परट्टू रवींद्रन श्रीजेश (Parattu Ravindran Sreejesh) जिन्हें आमतौर पर पीआर श्रीजेश (P. R. Sreejesh) के नाम से जाना जाता है, भारतीय हॉकी के एक महान खिलाड़ी हैं। उन्होंने भारतीय हॉकी टीम के साथ गोलकीपर के रूप में काफी लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी हैं। पी. आर. श्रीजेश भारतीय हॉकी के एक ऐसे महानायक हैं जिन्होंने अपने दम पर कई मैचों का रुख बदल दिया और भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। आइए उनके विषय में जानते हैं…
पी. आर. श्रीजेश का जीवननामा (P. R. Sreejesh Biography)
36 वर्षीय श्रीजेश का जन्म केरल के एर्नाकुलम जिले के किझक्कम्बलम गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। केरल के एर्नाकुलम जिले के किझक्कम्बलम गांव में किसान परिवार में जन्मे श्रीजेश शुरुआत में एथलेटिक्स की ओर आकर्षित थे, और स्प्रिंट, लंबी कूद तथा वॉलीबॉल जैसों खेलों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
श्रीजेश के शुरुआती कोच जयकुमार और रमेश कोलप्पा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें निखारने का काम किया। इन कोचों से श्रीजेश ने न केवल हॉकी की बारीकियां सीखीं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी ग्रहण किए। उन्होंने श्रीजेश को सिखाया कि कैसे ध्यान केंद्रित करना है और अपने खेल को गंभीरता से लेना है। कोचों ने उन्हें यह भी समझाया कि एक गोलकीपर टीम के जीतने और हारने के बीच का अंतर हो सकता है, भले ही उसे इसका पूरा श्रेय न मिले।
श्रीजेश ने अपना अंतरराष्ट्रीय करियर 2006 में श्रीलंका में आयोजित दक्षिण एशियाई खेलों से शुरू किया। श्रीजेश ने 2006 में श्रीलंका में हुए दक्षिण एशियन गेम्स में अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की। इसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारतीय हॉकी टीम में उन्होंने अपनी जगह पक्की कर ली और अपने शानदार प्रदर्शन से टीम को कई महत्वपूर्ण जीत दिलाई।
तब से वे भारतीय हॉकी टीम के एक अभिन्न अंग रहे हैं। उन्होंने भारत के लिए 328 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं, जो उनकी निरंतरता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। श्रीजेश की विशेषता उनकी सहज प्रवृत्ति है, जो उन्हें पेनल्टी शूट-आउट जैसी तनावपूर्ण परिस्थितियों में विशेष रूप से प्रभावी बनाती है।
श्रीजेश के करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ 2012 के लंदन ओलंपिक के बाद आया, जहां भारतीय टीम का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसके बाद, भारतीय हॉकी प्रबंधन ने युवा खिलाड़ियों पर भरोसा जताया, जिनमें श्रीजेश भी शामिल थे। इस नई टीम ने आने वाले वर्षों में कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कीं। 2014 में, भारत ने एशियाई खेलों में 16 साल बाद स्वर्ण पदक जीता। 2015 में, टीम ने FIH हॉकी विश्व लीग फाइनल में कांस्य पदक जीता, जो 33 वर्षों में भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय पदक था।
टोक्यो ओलंपिक
श्रीजेश की सबसे बड़ी उपलब्धि 2021 के टोक्यो ओलंपिक में आई, जहां उनकी शानदार गोलकीपिंग ने भारत को 41 साल बाद कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उपलब्धि भारतीय हॉकी के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई।
श्रीजेश की प्रतिभा और योगदान को कई सम्मानों से नवाजा गया है। उन्हें 2015 में अर्जुन पुरस्कार और 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वे कुछ समय के लिए भारतीय टीम के कप्तान भी रहे, जिसमें 2016 के रियो ओलंपिक भी शामिल है।
करियर की उपलब्धियाँ
श्रीजेश ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। 2014 के एशियन गेम्स में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ पेनल्टी शूट-आउट में शानदार प्रदर्शन किया और भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। 2015 एफआईएच हॉकी विश्व लीग फाइनल में भी उन्होंने भारतीय टीम को कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय टीम ने उनकी कप्तानी में रजत पदक जीता।
संघर्ष और प्रेरणा
श्रीजेश का करियर कई उतार-चढ़ाव से भरा रहा। 2012 के लंदन ओलंपिक में भारतीय टीम का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक था, लेकिन इसके बाद श्रीजेश ने अपनी मेहनत और संघर्ष से टीम को नई दिशा दी। उन्होंने अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए और अपनी सहज प्रवृत्ति का उपयोग कर कई बार टीम को मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकाला।
योगदान और सम्मान
श्रीजेश ने न केवल अपने खेल से बल्कि अपने नेतृत्व और मार्गदर्शन से भी टीम को मजबूत किया। उन्होंने कृष्ण पाठक और सूरज करकेरा जैसे युवा गोलकीपरों को प्रशिक्षित कर भारतीय हॉकी का भविष्य सुरक्षित किया। उनके योगदान के लिए उन्हें 2015 में अर्जुन पुरस्कार और 2017 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
पेरिस ओलंपिक की तैयारी
हाल ही में, श्रीजेश ने घोषणा की है कि 2024 के पेरिस ओलंपिक उनका आखिरी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट होगा। उन्होंने कहा कि वे अपने करियर पर गर्व महसूस करते हैं और आशा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। श्रीजेश ने अपने परिवार, टीम के साथियों, कोचों, प्रशंसकों और हॉकी इंडिया के समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया है।
श्रीजेश की विरासत
वर्तमान में, श्रीजेश एक मेंटर की भूमिका भी निभा रहे हैं, जहां वे कृष्ण पाठक और सूरज करकेरा जैसे युवा गोलकीपरों को अपने अनुभव से सिखा रहे हैं और भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं। यह उनके खेल के प्रति समर्पण और आने वाली पीढ़ी के प्रति जिम्मेदारी का प्रमाण है।
हॉकी इंडिया के अध्यक्ष और पूर्व भारतीय कप्तान डॉ. दिलीप तिर्की ने श्रीजेश को एक विशेष खिलाड़ी बताया है और उनके भारतीय हॉकी में अनुकरणीय योगदान की सराहना की है। तिर्की को उम्मीद है कि श्रीजेश के संन्यास के फैसले से टीम पेरिस ओलंपिक में और भी प्रेरित होकर खेलेगी।
पीआर श्रीजेश भारतीय हॉकी के एक महान खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा, समर्पण और नेतृत्व क्षमता से न केवल अपना नाम रोशन किया, बल्कि पूरे देश का मान बढ़ाया। उनका करियर युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है और उनका योगदान भारतीय हॉकी के इतिहास में सदैव याद किया जाएगा। उनकी विरासत आने वाले खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी और भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी।
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