नर्मदा नदी की आत्मकथा
जिसे स्थानीय रूप से कही-कही रेवा नदी भी कहा जाता है, भारत के 5वीं सबसे लम्बी नदी और पश्चिम-दिशा में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है और इसे अपने जीवनदायी महत्व के लिए मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा भी कहा जाता है ।
उद्गम : नर्मदा नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतश्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर स्थित अमरकंटक में नर्मदा कुंड से हुआ है ।
हिन्दू धर्म में महत्व
नर्मदा, समूचे विश्व में दिव्य व रहस्यमय नदी है,इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है । इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक (जिला शहडोल, मध्यप्रदेश जबलपुर-विलासपुर रेल लाईन-उडिसा मध्यप्रदेश ककी सीमा पर) के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा दिव्य कन्या के रूप में किया गया ।
महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया । इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किए जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है जैसे :-
प्रलय में भी मेरा नाश न हो । मैं विश्व में एकमात्र पाप- नाशिनी प्रसिद्ध होऊँ, यह अवधि अब समाप्त हो चुकी है । मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो। विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है ।
कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है । जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है । मेरे (नर्मदा) के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें ।
सभी देवता, ऋषि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त की । दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है । इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर) ऋषियों द्वारा तपस्या की ।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की । तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के) तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है । इस आदित्येश्वर तीर्थ पर हमारा आश्रम अपने भक्तों के अनुष्ठान करता है ।
ग्रंथों में उल्लेख
रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं । पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था । गुप्तकालीन अमरकोशमें भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है ।
कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है । रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है । मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है । विश्व में नर्मदा ही एक ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है और पुराणों के अनुसार जहाँ गंगा में स्नान से जो फल मिलता है नर्मदा के दर्शन मात्र से ही उस फल की प्राप्ति होती है । नर्मदा नदी पूरे भारत की प्रमुख नदियों में से एक ही है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है ।
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Aatmkatha mask per Hindi mein (मास्क पर आत्मकथा)