तौ लौ चलित चतुर सहेली याहि कौऊ कहूँ,
नीके कै निचैरे ताहि करत मनै नहीं।
अर्थ : कवि पद्माकर की इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है कि पद्माकर कि एक गोपी होली के अवसर पर कृष्ण की भक्ति में लीन को जाना चाहती हैं। वह कृष्ण की भक्ति में इस तरह डूब जाना चाहती हैं कि वह कृष्ण की निकटता अधिक से अधिक पा सके। गोपी को दूसरी गोपियां कृष्ण का रंग अपने तन से हटाने को कहती हैं, किंतु वह गोपी अपने तन से रंग को हटाए नहीं चाहती क्योंकि वह कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह डूब जाना चाहती है।
ये भी देखें
जागृत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
आशय स्पष्ट कीजिये- भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता।