विचार
विवाह पूर्व मायके में और विवाह पश्चात् ससुराल में लड़की जिम्मेदारी
समय के अनुसार सब की अलग-अलग जिम्मेदारियां तय होती हैं, वह चाहे लड़का हो अथवा लड़की। लेकिन क्योंकि समाज में लड़की को अपना जीवन दो अलग-अलग घरों में व्यतीत करना पड़ता है यानी उसे अपना प्रारंभिक जीवन अपने माता पिता के पास अपने मायके में तथा विवाह के पश्चात अपना शेष जीवन अपने पति और ससुराल वालों के साथ ससुराल में व्यतीत करना पड़ता है, इसलिए उसकी जिम्मेदारियों की दोहरी भूमिका हो जाती है।
विवाह पूर्व मायके में एक लड़की की जिम्मेदारी वही होनी चाहिए जो कि एक संतान की जिम्मेदारी होती है। कोई भी संतान चाहे लड़का हो या लड़की वह अपने माता-पिता के लिए समान है। संतान के रूप में उसका कर्तव्य अपने माता-पिता के लिए समान होना चाहिए। विवाह पूर्व मायके में लड़की की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने माता पिता की आज्ञा मानें। उसके माता-पिता उसे जो संस्कार दें, जो शिक्षा दें, उसे ग्रहण करें अपने जीवन को एक सही दिशा दें। अपने माता-पिता के प्रति उसका जो कर्तव्य बनता है उसका निर्वाह करें।
चूँकि उसे जीवन पर्यंत अपने माता पिता के साथ रहने का अवसर नहीं मिलेगा, इसलिए हर समय अपने माता-पिता की सेवा करने का भी अवसर नहीं मिलेगा इसलिए वह जिसने समय तक अपने माता पिता के पास यानी अपने मायके में है, वह अपने माता पिता की भरपूर सेवा करें, ताकि अपने माता-पिता के ऋण को जितना संभव हो चुका सके।
विवाह के पश्चात उसे अपने दूसरे अपने ससुराल यानी किसी अन्य घर में जाना है तो वह अपने मायके और अपने माता-पिता के ऐसे संस्कार लेकर जाए जो उसके नए घर में उसका मान सम्मान बढ़ाएं। ससुराल में पहुंचकर लड़की का कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने माता-पिता के साथ बिताए गए समय और वातावरण को भूलकर नए वातावरण में सामंजस्य बिठाने की भरपूर कोशिश करें। वह हर बात की तुलना ससुराल एवं मायके से ना करें। हो सकता है कि उसके ससुराल का वातावरण उसके मायके के वातावरण से बिल्कुल भिन्न हो। ऐसी स्थिति में उसे कुछ परिवर्तन का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
उसे अपना सारा जीवन अपनी ससुराल में ही रहना है। अपने पति के साथ ही पूरा जीवन व्यतीत करना है। उसी वातावरण में अपना जीवन व्यतीत करना है। तो उसे वातावरण के अनुकूल स्वयं को ढाल लेना चाहिए। उसे यह नहीं भूलना चाहिए यह घर उसके माता-पिता का घर नहीं है। उसके माता-पिता जैसा कोई नही हो सकता। माता-पिता उसकी हर मुराद को पूरा करते थे। अब वह स्वयं माता बनेगी तो यही कर्तव्य उसे अपनी संतान के साथ निभाना है।
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