‘यह सारा दुराचार स्त्रियों के पढ़ाने का ही कुफल है।’ इस पंक्ति में निहित व्यंग्य उन अहंकारी पुरुषों द्वारा किया गया है, जो स्त्री शिक्षा के विरोधी रहे थे। जब समाज में स्त्रियों के आगे बढ़ने की बात उठता थी और स्त्रियों को शिक्षित करने की बात होती थी तो ऐसे अहंकारी पुरुष जो स्त्रियों के आगे बढ़ने के विरोधी थे, जो स्त्रियों को दबाकर रखना चाहते थे। जो स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे, वह इसी तरह के व्यंग करा करते थे।
जब कोई सुशिक्षित और बुद्धिमति स्त्री किसी पुरुष को किसी भी तरह की स्पर्धा जैसे कि शास्त्रार्थ में हरा देती थी तो ऐसे अहंकारी पुरुष तिलमिला उठे थे और तब वह इस तरह की व्यंग्ययुक्त पंक्तियां बोलते थे, जो उनकी अहंकारी पुरुषवादी मानसिकता को प्रदर्शित करती थी।
इस पंक्ति के माध्यम से भी ऐसे अहंकारी पुरुषों ने अपनी स्त्री-शिक्षा की विरोधी सोच को प्रकट किया है।
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