NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
ये दीप अकेला/मैंने देखा एक बूंद : सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (कक्षा-12 पाठ-3 हिंदी अंतरा भाग 2)
YE DEEP AKELA/MAINE DEKHA EK BOOND : Sachchidanand Hiranand Vatsyayan Ageya (Class-12 Chapter-3 Hindi Antra 2)
पाठ के बारे में…
‘यह दीप अकेला’ और ‘मैंने देखा एक’ बूंद इन दो कविताओं के माध्यम से कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय में मनुष्य को दीप का प्रतीक बनाकर संसार में उसकी यात्रा का वर्णन किया है। कवि ने दीप एवं मनुष्य की तुलना करके दोनों के स्वभाव एवं गुणों की तुलना की है।
‘मैंने देखा एक बूंद’ कविता में कवि ने समुद्र से अलग होती हुई बूंद की क्षणभंगुरता की व्याख्या की है और यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि क्षणभंगुरता बूंद की होती है, समुद्र की नहीं। उसी तरह संसार में क्षणभंगुरता मनुष्य की है, संसार की नहीं।
रचनाकार के बारे में..
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय हिंदी साहित्य के अद्भुत कवि रहे हैं। उनका जन्म 1911 में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर शहर में हुआ था। उनका आरंभिक जीवन लखनऊ श्रीनगर और जम्मू में बीता था। एक यात्री के रूप में उन्होंने अनेक देश विदेशों की यात्रा की और अनेक तरह की नौकरियां भी की। वह हिंदी की प्रसिद्ध समाचार पत्रिका दिनमान के संपादक भी थे। उन्होंने नवभारत टाइम्स समाचार पत्र का संपादन किया था। इसके अलावा उन्होंने सैनिक विशाल भारत प्रतीक और नया प्रतिदिन साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया था।
हिंदी साहित्य में उन्होंने अनेक कृतियों की रचना की जिनमें उन्होंने कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृतांत, निबंध, आलोचना आदि विभिन्न तरह की साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है।
उनकी प्रसिद्ध कृतियों में शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी (उपन्यास), अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली (यात्रा वृतांत) त्रिशंकु, आत्मनेपद (निबंध) विपथगा, परंपरा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल और यह तेरे प्रतिरूप कहानी संग्रह का नाम प्रमुख है।
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत भारती सम्मान और भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
सन 1987 में उनका निधन हुआ।
ये दीप अकेला/मैंने देखा एक बूंद : सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
पाठ के हल प्रश्नोत्तर
(ये दीप अकेला)
प्रश्न 1
‘यह दीप अकेला’ के प्रतीकार्थ को स्पष्ट करते हुए यह बताइए कि उसे कवि ने स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता क्यों कहा है?
उत्तर :
‘यह दीप अकेला’ का प्रतीकात्मक अर्थ व्यक्ति के संदर्भ में बताया गया है।
कवि ने इस कविता में दीप को मनुष्य का प्रतीक बनाया है. जो इस संसार में अकेला आता है।
पंक्ति का अर्थ समाज से है अर्थात जिस तरह दीप को जलाकर पंक्ति में रख दिया जाता है, उसी तरह मनुष्य इस संसार में आकर समाज का एक भाग बन जाता है। दीप जब तक जलता है तब तक वह प्रकाश प्रदान करता है।
दीप तेल के कारण जलता है। मनुष्य अपने स्नेह रूपी तेल से जलता है, आचरण एवं स्वभाव रूपी प्रकाश फैलाता है।
दीप जब तक जलता है, उसकी लौ झुकती नहीं है, जो उसके गर्व को सूचित करती है। मनुष्य जब तक संसार में अपने कर्म को जब तक करता वह झुकता नहीं है और इससे कर्मशील मनुष्य का गर्व प्रकट होता है।
दीप की लौ कभी-कभी इधर उधर हिलती रहती है। उसी तरह मनुष्य का मन भी कभी-कभी इधर उधर भटकता रहता है।
इसी कारण कवि ने दीप को स्नेह भरा, गर्व भरा एवं मदमाता कहा है।
प्रश्न : 2
‘यह दीप अकेला है, पर इसको भी पंक्ति को दे दो’ के आधार पर व्यष्टि का समष्टि में विलय कैसे संभव है?
उत्तर :
इस कविता में कवि ने दीप को मनुष्य का प्रतीक बनाया है, जबकि पंक्ति को समाज का प्रतीक बनाया है। जिस तरह दीप को पंक्ति में रखने से वह अन्य दीपों के साथ मिलकर अधिक प्रकाश उत्पन्न करता है। उसी तरह मनुष्य को भी समाज के साथ जोड़ने से वह समाज के अन्य लोगों के साथ मिलकर अधिक उपयोगी होता है और समाज का कल्याण करता है।
दीप का पंक्ति में होना आवश्यक है, उसी तरह मनुष्य का समाज में होना आवश्यक है। दीप पंक्ति में स्थान पाकर अधिक बलशाली हो जाता है और अन्य दीपों दीपों के साथ मिलकर अधिक प्रकाश उत्पन्न करने की क्षमता ग्रहण कर लेता है। उसी तरह मनुष्य भी समाज में एकाकार होकर अधिक उपयोगी हो जाता है।
इस तरह व्यष्टि का समष्टि में मिलन होता है। जहाँ पर दीप और मनुष्य व्यष्टि का प्रतीक हैं, वही पंक्ति एवं समाज समष्टि का प्रतीक हैं।
अकेला दीप अथवा अकेला मनुष्य कुछ नहीं कर सकते, उनका पंक्ति और समाज में विलय होने से उनकी शक्ति का विस्तार होता है और वह समाज के लिए अधिक उपयोगी और अधिक क्षमतावान बनते हैं।
प्रश्न 3
‘गीत’ और ‘मोती’ की सार्थकता किस से जुड़ी हुई है?
उत्तर :
‘गीत’ और ‘मोती’ की सार्थकता उनकी उपयोगिता से जुड़ी हुई है। जब तक गीत गाया नहीं जाएगा, उसकी सार्थकता सिद्ध नहीं होगी। उसी प्रकार मोती को जब तक गोताखोर समुद्र से निकाल कर बाहर नहीं लाएगा, लोग उसे पहचान नहीं पाएंगे, तब तक उसकी कोई सार्थकता नहीं है।
गीत गायन से जुड़ा हुआ है। जब तक गीत को रचकर उसे गाया नहीं जाएगा, तब तक उसकी कोई सार्थकता नहीं है। कागज के पन्नों में गीत लिखकर वह अपनी पहचान नहीं बना सकता। लोगों द्वारा गाए जाने पर ही उसकी सही पहचान बनेगी और उसकी सार्थकता सिद्ध होगी।
उसी प्रकार मोती यदि समुद्र की गहराइयों में पड़ा हुआ है तो उसकी कोई सार्थकता नहीं है। जब तक गोताखोर उसे समुद्र से बाहर निकालकर नहीं लाएगा। लोगों के बीच वह मोती पहचाना नहीं जाएगा तब तक उसकी कोई सार्थकता नहीं है।
समुद्र की गहराई में पड़े मोती की कोई सार्थकता नहीं है। वह बाहर निकल कर ही बहुमूल्य बनता है। इसी कारण गीत और मोती की सार्थकता उनकी उपयोगिता से जुड़ी हुई है।
प्रश्न 4
‘यह अद्वितीय, यह मेरा, यह मैं स्वयं विसर्जित’ पंक्ति के आधार पर व्यष्टि की समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता बताइए।
उत्तर :
‘यह अद्वितीय, यह मेरा, यह मैं स्वयं विसर्जित’ पंक्ति के आधार पर व्यष्टि की समष्टि में विसर्जन की उपयोगिता की अगर बात करें तो जब व्यष्टि का समष्टि में मिलन होता है तो दोनों एकाकार होते हैं, तब व्यष्टि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
व्यक्ति और समाज एक दूसरे के पूरक हैं, व्यक्तियों से ही समाज का निर्माण होता है और व्यक्ति समाज में एकाकार होकर ही अपनी क्षमता का विस्तार कर पाता है। यदि व्यक्ति अकेला होगा तो ना तो वह कुछ उल्लेखनीय काम कर पाएगा ना वह अपने अंदर के गुणों का लाभ उठा पाएगा, ना वह अधिक क्षमतावान बन पाएगा। समाज के साथ मिलकर उसकी शक्ति में विस्तार होता है, उसकी उपयोगिता बढ़ती है और वह अधिक क्षमतावा होता है, उसके गुणों का सही उपयोग होता है।
इस तरह व्यक्ति समाज के साथ मिलकर समाज का कल्याण का कार्य करता है अपने गुणों के विकास के साथ-साथ में समाज के कल्याण के लिए भी कार्य करता है।
कवि ने दीप के पंक्ति में विलय हो जाने का उदाहरण देकर व्यक्ति के समाज में विलय हो जाने को स्पष्ट किया है। जिस तरह दीप यदि अन्य दीपों के साथ पंक्ति में रख दिया जाए तो उसके प्रकाश में बढ़ोतरी होती है। उसी प्रकार व्यक्ति जब समाज में अन्य लोगों के साथ मिलकर समाज का एक भाग बन जाता है तो उसकी क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है।
यही व्यष्टि का समष्टि में विसर्जन है। व्यक्ति यानि व्यष्टि का समाज यानि समष्टि में विसर्जन होकर ही उसकी पूर्णता होती है और व्यक्ति और समाज को मजबूती मिलती है।
प्रश्न 5
‘यह मधु है…….. तकता निर्भय’ पंक्तियों के आधार पर बताइए कि ‘मधु’, ‘गोरस’ और ‘अंकुर’ की क्या विशेषता है?
उत्तर :
यह मधु है, स्वयंकाल मौना का युग संचय,
यह गोरस-जीवन कामधेनु का अमृत पूत पय,
यह अंकुर फोड़ धरा को, रवि को तकता निर्भय
इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मधु यानी के शहर की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसके निर्माण की प्रक्रिया बेहद लंबी है। यह स्वयं को धीरे धीरे एकत्रित करता है। यानि कि शहद बनने की प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है, तब जाकर हमें शहद मिलता है।
जो गोरस हमें जीवन के रूप में विद्यमान कामधेनु गाय से प्राप्त होता है, वो गोरस अमृत के समान माना जाता है। इस गोरस का पान करने वाले देवता पुत्र होते हैं।
अंकुर की अपनी विशेषता यह है कि यह कठोर भूमि की छाती को अपने कोमल पत्तों से फाड़ कर बाहर निकलता है और सूर्य का सामना करने से भी नहीं डरता। नन्हां सा अंकुर स्वयं में इतना लघु होते हुए भी निर्भय होकर सूरज की तेज किरणों का सामना करता है।
प्रश्न 6
भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए- (क) ‘यह प्रकृत, स्वयंभू …………. शक्ति को दे दो।’ (ख) ‘यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक ………….. चिर-अखंड अपनापा।’ (ग) ‘जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो।’
उत्तर :
भाव-सौंदर्य स्पष्ट इस प्रकार होगा :
(क) ‘यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्मा अयुतः इसको भी शक्ति को दे दो।’
भाव सौंदर्य : कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने प्रकाश, स्वयंभू और ब्रह्म संज्ञाओं का उपयोग किया है और यह संज्ञाये उनसे अंकुर यानी बीज को दी हैं। बीज को धरती में बोने पर जब उसका अंकुर धरती का कठोर सीना फाड़ कर बाहर आ जाता है तो अपने सामने बैठ सूरज के तेज प्रकाश को देखकर भी नहीं नही डरता और निडरता से उसका सामना करना पड़ता है। बिल्कुल इसी तरह कवि भी गीतों का स्वर्ण निर्माण करता है। अपन कविताओं गीतों का निडरता पूर्वक गायन करता है। कवि की इच्छा यह है कि उसे भी अन्य लोगों की तरह उसकी रचनाओं के लिए उतना ही सम्मान मिलना चाहिए।
(ख) ‘यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त नेत्र,
उल्ललंब बाहु यह चिर-अखंड अपनापा।’
भाव सौंदर्य : इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहने का प्रयास कर रहे हैं कि दीप आग को धारण किए रहता है। वह स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है और इसके पीछे उसकी जनकल्याण की भावना है। कवि दीप के दुख को अच्छी तरह जानते हैं जो स्वयं जलकर दूसरों के काम आ रहा है।
उसी तरह कवि चाहते हैं कि वह जागरुक बनें रहें, वह सब के काम आ सकें। सब के साथ प्रेम का भाव रख सके।
(ग) ‘जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो।’
भाव सौंदर्य : इस पंक्ति कविता की इस पंक्ति में कवि ने दीप को मनुष्य के रूप में चित्रित करके कहा है कि मनुष्य का स्वभाव मनुष्य का स्वभाव जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है। अपने इस स्वभाव के कारण वह ज्ञानवान और श्रद्धावान बनता है। मनुष्य और दीप में यही दोनों गुण विद्यमान होते हैं।
(मैंने देखा एक बूंद)
प्रश्न 1
‘सागर’ और ‘बूंद’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
‘सागर’ और ‘बूंद’ के कवि का आशय समाज एवं मनुष्य से है। कवि के अनुसार समाज और मनुष्य दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जिस प्रकार असंख्य पानी की बूंदों के कारण ही सागर का निर्माण होता है। उसी तरह अनेक मनुष्यों को मिलाकर ही समाज का निर्माण होता है।
एक बूंद सागर नहीं बना सकती। उसी प्रकार एक मनुष्य समाज नहीं बना सकता। मनुष्य की सार्थकता और उसका अस्तित्व समाज में रहकर ही संभव हो पाता है। समाज के अंदर रहकर ही मनुष्य सभ्य बनता है और पृथ्वी के अन्य प्राणियों से स्वयं को अलग बना पाता है। इस तरह समाज और मनुष्य दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों के परस्पर सहयोग से ही दोनों को सार्थकता होती है। एक दूसरे के बिना दोनों अधूरे हैं।
उसी प्रकार जिस तरह सागर और बूंद दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। अनेक बूंदों के मिलने से ही सागर का निर्माण होता है। तब ही बूंदे अपनी सार्थकता सिद्ध करके अपने अस्तित्व को बचा पाती हैं। सागर से अलग होने पर एक बूंद का कोई अस्तित्व नहीं होता और वह शीघ्र ही नष्ट हो जाती है।
प्रश्न 2
‘रंग गई क्षणभर ढलते सूरज की आग से’ पंक्ति के आधार पर बूंद के क्षण भर रंगने की सार्थकता बताइए।
उत्तर :
‘रंग गई क्षणभर ढलते सूरज की आग से’इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने उस घटना का वर्णन किया है, जब पानी की बूंद समुद्र से स्वयं को अलग कर ऊँची छलांग लगाती है। वह थोड़ी देर के लिए समुद्र से अलग हो जाती है। जब वह समुद्र से अलग होकर ऊपर की ओर छलांग लगा रही होती है, तभी उस पर तेज अस्त होते सूर्य की सुनहरी किरणें पड़ती है। जिस कारण वह बूंद भर के लिए सोने के समान सुनहरी रंग वाली हो जाती है। यह केवल छोटे से समय के लिए होता है क्योंकि पानी के बूंद नीचे गिरते ही पुनः पानी में समा जानी है लेकिन एक क्षण भर के कार्य में ही बूंद स्वयं का महत्व दर्शा जाती है। वह भले ही क्षण भर के लिए चमकती हो, लेकिन वह क्षण भर के समय में ही अपनी सार्थकता को सिद्ध कर जाती है कि क्षण भर के लिए ही सही, उसका अस्तित्व है।
प्रश्न 3
सूने विराट के सम्मुख ___________ दाग से, पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सूने विराट के सम्मुख,
हर आलोक हुआ अपनापन,
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से,
इन पंक्तियों का अर्थ इस प्रकार होगा :
अर्थ : इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह स्पष्ट करने का प्रयत्न कर रहे हैं कि इस संसार में जो भी वस्तु है, वह नश्वर है। हर वस्तु की जीवन अवधि है और उसके बाद उसे समाप्त हो जाना है। यही हर प्राणी के साथ होता है।
मनुष्य अपना पूरा जीवन इसी नश्वरता के भय में जीता रहता है।
कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब बूँद सागर से क्षण भर के लिए स्वयं को अलग करती है, तब उसे अपने नष्ट होने का डर समाप्त हो जाता है और मुक्ति का एहसास उसके हृदय में भर जाता है।
यही वह क्षण भर का समय है, जब वह अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध कर देती है। वह बता देती है कि समुद्र के बिना भी क्षण भर के लिए ही सही, उसका अस्तित्व है।
मनुष्य का जीवन भी बूंद के समान ही है। वह सागर रुपी संसार में बूंद के समान है और उसका जीवन एक न एक दिन समाप्त जाना है। लेकिन यदि वह अपने कर्मों से अपने जीवन की उपयोगिता सिद्ध कर दे तो जीवन को सार्थकता प्राप्त होती है।
मनुष्य अपने नश्वर शरीर से ऐसे अनेक कार्य कर सकता है जो उसके जीवन को सार्थकता प्रदान कर सकते हैं और यदि ऐसा करने में सफल होता है तो केवल उसका जीवन ही सार्थक नही होता है नश्वरता के भय से मुक्ति पा लेता है।
प्रश्न 4
‘छड़ के महत्व’ को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए।
उत्तर :
‘मैने देखा एक बूंद’ कविता का मूल भाव
‘सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन’ अज्ञेय द्वारा रचित ‘मैंने देखा एक बूंद’ कविता क्षण के महत्व को ही स्पष्ट करती है।
कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य यदि अपने स्वार्थ से अलग हटकर परमार्थ की ओर ध्यान दें यानि वह व्यष्टि से समष्टि की ओर अपना ध्यान केंद्रित करे, व्यष्टि का समष्टि में विलय दे तो उसका जीवन सार्थक हो जाता है।
यहाँ पर क्षण भर से तात्पर्य मनुष्य के जीवन से है। यानी वह अपने अच्छे कार्यों द्वारा अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
कवि कहते हैं कि यह संसार में प्रत्येक प्राणी नश्वर है और एक ना एक दिन उसे संसार से चले जाना है। मनुष्य इस नश्वरता के डर में न जीकर अपने इस क्षणभंगुर जीवन को अच्छे कर्मों द्वारा सार्थक बना सकता है, जिससे वह नश्वरता के डर से भी मुक्ति पाएगा।
कवि बूंद और सागर का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि बूंद क्षण भर के लिए सागर से अलग होकर यह सीख देती है कि क्षण भर के लिए ही सही उसका अस्तित्व है। इस तरह वो अपने जीवन को सार्थक कर देती है। उसी तरह मनुष्य भी अपने नश्वरता वाले जीवन को अपने अच्छे कर्मों, अच्छे प्रयासों और दूसरों के काम आ कर सार्थक तक बना सकता है और इस तरह नश्वरता के दाग और भय से मुक्ति पा सकता है।
(योग्यता विस्तार)
प्रश्न 1
अज्ञेय की कविता ‘नदी के द्वीप’ व ‘हरी घास पर क्षण भर’ पढ़िए और कक्षा की भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर :
ये विद्यार्थियों के लिए प्रायोगिक गतिविधि है, विद्यार्थी अपनी कक्षा में इसे करें।
प्रश्न 2
मानव और समाज विषय पर परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा करें।
प्रश्न 3
भारतीय दर्शन में सादर और बूंद का संदर्भ जानिए।
उत्तर :
भारतीय दर्शन में सागर एवं बूंद का संबंध संसार एवं मानव के संदर्भ में प्रकट किया गया है। भारतीय दर्शन के अनुसार यह संसार एक सागर के समान है और इस जगत के सभी प्राणी उसमें छोटी सी बूंद के समान हैं। जिस तरह लाखों-करोड़ों बूंदों के निर्माण से मिलकर ही सागर बनता है, उसी तरह लाखों-करोड़ों प्राणियों को मिलाकर ही इस संसार की उत्पत्ति हुई है। इसीलिए इस संसार में प्राणी मात्र एक केवल एक बूंद के समान है जिसका इस संसार से अलग कोई अस्तित्व नहीं है।
यदि वह इस संसार में है तो वह विशाल सागर का एक भाग है। सागर से अलग होकर बूंद अपना अस्तित्व खो देती है लेकिन सागर के साथ मिलकर गए विशाल सागर का हिस्सा होती है उसी तरह मानव भी इस संसार से अलग कोई अस्तित्व नहीं और इस संसार में रहकर विशाल संसार का एक महत्वपूर्ण भाग है
ये दीप अकेला/मैंने देखा एक बूंद : सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (कक्षा-12 पाठ-3 हिंदी अंतरा 2)
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