सीताबनी (Sitabani) रामायण में विशेष स्थान रखता है, क्योंकि यहीं पर देवी सीता ने अपने जुड़वां पुत्र लव और कुश को जन्म दिया और उनका पालन-पोषण किया था। यहाँ के मंदिर में देवी सीता के साथ उनके दोनों पुत्रों की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
सीताबनी जहाँ माता सीता ने समाधि ली (Sitabani where Mata Sita took Samadhi in Ramayana)
सीताबनी का मंदिर घने जंगल के बीच एक खुले मैदान में स्थित है। मान्यताओं के अनुसार, माता सीता और भगवान राम ने वैशाख मास में इसी स्थान पर महादेव का पूजन किया था। इसीलिए इसे सीतेश्वर महादेव का मंदिर कहा जाता है।
यहाँ एक कुंड भी है, जिसके बारे में मान्यता है कि इसमें ही माता सीता ने अंतिम समय में समाहित हुई थीं। सीताबनी में जल की तीन धाराएं बहती हैं, जिन्हें सीता-राम और लक्ष्मण धारा कहा जाता है। इन धाराओं की विशेषता है कि गर्मियों में इनका जल ठंडा और सर्दियों में गर्म रहता है।
कहाँ पर है सीताबनी?
सीताबनी उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ मंडल के रामनगर से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राकृतिक वन्य क्षेत्र है। ये पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है।
ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व
सीताबनी का मंदिर पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है और इसे त्रेता युग का बताया जाता है। इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए वन विभाग से अनुमति लेनी होती है। यह मंदिर बाल्मीकि समाज के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है, क्योंकि यहाँ महर्षि बाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था।
पर्यटन और धार्मिक आयोजन
शिवरात्रि के मौके पर यहाँ भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु माता सीता का आशीर्वाद लेने आते हैं। सीताबनी का क्षेत्र अब एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन चुका है, जहाँ हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। इससे वन विभाग को अच्छा खासा राजस्व भी प्राप्त होता है।
सीताबनी का यह अनूठा संगम धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो हर किसी को मोहित कर देता है।
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