श्रम विभाजन और जाति प्रथा पाठ के आधार पर कहें तो जाति और श्रम विभाजन प्रथा में मुख्य अंतर यह है कि श्रम विभाजन में कोई भी व्यवस्थापक नहीं होता। श्रम विभाजन में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपना व्यवसाय बदल सकता है। यहाँ पर वस्तु की मांग श्रम की आवश्यकता तकनीकी विकास तथा सामाजिक उत्तरदायित्व, व्यक्ति संबंधित कौशल में निपुणता, उसकी शिक्षा आदि के अलावा सरकारी निर्णय भी महत्व रखते हैं। यहाँ पर किसी के लिए कोई श्रम जीवनपर्यंत तक निश्चित नहीं होता।
जाति व्यवस्था में एक निश्चित वर्ग के लिए एक निश्चित व्यवसाय और श्रम जीवन पर्यंत सुनिश्चित कर दिया जाता है। यहाँ पर जातिवादी व्यवस्थापक अपने हितों के अनुरूप जातियां बनाते हैं और विशिष्ट जाति के लिए एक व्यवसाय सुनिश्चित कर देते हैं और वह व्यक्ति जीवन पर्यंत उसी व्यवसाय श्रम को करने के लिए बाध्य होता है। जातिवादी व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार अपना व्यवसाय नहीं बदल सकता।
ये प्रश्न भी देखें…
जनजाति समूह के व्यक्तियों में कौन-कौन सी विशेषताएं होती हैं?
पत्थर की जाति से लेखक का क्या आशय है? उसके विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए।
वर्तमान समय में सबसे बड़ी सामाजिक समस्या पर एक अनुच्छेद लिखिए।