आपने ‘आजादी’ कविता पढ़ी। आजाद होकर हम अपने उत्तरदायित्वों से मुक्त हो जाते हैं या उत्तरदायित्व बढ़ जाते हैं? तर्क सहित अपना मत व्यक्त कीजिए।

हमने आजादी कविता पढ़ी और आजादी के संदर्भ में हमारा मत यह है कि आजाद होकर हम अपने उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं होते बल्कि हमारे उत्तरदायित्व बढ़ जाते हैं।

हमें यदि आजादी प्राप्त होती है, तो हमें उसकी कोई ना कोई कीमत चुकानी पड़ती है। आजादी यूँ ही नहीं मिल जाती। यदि हमें देश-समाज से आजादी का अधिकार मिला है, तो हमें अपने देश-समाज-संसार को कुछ बदले में देना भी है।

आजादी का मतलब यह नहीं कि हम व्यर्थ की अनर्गल बातें कहें। बोलने की आजादी के नाम पर हम किसी को गाली नहीं दे सकते। किसी की आस्था पर प्रश्न नहीं उठा सकते। बोलने स्वतंत्रता का अर्थ है कि हम अपने विचारों को बिना किसी भय के, बिना किसी डर के कह सकें। लेकिन वो विचार ऐसे हों जो देश समाज के हित में हो। किसी तरह की नफरत नहीं फैलाते हों।

इसी तरह आजादी का मतलब यह नहीं कि हम अपनी मनमर्जी सैर- सपाटा कर रहे हैं। कहीं भी घूम रहे हैं, कुछ भी कह रहे हैं, उच्छ्रंखल होकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। बल्कि आजादी का मतलब यह है कि हम अपने देश और समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए बिना किसी डर के रहें।

आजादी मिलने के बाद आजादी के प्रति सचेत रहना भी हमारा उत्तर दायित्व है। यदि हम अपनी आजादी के प्रति सचेत नहीं होंगे तो हो सकता है, कि हमारी आजादी हम से छिन जाए। इसलिए हम कह सकते हैं कि आजाद होकर हम अपने उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं होते बल्कि हमारे उत्तरदायित्व बढ़ जाते हैं।


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