बनारस/दिशा : केदारनाथ सिंह (कक्षा-12 पाठ-4 हिंदी अंतरा भाग 2)

NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)

बनारस/दिशा : केदारनाथ सिंह (कक्षा-12, पाठ-4, अंतरा भाग 2)

BANARAS/DISHA : Kedarnath Singh (Class-12 Chapter-4 Hindi Antra 2)


पाठ के बारे में…

प्रस्तुत पाठ में कवि केदारनाथ सिंह द्वारा रचित दो कवितायें ‘बनारस’ और ‘दिशा’ प्रस्तुत की गई हैं।

‘बनारस’ कविता के माध्यम से कवि केदारनाथ सिंह ने बनारस के प्राचीन सांस्कृतिक वैभव के साथ-साथ बनारस के ठेठ बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला है। कवि के अनुसार बनारस जहाँ शिव की नगरी और गंगा नदी के कारण आस्था का विशिष्ट केंद्र है। वहीं बनारस का एक अलग ठेठ बनारसीपन भी है। बनारस में गंगा नदी, गंगा के घाट, मंदिर तथा मंदिरों और घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरे में जिस तरह बसंत उतरता है। उसका चित्रण उन्होंने कविता के माध्यम से किया है। कटोरा में बसंत उतरने से अभिप्राय भिखारियों को पर्याप्त भिक्षा मिल रही है।

‘दिशा’ कविता के माध्यम से कवि ने बाल मनोविज्ञान को कविता में उकेरा है। उन्होंने पतंग उड़ाते बच्चों हिमालय के बारे में पूछा है । पतंग उड़ाता बालक अपने अंदाज में उत्तर देता है कि हिमालय उधर ही है, जिधर उसकी पतंग जा रही है। तभी कवि को यथार्थ का बोध होता है कि हर व्यक्ति के देखने का नजरिया अपना होता है, वह वही देखता है जिसकी उसे चाह होती है।


रचनाकार के बारे में…

केदारनाथ सिंह हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि रहे हैं, जिनका जन्म सन 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम.एय किया था और उसके बाद उन्होंने आधुनिक ‘हिंदी कविता में बिंब विधान’ विषय पर पीएचडी की उपाधि भी प्राप्त की। कुछ समय गोरखपुर में हिंदी प्राध्यापक के तौर पर कार्य करने के बाद उन्होंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्राचार्य पर पर लंबे समय तक कार्य किया और उन्हें वहीं से सेवानिवृत्ति प्राप्त की।

केदारनाथ सिंह मानवीय संवेदनाओं के कवि रहे हैं, जिन्होंने कविताओं में बिंब-विधान पर अधिक जोर दिया है। उनकी कविताओं में व्यर्थ शोर-शराबा ना होकर विद्रोह का शांत और संयत स्वर्ग प्रकट होता है। केदारनाथ सिंह की प्रमुख कृतियों में उनके सात काव्य संग्रह अभी बिल्कुल अभी, जमीन एक रही है, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर तथा अन्य कविताएं, बाघ, टॉलस्टॉय और साइकिल हैं।

कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान का विकास आदि उनकी आलोनात्मक पुस्तकें हैं। उनके द्वारा रचित निबंधों में मेरे शब्द समय के शब्द तथा कब्रिस्तान में पंचायत का नाम प्रमुख है।

सन 2018 में उनका निधन हुआ


बनारस/दिशा : केदारनाथ सिंह


पाठ के हल प्रश्नोत्तर :

(बनारस)

प्रश्न 1

बनारस में वसंत का आगमन कैसे होता है और उसका क्या प्रभाव इस शहर पर पड़ता है?

उत्तर :

‘बनारस’ कविता में कवि केदारनाथ सिंह के अनुसार जब बनारस में वसंत का आगमन होता है, तो चारों तरफ धूल के बवंडर बनने लगते हैं। मोहल्ले हों या और कोई जगह हर जगह पर धूल ही धूल छा जाती है। यहाँ तक कि लोगों के मुंह में भी धूल चली जाती है और इस कारण उनके मुंह में किरकिराहट होने लगती है।

कवि के अनुसार आमतौर पर वसंत ऋतु में चारों तरफ फूलों की बहार छा जाती है और फूलों की सुगंध से पूरा वातावरण महक उठता है। पेड़ पौधों पर नए-नए पत्ते तथा कोपलें निकलने लगती हैं, लेकिन बनारस के बसंत में ऐसा कुछ नहीं होता। यहाँ का बसंत धूल से भरा हुआ होता है। यहाँ का बसंत तो भिखारी के कटोरों में दिखायी देती है अर्थात उन्हे भीख मिलन लगती है। बनारस में गंगा के घाट लोगों की भीड़ से भर जाते हैं।

बनारस का बसंत आम बसंत इस प्रकार भिन्न होता है, जहाँ वसंत ऋतु में चारों तरफ बहार ही बहार छाई होती है, वहाँ बनारस के बसंत में धूल ही धूल छाई होती है।


प्रश्न 2

‘खाली कटोरों में बसंत का उतरना’ से क्या आशय है?

उत्तर :

‘खाली कटोरों में बसंत का उतरना’ से कवि का आशय यह है कि बनारस के घाटों पर बैठे भिखारियों को पर्याप्त भीख मिलने लगी है।

‘बनारस’ शहर में वसंत के आगमन पर गंगा के घाटों पर लोगों की भीड़ बढ़ने लगी है। इससे भिखारियों को भी पर्याप्त भीख मिलने लगी है यानी उनके कटोरे जो भीख ना मिलने के कारण खाली रहते थे, अब उनमें पैसे दिखाई देने लगे हैं।
सच्चे अर्थों में तो बसंत उन्हीं के कटोरों में दिखाई दे रहा है। बसंत का मतलब बहार से होता है और भिखारियों के कटोरों में धन रूपी बहार दिखाई दे रही है। कुछ समय तक उनके खाने-पीने की चिंताएं मिट गई हैं और वह भी प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं। इसीलिए कवि ने ‘खाली कटोरों में बसंत उतरना’ की संज्ञा भिखारियों को पर्याप्त भीख मिलने से की है।


प्रश्न 3

बनारस की पूर्णता और रिक्तिता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है?

उत्तर :

बनारस की पूर्णता और रिक्तिता को कवि ने अलग-अलग रूपों में दिखाया है। कवि के अनुसार बनारस की पूर्णता उसके उल्लास और उत्साह में है। बनारस हर स्थिति में प्रसन्न रहता है। यहां पर अनेक तरह के कष्ट और कठिनाइयां है, उसके बाद भी यहां के लोग उत्साह और आनंद से भरपूर रहते हैं। यह शहर उल्लास और आनंद का प्रतीक है। यही बनारस की पूर्णता है।

बनारस की रिक्तिता को कवि ने मृत शरीरों के माध्यम से दर्शाया है। कवि के अनुसार बनारस में गंगा के घाटों पर रोज कितने ही शव दाह संस्कार के लिए आते हैं। यह शव जब चार कंधों पर अपनी अंतिम यात्रा के लिए निकल रहे होते हैं, तो उस समय बनारस के जीवन की रिक्तिता का एहसास होता है। यह दृश्य जीवन के मृत्यु रूपी परम सत्य की याद दिलाता है। यही बनारस की रिक्तिता है।

इस तरह कवि ने बनारस के उल्लास और आनंद को उसकी पूर्णता तथा गंगा घाटों पर शव-दाह एवं मृत्यु रूपी सत्य को उसकी रिक्तिता के रूप में दिखाया है।


प्रश्न 4

बनारस में धीरे-धीरे क्या होता है? ‘धीरे-धीरे’ से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?

उत्तर :

धीरे-धीरे’ शब्द युग्म के द्वारा कवि ने बनारस के बारे में अनेक प्रतिमान गढ़े हैं।

कवि के अनुसार शहर में जो धूल उड़ती है, वह धीरे-धीरे उड़ती है। बनारस शहर के लोग भी धीरे-धीरे चलते हैं। यहां के मंदिरों में धीरे-धीरे घंटे बजते रहते हैं। बनारस की जो शाम ढलती है, वह भी धीरे-धीरे ढलती है।

इस तरह कवि के अनुसार बनारस में लगभग सभी काम धीरे-धीरे होना ही इस शहर की विशेषता है।

धीरे-धीरे यानी मंद-मंद गति इस शहर को एक सामूहिक लय प्रदान करती है। धीरे-धीरे के माध्यम से कभी बनारस में हो रहे परिवर्तनों को भी प्रकार स्पष्ट कर रहा है।

कवि के अनुसार दुनिया में अनेक तरह के बदलाव हो रहे हैं और यह बदलाव बेहद तीव्र गति से हो रहे हैं, जिससे जो पुराना है, वह कहीं खो जाता है। लोग बदलाव की आंधी में बहते चले जा रहे हैं और इस कारण हमारी पुरानी सभ्यता एवं संस्कृति तेजी से नष्ट होती जा रही है।

कवि के अनुसार लेकिन बनारस इस तरह के तेज बदलाव से अछूता है। यहाँ पर जो भी बदलाव हो रहा है, वह धीरे-धीरे हो रहा है। इसलिए बनारस की मूल संस्कृति उसकी विरासत और उसकी धार्मिक मान्यताएं अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। वह अपने पुराने स्वरूप को अभी तक बनाए रखे हुए हैं।

‘धीरे-धीरे’ होने का यही भाव बनारस की सबसे बड़ी विशेषता है।


प्रश्न 5

‘धीरे-धीरे’ होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है?

उत्तर :

‘धीरे-धीरे’ होने की सामूहिक लय में पूरा का पूरा बनारस ही बंधा हुआ है। बनारस कविता में कवि ‘धीरे-धीरे’ होने की इस सामूहिक लय को बनारस की विशेषता बताता है। कवि के अनुसार धीरे-धीरे होने की यह सामूहिक लय ही बनारस को एक विशेष मजबूती प्रदान करती है।

बनारस में जो भी घटित होता है. वह धीरे-धीरे होता है। यहाँ पर जो भी परिवर्तन हो रहे हैं, वह सब धीरे-धीरे हो रहे हैं। इसी कारण प्राचीन काल से जो चीजें यहां पर विद्यमान थीं, वह अभी भी विद्यमान हैं। बनारस की पुरानी सभ्यता और संस्कृति पूरी तरह नष्ट नहीं हुई है।

गंगा के घाटों पर आज भी नावे वहीं पर बँधी हुई मिल जाएंगी, जहाँ वह सदियों से बंधी चली आ रही थीं। बनारस में तुलसीदास जी की खड़ाऊ भी उसी स्थान पर सुरक्षित हैं, जहाँ पर सदियों पहले थीं।

बनारस में जो भी परिवर्तन हो रहे हैं, वह संसार के अन्य भागों की तरह तेज गति से ना होकर धीरे-धीरे हो रहे हैं। इसी कारण इन परिवर्तनों में एक सामूहिक लय उत्पन्न हो गई है। जिस कारण इस सामूहिक लयबद्धता में पूरा बनारस शहर बँध गया है और अधिक मजबूत हुआ है।

अपने आसपास हो रहे तेज बदलावों से बनारस अछूता है। यहां की परंपराएं, मान्यताएं, धार्मिक आस्थायें और विरासत आदि सभी सुरक्षित हैं। उन पर तेजी से हो रहे बदलाव का असर नहीं चढ़ा है।


प्रश्न 6

सई सांझ’ में घुसने पर बनारस की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है?

उत्तर :

‘बनारस’ कविता में ‘सई सांझ’ में घुसने पर यानी कवि के अनुसार बनारस की शाम के बनारस शहर में प्रवेश करने पर बनारस शहर की निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है…

  • शाम के समय बनारस के मंदिरों में हो रही आरती और घंटियों की ध्वनि पूरे वातावरण को दिव्यता से गुंजायमान कर देती है।
  • गंगा पर हो रही आरती के आलोक में बनारस नगर और अधिक भव्य एवं दिव्य हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि बनारस शहर कभी आधा जल में है तो कभी आधे जल के ऊपर तैर रहा है।
  • बनारस के घाटों में चारों तरफ धार्मिक परंपराएं रीति-रिवाज निभाये जा रहे हैं। कहीं पर पूजा और मंत्रों के उच्चारण सुनाई दे रहे हैं, तो कहीं पर घाटों पर शवों का दाह संस्कार हो रहा है। इस तरह बनारस में उल्लास एवं अवसान दोनों तरह के रूप देखने को मिलते हैं।
  • यहाँ पर पूजा और धार्मिक कर्मकांडों के रूप में जीवन की पूर्णता भी देखने को मिलती है तो शव दाह संस्कार के रूप में जीवन की रिक्तिता भी देखने को मिलती है।
  • बनारस शहर आधुनिकता एवं प्राचीनता का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता है। यहाँ पर सभी पुरानी प्राचीन मान्यताएं अभी भी जीवित हैं। प्राचीन धरोहरें एवं विरासतें आदि सभी अपने पूर्व रूप में हैं, लेकिन यहाँ पर धीरे-धीरे नवीनतम बदलाव भी हो रहे हैं। इस तरह यहाँ पर प्राचीनता एवं आधुनिकता का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है।

प्रश्न 7

बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएं इस कविता (बनारस) में आई हैं, उनका व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

बनारस शहर के लिए ‘बनारस’ कविता में दो जगह मानवीय क्रियाएं प्रकट हुई हैं। जोकि इस प्रकार हैं…

 पंक्ति : ‘और इस महान और पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है।’

व्यंजनार्थ :  पंक्ति का व्यंजनार्थ ये है कि बनारस शहर में वसंत ऋतु के समय चारों तरफ धूल ही धूल उड़ती हुई दिखाई देती है। जिससे बनारस के लोगों के मुँह में तक धूल पहुंच जाती है और उनकी जीभ किरकिराने लगती है। बनारस के लोगों की जीभ को किरकिराने को कवि ने बनारस की जीभ किरकिराने के व्यंजनार्थ प्रयोग किया गया है।

पंक्ति : अपनी एक टांग पर खड़ा है यह शहर अपनी दूसरी टांग से बिलकुल बेखबर।

व्यंजनार्थ : बनारस एक आध्यात्मिक शहर है और वह अपनी आध्यात्मिकता में इतना मगन है कि उसे आस-पास हो रहे बदलावों की कोई खबर नहीं है। बनारस में धीरे-धीरे बदलाव हो रहे हैं इसी कारण वह अपनी प्राचीनता को भी बरकरार रखे हुए हैं और धीरे-धीरे आधुनिकता की ओर अग्रसर है। लेकिन उसे अपने आसपास हो रहे तेज गति से बदलाव की कोई खबर खोज खबर नहीं और इन सब से अछूता है।


प्रश्न 8

शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

(क) यह धीरे-धीरे होना धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय दृढ़ता से बांधे हैं समूचे शहर को।

(ख) अगर ध्यान से देखो, तो यह आधा है, और आधा नही है।

(ग) अपनी एक टांग पर खड़ा है ये शहर अपनी दूसरी टांग से बिल्कुल बेखबर।

उत्तर :

शिल्प सौंदर्य इस प्रकार होगा :

(क) यह धीरे-धीरे होना
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बांधे हैं समूचे शहर को।

शिल्प सौंदर्य : इस पंक्ति में धीरे-धीरे शब्द-युग्म के माध्यम से ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ अलंकार प्रकट हो रहा है। ‘धीरे-धीरे’ के माध्यम से कवि ने बनारस शहर में धीमी गति से हो रहे बदलावों को इंगित किया है। कवि के अनुसार धीरे धीरे बनारस में हो रहे हैं। यह धीरे-धीरे ही बनारस की विशेषता है। धीमी गति से चलना बनारस की संस्कृति में निहित है। लाक्षणिकता का भाव पंक्ति में समाहित हो रहा है।

(ख) अगर ध्यान से देखो, तो यह आधा है, और आधा नही है।

शिल्प सौंदर्य : पंक्ति में अनुप्रास अलंकार भी प्रयुक्त हुआ है। पंक्ति के माध्यम से कवि ने बनारस शहर की मित्रता प्रकट की है। कवि के अनुसार कभी-कभी उसे बनारस में सब कुछ पूर्ण नहीं दिखाई देता है तो वह आधा बोलकर ही अपने अधूरेपन के भाव को व्यक्त कर देता है।  पंक्ति में प्रतीकात्मक प्रकट की है। आधा शब्द के माध्यम से कवि कविता में चमत्कार उत्पन्न कर रहा है।

(ग) अपनी एक टांग पर खड़ा है ये शहर
अपनी दूसरी टांग से बिल्कुल बेखबर।

शिल्प सौंदर्य :  पंक्ति में अनुप्रास अलंकार प्रकट हुआ है। इस पंक्ति में कवि बनारस की आध्यात्मिकता से भरी संस्कृति को प्रकट कर रहा है। बनारस शहर आध्यात्मिकता के रंग में इतना डूबा हुआ है कि वह अपने आसपास हो रहे बदलावों से बिल्कुल भी अनजान है। एक टांग पर खड़ा होना मुहावरे के संदर्भ में प्रयुक्त किया है। पंक्तियों में लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता दोनों का मिश्रण है।


(दिशा)

प्रश्न 1

बच्चे का इधर-उधर कहना क्या प्रकट करता है?

उत्तर :

बच्चे का इधर-उधर कहना यह प्रकट करता है कि बच्चे को केवल उसी दिशा से मतलब है जिस दिशा में उसकी पतंग उड़ी जा रही है। वह केवल उसी दिशा को जानता है। वह यह नहीं जानता कि हिमालय की दिशा कहाँ है? उसे हिमालय की दिशा में कोई मतलब नहीं है। उसे तो केवल उसी दिशा से मतलब है, जिस दिशा में उसकी पतंग उड़ी जा रही है। वह केवल उसी दिशा में अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।


प्रश्न 2

मैं स्वीकार करूं, मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है?’ प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :

मैं स्वीकार करूं, मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है?’ ‘दिशा’ कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि केदारनाथ सिंह ने यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि अपने लक्ष्य के प्रति व्यक्ति की लगन ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है।
कवि जानता है कि हिमालय उत्तर दिशा में है और वह बच्चे से इस बारे में पूछता है तो बच्चे को हिमालय उत्तर दिशा में होने से कोई मतलब नहीं।

कवि को पता था कि हिमालय उत्तर दिशा में है लेकिन बच्चे द्वारा उसकी विपरीत दिशा में हिमालय होने का भाव प्रकट होने से कवि को पहली बार लगा कि मैंने पहली बार जाना कि हिमालय किधर है। क्योंकि यह बच्चे की पतंग उड़ाने के प्रति अपनी लगन को प्रकट करता है। बच्चा तो बस अपनी पतंग को प्राप्त करना चाहता है और इसीलिए उसी दिशा में चला जा रहा है, जहां उसकी पतंग जा रही है। हिमालय की दिशा से उसका कोई लेना-देना नहीं, उसके लिए पतंग महत्वपूर्ण है।ष उसी तरह व्यक्ति के जीवन में उसके लक्ष्य महत्वपूर्ण होने चाहिए। बाकी बातें गौण हैं।


(योग्यता विस्तार)

प्रश्न 1

आप बनारस के बारे में क्या जानते हैं? लिखिए। 

उत्तर :

हम बनारस के बारे में यह जानते हैं कि बनारस भारत का एक प्राचीनतम शहर है। यह एक सांस्कृतिक नगरी होने के साथ-साथ पौराणिक नगरी भी है। बनारस हिंदुओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में माना जाता है। किसे शिव की नगरी भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है। इन्हीं कारणों से यह हिंदू धर्म के लिए आस्था का केंद्र भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बनारस को मोक्षदायिनी नगरी माना जाता है। अर्थात जिस व्यक्ति की बनारस में मृत्यु होती है, उसे मोक्ष मिल जाता है।

भौगोलिक दृष्टि से बनारस ‘वारणा’ और ‘असी’  इन दो नदियों के बीच स्थित है, इसी कारण इसे वाराणसी कहा जाता है। वाराणसी इसका आज आधुनिक एवं आधिकारिक नाम है। इस नगर को बनारस और काशी के नाम से भी जाना जाता है। बनारस अध्यात्म, संगीत और संस्कृति का केंद्र रहा है। यहाँ का काशी विश्वनाथ मंदिर बेहद प्रसिद्ध मंदिर है, जो भगवान शिव का एक प्रमुख मंदिर है। संत कवि तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना यहीं पर की थी। हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद का जन्म भी बनारस में ही हुआ है।


प्रश्न 2

बनारस के चित्र इकट्ठे कीजिए।

उत्तर :

विद्यार्थी इसे अपनी परियोजना कार्य के अनुसार करें और अलग पत्र-पत्रिकाओं तथा अन्य स्रोतों से चित्र इकट्ठे करें।


प्रश्न 3

बनारस शहर की विशेषताएं जानिए।

उत्तर :

बनारस शहर की विशेषताएं निम्नलिखित हैं…

  • बनारस एक प्राचीनतम नगरी है।
  • बनारस एक आध्यात्मिक एवं पौराणिक नगरी है।
  • बनारस मंदिरों की का नगर भी है, क्योंकि यहां पर बड़ी संख्या में मंदिर पाए जाते हैं।
  • बनारस भगवान शिव के काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है।
  • बनारस संगीत के घरानों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है और प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान का जन्म यहीं हुआ था।
  • बनारस हिंदी साहित्यकारों की जन्मस्थली रहा है। महान उपन्यास सम्राट प्रेमचंद तथा महान कवि जयशंकर प्रसाद दोनों का जन्म बनारस में ही हुआ था।
  • भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश बनारस में ही दिया था, जोकि सारनाथ नामक स्थान पर दिया था।
  • उद्योग की दृष्टि से बनारस अपनी बनारसी साड़ियों के लिए बेहद प्रसिद्ध रहा है।
  • बनारस भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा संसदीय क्षेत्र भी है।

बनारस/दिशा : केदारनाथ सिंह (कक्षा-12 पाठ-4 हिंदी अंतरा 2)

BANARAS/DISHA : Kedarnath Singh (Class-12 Chapter-4 Hindi Antra 2)


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