Wednesday, October 30, 2024

महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनातें है? क्या है मान्यता और पूजन विधि? जानें सब कुछ।

8 मार्च को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का पर्व है। यह पर्व भगवान शिव के लिए समर्पित सबसे बड़ा महोत्सव है। श्रावण मास में शिवरात्रि और फाल्गुन मास में महाशिवरात्रि दोनों का अपना ही महत्व है। महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे क्या मान्यता है? महाशिवरात्रि का पर्व कैसे मनाएं? विस्तार से जानते हैं…

सभी जानते हैं कि भगवान शिव देवों के देव हैं। वह देवों के देव महादेव हैं। समस्त सृष्टि की उत्पत्ति उन्हीं से हुई है। उन्हें आदिदेव कहा जाता है। आदिदेव जिनका तेज करोड़ सूर्याओं के समान है। वह फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन ही शिवलिंग के रूप में ब्रह्मांड में प्रकट हुए थे और इसी दिन से सृष्टि का आरंभ हुआ था और भगवान शिव निराकार से साकार रूप में अवतरित हुए। इसी कारण यह विशेष दिन महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥

महाशिवरात्रि मनाने के पीछे क्या-क्या मान्यताएं हैं?

महाशिवरात्रि मनाने के पीछे अनेक तरह की कहानी और मान्यताएं छुपी हैं। एक कथा के अनुसार जब परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति राजा बने तो उन्होंने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में उन्होंने तीनों लोकों से अनेक गणमान्य अतिथियों को बुलावा भेजा। उन्होंने सबको यज्ञ में बुलाया, लेकिन भोलेनाथ शिव को नहीं बुलाया। उस समय सती शिव की अर्धांगिनी थी। सती स्वयं दक्ष प्रजापति की पुत्री भी थीं।

माता पार्वती ने भगवान शिव से अपने पिता के यज्ञ में साथ चलने के लिए कहा। लेकिन शिव बोले कि जब उन्हें यज्ञ में सम्मिलित होने का आमंत्रण ही नहीं मिला है तो वह बिना आमंत्रण के यज्ञ में नहीं जाएंगे। अंततः माता पार्वती सती स्वयं अकेले ही अपने पिता के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए चल दीं। जब वह यह स्थल पर पहुंची था वहाँ उन्हें अपने पति शिव की निंदा सुनाई दी।

अपनी पुत्री सती के सामने भी दक्ष प्रजापति शिव की दर लगातार निंदा करते रहे। अपने पिता के मुख से अपने पति की घोर निंदा सुनकर सती को सहन नहीं हुआ और अपमान से त्रस्त होकर उन्होंने यज्ञ स्थल पर बने अग्निकुंड में ही आत्मदाह कर लिया। जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वह सती को बचाने के लिए तुरंत यज्ञ स्थल पर पहुंचे, लेकिन तब तक सब कुछ समाप्त हो चुका था। माता सती यज्ञ की अग्नि में स्वयं का दाह कर चुकी थीं। ये देखकर भगवान बेहद क्रोधित हो गए। भगवान शिव ने क्रोधित होकर सती का नृत्य शरीर उठा लिया और तांडव नृत्य करने लगे।

जिस दिन भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया था। वह दिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। महापुराण की कथा के अनुसार इसी दिन के कारण महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाने लगा।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार सती ने अगला जन्म माता पार्वती के रूप में लिया। भगवान शिव और माता पार्वती शिव-शक्ति का प्रतीक है। माता पार्वती और शिव का विवाह हुआ था सती के चले जाने के बाद जब उनके शोक में भगवान शिव गहन समाधि में ध्यान मग्न हो गए और उन्होंने सारे जग से नाता तोड़ लिया। सभी देवगणों ने अनेक जतन किए लेकिन वह भगवान शिव को सृष्टि से नहीं जोड़ पाए। इससे सृष्टि का संचालन बाधित होने लगा।

देवों समझ में नहीं आ रहा था कि भगवान शिव को सृष्टि के साथ कैसे जोड़ा जाए? उनका ध्यान कैसे तोड़ा जाए? उधर सती ने पर्वतरात हिमालय की पुत्री के रूप में पार्वती के रूप में पुनर्जन्म ले लिया था। पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या करती हैं और तपस्या के कारण भगवान से प्रकट होते हैं और फिर शिव पार्वती का विवाह होता है। शिव पार्वती का विवाह भी फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन हुआ था, इसीलिए तभी से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन हो रहा था तो उसमें अनेक बहुमूल्य रतन के अलावा हलाहल नाम का विष भी निकला। वह विष बेहद की तीव्र था। इस भयंकर विष के दुष्प्रभाव से पूरी सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस विष को हलाहल विष को स्वयं ग्रहण कर लिया। उस तीव्र विष के प्रभाव से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया। इसके बाद ही वह नीलकंठ महादेव के नाम से भी प्रसिद्ध हुए। इस भयंकर विष का प्रभाव भगवान शिव से पूरे शरीर पर ना पड़े इसके लिए आवश्यकता थीं, वह पूरी रात जागते रहें और निद्रा में ना जाएं, क्योंकि निद्रा में जाने का अर्थ था कि विष उनके शरीर को पूरी तरह अपने प्रभाव में ले सकता था। इसीलिए भगवान शिव को पूरी रात जगाए रखने के लिए अनेक तरह के प्रयोजन किए गए। देवताओं ने उनके समक्ष तरह-तरह के नृत्य-संगीत आदि प्रस्तुत किया।

इस तरह पूरी रात निकल गई, तब तक भगवान शिव पर से विष का प्रभाव भी खत्म हो गया था और देवताओं द्वारा पूरी रात उनके लिए किए जाने वाले प्रयासों से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने सभी देवताओं को आशीर्वाद दिया। वह रात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी, इसीलिए उस दिन को महाशिवरात्रि के नाम से जाना गया।

शिवरात्रि के पर्व का क्या महत्व है?

महाशिवरात्रि के पर्व का बड़ा ही महत्व है, जो शिव के भक्त हैं। वह इस दिन भगवान शिव के नाम पर व्रत धारण करते हैं और पूरे दिन फलाहार पर या बिना अन्न जल के रहते हैं। जो कुंवारी लड़कियां होती हैं वह शिव के समान पति पाने के लिए इस दिन व्रत धारण करती हैं ताकि उन्हें विश्व भगवान शिव के समान ओजस्वी पति प्राप्त हो। महाशिवरात्रि के व्रत का महत्व स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से है।

महाशिवरात्रि के महापर्व के पीछे भले ही अनेक तरह की पौराणिक मान्यताएं और कथाएं आदि छुपी हुई हों। लेकिन सभी का एक सार्थक और एकमेव प्रयोजन यही है कि यह भगवान शिव के लिए समर्पित उत्सव है। इस दिन पूरी तरह देवों के देव महादेव भगवान शिव की आराधना की जाती है।

शिवरात्रि के दिन क्या करना चाहिए?

इस दिन शिव के भक्त और अनुयायी भगवान शिव के नाम पर व्रत धारण करते हैं। शिव मंदिर जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करते हैं। किसी भी आयु वर्ग के स्त्री पुरुष भगवान शिव की पूजा आराधना कर सकते हैं।

इस भक्तगण सूर्योदय होते ही शिव मंदिर जाकर शिवलिंग पर दुग्ध और जल अर्पित करते हैं और यदि आसपास कोई पवित्र नदी हो तो पवित्र नदी में स्नान करते हैं। बहुत से भक्तगण भगवान शिव के नाम पर पूरे दिन व्रत धारण करते हैं। इस व्रत में वह तो या तो अल्प मात्रा में फलाहार लेते हैं, नहीं तो कुछ भी ग्रहण नहीं करते।

भगवान महाशिवरात्रि के दिन शिव की आराधना करने का क्या महत्व है?

शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की आराधना करने का विशेष महत्व है। इस दिन शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर दुग्ध और जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इससे भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। इस दिन शिवलिंग पर जो जल अर्पित किया जाए, उसमें दूध और शहद मिलाकर उसे अर्पित किया जाए। इसके अलावा उसमें बेर या बेल के पत्ते को भी मिलाया जाए।

महाशिवरात्रि के दिन दान धर्म करने का भी विशेष महत्व है। इस दिन निर्धनों और असहायों के लिए जरूरी वस्तुओं का दान करना चाहिए।

महाशिवरात्रि के दिन शिव आराधना करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

भगवान शिव यानी शिवलिंग पर कभी भी तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाए जाते हैं।

ना ही उन्हें कुमकुम आदि चढ़ाया जाता है। ना ही उन्हें हल्दी चढ़ाई जाती है, इसलिए शिवलिंग पर कभी भी यह वस्तुएं न चढ़ाएं।

इसके अलावा चंपा और केतकी के फूल भी चढ़ाना वर्जित है।

भारत के अलग-अलग हिस्सों में महाशिवरात्रि का पर्व अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कश्मीर में महाशिवरात्रि का पर्व बेहद हर्षोल्लाह से मनाया जाता है तो उत्तर भारत और मध्य भारत में भी बड़े-बड़े संख्या में भक्तगण शिवरात्रि का पर्व मनाते हैं। दक्षिण भारत के राज्यों में भी शिवरात्रि अलग-अलग रूपों में विशेष हर्षोल्लास से मनाई जाती है।

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग भारत की सभी दिशाओं में स्थित हैं, इसीलिए हर जगह भगवान शिव का अपना अलग महत्व है और भगवान शिव के सभी द्वादश ज्योतिर्लिंग से संबंधित मंदिरों में इस दिन भारी मात्रा में भीड़ लगती है।

भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग इस प्रकार हैं…

  1. श्री केदारनाथ, केदारनाथ (उत्तराखंड)
  2. श्री काशीविश्वनाथ, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  3. श्री महाकालेश्वर, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
  4. श्री ओंकारेश्वर, खंडवा (मध्य प्रदेश)
  5. श्री सोमनाथ, सौराष्ट्र (गुजरात)
  6. श्री नागेश्वर, द्वारिकापुरम (गुजरात)
  7. श्री भीमाशंकर, पुणे (महाराष्ट्र)
  8. श्री त्रयंबकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
  9. श्री घुष्मेश्वर, औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
  10. श्री बैद्यनाथ, देवघर (झारखंड)
  11. श्री मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश)
  12. श्री रामेश्वरम, रामेश्वरम (तमिलनाडु)

महाशिवरात्रि का पूजन विधि-विधान

महाशिवरात्रि में व्रत धारण करने के लिए महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व ही व्रत धारण कर लेना चाहिए यानी त्रयोदशी की रात्रि से ही व्रत को धारण कर लेना चाहिए और व्रत का संकल्प ले लेना चाहिए।

उसके बाद चतुर्दशी के दिन पूरे दिन निराहार रहना चाहिए। यदि पूरी तरह निराहार रहना संभव न हो तो फलों का हल्का-फुल्का रस आदि लिया जा सकता है।

चतुर्दशी के दिन अपने दैनिक कार्यों से नृत्य हो निवृत्त होकर अपने घर के मंदिर में शिव की पूजा का पूजा-आराधना करनी चाहिए।

यदि घर में शिवलिंग स्थापित हो तो उस पर जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करना चाहिए।किसी निकटतम शिव मंदिर जाकर दुग्धाभिषेक और जलाभिषेक करना चाहिए। संभव हो और उपलब्ध हो तो गंगाजल से जलाभिषेक करने का विशेष्य फल प्राप्त होता है।

इस दिन शिवलिंग पर पंचामृत भी चढ़ाना चाहिए। वह भी बेहद फलदायक होता है।

पूरे दिन ओम नमः शिवाय मंत्र का मानसिक जप करते रहना चाहिए तथा पूजा करते समय भी ओम नमः शिवाय मंत्र का उच्चारण करते रहना चाहिए।

उसके अलावा शिव आराधना संबंधी अनेक स्त्रोत हैं, जिनका पाठ पाठन करना चाहिए, जिसमें अमोघ सदाशिव कवच, वेदसार शिव स्तव, शिव तांडव स्त्रोत आदि प्रमुख हैं। अंत में शिव क्षमापन आराधना स्तोत्र का पाठ करके भगवान शिव से क्षमा याचना करनी चाहिए। पूरे दिन और रात्रि तक व्रत धारण करने के बाद अगले दिन प्रातःकाल ब्राह्मण और निर्धनों को उचित दान दक्षिणा देकर व्रत को पूर्ण करना चाहिए।

 


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