ज्ञानवापी मंदिर का विवाद काफी समय से चल रहा है। इसका क्या इतिहास है, क्यों ये विवाद उत्पन्न हुआ? सारी कहानी (Gyanvapi Mandir full History) को समझते हैं… |
ज्ञानवापी मंदिर विवाद का पूरा इतिहास (Gyanvapi Mandir full History)
अयोध्या के राम मंदिर बनने के बाद आप ज्ञानवापी मंदिर का मामला जोर-जोर से उठने लगा है। अभी हाल-फिलहाल में ही अदालत ने ज्ञानवापी मंदिर परिसर में हिंदू पक्ष को पूजा करने की इजाजत दी है। इसके साथ ही अब हिंदू पक्ष और हिंदू धर्म के अनुयायियों की तरफ से यह मांग उठने लगी है कि उन्हें शीघ्र ही इस ज्ञानवापी मंदिर का परिसर पूरी तरह सौंप दिया जाए और यहाँ पर भगवान शिव के मंदिर को पुनर्स्थापित करने की आज्ञा प्रदान की जाए।
हालांकि इस प्रक्रिया में समय लगेगा और ये कानूनी लड़ाी है। पुरातत्व पुरातत्व विभाग द्वारा ज्ञानवापी मंदिर परिसर का जो सर्वेक्षण किया गया था। उसमें जो साक्ष्य प्राप्त हुए। वह भी यहां पर ज्ञानवापी मंदिर परिसर में जिस जगह पर मस्जिद बनी हुई है, वहां पर मंदिर होने का को प्रमाणित करते हैं और यह सिद्ध होता है कि वहाँ पर पहले एक मंदिर ता जिसे तोड़कर ही वहां पर मस्जिद बनाई गई।
ज्ञानवापी मंदिर विवाद क्या है, इसका आरंभ कैसे हुआ? वहाँ पर शिव मंदिर को कब तोड़ा गया। वहाँ कब मंदिर बनाया गया था, किसने उसे मंदिर को तोड़ा? यह विवाद कब से चला आ रहा है आगे इसमें क्या प्रगति होने की संभावना है। सारी बातों को समझते हैं
ज्ञानवापी मंदिर परिसर में भगवान भोलेनाथ का शिव मंदिर होना के अनेक ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं। उससे पहले हम पौराणिक धर्म ग्रंथो के साक्ष को भी जानेंगे। जहाँ पर काशी में ज्ञानवापी मंदिर होने का वर्णन मिलता है।
काशी भगवान भोलेनाथ की नगरी मानी गई है। हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह विश्वास है कि काशी नगरी भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर बसी हुई है। यह संसार की सबसे प्राचीन नगर है यह भी एक स्थापित मान्यता है।
काशी विश्व में भगवान भोलेनाथ का मंदिर हो, इस बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। भगवान भोलेनाथ को समर्पित इस पवित्र नगरी में भगवान शिव का मंदिर होना स्वाभाविक है। हिंदू प्राचीन धर्म के अनेक धर्म ग्रंथो में काशी नगरी और वहां पर मंदिर होने के विषय में अनेक वर्णन मिलता है।
स्कंद पुराण की रचना 5वीं से 7वीं शताब्दी के बीच मानी जाती है। स्कंद पुराण में यह वर्णन मिलता है कि काशी में ज्ञानवापी परिसर था और वहाँ पर एक भगवान शिव का भव्य विशाल मंदिर था। स्कंद पुराण के काशी खंड के 36वें, 37वें, 38वें और 39वें श्लोक काशी के ज्ञानवापी मंदिर और उसके परिसर का वर्णन मिलता है। स्कंद पुराण के 70वें श्लोक में भी ज्ञानवापी मंदिर के बारे में वर्णन मिलता है।
वर्तमान समय में ज्ञानवापी परिसर में जहां पर मस्जिद बनी हुई है, वहाँ पर औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई थी, यह बात सभी जानते हैं। औरंगजेब में 17वीं शताब्दी में ये मंदिर तोड़ा था।
मंदिर होने के ऐतिहासिक साक्ष्य
काशी के ज्ञानवापी परिसर मे जहाँ पर आज ज्ञानवापी मस्जिद है, वहाँ पर पहले कभी भगवान शिव का एक भव्य मंदिर था, इसके प्रमाण भी एक ब्रिटिश इतिहासकार की पुस्तक से मिलते हैं। एक ब्रिटिश यात्री की द्वारा लिखी गई पुस्तक से मिलते हैं। पीटर मंडी नामक ये यात्री ने अपनी पुस्तक ‘द ट्रैवलर आफ पीटर मंडी इन यूरोप एंड एशिया 1608-1667’ में काशी का वर्णन करते हुए लिखा है कि किताब में उन्होंने ज्ञानवापी परिसर में एक के भव्य शिव मंदिर होने की पुष्टि की है।
उन्होंने बताया है कि काशी में उसे समय क्षत्रिय, ब्राह्मण और बनिया वर्ण के लोग रहते थे, जो एक सफेद गोल पत्थर की पूजा करते हैं। वह उसे पर जल चढ़ाते हैं और उसकी नियमित पूजा करते हैं। वह काशी के ज्ञानवापी परिसर में स्थित एक मंदिर में गए वहां पर उन्होंने देखा कि एक चबूतरे पर बड़ा लंबा गोल सफेद रंग का पत्थर है, जिस पर लोग पास की गंगा नदी से लाया हुआ जल चढ़ा रहे हैं और दूध चढ़ा रहे हैं तथा फूल आदि चढ़कर पूजा कर रहे हैं। इस पत्थर को ये लोग महादेव बोलते हैं। उनका ये वर्णन भी काशी के ज्ञानवापी मंदिर परिसर में शिव मंदिर होने का साक्ष्य मिलता है।
काशी में जिस जगह पर भगवान शिव का मंदिर था वहाँ पर सबसे पहली बार मंदिर 11वीं शताब्दी राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। ऐसा इतिहासकार बताते हैं। ये वो विक्रमादित्य नही हैं, जो उज्जैन के राजा थे और गुप्त वंश के प्रमुख शासक थे। ये राजा विक्रमादित्य दूसरे हैं।
मंदिर कब तोड़ा गया?
काशी में भगवान शिव का मंदिर 11वीं शताब्दी में बना, यह बात हमको पता चल गई, लेकिन इस पर सबसे पहला हमला 12वीं शताब्दी में हुआ, जब मोहम्मद गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद को हराया और जयचंद को हराने के बाद मोहम्मद गौरी के सैनिकों ने काशी की और कूच किया। वहाँ पर उनके रास्ते में जितने भी मंदिर पड़े, उन्होंने उनको तहस-नहस करना आरंभ कर दिया। काशी विश्वनाथ के मंदिर को भी उन्होंने भारी भरकम क्षति पहुंचाई। यह काशी विश्वनाथ मंदिर पर पहला हमला था। इसका वर्णन फारसी भाषा के एक कई इतिहासकार हसन निजामी ने अपनी पुस्तक ताज उल मासिर से में किया है।
उसके कई वर्षों बाद काशी बड़े-बड़े व्यापारियों ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया और मंदिर फिर से बनकर खड़ा हो गया। मोहम्मद गौरी के बाद फिर कई मुस्लिम आक्रांता आए और उन्होंने फिर से मंदिरों को तोड़ने का प्रयास किया। काशी विश्वनाथ का मंदिर भी इसका शिकार बना। 14 वीं 15 शताब्दी में भी मंदिर को फिर से तोड़ा गया। 14 शताब्दी मंदिर को मुस्लिम शासकों द्वारा फिर से दुबारा तोड़ा गया। ये दूसरा मौका था, जब काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़ा गया। उसके बाद वहाँ 100 वर्षों तक कोई मंदिर नही बन पाया।
15वीं शताब्दी के बाद भारत में मुगलों का आगमन हुआ। अकबर के शासनकाल में अकबर के नवरत्नों में से एक रन राजा टोडरमल ने अपने पुत्र को आदेश देकर वाराणसी के मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। लेकिन जब शाहजहां का शासन काल आया तो शाहजहां ने काशी विश्वनाथ के मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन भारी विरोध के कारण वह मंदिर को तोड़ नहीं सका।
शाहजहाँ के बाद उसका पुत्र औरंगजेब का शासन काल आया जो सभी मुगलों में सबसे क्रूर था। जिसने अपने शासनकाल में हजारों मंदिरों को तोड़ा और काशी विश्वनाथ का मंदिर भी उसके इसी विध्वंस का कारण बना। औरंगजेब ने ही वहाँ पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया। उसने जानबूझकर अपने प्रभुत्व को दिखाने के लिए मंदिर के एक तरफ की दीवार को बने रहने दिया ताकि वह हिंदु धर्म के अनुयायियों के बार-बार याद दिलाता रहे।। वह दीवार आज भी मौजूद है, जो कि वहां पर मंदिर होने का पुख्ता सबूत देती है।
उसने मंदिर की दिशा में नंदी बैल की मूर्ति को भी नष्ट नहीं किया गया। आमतौर पर किसी भी शिव मंदिर में नंदी बैल की मूर्ति शिवलिंग की और मुख किए हुए स्थापित की जाती है। काशी विश्वनाथ मंदिर की विवादित जगह पर जहां पर वर्तमान समय में नंदी बैल की मूर्ति है, वह उसे जगह की ओर देख रही है, जहाँ पर मस्जिद बनी हुई है। इससे स्पष्ट होता है मस्जिद की जगह पर कभी वहाँ पर शिव मंदिर था।
औरंगजेब ने काशी में भगवान शिव के मंदिर को जब तोड़ा था तो उसने एक शाही फरमान जारी किया था। वह फरमान आज भी मौजूद है और कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में संरक्षित रखा हुआ है, इससे पुष्टि होती है कि काशी विश्वनाथ में उस जगह पर कभी भगवान शिव का मंदिर था, जिसे तोड़कर औरंगजेब ने वहाँ पर मस्जिद बनवा दी।
औरंगजेब के समय के ही एक तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकार साकिब मुस्तइक खान ने अपनी पुस्तक मसीदे आलमगिरि में मंदिर के गिराने का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है, जो वहां पर मंदिर के होने की पुष्टि करता है।
उसके अलावा इतिहासकार एलजी शर्मा ने भी अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखते हैं कि 1669 ईस्वी में औरंगजेब ने अपने सभी सूबेदारों को आदेश दिया था कि जो भी हिंदू मंदिर और हिंदू पाठशाला हैं, उन सबको नष्ट कर दिया जाए।
उसके बाद जब औरंगजेब ने जगह पर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दी तो फिर वहाँ पर कोई मंदिर नहीं बचा था। लेकिन यह कम 100 साल तक जारी रहा और 100 साल बाद इंदौर की रानी महारानी अहिल्याबाई होलकर ने उस मस्जिद के आसपास की जमीन को खरीद लिया और मस्जिद के पास ही भगवान भोलेनाथ का मंदिर बनाया जोकि वर्तमान समय में मौजूद है, लेकिन यह मंदिर उस जगह पर मौजूद नहीं है जहाँ पर कभी बाबा भोलेनाथ का मंदिर हुआ करता था। उस जगह पर औरंगजेब द्वारा बनवाई गई मस्जिद मौजूद है, जिसके कारण ही सारा विवाद उत्पन्न हो रहा है।
इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया और नेपाल के महाराजा ने वहाँ पर नंदी की प्रतिमा स्थापित करवाई। नंदी की प्रतिमा का मुख उल्टा होने का रहस्य यही है कि पहले जहाँ मंदिर था, वहाँ मस्जिद बना ली गई।
इसी मंदिर को की जगह को दुबारा पाने के लिए हिंदु धर्म के लोग संघर्ष करते रहे। 1810 को बनारस में अंग्रेज अधिकारी वाटसन ने वाइस प्रेसिडेंट इन काउंसिल को खत लिखकर ज्ञानवापी परिषद हिंदुओं को हमेशा के लिए सौंपने के लिए कहा था, लेकिन यह भी कभी संभव नही हो सका।
एक अंग्रेज लेखक ने अपनी पुस्तक बनारस इलस्ट्रेटेड में विस्तान में लिखा है कि मस्जिद की जगह पर शिव मंदिर था। उसके लिए उसने वैज्ञानिक तकनीक की सहायता से अध्ययन करके ये निष्कर्ष निकाला। उन्होंने अपनी किताब में वहां पर कई हिंदू कलाकृतियां होने की भी बात की। उन्होंने आज से 200 साल पहले यह कह दिया था कि मंदिर को एक नहीं कई बार तोड़ा गया और यह सब उन्होंने बाकायदा साइंटिफिक सर्वे करके साबित किया।
80 के दशक में मामले ने फिर से जोर पकड़ना शुरु किया।
उस समय भारत पर अंग्रेजों का शासन था और भारत के लोग भारत के स्वतंत्रता के आंदोलन में सक्रिय हो गए थे इस कारण मंदिर का मामला ठंडा पड़ा रहा।
1984 में विश्व हिंदू परिषद इस मुद्दे को फिर से उठाया जब वह हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखने वाले तीन मंदिरों का जब जिक्र किया, तब पहली बार ज्ञानवापी मस्जिद का भी मामला फिर उछला। ये तीन मंदिरों में अयोध्या, मथुरा और काशी के मंदिर थे।
उस समय अयोध्या के राम मंदिर पर अधिक फोकस किया जा रहा था। 1991 में वाराणसी कोर्ट में पहली बार पिटीशन लगाई गई और पिटीशन लगाकर ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी।
1991 के बाद से काशी विश्वनाथ मंदिर की प्रगति रिपोर्ट
- काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मामले सबसे पहली बार 1991 में वाराणसी कोर्ट में पहला मुकदमा दायर किया गया था। इस याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इस याचिका में शामिल थे।
- इस याचिका के कुछ महीने बाद सितंबर 1991 में तत्कालीन नरसिम्हाराव की कांग्रेस सरकार ने पूजा स्थल कानून बना दिया।
- इस पूजा स्थल कानून 1991 के अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता था। इसका उल्लंघन करने पर तीन साल की सजा का प्रावधान थी।
- अयोध्या का मामला उस वक्त अदालत में में था इसलिए अयोध्या के मामले को इस कानून से अलग रखा गया था।
- ज्ञानवापी मंदिर के मामले में इसी कानून का हवाला देकर ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की गई।
- इसी कानून को आधार बनाकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
- तब 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया।
- उसके बाद 25 साल तक इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश करती जा रही।
- 2018 में मामले ने फिर बल पकड़ना शुरु किया जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल छह महीने के लिए ही होगी। उसके बाद ऑर्डर प्रभावी नहीं रहेगा।
- सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में ज्ञानवारी मामले की सुनवाई शुरू हुई।
- 2021 में इस मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी। ये निर्णय इस मामले में हिंदु पक्ष की एक बड़ी सफलता माना गया।
- उसके बाद कोर्ट के इस आदेश के बाद में एक कमीशन नियुक्त किया गया और इस कमीशन को 6 और 7 मई को दोनों पक्षों की मौजूदगी में श्रृंगार गौरी की वीडियोग्राफी के आदेश दिए गए। 10 मई तक अदालत ने इसे लेकर पूरी जानकारी मांगी थी।
- उसके बाद मंदिर का सर्वे पुरातात्विक सर्वे होना शुरु हो गया। 6 मई को केवल एक दिन का ही सर्वे हो पाया था कि मुस्लिम पक्ष इसके विरोध को लेकर कोर्ट पहुँच गया।
- 12 मई को मुस्लिम पक्ष द्वारा की गई कमिश्नर को बदलने की मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया और ये आदेश भी पारित किया कि 17 मई तक सर्वे का काम पूरा कर लिया जाए और रिपोर्ट बनाकर अदालत में पेश की जाए।
- कोर्ट ने कहा सर्वे का काम बिना किसी रोक-टोक तुरंत ही पूरा करने का आदेश दिया।
- 14 मई से ही ज्ञानवापी के सर्वे का काम दोबारा शुरू हुआ। सभी बंद कमरों से लेकर कुएं तक की का पूरा सर्वे हुआ। इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की गई।
- 16 मई तक सर्वे हो चुका था। हिंदू पक्ष ने इसके वैज्ञानिक सर्वे की मांग की। मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया।लेकिन 21 जुलाई 2023 को जिला अदालत ने हिंदू पक्ष की मांग को मंजूरी देते हुए ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दे दिया।
- उसके बाद ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वे शुरु हो गया। लगभग 100 दिनों तक ये सर्वे चला।
- जो सर्वे हुआ था उसकी रिपोर्ट पुरातात्विक विभाग द्वारा अदालत में जमा की जा चुकी थी लेकिन उस रिपोर्ट के सार्वजनिक नही किया गया था।
- 24 जनवरी 2024 को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने ने वादी पक्ष को सर्वें रिपोर्ट दिए जाने का आदेश दिया।
- 25 जनवरी 2024 को रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई।
- पुरातात्विक विभाग की जो रिपोर्ट आई है, उसके मुताबिक ज्ञानवापी में जो सर्वे हुआ उसमे ये पाया गया कि मस्जिद के अंदर ऐसे अनेक प्रमाण मिले हैं जो वहाँ पर पहले किसी मंदिर के होने के पुष्टि करते हैं।
पुरातात्विक विभाग के रिपोर्ट के अनुसार
- 100 दिनों तक चले इस सर्वे में कल 321 ऐसे प्रमाण मिले हैं, जो उसे जगह पर किसी हिंदू मंदिर के होने की पुष्टि करते हैं।
- सर्वे में शिव, विष्णु, कृष्ण, हनुमान आदि की मूर्तियां मिली हैं।
- मंदिर के ऐसे कई संरचनायें मिली, जिन्हें प्लास्टर और चूने के द्वारा छुपाया गया। उस प्लास्टर और चूने को हटाने पर पाया गया कि ये मंदिर का स्ट्रक्चर है।
- मंदिर की दीवारों पर भगवान शिव के नाम लिखे हुए पाए गए हैं।
- मंदिर की जो पश्चिमी दीवार है वह स्पष्ट रूप से किसी हिंदू मंदिर की दीवार नजर आ रही है, क्योंकि उसकी संरचना पूरी तरह किसी हिंदू मंदिर के दीवार की संरचना की तरह ही पाई गई है। उस पर स्वास्तिक और त्रिशूल के निशान भी पाए गए हैं, जो वहाँ पर मंदिर होने की पुष्टि करते हैं।
- इस सर्वे में 32 ऐसे शिलालेख और पत्थर आदि भी पाए गए जिन पर यह लिखी भाषा से स्पष्ट होता है कि वहां पर कोई हिंदू मंदिर था। यह पत्थर और शिलालेख वहाँ पर किसी हिंदू मंदिर के होने की पुष्टि करते हैं। इन पर देवनागरी लिपि के अलावा कन्नड़ और तेलुगु जैसी भाषाओं में लिखे हुए शिलालेख भी पाए गए हैं। इन शिलालेखों में कई शिलालेखों पर भगवान शिव के नाम भी लिखे हुए पाए गए हैं।
- मंदिर में एक खंडित शिवलिंग भी पाया गया है। उसके अलावा नंदी बैल की खंडित मूर्ति भी पाई गई है। एक गदा का ऊपरी भाग भी प्राप्त हुआ है। गदा एक ऐसा अस्त्र है, जो हिंदू राजाओं द्वारा ही प्रयोग किया जाता था।
- ऐसी कई आकृतियां पाई गईं है, जो किसी हिंदू मंदिर या हिंदू राजा द्वारा की बनवाई गई थीं।
- मंदिर के सर्वे के दौरान यह भी पाया गया कि मंदिर में पाई जाने वाली कई आकृतियों और संरचनाओं तथा मूर्ति आदि को मिटाने और नष्ट करने का भी प्रयास किया गया है ताकि इन साक्ष्यों को मिटाया जा सके।
- दीवारों पर जो हिंदू देवी देवताओं के नाम अंकित थे, उन्हें खुरचकर मिटाने का प्रयास किया है।
अब इस मामले में आगे क्या होता है और अदालत का क्या रूख रहता है ये देखना होगा।
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