माता-पिता ही अपने बच्चे के जीवन की नींव को रखते हैं। जिस पर बच्चे के भविष्य की सुनहरी इमारत खड़ी होती है। माता-पिता की भूमिका किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है। दोनों की भूमिकाए अलग-अलग होती हैं और माता-पिता दोनों अपनी संतान के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह पूरी तरह करते हैं। आज किसी व्यक्ति के जीवन में पिता के महत्व को जानेंगे।
फादर्स डे पिता के सम्मान में मनाया जाना वाले वो विशेष दिन है, जिस दिन दुनिया भर की संताने अपने-अपने पिता के प्रति प्रेम और श्रद्धांजलि प्रकट करते हैं।
फादर्स डे कब से मनाया जाता है। इसको मनाने के पीछे क्या कारण हैं? सब कुछ जानते हैं…
फादर्स डे दुनिया भर के कई देशों में पिताओं और पितातुल्य व्यक्तियों के सम्मान में मनाया जाने वाला एक विशेष अवसर है। यह दिन परिवार और समाज में पिताओं की भूमिका के लिए उनके प्रति प्रशंसा, प्रेम और कृतज्ञता दिखाने के लिए समर्पित है। आइए फादर्स डे कब और क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे क्या कारण हैं और इस महत्वपूर्ण पालन का इतिहास क्या है, इस बारे में विस्तार से जानें।
फादर्स डे कब मनाया जाता है?
फादर्स डे आमतौर पर किसी भी वर्ष जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने का प्रचलन कई देशों में है, जिनमें यूनाइटेड स्टेट्स, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और अन्य कई यूरोपीय देश शामिल हैं। हालाँकि, अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी तिथि अलग-अलग हो सकती है, कुछ देश इसे अन्य तिथियों पर मनाना पसंद करते हैं।
हम फादर्स डे क्यों मनाते हैं?
फादर्स डे अपने बच्चों और परिवारों के जीवन में पिताओं और पितातुल्य व्यक्तियों द्वारा किए गए योगदान और बलिदान को पहचानने और सम्मान देने का समय है। यह पिता द्वारा दिए जाने वाले मार्गदर्शन, सहायता और प्यार के लिए आभार, प्रेम और सम्मान व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
फादर्स डे का इतिहास
फादर्स डे का इतिहास संयुक्त राज्य अमेरिका में 20वीं सदी की शुरुआत में देखा जा सकता है। पिताओं को एक विशेष दिन के साथ सम्मानित करने का विचार मदर्स डे के पहले से ही स्थापित उत्सव से प्रेरित था। स्पोकेन, वाशिंगटन की सोनोरा स्मार्ट डोड को अक्सर फादर्स डे की मनाने की शुरुआत करने श्रेय दिया जाता है। वह अपने पिता विलियम जैक्सन स्मार्ट के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए एक विशेष दिन को समर्पित करना चाहती थीं। सोनोरा की माँ का देहांत बचपन में ही हो गया था। सोनोरा व उसके भाई बहनों को उसके पिता ने ही पालपोस कर बड़ा किया था।
सोनोरा अपने पिता का अपनी संतान के प्रति इस समर्पण से कृतज्ञ थीं और अपने पिता को सम्मान में किसी विशेष दिन को समर्पित करना चाहती थीं। उस समय मदर्स डे मनाने की परंपरा शुरु हो चुकी थी और सोनोरा ने लोगों को मदर्स डे मनाते हुए देखे था। अपने पिता के सम्मान में कोई दिन मनाना चाहती थीं।
1909 में, सोनोरा स्मार्ट डोड ने अपने स्थानीय चर्च और समुदाय को अपने पिताओं की तरह पिताओं का सम्मान करने के लिए फादर्स डे का विचार प्रस्तावित किया। पहला फादर्स डे 19 जून, 1910 को स्पोकेन में मनाया गया था, जिसमें पिताओं के सम्मान में विशेष सेवाएँ और गतिविधियाँ आयोजित की गई थीं। समय के साथ, इस उत्सव ने लोकप्रियता हासिल की और अन्य राज्यों और देशों में फैल गया।
फादर्स डे का विकास
शुरू में, फादर्स डे को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली और इसे व्यापक मान्यता नहीं मिली। 1920 और 1930 के दशक तक फादर्स डे को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में स्थापित करने के प्रयासों ने गति नहीं पकड़ी। 1972 में, राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने फादर्स डे को संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय अवकाश बनाने की घोषणा पर हस्ताक्षर किए।
आज, फादर्स डे दुनिया भर में विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है, जैसे बच्चे अपने पिता को उपहार देते हैं, कार्ड देते है, अपने पिता के साथ समय बिताते हैं, उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। ये दिन पूरी तरह पिता के लिए समर्पित रहता है।
फादर्स डे का महत्व
फादर्स डे का बहुत महत्व है क्योंकि यह बच्चों के पालन-पोषण में पिता की भूमिका के प्रति सम्मान प्रकट करता है। यह दिन बेटा-बेटी का अपने पिता के साथ संबंधों को और अधिक मजबूत करने का पर्व है।
अंत में,
फादर्स डे एक विशेष अवसर है जो पिता, पितृत्व का बंधन और पिता के योगदान को प्रकट करने उनके लिए समर्पित है। यह पिता द्वारा अपने परिवारों को दिए जाने वाले निस्वार्थ समर्पण और देखभाल के लिए आभार, प्रेम और सम्मान व्यक्त करने का दिन है। फादर्स डे का इतिहास और विकास हमारे जीवन में पैतृक प्रभाव का सम्मान करने और उसे संजोने के महत्व को उजागर करता है।
फादर्स के डे अवसर पर अपने पिता के लिए समर्पित एक कहानी।
आइए दोस्तों आज मैं आपको एक कहानी सुनाती हूँ। ध्यान से सुनना, क्योंकि यह कोई कहानी नहीं है, सच है मेरा सच ।
मेरा नाम रिंकू है, अरे ! मैं जानती हूँ कि आप सोच रहे होंगे कि ये कैसा लड़कों जैसा नाम है? दरअसल मैं जब बहुत छोटी थी तो मैं काफी गोलू-मोलू सी थी, बिल्कुल अपने पापा जैसी इसलिए मेरा नाम रिंकू रख दिया । मैं अपने पापा से बहुत प्यार करती हूँ। उन्होंने हमेशा मेरी हर ख्वाहिश को पूरा किया है ।
यह बात उस समय की है जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ती थी । एक शाम जब मेरे पिता जी दफ्तर से घर आए तो मैंने उनके पास एक पैकेट देखा तो उसमें एक उपहार था। अगले दिन मेरा वार्षिक परिणाम घोषित होने वाला था तो उस समय मेरा वार्षिक परीक्षा का परिणाम आने वाला था। मेरे पिता जी शाम को घर आए थे तो उनके पास एक बड़ा सा थैला था। मैंने सोचा कि पापा रोज़ की तरह कुछ खाने को लाए होंगे मैंने जल्दी–जल्दी थैला खोला तो उसमें खाने की चीजों के साथ एक छोटा सा लिफाफा था ।
मैंने जल्दी–जल्दी से उसे खोलकर देखा तो उसमें एक बहुत ही सुन्दर घड़ी थी । मैं बहुत खुश हुई क्योंकि पिता जी ने कहा था कि अगर तुम्हारे 80% अंक आएंगे तो मैं तुम्हें तोहफे मैं घड़ी दूंगा ।
अगले दिन मेरा वार्षिक परिणाम आने वाला था और में ढंग से सो नहीं पाई थी। ठीक से खाना भी नहीं खाया पाई थी और मेरे पिता जी मुझसे भी ज्यादा परेशान थे। मेरे वार्षिक परिणाम को लेकर नहीं बल्कि इस बात से कि मैंने अच्छे से खाना नहीं खाया था ।
मेरा परिणाम आया मैं पास हो गई थी लेकिन मैं बहुत दुखी थी। इसलिए नहीं कि मेरे अंक कम आए थे बल्कि इसलिए क्योंकि अब मुझे घड़ी नहीं मिलेगी । मैं घर आकर बहुत रोई। पर पापा तो पापा होते है। वह शाम को घर आए। हाथ में मिठाई का डिब्बा लेकर और दूसरे हाथ में वही घड़ी का लिफाफा जो मैंने पिछले दिन उनके थैले में देखा था।
मैंने जल्दी से बोल दिया कि मेरे अंक 80% से कम है, पिता जी। पिता जी ने मुझे बड़े प्यार से गले लगाया और मेरे माथे को चूम और मुसकुराते हुए बोले, कोई बात नहीं अगली साल ले आना 80% पर बस रोना नहीं, चलो अब सब को मिठाई खिलाओ सब को पर पहले भगवान जी को भोग लगाओ ।
उनकी जेब खाली होती थी, फिर भी मना करते नहीं देखा, मैंने पापा से अमीर इंसान कभी भी नहीं देखा ।
चलिए अब एक ओर किस्सा सुनाती हूँ। मेरी एक सहेली थी उसके पिता जी उसके लिए कंप्यूटर ले आए बस फिर क्या था फिर तो शाम का इंतजार का इंतजार होने लगा कि कब पिता जी आएं। ठीक उसे समय दरवाज़े की घंटी की आवाज़ आई और मैं भाग कर दरवाज़े पर गई तो सामने पापा खड़े थे ।
मैंने उन्हें फटाफट फ्रिज से ठंडा पानी निकाल कर पिलाया और उनके पास बैठ गई तो उनका पहला सवाल था , क्या चाहिए बेटा । मैं मुसकुराई और मैंने पापा को बताया कि आज मेरी एक सहेली के पापा उसके लिए कंप्यूटर लेकर आए हैं।
रसोई से माँ की आवाज आई कोई जरूरत नहीं है, इन फालतू चीजों की। ये तुम्हारे किसी काम की नहीं है और वैसे भी अभी मार्च का महीना है। तनख्वाह भी थोड़ी देर से मिलेगी। और तो और टैक्स भी इसी महीने जमा करवाना है और फिर तुम्हारी फ़ीस की भी आखिरी तारीख इसी महीने है। पर पापा ने एक शब्द भी नहीं कहा और न ही मैंने कुछ कहा, बस चुप–चाप बैठ गई ।
कुछ दिनों तक ना तो मैं घर से बाहर खेलने गई और ना किसी से ज्यादा कुछ बात करती थी। तीन–चार दिन बीत जाने के बाद एक दिन मैं अपने कमरे में बैठ कर पढ़ाई कर रही थी। उसी समय पापा की आवाज सुनाई दी और उनके साथ कोई और भी था। वह घर के अंदर आए पर मैं कमरे से बाहर नहीं आई।
पापा ने आवाज़ लगाई रिंकू बेटा बाहर आना ज़रा। मैं उठ कर बाहर कमरे गई तो पापा बोले बेटा बताओ इसे कहाँ लगाना है, यह कंप्यूटर, तुम्हारे कमरे में ? मेरी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा, वह मेरे लिए कंप्यूटर लेकर आए थे।
मैंने जल्दी–जल्दी कंप्यूटर अपने कमरे में लगवाया और उस रात तो मैंने खाना भी अपने कमरे में ही खाया था और मैंने ये जानने तक की भी कोशिश तक नहीं कि वह कितने का है, उसके लिए उनके पास पैसे कहाँ से आए। कुछ दिनों तक तो मैं सुबह उठते ही कंप्यूटर के आगे बैठ जाती थी और रात को देर तक कंप्यूटर पर बैठी रहती थी।
आप सोच रहे होंगे कि मैं कुछ काम तो जरूर करती होंगी तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं था मैं तो कंप्यूटर पर गेम खेलती रहती थी। आज कम से कम दो महीने होंगे, मैंने कंप्यूटर की तरफ देखा भी नहीं है। आज मैं और मेरी माँ बहुत दिनों बाद एक साथ बैठे थे।
माँ बोली, क्या बात है, आजकल कंप्यूटर की तरफ कोई ध्यान ही नहीं, उस पर कितनी धूल जम गई थी। बस हो गया, शौक पूरा पैसे ही खर्च करने थे। क्या तुम्हें मालूम भी है कि तुम्हारे पापा ने इस कंप्यूटर को कैसे खरीदा था? जानती भी हो उनकी पचास हजार की एक सावधि (Fix deposit) जमा थी। वह उन्होंने तुम्हारे इस कंप्यूटर पर खर्च कर दी और जानती हो कि वह तुम्हारे लिए इतनी कीमती घड़ी लेकर आए जबकि उनकी खुद की घड़ी तुम्हारी इस घड़ी से भी आधी कीमत की ही थी।
ऐसे होते है, पिता अपनी इच्छाओं को मार कर अपने बच्चों की खुशियों में खुश होते हैं। मैं जानती हूँ कि मेरे पापा मुझसे बहुत प्यार करते थे और मैं भी अपने पापा से बहुत प्यार करती थी, हूँ और करती रहूँगी।
(I love you and miss you papa)
पापा भले ही आज आप हमसे दूर चले गए हों ,
लेकिन आपका प्यार और दुआ हमेशा मेरे साथ ही चलती है ।
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