रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी साहित्य के एक महान साहित्यकार रहे थे, जिन्होंने ना केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया बल्कि भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी अपना योगदान दिया। वह एक महान साहित्यकार होने के साथ-साथ महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे। आइये उनके जीवन (Ramvriksha Benipuri Biography) को समझते हैं…
रामवृक्ष बेनीपुरी (Ramvriksha Benipuri Biography)
रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी साहित्य के एक महान साहित्यकार थे। वह साहित्यकार होने के साथ-साथ एक क्रांतिकारी भी थे। इसके अलावा उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में पत्रकार, संपादक, गद्य लेखक, शैलीकार आदि भूमिका निभाई। उन्होंने अनेक ललित निबंध, संस्मरण, रिपोर्ताज, ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक, उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य आदि की रचना की। उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने अपनी अनोखी गद्य रचनाओं से हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध किया।
जन्म
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक गाँव में हुआ था।
जीवन परिचय
उनके पिता का नाम फूलवंत सिंह था, जो कि एक भूमिहार ब्राह्मण किसान थे। उनके माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। इस कारण रामवृक्ष बचपन में ही अनाथ हो गए और उनका पालन पोषण उनकी मौसी ने किया था।
चूँकि रामवृक्ष का नाम तो रामवृक्ष सिंह था, लेकिन उन्होंने ‘बेनीपुर’ नामक गाँव में जन्म लिया था, इसी कारण उन्होंने ‘बेनीपुरी’ को अपना साहित्यिक उपनाम बनाया।
रामवृक्ष बेनीपुरी की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके गाँव बेनीपुर में ही हुई। बाद में इनकी मौसी के साथ वह ननिहाल चले गए और वहाँ इन की शिक्षा दीक्षा हुई। मैट्रिक परीक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। वह 1920 का वर्ष था। तब वे महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर उस आंदोलन में शामिल हो गए। बाद में उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा और ‘ हिंदी विशारद’ की उपाधि प्राप्त की। इसी बीच में भारत के स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़े रहें और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कई बार जेल भी गए।
जीवन यात्रा
1930 से 1942 ईस्वी के बीच उन्होंने अपना अधिकांश समय जेल में ही बिताया था। इसी अवधि में वह साहित्य सृजन करते रहे और पत्रकारिता से भी जुड़े। उन्होंने हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दियाय़ हिंदी साहित्य सृजन करने के साथ-साथ भारत के स्वाधीनता संग्राम में भाग लेते रहे और दोनों क्षेत्रों में समान रूप से सेवा करते रहे।
भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा था। उन्होंने राष्ट्रवाद की भावना को लोगों में खूब प्रचारित किया और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अपनी संघर्ष को निरंतर जारी रखा। 1931 में उन्होंने समाजवादी दल की भी स्थापना की थी।
1942 में अगस्त क्रांति आंदोलन में भी सक्रिय रूप से शामिल होकर हजारीबाग जेल में भी रहे।
अपनी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से देशभक्ति की भावना प्रचार करने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ता था।
वह सामाजिक कुरीतियों के भी विरुद्ध रहे थे और उन्होंने हजारीबाग जेल में जनेऊ तोड़ो अभियान भी चलाया जो कि जातिवाद व्यवस्था के विरुद्ध अभियान था।
वह भारत की स्वतंत्रता के बाद 1957 राजनीति में भी शामिल हुए। वह ‘समाजवादी दल’ नामक राजनीतिक दल में बिहार विधानसभा के सदस्य भी बने।
साहित्य यात्रा
रामवृक्ष बेनीपुरी स्वाधीनता संग्रामी, पत्रकार और साहित्यकार सभी कुछ थे।
साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान की बात करें तो उन्होंने अनेक उपन्यास, नाटक, संस्मरण, रेखाचित्र, कहानी जैसी गद्य विधाओं की रचना की।
वे साहित्य की हर गद्य विधा में पूरी तरह पारंगत थे। उनकी समस्त गद्य रचनाएं एक से बढ़कर एक रही हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया जिनमें तरुण भारती, बालक, युवक, किसान, मित्र, जनता, योगी, कैदी, हिमालय, नई धारा, चुन्नू-मुन्नू जैसी पत्रिकाओं के नाम प्रमुख थीं।
बाल साहित्य में भी उनको समान महारत हासिल थी।
साहित्यिक कृतियां
रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित कृपया इस प्रकार हैं
नाटक
- अमर ज्योति
- तथागत
- सिंहल विजय
- शकुन्तला
- नया समाज
- विजेता
- बैजू मामा
- रामराज्य
- नेत्रदान
- गाँव के देवता
- अम्बपाली
- सीता की माँ
- संघमित्रा
यात्रा वर्णन
- पैरों में पंख बांधकर.
सम्पादन एवं आलोचन
- विद्यापति की पदावली
- बिहारी सतसई की सुबोध टीका
जीवनी
जयप्रकाश नारायण
रेखा चित्र
- माटी की मूरत
संस्मरण तथा निबन्ध
- पतितों के देश में
- चिता के फूल
- लाल तारा
- कैदी की पत्नी
- माटी
- गेहूँ और गुलाब
- जंजीरें और दीवारें
- उड़ते चलो, उड़ते चलो
- मील के पत्थर
- ललित गद्य
- वन्दे वाणी विनायक
पुरुस्कार एवं सम्मान
पुरस्कार एवं सम्मान की बात की जाए तो ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ के सम्मान में 1999 में भारतीय डाक सेवा द्वारा राष्ट्रीय डाक टिकट जारी किया गया, जो उनकी जन्मशती के उपलक्ष में जारी किया गया था। बिहार सरकार द्वारा उनके नाम पर ‘अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार’ भी दिया जाता है।
देहावसान
हिंदी साहित्य के अनोखे साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी का निधन 9 सितंबर 1968 को मुजफ्फरपुर में हुआ था।
इस तरह रामवृक्ष बेनीपुरी में अपनी अनमोल रचनाओं द्वारा ना केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने में भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया। वह केवल साहित्यकार ही नहीं कलम के सच्चे सिपाही थे। उनकी रचनाओं ने सामाजिक आंदोलन खड़े किए हैं और अनेक तरह की परंपराओं और मूल्यों पर प्रहार किया है।