कविता आत्म प्रलय तब होता है, जब वह प्रकृति के सुंदर दृश्यों को देखता है। कवि कहता है कि जब वह वन-उपवन, पर्वत, मैदान, कुंजों में बादलों को घुमड़-घुमड़ कर बरसते हुए देखता है। जब वह देखता कि चारों तरफ प्रकृति का रम्य मनमोहक वातावरण है, तब ऐसे सुंदर वातावरण को देखकर कवि आत्म विभोर हो जाता है।
इस मनमोहक वातावरण से आनंदित होकर कवि की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। तब कवि का ‘आत्म प्रलय’ हो जाता है। आत्म प्रलय से तात्पर्य स्वयं को भूल जाने से है और स्वयं के भूल जाने की इस प्रक्रिया में मन के भाव फूट पड़ते हैं। अर्थात व्यक्ति के अंदर ही एक हलचल मच जाती है।
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