सावन का पवित्र महीना जो कि भगवान शिव के लिए समर्पित होता है, उसके आरंभ होते ही कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) भी आरंभ हो जाती है। कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था और भक्ति प्रकट करने का उपाय है। जिसमें शिव के भक्त गंगा नदी से गंगा जल एकत्रित कर अपने-अपने क्षेत्र में शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाते हैं, जिससे उनकी मनोकामना पूर्ण होती है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। कांवड़ कैसे आरंभ हुई? इसमें क्या नियम हैं? आइए जानते हैं…
कांवड़ यात्रा क्या है? (What is Kanwar Yatra?)
कांवड़ यात्रा एक वार्षिक तीर्थ यात्रा होती है, जो कि हर वर्ष सावन के महीने में शिव भक्तों द्वारा की जाती है। इस यात्रा में जो भी शिव भक्त होते हैं, वह कांवड़ में जल भरकर लाते हैं और या तो 12 ज्योतिर्लिंग में किसी एक ज्योतिर्लिंग में चढ़ाते हैं, या अपने क्षेत्र के किसी बड़े शिव मंदिर भगवान शिवलिंग का उस गंगाजल से अभिषेक करते हैं।
कांवड़ यात्रा अधिकतर उत्तर भारत में की जाती है क्योंकि गंगा नदी उत्तर भारत में बहती है। कांवड़ यात्रा में गंगा जल लाने का ही प्रावधान है अथवा किसी पवित्र नदी का जल गंगा नदी उत्तर और पूर्वी भारत के विभिन्न हिस्सों में ही बहती है, इसीलिए गंगा नदी के आसपास के क्षेत्रों में और राज्यों में कांवड़ यात्रा का प्रचलन है। कावड़ यात्रा विशेषकर हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार आदि राज्यों में बहुत अधिक प्रचलित है।
कांवड़ यात्रा कब आयोजित होती है?
कांवड़ यात्रा हर वर्ष सावन के महीने में आयोजित होती है। यह सावन का महीना हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन का महीना ईसवी कैलेंडर में जून-जुलाई के महीने में आता है। इसलिए कांवड़ यात्रा जून-जुलाई के महीने में ही होती है।
2024 की कांवड़ यात्रा कब है?
2024 में ये पवित्र यात्रा 22 जुलाई 2024 दिन सोमवार से शुरू हो रही है.
कब किया जाएगा कांवड़ यात्रा जलाभिषेक
कांवड़ यात्रा में सावन शिवरात्रि पर जलाभिषेक किया जाता है। इस साल श्रावण मास अधिकमास है, इसलिए इस बार 2024 में दो मासिक शिवरात्रि (सावन शिवरात्रि) होंगी.
पहली शिवरात्रि 15 जुलाई को होगी और जल का समय 16 जुलाई सुबह 12:11 बजे से 12:54 बजे के बीच होगा। दूसरी शिवरात्रि 14 अगस्त को होगी और जल का समय 15 अगस्त सुबह 12:09 बजे से 12:54 बजे के बीच होगा।
कांवड़ यात्रा सावन के महीने में ही क्यों आयोजित होती है?
कांवड़ यात्रा सावन के महीने में इसलिए होती है, क्योंकि इस महीने में भगवान मान्यताओं के अनुसार इस महीने में सभी देवता विश्राम करते हैं। केवल भगवान शिव ही इस संसार का संचालन करते हैं। वह इस महीने में विशेष रूप से जागृत रहते हैं, इसीलिए इस महीने में उनकी भक्ति में श्रद्धापूर्वक उनकी भक्ति करने पर भगवान से शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव से संबंधित अनेक विशेष घटनाएं भी सावन महीने में ही संपन्न हुई थी। जैसे समुद्र मंथन उसके बाद भगवान शिव का विषपान, भगवान शिव पार्वती का विवाह आदि।
कांवड़ क्या है?
कांवड़ एक छोटी सी मटकी होती है जो कि सामान्यतः मिट्टी की होती है, अब उसे धातु की मटकी का भी प्रयोग किया जाने लगा है। इसी मटकी में गंगाजल भरकर लाया जाता है, इसी जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है।
कांवड़ यात्रा कब से आरंभ हुई?
कांवड़ यात्रा आरंभ होने के पीछे अनेक तरह की मान्यताएं प्रचलित है। कांवड़ यात्रा आरंभ होने की पहली मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम ने ही कांवड़ यात्रा का आरंभ किया था। वह सबसे पहले गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लाकर पुरा महादेव के शिव मंदिर में उन्होंने भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय श्रावण मास ही चल रहा था। उसी के बाद से कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हो गया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान राम ने कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी और वह गंगा नदी से गंगाजल भरकर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग में उन्होंने शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। तीसरी मान्यता के अनुसार रावण को पहला कांवड़िया बताया जाता है। समुद्र मंथन के बाद रावण ने ही जब भगवान शिव ने विष ग्रहण कर लिया तो इसका दुष्प्रभाव उन पर पड़ने लगा। ऐसे में रावण ने उन्हें विष के नकारात्मक प्रभाव से मुक्त करने के लिए उनका गंगाजल से अभिषेक किया था। तभी से कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हो गया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ और भगवान शिव ने विष का पान किया तो विष के दुष्प्रभाव के कारण उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा। तब शिव पर विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवता गंगाजल से जल लाकर भगवान शिव अर्पित किए। तब से कांवड़ यात्रा का आरंभ हो गया।
कांवड़ कितने प्रकार की होती है?
कांवड़ से भी अनेक प्रकार हैं। कांवड़िए अलग-अलग तरह की कांवड़ लेकर चलते हैं और उसी के अनुसार उस कांवड से जुड़े नियमों का उन्हें पालन करना पड़ता है।
सामान्य कांवड़
यह कांवड़ सामान्य कांवड़ होती है, जिसे सबसे अधिक कांवड़िए लेकर चलते हैं। इस कारण ये कांवड़ यात्रा के दौरान जहां चाहे वहां आराम से ही रोका जा सकता है। अलग-अलग स्वयंसेवी लोगों द्वारा पंडालों की व्यवस्था होती है, जहां पर विश्राम करते आगे की कांवड़ यात्रा शुरू की जा सकती है।
डाक कांवड़
डाक कांवड़ में कांवड़िया एक बार जब कांवड़ यात्रा की शुरुआत कर दें तो उसे लगातार चलते रहना पड़ता है। जब तक भगवान शिव का गंगाजल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक नहीं करते, वह रुक नहीं सकता। इस तरह के कांवड़ियों के लिए विशेष रास्ते होते हैं ताकि उनके रुकने में किसी भी तरह का व्यवधान ना हो। डाक कांवड़ में लंबी कांवड़ यात्रा नही होती क्योंकि लगातार कई दिनों तक बिना रुके चलना संभव नहीं।
खड़ी कांवड़
यह एक विशेष कांवड़ होती है, जिसमें भक्तजन जो कांवड़ लेकर चलता है। उसकी सहायता के लिए उसके साथ कोई ना कोई सहयोगी चलता है। जब वह वक्त आराम करता है तो उसका सहयोगी अपने कंधे पर कांवड़ लेकर खड़ा रहता है ताकि भक्त थोड़ा विश्राम करने के बाद फिर यात्रा संपन्न कर सकें।
दंडी कावड़
इस कांवड़ में भक्तगण जिस नदी से जल जाते हैं, वहाँ से शिव धाम तक की यात्रा में दंड देते हुए पूरी करते हैं यानी अपनी पूरी यात्रा की दौरान वह अपने शरीर की लंबाई के अनुसार लेट कर यात्रा पूरी करते हैं। इस दंडवत प्रणाम करना कहते हैं। यह यात्रा सबसे कठिन कांवड़ यात्रा होती है, एक सहयोगी कांवड़ लेकर चलता है तथा दूसरा दंडवत लेट कर यात्रा करता हुआ जाता है।
कावंड़ यात्रा के नियम
कांवड़ यात्रा से कई कठोर नियम भी जुड़े होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। तभी कांवड़ यात्रा का सच्चा फल प्राप्त होता है।
- कांवड़ यात्रा के दौरान पूरी तरह सात्विक जीवनशैली अपनानी पड़ती है और किसी भी तरह के मांस-मदिरा, नशा आदि से दूर रहना पड़ता है ।
- कांवड़ यात्रा के दौरान तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।
- कांवड़ यात्रा का कांवड़िया केवल एक समय भोजन करता है।
- कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया बिना स्नान किए अपनी कांवड़ को स्पर्श ना करें।
- कांवड़ यात्रा के दौरान तेल, साबुन, कंघी आदि का प्रयोग वर्जित है, और किसी भी तरह का श्रंगार नही करना चाहिए।
- कांवड़िया ना तो चारपाई पर सो सकता है ना ही उसे किसी वाहन पर चढ़कर यात्रा करना चाहिए। कांवड़ियों को सदैव जमीन पर सोना चाहिए।
- जब कांवड़िया कांवड़ यात्रा कर रहा हो तो अपनी कांवड़ विश्राम के समय किसी वृक्ष या पौधे के नीचे नहीं रखें नहीं तो इससे कांवड़ खंडित मानी जाती है।
- कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया भूमि से स्पर्श नहीं कर सकता।
- विश्राम के दौरान जब वह अपनी कांवड़ अपनी कांवड़ को रखता है, तो कांवड़ रखने को विशेष स्टैंड बने होते हैं। कांवड़ द्वारा विशेष स्टैंड बनाए जाते हैं। जिन पर कांवड़ को टिका सकता है, जो भूमि को स्पर्श नहीं करते।
- कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया को ‘बोल बम बोल बम’ का उच्चारण करना चाहिए तथा ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र का निरंतर जप करते रहना चाहिए।
- अपनी कांवड़ को सिर के ऊपर से कभी भी ना ले जाएं। यदि कांवड़िया किसी स्थान पर अपनी कांवड़ को रखता है तो उस स्थान से आगे कांवरियों को कभी नहीं जाना चाहिए। उस स्थान से आगे अपनी कांवड़ को साथ लेकर ही जा सकता है।
कांवड़ यात्रा के बारे में और जानने के लिए ये वीडियों देखें
https://www.youtube.com/watch?v=nC1M5fedGJY
ये भी पढ़ें…
श्रावण मास – भगवान शिव को समर्पित महीना – विधि-विधान और महत्व जानें।
Shiv Tandav Stotram – शिव तांडव स्तोत्र (संपूर्ण 18 श्लोक) अर्थ सहित।
महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनातें है? क्या है मान्यता और पूजन विधि? जानें सब कुछ।