पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। वे स्थल इस प्रकार हैं…
1. अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।
इस पंक्ति में रात को मानवीय क्रिया करते हुए दर्शाया जा रहा है, यानी वह मानव की तरह आंसू बहा रही है।
2. मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव भयार्त्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था।
इस पंक्ति में गाँव को मानव की तरह क्रिया करते हुए दर्शाया गया है। गाँव मलेरिया और हैजे के डर से बच्चे की तरह थर-थर कांप रहा है।
3. आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा
इस पंक्ति में आकाश के तारे को मानवीय क्रिया करते हुए दर्शाया गया है। तारा मानव की तरह भावुक हो रहा है और आकाश से टूटकर धरती पर आकर गाँव वालों को सांत्वना देना चाहता है।
4. अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
इस पंक्ति में दूसरे तारों को मानवीय क्रिया करते हुए दर्शाया गया है। दूसरे तारे टूटे हुए तारे की असफलता और भावुकता पर उसका उपहास उड़ा रहे हैं।
5. रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती
इस पंक्ति में रात को मानव की तरह चलते हुए दर्शाया गया है। यानी रात बीत रही है और उसे इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि मानव चल रहा है।
संदर्भ पाठ :
‘पहलवान की ढोलक’ : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12, पाठ-14, हिंदी आरोह 2)
Partner website…
पाठ के अन्य प्रश्न
इस पाठ के सभी प्रश्नों के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें…
पहलवान की ढोलक : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12 पाठ-14) हिंदी आरोह 2