Sunday, September 8, 2024

गुरु पूर्णिमा – गुरु के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने का पर्व – कैसे मनाएं?

हमारा भारत व्रत एवं त्योहारों का देश है। जहां पर हर महीने कोई ना कोई व्रत, पर्व, त्योहार आदि मनाई जाते हैं। गुरु पूर्णिमा (guru purnima) अपने गुरु के प्रति आस्था प्रकट करने का एक ऐसा ही पर्व है, जो पूरे भारत में मनाया जाता है। ये क्यों मनाया जाता है, कब मनाया जाता है, जानें…

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)

गुरु पूर्णिमा अपने गुरु के प्रति सम्मान एवं आस्था प्रकट करने का एक अनोखा पर्व है, जो शिष्यों द्वारा अपने आध्यात्मिक गुरु के प्रति सम्मान एवं आस्था प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह पर्व भारत सहित नेपाल और भूटान जैसे देशों में भी बनाया जाता है, जहाँ पर हिंदू धर्म तथा बौद्ध धर्म को मानने वाले अनुयायियों की संख्या काफी अधिक मात्रा में है।

हिंदू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। यह तिथि सामान्यता जून अथवा जुलाई के माह में आती है।

यहाँ पर गुरु से तात्पर्य विद्यालय में शिक्षा देने वाले वर्तमान शिक्षक से ही नहीं बल्कि अपनी आध्यात्मिक गुरु से है। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने आध्यात्मिक गुरु के प्रति अपने श्रद्धा भाव प्रकट करते हैं। यदि गुरु साक्षात शारीरिक रूप में उनके सम्मुख उपस्थित हैं तो वह उनका पूजन करते हैं। यदि गुरु सशरीर इस संसार में नहीं है तो वह उनके विग्रह का पूजन करते हैं। जिनके कोई गुरु नहीं है वह अपने शिक्षक आदि के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं।

‘गुरु’ का क्या अर्थ है?

गुरु’ संस्कृत का मूल शब्द है। ये दो वर्णों गु’ एवं रु’ से मिलकर बना है। गु’ का अर्थ है, अंधकार’। ‘रु’ का अर्थ है, शमन करने वाला अर्थात मिटाने वाला। वह व्यक्तित्व जो हमारे जीवन में अज्ञानता के अंधकार को दूर कर हमारे मन में ज्ञान के प्रकाश को आलोकित करता है, वही गुरु है। जो हमें सत्य और असत्य के बीच का भेद करना सिखाता है, जो हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाता है, वह ही गुरु है। इसीलिए तो कहा गया है, कि…

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अर्थात गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु और गुरु साक्षात शिव है। वह साक्षात परबह्मा स्वरूप हैं। गुरु को साक्षात पर ब्रह्म का स्वरूप मानकर नमन है।

हिंदू धर्म में गुरु को बेहद महत्व दिया गया है अनेक कवियों ने गुरु को भगवान से भी कुछ स्थान देकर उन्हें उनकी महत्व प्रकट की है, जैसे कबीरदास कहते हैं…

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।

अर्थात मेरे सामने गुरु मेरे गुरु और ईश्वर दोनों साथ-साथ खड़े हैं। फिर भी मैं संशय की स्थिति में हूँ, मैं उलझन में हूँ कि मैं सबसे पहले किस के चरण स्पर्श करूं। फिर मैं निर्णय करता हूं कि मैं सबसे पहले गुरु के चरण स्पर्श करूंगा। क्योंकि ईश्वर को तो पहले मैंने कभी देखा नहीं था। मैं उनके बारे में जानता नहीं था। मैं उनके स्वरूप से परिचित नहीं था।

ईश्वर को समझने की का ज्ञान मेरे अंदर नहीं था। मेरे अंदर ईश्वर को समझने का ज्ञान गुरु ने पैदा किया। गुरु ने ही मुझे ईश्वर को पाने का रास्ता बताया। इसी कारण मेरे लिए तो सबसे पहले मेरे गुरु हैं। कबीर के दोहे से गुरु का महत्व प्रकट होता है।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं?

गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे अनेक कहानियां छिपी हुई है। अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध गौतम बुद्ध ने इसी दिन सारनाथ में सबसे पहले अपने प्रथम उपदेश दिया था। गौतम बुद्ध ने अपने पाँच शिष्यों को सारनाथ में सबसे पहला उपदेश दिया जिसमें उन्होंने चार आर्य सत्य, चार अष्टांगिक मार्ग जैसे गूढ़ बातें बताई थीं। तब से इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा। यह दिन बौद्ध धर्म की शुरुआत का दिन भी माना जाता है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार प्राचीन काल के महान संत-गुरु महर्षि वेदव्यास का जन्म इसी दिन हुआ था। महर्षि वेदव्यास को ही हिंदुओं के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथों का संकलन करने का श्रेय दिया जाता है। इसी कारण इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

अन्य मान्यता के अनुसार एक बार जब भगवान शिव जब हिमालय में तपस्या कर रहे थे तो सप्तर्षी उनके पास आए और उन्हें ज्ञान एवं योग सिखाने के लिए कहा। शिव साक्षात योगीराज हैं। वह सप्तर्षियों को योग सिखाने पर सहमत हो गए और वह सप्तर्षियों के गुरु बन गए। उस दिन आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि थी। इसीलिए तभी से गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाने लगा।

गुरु पूर्णिमा को कैसे मनाते हैं?

गुरु पूर्णिमा को मनाने के लिए शिष्य अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार अलग-अलग विधियों से गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाते हैं। हिंदू धर्म में सामान्यतः हर किसी का कोई ना कोई आध्यात्मिक गुरु होता है। इस दिन लोग अपने अपने आध्यात्मिक गुरु के पास जाते हैं। उनकी पूजा करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं उनकी प्रार्थना करते हैं तथा उन्हें दान दक्षिणा देते हैं।

यदि गुरु सशरीर उपलब्ध नहीं है तो उनके चित्र अथवा विग्रह के सामने अपने पूजन कार्य संपन्न करते हैं। बहुत से लोग इस दिन ध्यान आदि कर अपने गुरु के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करते हैं। वर्तमान समय में विद्यार्थी अपने अपने प्रिय शिक्षक के प्रति अपना श्रद्धा भाव प्रकट कर गुरु पूर्णिमा को मना सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनानी चाहिए?

हम जन्म से ही ज्ञानी नहीं बन जाते। हम अज्ञानी ही पैदा होते हैं। हमें जान से समृद्ध यदि कोई करता है तो वह हमारे गुरु ही होता है। वह गुरु हमारे शिक्षक के रूप में हो सकता है, हमारे आध्यात्मिक रूप के रूप में हो सकता है। भारत में गुरु पूर्णिमा मनाने की परंपरा तो अपने आध्यात्मिक गुरु के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करने के लिए ही हुई थी। इसलिए गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा भाव प्रकट करने के लिए भी गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। जिनके कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं है। वह अपने शिक्षक के प्रति अपने अपना सम्मान प्रकट कर गुरु पूर्णिमा का पर्व मना सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करें?

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की विशिष्ट पूजा की जाती है। इस दिन गुरु का विशिष्ट विधि से पूजन करके उनके प्रति अपना श्रद्धा भाव प्रकट किया जाता है। गुरु तो वर्ष के 365 दिन स्मरणीय और वंदनीय होते हैं, लेकिन गुरु पूर्णिमा का दिन उनके प्रति विशेष आस्था एवं श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही गुरु पूर्णिमा के दिन नियत है।

इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विधान है। इसलिए अपने आसपास की किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। यदि आस पास कोई पवित्र नदी ना हो या नदी में स्नान करने के लिए ना जा सकें तो घर में ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है।

गुरु का पूजन कैसे करें?

सुबह-सुबह स्नान एवं ध्यान करके घर में एक चौकी स्थापित करें। उस पर अपने गुरु का चित्र स्थापित करें।

उनका आह्वान करें। गुरु व्यास के सहित सभी गुरुओं का भी आह्वान करें। फिर  षोडशोपचार विधि (चंदन, अक्षत, पुष्प धूप, दीप, नैवेद्य) से पूजा करें तथा अपने गुरु द्वारा किए गए मंत्र का कम से कम एक माला मंत्र जाप करें।

यदि संभव हो सके तो गुरु के घर जाकर उन्हें दान-दक्षिणा दें और उनसे आशीर्वाद लें।

गुरु के पास जाना संभव नहीं है, तो गुरु की चरण पादुका की पूजा करें।

गुरु पूर्णिमा के दिन पीले वस्त्र, पीली दाल, केसर, पीतल के बर्तन, पीले रंग की कोई मिठाई आदि का दान करना शुभ रहता है।

पीला रंग का संबंध गुरु ग्रह से होता है। इसलिए पीले रंग की वस्तुओं का दान करने से दुर्भाग्य दूर होता है और और जीवन में समृद्धि आती है

इस वर्ष 2024 में गुरु पूर्णिमा हिंदू पचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को है, जोकि इस वर्ष (2024) में 20 जुलाई 2024 संध्याकाल 5:59 से आरंभ होगी और 21 जुलाई को शाम 3:46 पर समाप्त होगी।

 


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