ढोलक की थाप मृत गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी। ढोलक एक संगीत कला थी। कला का मानव के जीवन से बेहद गहरा संबंध रहा है। जब मानव आदिम सभ्यता से निकलकर सामाजिक प्राणी बना तभी से उसके जीवन में कला का समावेश हो गया था।
प्राचीन काल के ऐसे अनेक पुरातात्विक उदाहरण मिलते हैं, जिनमें गुफा चित्रकारी, भित्ति चित्रकारी, मूर्तियों आदि के माध्यम से मानव ने अपने मन की भावनाओं को व्यक्त किया है। हर जाति-जनजाति, जनसमुदाय आदि में अनेक वाद्य यंत्रों, लोक नृत्यों, गीत-संगीत आदि का महत्व रहा है। विभिन्न तरह के शास्त्रीय नृत्य, लोकनृत्य, लोकगीत, संगीत आदि कला के साधन हैं जो हर जगह अलग-अलग रूप में प्रचलित हैं।
कला के बिना मानव का जीवन नीरस बन जाता है। इसीलिए अपने जीवन में रस घोलने के लिए ही मानव ने कला को अपनाया। कला उसके जीवन के कठिन समय में उसे प्रेरणा देने का कार्य करती है उसे शांति प्रदान करती है। उसके मन के तारों को झंकृत कर देती है वह उसे एवं रोमांच भी प्रदान करती है। कला मनुष्य के अंदर की क्रियात्मकता को निकालती है, जिससे मनुष्य नई-नई कलाकृतियों का सृजन करता रहता है, चाहे वह संगीत के स्वर हों, नए-नए चित्र हों, मूर्तियां हों, गीत हों, कविताएं हों, कहानियां हो,, उपन्यास हों अथवा कला का अन्य कोई साधन हो।
इसलिए कला से जीवन का बेहद गहरा संबंध रहा है। कला के बिना मानव एक सभ्य प्राणी के रूप में अधूरा है।
संदर्भ पाठ :
‘पहलवान की ढोलक’ : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12, पाठ-14, हिंदी आरोह 2)
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पहलवान की ढोलक : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12 पाठ-14) हिंदी आरोह 2