दुष्यंत कुमार हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि, कथाकार और गजलकार थे। गजल मूल रूप से उर्दू भाषा की विधा है, लेकिन दुष्यंत कुमार में हिंदी में ग़ज़ल लिखकर हिंदी ग़ज़ल की नींव डाली। इस प्रकार उन्हें हिंदी का पहला ‘ग़ज़लकार’ कहा जा सकता है। आइए दुष्यंत दुष्यंत कुमार (Hindi Ghazal poet Dushyant Kumar Life Scan) के बारे में कुछ जानते हैं…
दुष्यंत कुमार का जन्म और परिचय
दुष्यंत कुमार जैन का पूरा नाम ‘दुष्यंत कुमार त्यागी’ था। उनका जन्म 1 सितंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद की नजीबाबाद तहसील के गाँव राजपुर नवादा में हुआ था।
दुष्यंत कुमार का पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। वे उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद की नजीबाबाद तहसील के गाँव ‘राजपुर नवादा’ गाँव में जन्मे थे। उनके पिता का नाम भगवत सहाय था और उनकी माता का नाम राम किशोरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा उनके गाँव के विद्यालय में ही हुई थी। उन्होंने निकटतम कस्बा ‘नहटौर’ से दसवीं की शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद चंदौसी से 12वीं की शिक्षा प्राप्त की।
दुष्यंत कुमार बचपन से ही काव्य प्रतिभा के धनी थे, इसलिए उन्होंने तभी से कविता लिखना आरंभ कर दिया था जब वह दसवीं कक्षा में थे। जब वे 12वीं कक्षा में थे तो उनका विवाह भी हो गया। उनकी पत्नी का नाम राजेश्वरी कौशिक था।
बाद में दुष्यंत कुमार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में बी ए और एमपी किया। वहीं पर उन्हें डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा और डॉ रामकुमार वर्मा आदि मिले। इसके अलावा हिंदी साहित्य जगत के अनमोल साहित्यकार कमलेश्वर, धर्मवीर भारती, जय नारायण, देव शाही आदि से भी उनका संपर्क होता गया और वह हिंदी साहित्य जगत में पूरी तरह सक्रिय होते गए।
दुष्यंत कुमार ने बाद में मुरादाबाद से बी.एड. किया और 1958 में दिल्ली के आकाशवाणी में कार्य करने लगे उन्होंने मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग के भाषा विभाग में भी काम किया।
उनके समय में जब आपातकाल की घटना हुई तो उनका कवि मन विद्रोह कर उठा था और अपने विद्रोह और आक्रोश को उन्होंने अपनी कविताओं एवं गजलों के माध्यम से प्रस्तुत किया।
‘साए में धूप‘ उनका सबसे प्रसिद्ध गजल संग्रह है।
क्योंकि वह सरकारी सेवा में कार्यरत थे और सरकार के विरोध में होने के कारण उन्हें सरकारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था।
दुष्यंत कुमार की रचनाएं हमेशा व्यवस्था के विरुद्ध आक्रोश का प्रतीक बनीं। उनकी रचनाओं से व्यवस्था के विरुद्ध नाराजगी झलकती रही है।
दुष्यंत कुमार की रचनायें…
धर्म | इस मोड़ से तुम मुड़ गईं | आज सड़कों पर | बहुत संभाल के रखी हैं तो पाएमाल हुई |
यह क्यों | सूना घर | एक आशीर्वाद | सूर्यास्त – एक इम्प्रेशन |
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है | ये शफक शाम हो रही है अब | एक नई हैं आदतें बातों को सर करनी होंगी | नज़र-नवाज़ नज़ार बदल न जाए कहीं |
किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम | बाएं से उड़के दाईं दिशा को गरुड़ गया | हालाते-जिस्म, सूरते-जी जाँ और भी खराब | तीन दोस्त |
अफवाह है या सच है ये कोई नही बोला | जिंदगानी का कोई मकसद नहीं है | आग जलती रहे | तुमने पाँव के नीचे कोई जमीन नहीं |
ये शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो | मुक्तक | रोज जब रात को बारह का नजर होता है | हो गई है पीर पर्वत |
लफ्ज़ एहसास से छाने लगे ये तो हद है | ये जुबाँ हमसे सी नही जाती | चीटियों की आवाज कानों तक पहुँचती है | मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे |
अब तो पथ यही है | वो निगाहे सलीब हैं | ये धुएं का एक घेरा कि मैं जिसमें रह रहा हूँ | अगर खुदा न करे सच ये ख्वाब हो जाए |
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ | तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया | उसे क्या कहूँ | इनसे मिलिए |
होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिए | होली की ठिठोली | धूप ये अठखेलियाँ हर रोज करती है | अपाहिज व्यथा |
गीत का जन्म | टेपा सम्मेलन के लिए गजल | इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है | तुमने इस तालाब मे रोहू पकड़ने के लिए |
वे धुएँ का एक घेरा कि मैं जिसमें रह रहा हूँ | अब किसी को नजर आती नहीं कोई दरार | लफ्ज़ एहसास-से छाने लगे ये तो हद है | मापदण्ड बदलो |
गाँधीजी के जन्मदिन पर | सूचना | ये आदमी नही हैं मुकम्मल बयान है | कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए |
मत करो आकाश में कोहरा घना है | ये सच है कि पाँवों में बहुत से कष्ट उठाए | बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं | विदा के बाद प्रतीक्षा |
जाने किस-किसका ख्याल आया है | चीथड़े में हिंदुस्तान | कुण्ठा | तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा |
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये | दो पोज | अपनी प्रेमिका से | क्षमा |
सत्य बतलाना | हालाते जिस्म, सूरते जाँ और भी खराब | ईश्वर की सूली | चिंता |
देश | पुनर्स्मरण | प्रेरणा के नाम | एक कबूरत चिट्ठी लेकर पहली पहली बार उड़ा |
एक आशीर्वाद | आज वीरान अपना घर देखा | कौन यहाँ आया था |
दुष्यंत कुमार कुछ ग़ज़लों की प्रसिद्ध पंक्तियां…
“कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो”
“मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए”
“कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए”
“ज़िंदगी जब अज़ाब होती है
आशिक़ी कामयाब होती है”
“सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मे मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए“
देहावसान
दुष्यंत कुमार का निधन बेहद कम आयु में मात्र 44 वर्ष की आयु में 30 दिसंबर 1975 को हृदयाघात से हो गया था।
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