आशय स्पष्ट करें- आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

आशय : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने गाँव में फैली महामारी से उत्पन्न विभीषिका का वर्णन किया है। लेखक ने उस के संदर्भ में आकाश में टिमटिमाते तारों को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया है।

लेखक का कहना है कि गाँव के में फैली महामारी के कारण जिस तरह की भय और वेदना गाँव में व्याप्त थी, जिस तरह की विभीषिका फैली थी। गाँव के लोगों के उन हालातों को देखकर यदि आकाश का कोई तारा टूट कर उन्हें सांत्वना देने के लिए आना भी चाहता था तो आकाश से धरती आते-आते उसकी शक्ति और प्रकार दोनों ही समाप्त हो जाते थे। ऐसे में दूसरे अन्य तारे उसका मजाक उड़ाते प्रतीत होते थे। मानो वह टूटे हुए तारों की असफलता पर खिलखिला कर हंस रहे हों। वह टूटा हुआ तारा भावुक होकर गाँव के लोगों को सांत्वना देने के लिए गाँव आना चाहता था, लेकिन वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाता था और अपने साथी तारों के उपहास का पात्र बनता था।

लेखक ने यह सारी बातें महामारी के कारण उपजी विभीषिका के संदर्भ में प्रतीकात्मक रूप में कही हैं।

संदर्भ पाठ :

‘पहलवान की ढोलक’ : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12, पाठ-14, हिंदी आरोह 2)

 

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पाठ के अन्य प्रश्न

कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था- (क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है? (ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है? (ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?

महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

 

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पहलवान की ढोलक : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12 पाठ-14) हिंदी आरोह 2

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