युवा बांस लचीला होता है, जैसा मोड़ा वैसा मुड़ जाता है। उसी प्रकार युवा पीढ़ी बांस के समान की होती है। युवा पीढ़ी का मन कोमल होता है, वह शीघ्र ही बातों के प्रभाव में आ जाती है। उसे जैसा ढालना चाहो वैसा ढल जाती है। जबकि परिपक्व व्यक्ति बूढ़े बांस के समान होता है, इस तरह बूढ़ा सख्त जाता है और ज्यादा मोड़ने पर टूट जाता है। उसी तरह परिपक्व व्यक्ति जीवन के अनुभवों को सहकर कर इतना सख्त हो चुका होता है कि उसे आसानी से किसी बात के अनुकूल डाला नहीं जा सकता। युवा पीढ़ी को जीवन के कई अनुभव नहीं हुए होते हैं। वह अभी विकास की प्रक्रिया में होती है, इसलिए उसके मन पर अपने आसपास के वातावरण और बातों का अधिक गहरा प्रभाव पड़ता है और वह परिस्थितियों के अनुसार जल्दी ढल जाती है।
हमने देखा है कि जितने भी आंदोलन वगैरह हुए हैं। उनमें युवाओं की भूमिका अधिक रही है, युवाओं के कारण ही आंदोलन सफल हुए हैं क्योंकि युवाओं को किसी भी बात के लिए आसानी से एक दिशा में मोड़ा जा सकता है। इसके लाभ भी हैं और हानि भी है। युवाओं को आसानी से लाया लाया जा सकता है और उन्हें बरगलाया जाता है। वहीं युवाओं को एक सही दिशा दी जाए तो वह देश और समाज के हित में अपना पूर्ण योगदान दे सकते हैं।
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