फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी कथा साहित्य के विलक्षण रचनाकार थे। भारत के ग्रामीण जीवन को अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने बेहद जीवंतता से कागज पर उतारा है। उनके जीवन की यात्रा (Phanishwar Nath Renu Biography) को जानते हैं…
फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म और परिचय (Phanishwar Nath Renu Biography)
फणीश्वरनाथ का जन्म 1921 में बिहार के एक पूर्णिया जिले (अररिया जिला) में फारबिसगंज के पास औराही हिंगना नामक गाँव हुआ था।
उनका बचपन ग्रामीण परिवेश में व्यतीत हुआ। उच्च शिक्षा पटना से ग्रहण कर स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े। स्थानीय रंगों, छवियों और आकांक्षाओं के साथ-साथ फणीश्वर नाथ रेणु जी की कहानियों में व्यापक मानवीय घात प्रतिघात मिलते हैं।
फनीश्वरनाथ रेणु जमींदार प्रथा, साहूकारों का शोषण, अंग्रेजों के जुल्म व अत्याचारों को देखा ही नहीं, सहा भी था। किसानों व मजदूरों की दयनीय दशा देखकर उन का हृदय बहुत दुखी होता था । उन्होंने सहानुभूति रखते हुए फणीश्वर नाथ रेणु जी ने न केवल उनके अधिकारों की रक्षा हेतु अपने रचना संसार में आवाज उठाई, और अन्याय के खिलाफ संघर्ष भी किया।
रेणु मिलनसार, मृदुभाषी और स्पष्ट वक्ता थे। स्वतंत्रता के बाद भारत में नेताओं की स्वार्थपरता व सत्ता लोलुपता देखकर वे कोसा और जनहितों की रक्षा के लिए सड़क पर उतरे थे। 1977 की इमरजेंसी में जेपी के आंदोलन से जुड़े।
फणीश्वर नाथ रेणु की शिक्षा-दीक्षा
उनकी आरंभिक शिक्षा फारबिसंगज और अररिया मे हुई। उसके बाद वह कुछ समय के लिए नेपाल चले गए क्योंकि नेपाल के कोइराला परिवार के उनके परिवार से पारिवारिक संबंध थे। वहाँ के विराटनगर आदर्श विद्यालय से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास। बाद में भारत आकर उन्होंने वाराणसी के बनारस विश्वविद्यालय से आईए की परीक्षा पास की।
फणीश्वर नाथ रेणु की शिक्षा फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी कुछ शिक्षा भारत से ग्रहण की थी और कुछ शिक्षा नेपाल में स्थित शिक्षण संस्थान से ग्रहण की थी। जब यह थोड़े समझदार हुए तब इनके माता-पिता के द्वारा इनका एडमिशन प्रारंभिक एजुकेशन दिलाने के उद्देश्य से फारबिसगंज में करवाया गया। यहां पर थोड़ी पढ़ाई करने के पश्चात इनका एडमिशन अररिया में करवाया गया। वहां से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा को ग्रहण की।
इसके पश्चात फणीश्वर नाथ रेणु ने अपनी दसवीं क्लास की पढ़ाई नेपाल देश के विराट नगर में मौजूद विराट नगर आदर्श विश्वविद्यालय से पूरी की | इसके पश्चात बारहवीं की पढ़ाई करने के लिए यह बनारस चले आएं और इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया और साल 1942 में बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
फणीश्वर नाथ रेणु का लेखन कार्य
फणीश्वर नाथ रेणु जी ने लिखने का काम साल 1936 शुरू कर दिया था और इनके द्वारा लिखी गई कुछ कहानियां प्रकाशित भी हुई थी परंतु वह सभी अपरिपक्व कहानियां थी । साल 1942 में आंदोलन के दरमियान इन्हें अंग्रेजी सेना के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था और इन्हें तकरीबन 2 सालों के लिए जेल में रखा गया।
साल 1944 में इन्हें जेल से छोड़ा गया। इसके पश्चात यह घर लौट आए और फिर इन्होंने “बट बाबा” नाम की पहली परिपक्व कहानी लिखकर के तैयार की। यह कहानी साप्ताहिक विश्वामित्र के 27 अगस्त 1944 के अंक में छपी थी।
इसके पश्चात फणीश्वर नाथ रेणु जी की कि दूसरी कहानी “पहलवान की ढोलक” साल 1944 के 11 दिसंबर को साप्ताहिक विश्वमित्र में छपी हुई थी | इसके बाद आगे बढ़ते हुए फणीश्वर नाथ ने साल 1972 में अपनी आखिरी कहानी “भित्ति चित्र की मयूरी” लिखा था और इस प्रकार से उनके द्वारा लिखी गई कहानियों की संख्या 63 हो चुकी थी।
फणीश्वर नाथ रेणु जी जितने भी उपन्यास लिखे थे उनके द्वारा इन्हें प्रसिद्धि तो हासिल हुई ही साथ ही इनके द्वारा लिखी गई कहानियों को भी लोगों ने खूब पसंद किया और इनकी कहानियों ने भी इन्हें काफी अधिक प्रसिद्ध बनाया। फणीश्वर नाथ रेणु के आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी की धूप, अच्छे आदमी, संपूर्ण कहानियां, अग्नि खोर, ठुमरी बहुत ही प्रसिद्ध कहानी के संग्रह है ।
फणीश्वर नाथ द्वारा रचित कहानी पर बनी फिल्म
फणीश्वर नाथ के द्वारा “मारे गए गुलफाम” नाम की एक कहानी लिखी गई थी और इसी कहानी से प्रेरित होकर के एक हिंदी फिल्म बनी थी जिसका नाम “तीसरी कसम” रखा गया था । इस फिल्म के अंदर राजकुमार के साथ वहीदा रहमान जी ने मुख्य भूमिका निभाई थी और इस फिल्म को डायरेक्ट करने का काम निर्देशक बासु भट्टाचार्य के द्वारा किया गया था।
वही फिल्म को प्रोड्यूस करने का काम प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र के द्वारा किया गया था। जब यह फिल्म सिनेमा हॉल में रिलीज हुई तो इस फिल्म को लोगों ने काफी अधिक पसंद किया और यह फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर साबित हुई।
फणीश्वर नाथ रेणु का विवाह
फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने जीवनकाल में कुल तीन शादियां की। फणीश्वर नाथ रेणु की पहली शादी रेखा नाम की महिला से हुई थी। इस प्रकार इनसे शादी हो जाने के बाद रेखा ने रेनू सरनेम लगाना चालू कर दिया। इनकी पहली पत्नी बिहार राज्य के कटिहार जिले के बलूवा गांव की रहने वाली थी और फणीश्वर नाथ को रेखा के द्वारा एक बेटी पैदा हुई थी जिसका नाम कविता राय रखा गया था।
पहली पत्नी की मौत होने के बाद फणीश्वरनाथ ने दूसरी शादी पद्मा रेणु नाम की महिला से की जो बिहार के कटिहार जिले के ही महमदिया गांव की रहने वाली थी। पद्मा रेणु ने टोटल तीन बेटे और तीन बेटी को जन्म दिया । इसके पश्चात फणीश्वर का तीसरा विवाह लतिका के साथ हुआ था।
फणीश्वर नाथ की भाषा शैली
फणीश्वर नाथ की भाषा शैली ग्रामीण इलाके की खड़ी बोली थी और यह इनके द्वारा रचित कहानियां और काव्यों में साफ तौर पर दिखाई देता है।
यह अपने द्वारा रचना की जाने वाली कहानियां और काव्य में उसी भाषा का इस्तेमाल करते थे, जो भाषा यह सामान्य बोलचाल में इस्तेमाल करते थे। इन्होंने अपने उपन्यासों में कहानियों में आंचलिक भाषा को मुख्य तौर पर प्रमुखता दी है।
फनीश्वरनाथ रेणु की रचनाएं
फनीश्वरनाथ रेणु हिंदी कहानी व उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में एक नई धारा के जनक है जिसे आँचलिक कथा साहित्य कहते हैं। इनके पूर्व भी ग्राम्यांचल से सम्बद्ध कहानी उपन्यास लिखे गए थे जैसे शिवपूजन सहाय, प्रेमचंद व रामवृक्ष बेनीपुरी का कथा साहित्य किन्तु उसमें आँचलिकता पुर्णतः नहीं आई।
रेणु जी ने सशक्त रचनाएँ प्रस्तुत कर एक अंचल विशेष को ही नायकत्व प्रदान कर दिया और सारी घटनाएँ परिस्थतियाँ उसी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती हुई प्रतीत होती हैं। अस्तु, रेणु की प्रमुख कृतियों का उल्लेख इस प्रकार हैं ।
उपन्यास – मैला आँचल, परती: परिकथा जुलूस
कहानी संग्रह – ठुमरी, रस प्रिया, पंचलेट, तीसरी कसम निबंध पत्र आदि.
रेणु जी का समग्र लेखन गाँव परिवेश पर आश्रित हैं। उनके पात्र संवेदनशील व भावुक हैं। उनकी कहानियों में एक चित्रकार की भांति चित्रफलक को सजाया गया हैं, जिससे घटना का पूर्ण बिम्ब पाठक के समक्ष उपस्थित हो जाता हैं।
उनकी कहानियों में मनुष्य, प्रकृति , जीवन के घात प्रतिघात मानवीय भावनाओं व मनुष्य जीवन के विविध पक्षों को आँचलिक भाषा में प्रयोग हुआ हैं । जैसे तबे एकता चला रे कहानी में किसन महाराज (भैंस का पाडा) की कथा कहकर यह सिद्ध कर दिया हैं कि इंसान आज जानवर से भी बदतर हो गया हैं।
जमीदारों, पुलिस व अफसरों के कुकृत्यों का पर्दाफाश कर किसन महाराज के प्रति ममता जागृत की हैं, रसप्रिया में एक गायक कलाकार के संघर्ष का मार्मिक चित्रण हैं ।
रेणु की कहानी कला
पांचवे दशक के लोकप्रिय आँचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु उच्च कोटि के चिंतक, स्वाधीनता प्रेमी एवं न्याय के लिए संघर्ष शील व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। वर्ष 1977 की इमरजेंसी में इंदिरा सरकार ने इन्हें शासन विरोधी घोषित कर जेल में ठूस दिया था। रेणु जी बिहार के पूर्णिया व दरभंगा जिलों से सम्बन्ध रहे।
पटना इनका प्रमुख कार्यस्थल था। इन्होंने भारत के विविध अंचलों और धरती पुत्रों की व्यथा कथा अपनी कहानियों और उपन्यासों में चित्रित की हैं। रेणु ने स्वतंत्रता के पश्चात भारत के ग्राम जीवन को नजदीक से देखा परखा और यहाँ होने वाले परिवर्तनों को संजीवता व ईमानदारी से चित्रण किया हैं।
गाँवों में नदियों पर बनने वाले बाँध, सड़कें, पंचायत भवन, स्कूल भवन व और आर्थिक सामाजिक, धार्मिक स्थितियों का चित्रण तथा गाँवों की जातिगत गुटबाजी राजनीति का नग्न चित्रण कर दिया हैं।
उनकी कहानियाँ दूसरी शीर्षक कृति में संग्रहित हैं। फणीश्वर नाथ रेणु जी एक कुशल फोटोग्राफर की तरह जीवंत चित्रण करते हैं। जिससे स्थान विशेष का वातावरण हमारी आँखों के आगे सजीव हो उठता हैं।
साहित्यिक कृतियां
फणीश्वर नाथ रेणु जी की कुल 26 पुस्तकें हैं। इन पुस्तकों में संकलित रचनाओं के अलावा भी काफ़ी रचनाएँ हैं जो संकलित नहीं हो पायीं, कई अप्रकाशित आधी अधूरी रचनाएँ हैं। असंकलित पत्र पहली बार रेणु रचनावली में शामिल किए गए हैं।
उपन्यास
- मैला आंचल 1954
- परती परिकथा 1957
- जूलूस 1965
- दीर्घतपा 1964 (जो बाद में कलंक मुक्ति (1972) नाम से प्रकाशित हुई)Ø
- कितने चौराहे 1966
- पल्टू बाबू रोड 1979
कथा-संग्रह
- आदिम रात्रि की महक 1967
- ठुमरी 1959
- अगिनखोर 1973
- अच्छे आदमी 1986
संस्मरण
- आत्म परिचय
- समय की शिला पर
रिपोर्ताज
- ऋणजल धनजल 1977
- नेपाली क्रांतिकथा 1977
- वनतुलसी की गंध 1984
- एक श्रावणी दोपहरी की धूप 1984
- श्रुत अश्रुत पूर्व 1986
प्रसिद्ध कहानियां
- मारे गये गुलफाम
- एक आदिम रात्रि की महक
- लाल पान की बेगम
- पंचलाइट
- तबे एकला चलो रे
- ठेस
- संवदिया
ग्रंथावली
- फणीश्वरनाथ रेणु ग्रंथावली
प्रकाशित पुस्तकें
- वनतुलसी की गंध 1984
- एक श्रावणी दोपहरी की धूप 1984
- श्रुत अश्रुत पूर्व 1986
- अच्छे आदमी 1986
- एकांकी के दृश्य 1987
- रेणु से भेंट 1987
- आत्म परिचय 1988
- कवि रेणु कहे 1988
- उत्तर नेहरू चरितम् 1988
- फणीश्वरनाथ रेणु: चुनी हुई रचनाएँ 1990
- समय की शिला पर 1991
- फणीश्वरनाथ रेणु अर्थात् मृदंगिये का मर्म 1991
- प्राणों में घुले हुए रंग 1993
- रेणु की श्रेष्ठ कहानियाँ 1992
- चिठिया हो तो हर कोई बाँचे (यह पुस्तक प्रकाश्य में है)
सम्मान
उनके प्रथम उपन्यास मैला आंचल के लिये उन्हें 1970 में भारत सरकार के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था लेकिन 1975 में तत्कालीन इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा आपातकाल लगाए जाने के कारण उन्होंने अपना पद्म श्री सम्मान लौटा दिया था।
देहावसान
फणीश्वर नाथ रेणु सरकारी दमन और शोषण के विरुद्ध ग्रामीण जनता के साथ प्रदर्शन करते हुए जेल गए। रेणु ने आपातकाल का विरोध करते हुए अपना पद्मश्रीका सम्मान भी लौटा दिया। इसी समय रेणु ने पटना में लोकतंत्र रक्षी साहित्य मंच की स्थापना की।
इस समय तक रेणु को पैप्टिक अल्सर की गंभीर बीमारी हो गई थी। लेकिन इस बीमारी के बाद भी रेणु ने 1977 ई. में नवगठित जनता पार्टी के लिए चुनाव में काफ़ी काम किया। 11 अप्रैल 1977 ई. को रेणु पैप्टिक अल्सर की बीमारी के कारण चल बसे।
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