Sunday, September 8, 2024

जयशंकर प्रसाद – छायावाद के पुरोधा कवि (जीवनी)

जयशंकर प्रसाद (Jaishankar Prasad) छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। वे हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार थे। उन्होंने अपनी अप्रतिम साहित्य रचनाओं से हिंदी जगत में एक अलग ही मुकाम स्थापित किया। आइये जयशंकर प्रसादके बारे में जानते हैं…

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad Biography)

जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य जगत के एक महान साहित्यकार थे। वे अद्भुत कवि और लेखक थे। हिंदी साहित्य के छायावाद युग की स्थापना का श्रेय भी उनको ही जाता है। छायावाद के वे सबसे प्रथम स्तंभ माने जाते हैं। उनके अतिरिक्त सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा इन तीन साहित्यकारों को छायावाद के अन्य तीन स्तंभ माना जाता है।

जयशंकर प्रसाद ने अपने काव्य में खड़ी बोली का प्रयोग करके अपने काव्य को अद्भुत और मधुरता से भरपूर बनाया। उनकी प्रसिद्ध रचना कामायनी  हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर बन गई।

जन्म

जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल पक्ष दशमी संवत 1946 अर्थात 28 जनवरी 1890 को ब्रिटिश कालीन संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के काशी (वाराणसी) नगर में हुआ था।

परिवार

जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद था। उनकी माता का नाम मुन्नी देवी था। उनके दादा का नाम बाबू सिमरन साहू था। उनका परिवार काशी में एक प्रतिष्ठित परिवार था, जो काफी में साहू सुंघनी परिवार के नाम से जाना जाता था।

जब वे मात्र 11 वर्ष के थे तो उनके पिता का देहांत हो गया और 15 वर्ष की अवस्था में उनकी माता का भी देहांत हो गया। उसके बाद भी उन पर दुखों का सिलसिला थमा नहीं और 1907 में जब वे केवल 17 वर्ष के थे, तो उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। उनके बड़े भाई ही थे जो इनकी माता-पिता की मृत्यु के बाद उनकी देखभाल करके थे और उनके लिये सर्वस्व थे। अब उन पर उनके भाई के परिवार का दायित्व भी आ पड़ा था। इस तरह उन पर बेहद कम अवस्था में ही दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। उन्होंने बचपन में अनेक कष्टों का सामना किया क्योंकि उनके सभी निकटतम परिवार जन मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। उनके अन्य संबंधी उनकी संपत्ति पर को हड़पने का षड्यंत्र रचते रहते थे। इसका उन्होंने ने डटकर सामना किया।

उनकी शिक्षा दीक्षा काशी के क्वींस कॉलेज में हुई जहाँ पर उन्होंने आठवीं तक पढ़ाई की। उन्होंने हिंदी और संस्कृत भाषा की शिक्षा घर पही प्राप्त की थी। उनका आरंभिक जीवन समय काशी में ही व्यतीत हुआ।

साहित्य यात्रा

साहित्य में उनको शुरू से ही रुचि थी, इसलिए और उनके परिवार का वातावरण भी साहित्य एवं कला से परिपूर्ण था। इसी कारण मात्र 9 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से ब्रज भाषा में एक सवैये की रचना कर डाली।

प्रसादजी का ‘कामायनी’ नाटक बेहद प्रसिद्ध हुआ था। यह हिंदी साहित्य की कालजयी रचना साबित हुआ। उनका नाटक राजश्री था। कामायनी उनका अंतिम नाटक था। प्रसादजी को प्रेम और सौंदर्य का कवि कहा जाता था। उनकी रचनाओं में गहन और गंभीर भाव दिखाई पड़ता है। उन्होंने जीवन के अत्यंत सूक्ष्म और व्यापक आयामों का चित्रण किया है।

उनकी भाषा शुद्ध खड़ी बोली थी, जो संस्कृतनिष्ठ हिंदी थी। हालांकि उन्होंने अपने साहित्यिक यात्रा की शुरुआत ब्रजभाषा से की थी, लेकिन वह धीरे-धीरे खड़ी बोली में लिखने लगे और उन्होंने खड़ी बोली में स्थायी रूप से लिखना आरंभ कर दिया।

साहित्यिक रचनायें

काव्य कृतियां

प्रसाद जी की ‘कामायनी’ नामक काव्य कृति बेहद प्रसिद्ध हुई। ये हिंदी साहित्य की कालजयी कृतियों में एक मानी जाती है।

कामायनीप्रेम-पथिककरुणायलयमहाराण का महत्वझरना
लहरआँसू चित्राधारकानन कुसुम

कहानियाँ

प्रसादजी ने अनेक कहानियां लिखीं। उनके नाम इस प्रकार हैं :

आकाशदीपपुरस्कारप्रणयचिह्नशरणागतचंदा
देवदासी स्वर्ग के खंडहरगुंडा पंचायतउवर्शी
इंद्रजालनीराबिसातीअमिट स्मृतिजहाँआरा
चित्र मंदिरमधुआ ग्राम गुलामभीख में
छोटा जादूगररमला बभ्रुवाहनविराम चिन्हसालवती
रसिया बालमसिकंदर की शपथब्रह्मर्षि

 नाटक

प्रसाद जी द्वारा रचे गए नाटक इस प्रकार हैं।

स्कंदगुप्त चंत्रगुप्तध्रुवस्वामिनीजनमेजय का नाग यज्ञ
राज श्रीकामनाएक घूंट

उपन्यास

कंकालतितलीइरावती

 कहानी संग्रह

छायाप्रतिध्वनिआकाशदीपआँधीइंद्रजाल

देहावसान

जयशंकर प्रसाद अपने जीवन के अंतिम समय में बहुत रोगग्रस्त रहने लगे थे। अंततः 15 नवंबर 1937 को मात्र 47 वर्ष की आयु में  उनका निधन क्षय रोग के कारण हो गया।


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