Thursday, November 21, 2024

सफला एकादशी क्या है? सफला एकादशी की पूजा-विधि और महत्व जानें।

भगवान विष्णु को समर्पित ‘सफला एकादशी व्रत’ (Safala Ekadashi Vrat) का अपना ही महत्व है। ये व्रत कब और क्यों रखा जाता है, इसका क्या महत्व है? आइए जानते है… 

सफला एकादशी व्रत का मुहूर्त, पूजा-विधि और लाभ और महत्व को जाने (Safala Ekadashi Vrat)

हिंदू सनातन धर्म में हर माह कोई ना कोई विशिष्ट व्रत-त्यौहार अवश्य आता है। इसीलिए हिंदू धर्म व्रत, त्यौहार, उत्सव की दृष्टि से बेहद समृद्धि धर्म है।

2024 के पहले महीने जनवरी में सफला एकादशी का व्रत आने वाला है। भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है। सफला एकादशी का व्रत हर वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों रख सकते है।

इस पवित्र दिन के दिवस को व्रत धारण करने से 100 अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है और व्रतधारी के सारे मनोरथ सिद्ध होते हैं। जिस किसी ने इस दिन सच्चे मन से भगवान विष्णु की आराधना कर ली और उनके नाम पर व्रत रख लिया। उसके सारे मनोरथ सफल होने सिद्ध हैं। आईए जानते हैं सफला एकादशी व्रत क्या है और यह कब क्यों और कैसे रखा जाता है, इसकी पूरी पूजन विधि क्या है?

सफला एकादशी कब मनाई जाती है?

सफला एकादशी पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु को समर्पित होते हुए व्रत रखा जाता है।

सफला एकादशी का व्रत धारण करने से क्या लाभ होता है?

सप्लाई एकादशी का व्रत धारण करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। व्यक्ति जिस मनोकामना की पूर्ति के लिए व्रत धारण करता है, उस मनोकामना को मन ही मन स्मरण करके व्रत धारण करना चाहिए, इससे न केवल उसे मनोकामना की पूर्ति होती है बल्कि उस व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि का भी आगमन होता है। उसे धन और दीर्घायु प्राप्त होती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सफला एकादशी के व्रत का प्रभाव इतना अधिक तीव्र है कि 1000 अश्वमेध यज्ञ करने के के फल के बराबर फल एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है। इस दिन एकादशी का व्रत धारण करने से भगवान विष्णु माता लक्ष्मी सहित प्रसन्न होते हैं।

वर्ष 2024 में सफला एकादशी व्रत कब है और उसका समय और मुहूर्त कब है?

वर्ष 2024 में सफला एकादशी का व्रत 8 जनवरी 2024 को होगा। सफला एकादशी का मुहूर्त 7 जनवरी को रात्रि 12:41 से शुरू होगा और 24 घंटे तक मुहूर्त रहेगा यानी अगले दिन राति 12:46 पर मुहूर्त समाप्त होगा। इस तरह सफला एकादशी का व्रत रात्रि 12:41 से रखा जा सकेगा। व्रत के पारण का समय 8 जनवरी 2024 को सुबह 6:39 से 8:39 के बीच रहेगा। इसका अर्थ ये है कि 8 जनवरी 2024 की सुबह 6.39 से 8.39 के बीच पूजा आदि करके व्रत आरंभ कर लेना चाहिए।

सफला एकादशी के दिन और क्या-क्या करना चाहिए?

सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना करने के अलावा घर में तुलसी का पौधा लगाने का भी विशेष महत्व है। इस दिन घर में तुलसी का पौधा लाकर लगाने से भी विशेष फल प्राप्त होता है।

तुलसी का पौधा अपने घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्वी अथवा उत्तर दिशा या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इससे घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन घर में खीर के रूप में विशेष व्यंजन बनाया जाता है और उस खीर में तुलसी के पत्ते डालकर भगवान विष्णु को भोग लगाया जाता है।

सफला एकादशी का व्रत कैसे करें और इसकी पूजन विधि क्या है?

सफला एकादशी के दिन यानी 8 जनवरी 2024 को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद अपने पूजा स्थान को एकदम साफ एवं स्वच्छ कर लें। पूजा स्थान में लकड़ी की चौकी अथवा बाजोट पर कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को स्थापित करें।

सारी पूजन सामग्री अपने पास रख लें, जिसमें चंदम, कुंकुम, अक्षत, हल्दी, वस्त्र, फूल, फल, नैवेद्य (खीर), जल, धूप-दीप, पान, नारिया आदि सभी हो। पंचामृत भी बना लें। पंचामृत में दूध, दही, शक्कर, शहद, घी ये पाँच तत्व मिलाए जाते हैं। नैवेद्य के रूप में खीर बना लें और तुलसी के पत्ते खीर में डाल दें।

फिर विधि-विधान से पहले भगवान गणपति का संक्षिप्त पूजन करें और फिर भगवान विष्णु का पूजन करना आरंभ करें। पहले उनकी मूर्ति या चित्र को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र अर्पण करें। फिर चंदन, कुंकुम से तिलक करें। अक्षत (चावल) अर्पण करें। पुष्प अर्पण करे। धूप-दीप दिखाकर फिर नैवेद्य के रूप में खीर का अर्पण करें तथा फल फूल अर्पण करें। पान और नारियल आदि को भी अर्पण करें।

उसके बाद भगवान विष्णु के किसी विशेष स्तोत्र अथवा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और अंत में कपूर से भगवान विष्णु की आरती संपन्न करें। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है। सुबह को व्रत आरंभ करने के बाद पूरे दिन व्रत धारण करने के बाद शाम को व्रत खोलें। यथा संभव निर्धनों तथा जरूरतमंदों को दान दें। इस दिन दान-पुण्य करने से भी विशेष फल प्राप्त होता है।

सफला एकादशी के दिन क्या-क्या दान करना चाहिए?

सफला एकादशी के दिन जरूरतमंदों को अन्न और भोजन दान करना चाहिए। निर्धनों को जरूरी वस्तुओं का दान करना चाहिए। उन्हें वस्त्र-कंबल आदि का दान करना चाहिए। भूखे को भोजन कराना चाहिए। अनाज के रूप में गेहूं, बाजरा, ज्वार आदि का दान कर सकते हैं। सर्दी के समय गरीबों को कंबल अथवा गर्म वस्त्रो का दान कर सकते हैं। किसी निर्धन छात्र को शिक्षा संबंधी कोई भी दान दे सकते हैं। जैसे शिक्षा में किताबें अथवा उसके विद्यालय का शुल्क आदि का दान भी किया जा सकता है।

सफला एकादशी व्रत का महत्व और इतिहास?

सप्लाई एकादशी का व्रत हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत भगवान श्री हरि अर्थात भगवान विष्णु की आराधना से संबंधित है। यह व्रत जीवन में सफल होने और सभी तरह की बाधाओं को दूर करने की कामना से किया जाता है।

व्रत धारण करने वाला व्रतधारी भगवान विष्णु की विशेष पूजा आराधना करता है और उनका ध्यान करते हुए पूरे दिन व्रत धारण करता है। इस दिन भगवान विष्णु के सभी अवतारों 10 अवतारों की पूजा की जाती है, विशेषकर उनके श्री राम और श्री कृष्ण अवतार की पूजा विशेष तौर पर की जाती है, क्योंकि यही दो अवतार उनके सबसे अधिक सफल सिद्ध और पूर्ण अवतार माने जाते हैं।

सफला एकादशी व्रत के पीछे कथा

सफला एकादशी व्रत के पीछे एक कथा है, जिसके अनुसार राजा महिष्मत के राज्य में बेहद सुख-शांति थी। उनके कई पुत्र थे, लेकिन उसका बड़ा पुत्र आचरण-विहीन था और हमेशा गलत कार्यों में संलग्न रहता था। वह हमेशा सदैव देवी देवताओं की निंदा किया करता था, जबकि राजा माहिष्मती बेहद धर्म परायण व्यक्ति थे।

एक दिन उन्होंने अपने पुत्र के व्यवहार से तंग आकर उसे अपने राज्य से निकाल दिया और वन में भेज दिया। उन्होंने उसका नाम भी बदलकर लम्बुक रख दिया। जब लम्बुक को देश निकाला हो गया तो वह जंगल में जाकर भटकने लगा और वहां पर कंदमूल-फल अधिक खाकर अपना जीवन यापन करने लगा।

वह दिनभर जंगलों में भटककर फल-फूल आदि खाता और रात के समय एक पीपल के वृक्ष के नीचे विश्राम किया करता था। जब सर्दी का मौसम आया तो बहुत ठंड पड़ने लगी। अत्यधिक ठंड के कारण उसे बेहद कष्ट हो रहा था। एक दिन वह पौष माह की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को सर्दी और भूखे के कारण निष्प्राण होकर वृक्ष के नीचे गिर गया और रात भर यूं ही पड़ा रहा।

अगले दिन यानी एकादशी के दिन जब सूरज उगा और सूरज की किरणे उसके चेहरे पर पड़ीं, तब उसे होश आया। वह अत्यधिक भूख से व्याकुल था। उसने अपनी भूख को मिटाने के लिए जंगल से फल एकत्रित करने की ठानी और किसी तरह चलते-फिरते वह थोड़े से फल एकत्रित करके ले आया। लेकिन इस कार्य में उसको पूरा दिन लग गया और सूर्य अस्त होने वाला था। उसने वह फल पीपल के वृक्ष के नीचे जड़ों में रख दिए।

जिस वृक्ष के नीचे वह विश्राम किया करता था, स्वतः ही उसके मुँह से यह निकल गया कि इन फलों को लक्ष्मीपति विष्णु को अर्पण करता हूँ वह प्रसन्न हों और फलों को ग्रहण करें। अनजाने में उसके द्वारा किए इस कार्य से भगवान विष्णु बहेद प्रसन्न हुए और उसके वरदान प्रदान किया। उनके वरदान के कारण ही वह सामाजिक जीवन में वापस आ सका और उसे राज्य, धन, विवाह पुत्र आदि सब की प्राप्ति हुई।

तब से ही हर वर्ष पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी के नाम से व्रत किया जाने लगा और लोग भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन व्रत धारण करने लगे।


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