‘वह देश कौन सा है? कविता की व्याख्या
‘देश कौन सा है?’ कविता ‘रामनरेश त्रिपाठी’ द्वारा लिखी गई एक ऐसी करता है जिसके माध्यम से उन्होंने भारत देश की महिमा का गुणगान किया है। यह एक सरस कविता है जिसके माध्यम से कवि ने देशभक्ति के स्वर को ऊँचा किया है।
इस कविता में कवि ने भारत देश की प्राकृतिक संपदा, भारत देश की समृद्धि, उस की प्राकृतिक सुंदरता तथा विविधता का सरस वर्णन किया है। उन्होंने भारत देश की महिमा का गुणगान करते हुए कहा है कि भारत देश की वह देश है, जिसने अपने ध्यान से पूरे विश्व को आलोकित किया। सभ्यता संस्कृति और ज्ञान का सबसे पहला उदय भारत देश में ही हुआ।
कवि के अनुसार भारत देश ही मनमोहक प्रकृति स्वर्ग के समान सुखों को बिखेर रही है। जहाँ एक तरफ हिमालय पर्वत अपनी प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेर रहा है और भारत के मुकुट का कार्य कर रहा है तो समुद्र भारत के चरणों को धोता है। भारत की सभी नदियां अमृतधारा के समान है और भारत की वनस्पतियां रस से भरे हुए फल और कंदों से लदी हुई हैं। चारों तरफ खिलते मुस्कुराते हुए फूल बिखरे पड़े हैं।
भारत देश में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है और सर्वत्र आनंद व्याप्त है। भारत भूमि अनंत संसाधनों से युक्त है। यहाँ पर प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। भारत की जमीन भूमि उपजाऊ भूमि है जो अन्न रूपी सोना उगलती है।
भारत देश ऐसा देश है, जिसने संसार के सभी लोगों को अज्ञानता की नींद से जगाया और उन्हें शिक्षित किया। भारत ने ही अपने ज्ञान से विश्व को एक नई दिशा दी। भारत देश में ही राम जैसे आदर्श महापुरुष हुए जिन्होंने अपने पिता के आदेश के पालन के लिए सारे सुख सुविधा रूपी राजपाट को छोड़कर वन का कठिन जीवन जीना स्वीकार किया। कवि कहते हैं कि भारत देश के जैसा महान और कोई देश इस संसार में नहीं है।
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