कवि का “आत्म प्रलय” कब होता है।​

कविता आत्म प्रलय तब होता है, जब वह प्रकृति के सुंदर दृश्यों को देखता है। कवि कहता है कि जब वह वन-उपवन, पर्वत, मैदान, कुंजों में बादलों को घुमड़-घुमड़ कर बरसते हुए देखता है। जब वह देखता कि चारों तरफ प्रकृति का रम्य मनमोहक वातावरण है, तब ऐसे सुंदर वातावरण को देखकर कवि आत्म विभोर हो जाता है।

इस मनमोहक वातावरण से आनंदित होकर कवि की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। तब कवि का ‘आत्म प्रलय’ हो जाता है। आत्म प्रलय से तात्पर्य स्वयं को भूल जाने से है और स्वयं के भूल जाने की इस प्रक्रिया में मन के भाव फूट पड़ते हैं। अर्थात व्यक्ति के अंदर ही एक हलचल मच जाती है।


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काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए : श्रमित स्वप्न की मधुमाया में, गहन विपिन की तरुछाया में, पथिक उनींदी श्रुति मे किसने, ये विहाग की तान उठाई।

आत्म परिचय’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।

‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

दिए गए काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या करें। मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न जग का ध्‍यान किया करता हूँ, जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते, मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

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