NCERT Solutions (हल प्रश्नोत्तर)
देवसेना का गीत/कार्नेलिया का गीत : जयशंकर प्रसाद (कक्षा-12 पाठ-1 हिंदी अंतरा 2)
DEVSENA KA GEET/KARNELIA KA GEET : Jaishankar Prasad
(Class 12 Chapter 1 Hindi Antra 2)
पाठ के बारे में…
प्रस्तुत पाठ में जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित दो कविताएं ‘देवसेना का गीत’ और ‘कार्नेलिया का गीत’ कविताएं प्रस्तुत की गई है। प्रस्तुत पाठ में जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित देवसेना का गीत और कार्नेलिया का गीत नामक दो पर कविताएं प्रस्तुत की गई हैं । ‘देवसेना का गीत’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक ‘स्कंदगुप्त’ से लिया गया है। देवसेना मालवा के राजा बंधुवर्मा की बहन है । हूणों ने आर्यावर्त पर आक्रमण कर दिया है और आर्यभट्ट संकट में पड़ा हुआ है। देवसेना का भाई बंधुवर्मा सहित सभी लोग इस आक्रमण के कारण वीरगति को प्राप्त हुए। केवल देवसेना किसी तरह बच जाती है और वह अपने भाइयों के सपनों को साकार करने के लिए राष्ट्र सेवा का व्रत लिए हुए हैं। वह स्कंदगुप्त से प्रेम भी करती है, लेकिन स्कन्दगुप्त उससे प्रेम नही करता है। जीवन में अंतिम क्षणों में स्कन्दगुप्त को देवसेना के प्रेम का अहसास होता है, और वह देवसेन से प्रेम का अनुग्रह करता है और उसे पाना चाहता है लेकिन तब देवसेना नहीं मानती। तब स्कंद गुप्त आजीवन कुंवारा रहने का संकल्प ले लेता है। इसी प्रसंग के संदर्भ में देवसेना यह गीत गाती है।
दूसरी कविता ‘कार्नेलिया का गीत’ भी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘चंद्रगुप्त नाटक’ से लिया गया है। देवसेना सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की पुत्री थी। वह सिंधु नदी के किनारे शिविर के पास वृक्ष के नीचे बैठी हुई यह गीत गाती है।
कवि के बारे में…
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार रहे हैं। वह हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक स्तंभ माने जाते हैं। उनका जन्म 1889 ईस्वी में काशी में हुआ था। उनका जीवन संघर्ष में जीता था।
मूलतः वे कवि रहे हैं और उन्होंने अनेक सुंदर काव्यग्रंथों एवं कविताओं की रचना की है। लेकिन उन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी और निबंध आदि भी लिखे हैं। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में अजातशत्,रु चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, राज्यश्री, ध्रुवस्वामिनी जैसे नाटक है, तो कंकाल, तितली, इरावती जैसे उपन्यास भी हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने आंधी, इंद्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि और आकाशदीप जैसे कहानी संग्रह लिखे हैं। उनके निबंध संग्रह का नाम है, काव्य और कला तथा अन्य निबंध। उनकी प्रमुख कविताओं में कामायानी, कानन, कुसुम, प्रेमपथिक, झरना, आँसू और लहर के नाम प्रमुख हैं।
सन 1937 में उनका निधन हुआ
देवसेना का गीत/कार्नेलिया का गीत : जयशंकर प्रसाद
कक्षा-12 पाठ-1 हिंदी अंतरा
पाठ के हल प्रश्नोत्तर…
(देवसेना का गीत)
प्रश्न 1
मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संदर्भ : यह पंक्तियां जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘स्कंदगुप्त’ नामक नाटक ‘देवसेना का गीत’ नामक कविता से ली गई है। इन पंक्तियों के माध्यम से देवसेना अपने मन की वेदना को प्रकट कर रही है। देवसेना स्कंदगुप्त से प्रेम करती है, लेकिन स्कंदगुप्त उस से प्रेम नहीं करता। यही देवसेना के मन की वेदना है।
व्याख्या : देवसेना कहती है कि मैं स्कंद गुप्त के प्रेम में पढ़कर जीवन भर एक भ्रम में जीती रही। मैंने अपनी सभी आकांक्षाओं और अभिलाषाओं को अपने प्रेम के रूप में स्कंदगुप्त पर भीख के समान लुटा दिया। मेरे पास अभिलाषायें और कामनायें नहीं बची है। इसलिए अब मेरा जीवन नीरस हो गया है।
जीवन में अभिलाषा एवं कामना होने से ही उत्साह का संचार होता है. किंतु अब मेरे पास कोई कामना और अभिलाषा नहीं बची। इसलिए मेरा जीवन अर्थहीन हो गया है, क्योंकि मैंने एक ऐसे प्रेम के भ्रम में जीकर अपनी सारी इच्छाएं, कामनायें अभिलाषायें भीख के समान लुटा दीं, इसलिये अब मेरे पास कुछ नहीं बचा।
प्रश्न 2
कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने आशा को बावली इसलिए कहा है, क्योंकि आशा कभी कभी मनुष्य को बावला यानी पागल कर देती है। आशा जहाँ मनुष्य के लिए एक सहारा बनती है, उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है, उसे प्रोत्साहन देती है। वहीं कभी-कभी यह आशा मनुष्य को बहुत अधिक आत्मविश्वासी और बहत अधिक आशावान बना देती है।
मनुष्य अपने मन में बहुत अधिक आशाएं पालने लगता है। वह किसी से प्रेम करने लगता है और उसके प्रेम के वशीभूत होकर वह तरह-तरह के सपने बुनने लगता है। जिससे वह प्रेम करता है, वह उससे प्रेम करें या ना करें वो अपनी आशाओं के सहारे सपनों के संसार में विचरण करता रहता है। यही उसके पागलपन का सूचक होता है। इसी कारण आशा बावली होती है।
प्रश्न 3
मैंने निज दुर्बल पद बल पर, उससे हारी होड़ लगाई। इन पंक्तियों में ‘दुर्बल पद बद’ और ‘हारी होड़’ में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इन पंक्तियों में निहित व्यंजना इस प्रकार है:
‘दुर्बल पद बल’ के माध्यम से देवसेना की शक्ति की सीमा का बोध कराया गया है। देवसेना अपनी शक्ति की सीमा जानती है। उसे अच्छी तरह से पता है कि वह कमजोर यानि दुर्बल है और इसके बावजूद वह अपने भाग्य की कठिनाइयों से लड़ रही है। देवसेना अपनी शक्ति की सीमा को भलीभांति जानती है।
‘होड़ लगाई’ शब्द से में निहित व्यंजना देवसेना की लगन को प्रदर्शित करती है। देवसेना को अच्छी तरह से पता है कि वो जिससे प्रेम करती है, उससे उस प्रेम में उसे हार ही मिलनी है। सब कुछ जानते हुए भी वह अपने मन की लगन को नहीं छोड़ती और पूरी लगन से ना केवल स्कंदगुप्त से प्रेम करती है बल्कि हर तरह की विपरीत परिस्थिति का भी सामना करती है और हार नहीं मानती। इस तरह वह सब कुछ जाने हुए भी उसे हार ही मिलनी है, वह अपने कमजोर भाग्य से से मुकाबला करती है।
प्रश्न 4
(क) काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन विपिन की तरुछाया में,
पथिक उनींदी श्रुति मे किसने,
ये विहाग की तान उठाई।
उत्तर :
इन पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य इस प्रकार है :
काव्य सौंदर्य :
देवसेना की स्मृतियां जग जाती है। देवसेना अपने बीते हुए दिनों की स्मृतियों में डूबी हुई है। जब वह स्कंद गुप्त के प्रेम को पाने के लिए अथक प्रयास करती थी, लेकिन उसे स्कंद गुप्त का प्रेम नहीं मिला और वो असफल रही। अब उसे अचानक उसे उस प्रेम के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं। इन स्वरों से वह चौंक उठती है।
पंक्तियों में ‘विहाग राग’ का भी उल्लेख किया गया है। यह राग आधी रात में गाया जाता है। देवसेना को आधी रात में उसी विहाग राग के सुर सुनाई पड़ रहे हैं। उसे अपनी बीते हुए प्रेम की याद हो उठती है।
यहाँ पर कवि ने स्वप्न को श्रम रूप में कह कर व्यंजना व्यक्त करने का प्रयत्न किया है। कवि ने स्वप्न को मानव के रूप में दर्शाया है।
गहन विपिन और तरु छाया जो कि सामासिक शब्द है, इन के माध्यम से कवि ने काव्य को अलग सौंदर्य देने का प्रयास किया है।
इन सभी पंक्तियों के माध्यम से देवसेना के मन की वेदना प्रकट होती है।
(ख) काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिये।
लौटा लो अपनी थाती,
मेरी करुणा हा हा खाती,
विश्व! न संभलेंगे यह मुझसे,
इससे मन की लाज गंवाई।
उत्तर :
इन पंक्तियों में निहित काव्य सौंदर्य इस प्रकार है :
काव्य सौंदर्य
इन पंक्तियों में देवसेना के मन की असीम वेदना प्रकट हो रही है। देवसेना को रह-रहकर रह कर अपने बीते हुए प्रेम के स्वर सुनाई दे रहे हैं। वह निराशा से युक्त होकर हतोत्साहित हो रही है। इन पंक्तियों के माध्यम से उसकी मनोस्थिति का ही पता चल रहा है।
स्कंद गुप्त का प्रेम देवसेना के हृदय को बार-बार प्रताड़ित कर रहा है। वह संसार से प्रार्थना कर रही है कि मुझसे अब यह वेदना अब सही नहीं जाती। इस वेदना ने उसने अपने मन की सारी मर्यादाओं को तोड़ दिया है। उसने अपने अपना सारा आत्मसम्मान खो दिया है।
‘हा-हा’ के माध्यम से कवि ने ‘पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार’ को भी प्रकट किया है। पूरे काव्य में वियोग श्रंगार रस और करुण रस प्रकट हो रहा है।
प्रश्न 5
देवसेना की हार और निराशा के क्या कारण हैं?
उत्तर :
देवसेना की हार या निराशा के मुख्य कारण इस प्रकार हैं :
देवसेना सम्राट स्कंदगुप्त से प्रेम करती थी। वह एक राजकुमारी थी और उसने सम्राट स्कंदगुप्त को प्रेमी रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन वह अपने प्रयास में असफल सिद्ध हुई। सम्राट स्कंदगुप्त उससे प्रेम नहीं करता था।
प्रेम में असफल होने के कारण उसके मन में घोर निराशा व्याप्त हो गई थी। यह घोर निराशा प्रेम में हुई उसकी हार के कारण उत्पन्न हुई है। प्रेम में मिली हार के अलावा गया अपने पिता एवं भाई को भी खो चुकी है। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है तथा भाई भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुका है।
इस तरह वह संसार में नितांत अकेली हो गई है और जगह-जगह जाकर भीख मांग कर अपना गुजारा कर रही है। पिता और भाई की मृत्यु के बाद स्कंद गुप्त का प्रेम ही उसके लिए एकमात्र सहारा था, लेकिन उसके प्रेम ने भी उसे स्वीकार नहीं किया और उसे ठुकरा दिया। यही देवसेना की हार और निराशा के मुख्य कारण हैं।
(कार्नेलिया का गीत)
प्रश्न 1
कार्नेलिया का गीत कविता में प्रसाद ने भारत की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर :
‘कार्नेलिया का गीत’ कविता में कवि प्रसाद ने भारत की निम्नलिखित विशेषताओं की ओर संकेत किया है…
- कवि प्रसाद इस कविता में कहते हैं कि भारत ऐसा देश है जहाँ पर सूरज की किरण सबसे पहले पहुंचती है। सुबह-सुबह वृक्षों की टहनियों आदि पर जब सूरज की किरणें अपनी लालिमा बिखेरती हैं तो वह दृश्य जीवंत हो उठता है।
- भारत एक ऐसा देश है, जो ‘अतिथि देवो भवः’ की संस्कृति का पालन करने वाला देश है, जहाँ पर अपरिचित व्यक्ति को भी घर में प्रेम पूर्वक सम्मान दिया जाता है।
- भारत देश के चप्पे-चप्पे का प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है। उत्तर में विशाल हिमालय तो दक्षिण में असीम सागर है।
- भारत के लोग प्रेम, करुणा और दया की भावना से भरे हुए हैं। उनके मन में सबके प्रति दया की भावना है।
- कवि के अनुसार भारत देश विश्व का सबसे महानतम देश है, यहां की संस्कृति सबसे प्राचीन एवं महान है।
प्रश्न 2
‘उड़ते खग’ और ‘बरसाती आँखों के बादल’ में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है?
उत्तर :
‘उड़ते खग’ के माध्यम से कवि ने आप्रवासियों के विशेष अर्थ को व्यंजित किया है:
कवि के अनुसार भारत एक ऐसा देश है जहाँ बाहर से पक्षी आकर भी आश्रय पा लेते हैं अर्थात भारत ने बाहर से आने वाले हर तरह के लोगों को अपने यहाँ आश्रय दिया है। यहाँ बाहर से आकर लोग आश्रय ही नहीं पाते बल्कि उन्हें यहाँ पर असीम सुख और शांति भी मिलती है, सम्मान मिलता है और वह यहीं के होकर रह जाते हैं। यही भारत की सबसे विशिष्टता है। यहाँ पर कवि ने ‘उड़ते खग’ को ‘आप्रवासी यात्रियों’ के रूप में व्यंजित किया है।
‘बरसाती आँखों के बादल’ के माध्यम कवि ने यह अर्थ व्यंजित किया है कि भारत के लोग ऐसे लोग हैं, जो करुणा के भाव से परिपूर्ण है और वह दूसरों के दुख को देख कर दुखी हो जाते हैं। दूसरों के दुख के कारण उनकी आँखों में स्वतः ही आँसू निकल पड़ते हैं। ‘बरसाती आँखों के बादल’ पंक्ति में ‘करुणा के आँसू’ ये विशेष अर्थ व्यंजित होता है।
प्रश्न 3
काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
हेम कुंभ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे,
मदिर ऊँघते रहे जब जगकर, रजनी भर तारा।
उत्तर :
काव्य सौंदर्य :
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि जयशंकर प्रसाद ने सुबह की उषा का मानवीकरण किया है तथा उषाकाल को पानी भरने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया है।
पंक्तियों में सुबह के सौंदर्य का वर्णन किया गया है, अर्थात भोर का सौंदर्य चारों तरफ प्रकट हो रहा है।
कवि कहते हैं कि उषा रूपी स्त्री अपने सूर्य रूपी सुनहरी घड़े से आकाश रूपी कुएँ से मंगल रूपी पानी भरकर लोगों के जीवन में सुबह के रूप में लुढ़काती है।
उस समय तारे ऊँघ रहे होते हैं, यानी रात यात्री अपने अंतिम ढलान पर होती है और भोर अपने आगमन की ओर होती है।
कवि के कहने के भाव यह है कि भोर हो चुकी है। सूरज की किरणें धीरे धीरे अपने सुनहरे रूप में चारों तरफ बिखर रही हैं और लोगों को जगा रही हैं तारे ऊँघने लगे हैं यानी तारे छुपने लगे हैं।
विशेष
उषा और तारों का मानवीकरण किया गया है, इसलिए यहाँ पर ‘मानवीकरण अलंकार’ है।
हेम कुंभ में ‘रूपक अलंकार’ है।
‘जब जगकर’ में ‘अनुप्रास अलंकार‘ है।
प्रश्न 4
‘जहाँ पहुँचकर अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘जहाँ पहुँचकर अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’ पंक्ति का आशय इस प्रकार होगा :
कवि जयशंकर प्रसाद ने ‘कार्नेलिया के गीत’ कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से भारतवासी की विशेषताओं का वर्णन किया है। उनके अनुसार भारत एक ऐसा देश है। जहाँ पर अजनबी लोगों को भी जब चाहो आश्रय मिल जाता है। संसार में ऐसे लोग जिनका कोई आश्रय नहीं होता, वह भारत में बेहद सरलता से आश्रय पा लेते हैं।
भारत ने विश्व से हर तरह के लोगों को अपने यहाँ शरण दी है। यह भारत के लोगों की हृदय की विशालता को प्रकट करता है। यहां की संस्कृति महान है और यहाँ के लोग बड़े दिलवाले हैं, इसीलिए बाहर से आए पक्षियों को ना केवल आश्रय दिया बल्कि उन्हें सहारा भी दिया यानी बाहर से आए अलग-अलग धर्म समुदाय के लोगों को भी अपनी शरण दी और उनको सहारा दिया, जिससे वह यहीं पर इसी संस्कृति में रच बस गए।
प्रश्न 5
कविता में व्यक्त प्रकृति चित्रों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘कार्नेलिया का गीत’ कविता में व्यक्त प्रकृति चित्रों का वर्णन…
‘कार्नेलिया के गीत’ कविता में कवि जयशंकर प्रसाद ने भारत देश की प्रकृति का अद्भुत चित्रण किया है। कवि के अनुसार भारत देश बेहद सुंदर और प्यारा देश है। यहाँ चारों तरफ प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है।
सुबह सुबह जब सूर्य उदय होता है तो सूर्य की सुनहरी किरणें चारों तरफ अपनी सुनहरी धूप बिखेरती हैं, तो वह दृश्य बड़ा ही मनोहारी दिखाई देता है। सूरज के प्रकाश से सरोवर में जब कमल खिलने लगते हैं और वृक्ष की टहनियों पर सूरज की किरणें सुनहरे रूप में गिरती है तो वह दृश्य मन को मोह लेता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि चारों तरफ प्रकाश कमल पत्तों पर तथा वृक्ष की चोटियों से खेल रहा हो। सूरज की लालिमा भोर के समय चारों तरफ फैल कर अपनी मंगलकारी होने का बोध कराती है।
मलय पर्वत की मंद मंद वायु का सहारा पाकर नन्हे नन्हे पक्षी जब अपने छोटे-छोटे पंखों से आकाश में उड़ान भरते हैं तो उस समय सुंदर इंद्रधनुष जैसा जादू उत्पन्न करते हैं।
सुबह-सुबह उदित होता सूर्य आकाश में ऐसा दिखाई देता है, ऐसे सरोवर में कोई सोने का घड़ा डूब रहा हो। सूरज की किरणें रात की नींद से अलसायें लोगों के मन में स्फूर्ति भर देती हैं।
(योग्यता विस्तार)
प्रश्न 1
भोर के दृश्य को देखकर अपने अनुभव काव्यात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर :
सुबह की आभा निराली है,
मन को मोह लेने वाली है,
देखकर मन पुलकित हो जाता है,
प्रसन्न हर जन का चित्त हो जाता है,
सूरज चाचा पधार रहे हैं,
जीवन में उजियारा भरने,
अंधेरे के दूर भगाकर,
जीवन की निराशा को दूर करने।
प्रश्न 2
जयशंकर प्रसाद की काव्य रचना ‘आँसू’ पढिए।
उत्तर :
विद्यार्थी जयशंकर प्रसाद की काव्य रचना पढ़ें और अनुभव करें।
प्रश्न 3
जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ और रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘हिमालय के प्रति’ का कक्षा में वाच कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी दोनों कविताओं को अपनी कक्षा में पढ़ें।
देवसेना का गीत/कार्नेलिया का गीत : जयशंकर प्रसाद (कक्षा-12 पाठ-1 हिंदी अंतरा 2)
DEVSENA KA GEET : Jaishankar pradad (Class-12 Chapter-1 Hindi Antra 2)
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