कहानी में लुट्टन के जीवन में अनेक परिवर्तन आए थे। कहानी के आरंभ में ही बताया गया है कि लुट्टन के माता-पिता की मृत्यु तभी हो गई थी जब लुट्टन मात्र नौ साल का था। उसका पालन पोषण ब्रिटेन की विधवा सास ने किया था क्योंकि लुट्टन की शादी बेहद कम आयु में ही हो गई थी।
लुट्टन को बचपन से ही पहलवानी का वह शौक था और वह गाय का ताजा दूध पीकर गाय चराकर कसरत करता इस तरह उसका बदन खट्टा-कट्टा हो गया था। गाँव के लोगों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के कारण वह उनसे बदला लेने के लिए पहलवानी की तरफ बढ़ा। फिर वह पहलवानी कोई अपना पेशा बना लिया।
कहानी के आरंभ में मध्य भाग में बताया गया है कि जब तक किशोर था, तब उसने श्याम नगर के मेले में उसने मशहूर पहलवान चांद सिंह को हराकर दंगल जीता और स्वयं बेहद मशहूर हो गया। इस तरह उसने राज परिवार में शाही पहलवान का दर्जा पा लिया और राजा के मनोरंजन के लिए पहलवानी करने लगा। राजाश्रय पाकर उसका जीवन सुखी हो गया था।
कहानी आगे गुजरती रही और उनके दोनों बेटे भी पहलवानी में उतर पड़े। इस तरह लुट्टन का जीवन ठीक-ठाक चल रहा था कि राजा की मृत्यु हो गई।
जहाँ राजा को पहलवानी और दंगल आयोजित करवाने का बहुत शौक था, वहीं राजा के बेटे को पहलवानी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। उसने राजा बनते ही तुरंत लुट्टन को राज-दरबार से निकाल दिया। इस तरह लुट्टन के बुरे दिन शुरू हो गए। अब लुट्टन को खाने के लाले पड़ गए थे। वह अपने बेटों सहित गाँव लौट गया। गाँव में महामारी पहली और महामारी की चपेट में उसके दोनों जवान बेटे भी आ गए। जवान बेटों अंतिम संस्कार के बाद कुछ दिन बाद उसने भी कष्ट पूर्ण हालत में अपने प्राण गवा दिए।
इस तरह का लुट्टन के जीवन का पूर्वार्द्ध संघर्ष वाला, मध्यार्द्ध सुखों वाला और उत्तारार्द्ध बेहद कष्ट में बीता।
संदर्भ पाठ :
‘पहलवान की ढोलक’ : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12, पाठ-14, हिंदी आरोह 2)
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पाठ के अन्य प्रश्न
लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?
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पहलवान की ढोलक : फणीश्वरनाथ रेणु (कक्षा-12 पाठ-14) हिंदी आरोह 2