गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान का ढोल क्यों बजता रहा?

ढोल लुट्टन पहलवान के जीवन का अभिन्न हिस्सा था। वह उसके लिए साहस एवं प्रेरणा भरने का कार्य करता था। अपनी कुश्ती लड़ते समय ढोल ने लुट्टन के अंदर उत्तेजना, रोमांच एवं साहस भरा था। वो उसके लिए जीवंतता का प्रतीक था। ढोल की थाप से उसे जीवन की प्रेरणा मिलती थी।

जब गाँव में महामारी फैली और गाँव के लोग महामारी से मरने लगे यहाँ तक कि लुट्टन के दोनों जवान बेटे भी महामारी की चपेट में आकर अपने प्राणों को गवां बैठे, तब भी लुट्टन पहलवान ढोल बजाता रहा, क्योंकि गाँव में महामारी फैलने और लोगों की मृत्यु के बाद गाँव में मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था। ढोल की आवाज से वो इस सन्नाटे को भंग करना चाहता था ताकि लोगों में जीवंतता का एहसास हो। लोग महामारी से लड़ने के लिए उठ खड़े हों।। लुट्टन ढोल की आवाज सुना कर लोगों के अंदर साहस भरना चाहता था। वह लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देना चाहता था। इसीलिए अपने बेटों की मृत्यु के बाद भी वह गाँव में निरंतर ढोल बजाता रहा।।

संदर्भ पाठ :
‘पहलवान की ढोलक’ : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12, पाठ-14, हिंदी आरोह 2)

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पाठ के अन्य प्रश्न

लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?

कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?

 

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पहलवान की ढोलक : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12 पाठ-14) हिंदी आरोह 2

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