“देखि सयन गति त्रिभुवन कपै इस बिरंचि भ्रमावै”- का आशय स्पष्ट कीजिए।

“देखि सयन गति त्रिभुवन कपै इस बिरंचि भ्रमावै”

इस पंक्ति का आशय यह है कि माता यशोदा बाल बालक कृष्ण को प्यार से सुला रही हैं। उनको सोता हुआ देखकर तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव भय से कांपने लगते हैं और सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा भी भ्रम में पड़ जाते हैं। उन्हें लगता है कि यदि जगत के पालनहार ही सो गए तो संसार की गति रुक जाएगी। यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण जोकि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं, उनके सोने के प्रति सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा तथा सृष्टि के संहारक भगवान शिव की चिंता को प्रकट किया गया है।

यह स्वयं भगवान विष्णु की एक लीला थी। वो अपनी मनोरम लीला के द्वारा सभी को आकर्षित करना चाह रहे हैं।

सूरदास द्वारा रचित गए पद की इस पंक्तियों वाला पूरा पद इस प्रकार है…

जसुदा मदन गुपाल सोवाबें ।
देखि सयन गति त्रिभुवन कपै ईस बिरंचि भ्रमाचै ।
असित अरुन सित आलस लोचन उभय पलक परिआवै।
जनु रवि गल संकुचित कमल जुग निसि अलि उड़न न पावै ।।
स्वास उदर उरसति यौं मानौ दुग्ध सिंधु छबि पाबै ।
जरात नाभि सरोज प्रगट पद्मासन उतरि नाल पछितावै ।।
कर सिर तर करि स्याम मनोहर अलक अधिक सोभावै।
सूरदास मानी पन्नगपति प्रभु ऊपर फन छाबै ।

व्याख्या : इस पद में माता यशोदा द्वारा बालक रूपी भगवान श्री कृष्ण को सुलाए जाने के दृश्य का बड़ा ही सुंदर और मनोरम चित्रण किया गया है। माता यशोदा बालक श्रीकृष्ण को सुलाने का प्रयास कर रही हैं और जब वह उन्हें प्यार से सुला देती हैं तो उन्हें सोया हुआ देखकर भगवान शिव डर से कांपने लगते हैं और भगवान ब्रह्मा भी भ्रम में पड़ जाते हैं। दोनों सोचने लगते हैं कि श्रीकृष्ण, जो कि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं, यानी स्वयं भगवान विष्णु जो सृष्टि के पालन कर्ता हैं, वही सो गए तो फिर सृष्टि का संचालन कौन करेगा? सृष्टि का पालन कौन करेगा?

लेकिन भगवान विष्णु अपनी लीला रहे हैं और उनकी लीला इतनी अद्भुत है कि वे सोने का नाटक भर कर रहे हैं। उनकी अधखुली आँखें एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत कर रही हैं। उनकी आँखों के बीच की काली पुतली प्रतीत हो रही है, जैसे वह बाहर आना चाहती होंक। उनकी आँखें बंद हो जाती हैं और उनकी आँखें लाल कमल की तरह दिखाई देती हैं।

इस मनोरम को देखकर ऐसा लगता है कि सूर्य के डूब जाने से कमल की पंखुड़ियां फंस गई हों। कमल के फूल का रस पीने आया भंवरा उसमे कैद हो गया हो और उड़ नहीं पा रहा हो। जब वह में सोई हुई अवस्था में सांस लेते हैं तब उनका उभरा हुआ सुंदर पेट देख कर ऐसा लगता है कि दूध का सागर बह रहा हो। उनकी कमल के समान नाभि अत्यंत सुंदर प्रतीत होती है।

उनके अधरों के इस कमल को रूप में देखकर भगवान ब्रह्मा लगा कि वह पद्मासन से क्यों उतर आए। भगवान श्रीकृष्ण के सुंदर बालों की लटें उनके मुख मंडल के चारों तरफ इस तरह बिखर रही हैं जैसे शेषनाग फन फैलाकर उनके चेहरे को छाया प्रदान कर रहे हों।

इस तरह सूरदास ने इस पूरे पद में भगवान श्रीकृष्ण के बाल मनोहरी रूप तथा उनकी लीला का मनोहर वर्णन किया है।


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पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।

आशय स्पष्ट कीजिये- भाई-भाई मिल रहें सदा ही टूटे कभी न नाता, जय-जय भारत माता।

आशय स्पष्ट कीजिए। (i) गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है। (ii) आत्मबल वह जो विपत्ति का वीरता के साथ सामना करे।

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए − जो जितना बड़ा होता है उसे उतना ही कम गुस्सा आता है।

निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए − मुट्ठीभर आदमी और इतना दमखम। गर्द तो ऐसे उड़ रही है जैसे कि पूरा एक काफ़िला चला आ रहा हो मगर मुझे तो एक ही सवार नज़र आता है।

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