प्राण-प्रतिष्ठा (Pran-Pratishtha) क्या है? ये क्यों आवश्यक है? इसे कैसे किया जाता है? इन सभी का उत्तर आज हम जानेंगे… |
प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ, उसका महत्व और प्राण प्रतिष्ठा की विधि (Pran-Pratishtha)
प्राण प्रतिष्ठा हिंदू सनातन धर्म में एक धार्मिक रीति है, जो किसी भी देवी-देवता के विग्रह अर्थात उसकी मूर्ति अथवा चित्र को पूजन योग्य एवं जीवंत बनाने की एक प्रक्रिया है।
प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा किसी भी देवी देवता से संबंधित उसके विग्रह उसकी मूर्ति, उसकी प्रतिमा, देवी-देवता का चित्र अथवा देवी-देवता से संबंधित यंत्र, माला आदि की संबंधित मंत्र के उच्चारण और षोडशोपचार पूजन द्वारा चैतन्यता जागृत की जाती है।
सनातन धर्म के अनुसार बिना प्राण-प्रतिष्ठित विग्रह व मूर्ति चित्र आदि की पूजा करने से पूजा का विशेष फल प्राप्त नहीं होता। किसी भी देवी देवता के विग्रह की पूजा करते समय उस विग्रह को प्राण-प्रतिष्ठित होना आवश्यक होता है।
प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है, प्राणों की स्थापना।
किसी भी देवी देवता की धातु की मूर्ति अथवा मिट्टी की मूर्ति अथवा किसी भी पदार्थ से बनी हुई मूर्ति जिसे विग्रह कहा जाता है अथवा उसके चित्र आदि को जब बनयाा जाता है तो वह केवल एक पदार्थ से बनी सरंचना ही होती है। उसमें संबंधित मंत्र के द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा के द्वारा चैतन्य जागृत किया जाता है। इस प्रकार उसमें प्राणों का संचार प्रतिस्थापन करके उसे जीवंत बनाया जाता है जिससे वह उत्पन्न होता है कि उसे व्यक्ति उसे विग्रह में संबंधित देवी देवता साक्षात शुक्ला रूप में उपस्थित हैं।
इसी कारण किसी भी मंदिर आदि में किसी भी देवी देवता की मूर्ति की स्थापना करने से पहले करते समय उसमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और उसमें प्राणों की स्थापना करके मूर्ति को चैतन्य जागृत किया जाता है। उसके बाद ही वह मूर्ति पूजा के योग्य हो जाती है। बिना प्राण प्रतिष्ठा के वह मूर्ति मात्र केवल एक साधारण मूर्ति के अलावा कुछ नहीं। उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उसमें संबंधित देवी-देवता को सूक्ष्म रूप से स्थापित होने की भावना दी जाती है।
प्राण-प्रतिष्ठा कैसे की जाती है?
प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए सबसे पहले उस मूर्ति या विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए उचि मुहूर्त निकाला जाता है।
मुहूर्त निकालने के बाद जिस दिन प्राण-प्रतिष्ठा की जानी है, उस दिन मूर्ति-विग्रह को स्नान कराकर मूर्ति का श्रंगार करके वस्त्र धारण कराए जाते हैं। उसके बाद जिस जगह देवी या देवता की मूर्ति की स्थापना की जानी है। उस जगह पर मूर्ति को स्थापित कर दिया जाता है। उसके बाद उस देवी देवता से संबंधित बीज मंत्र का उच्चारण किया जाता है। हर देवी-देवता का एक बीच मंत्र होता है। फिर उस देवी-देवता का सूक्ष्म रूप में आह्वान किया जाता है।
देवी-देवता से संबंधित मंत्रों का जाप जाप किया जाता है फिर षोडशोपचार विधि द्वारा पूजन किया जाता है। षोडशोपचार विधि द्वारा पूजन का अर्थ है, चंदन, अक्षत, धूप, दीप, फल-फूल, नैवेद्य द्वारा पूजन करना।
पूरा पूजन कार्य संपन्न होने के बाद विग्रह में पूरी तरह प्राप्त प्राणों की स्थापना हो जाती है और वह मूर्ति या विग्रह साक्षात उस देवी या देवता के जीवंत रूप का प्रतीक बन जाती है। ऐसी भावना हो जाती है कि वह देवी-देवता सूक्ष्म जीवंत रूप में साक्षात उस मूर्ति-विग्रह में उपस्थित हैं।उसके बाद वह मूर्ति-विग्रह भक्तों द्वारा नियमित पूजा के योग्य बन जाता है।
किस-किस की प्राण-पतिष्ठा की जाती है?
प्राण-प्रतिष्ठा केवल देवी-देवताओं की मूर्तियों की ही नहीं बल्कि संबंधित देवी-देवताओं के यंत्रों की भी जाती है। उस देवी देवता से संबंधित किसी भी वस्तु जैसे माला या यंत्र में भी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।
प्राण प्रतिष्ठा करने से वह माला, यंत्र अथवा अन्य कोई पूजन सामग्री उस विशेष चैतन्य प्रभाव से युक्त हो जाती है। यदि उस प्राण-प्रतिष्ठित माला या यंत्र का प्रयोग पूजा में किया जाता है तो पूजा में जल्दी और विशेष सफलता प्राप्त होती है।
बिना प्राण-प्रतिष्ठित विग्रह की पूजा करने से पूजा का पूरा और तीव्र प्रभावी फल नही मिलता है। उसी प्रकार बिना प्राण-प्रतिष्ठित माला या यंत्र का प्रयोग करने से भी जिस प्रयोजन के लिए पूजा अनुष्ठान कर रहे हैं उसमे सफलता नही मिलती है।
प्राण-प्रतिष्ठा का महत्व
साधना-सिद्धि के क्षेत्र में प्राण-प्रतिष्ठा का बेहद महत्व है। साधना करते समय हर उपयोगी सामग्री प्राण-प्रतिष्ठित होनी आवश्यक है। साधना करते समय प्राण-प्रतिष्ठित माला से मंत्र जाप करना चाहिए। इसके अलावा जिस देवी देवता की साधना-अनुष्ठान कर रहे हैं, उससे संबंधित यंत्र भी प्राण-प्रतिष्ठित होना चाहिए। जिस विग्रह का प्रयोग कर रहे हैं, वह विग्रह भी प्राण-प्रतिष्ठित होना चाहिए। प्राण प्रतिष्ठित होने से जो साधन अनुष्ठान किया जा रहा है उसके सफल होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।
किसी भी मंदिर या देवालय में प्राण प्रतिष्ठा के बिना कोई भी विग्रह स्थापित नही किया जाता है। मंदिर में देवी-देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ति की ही स्थापना की जाती है।
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