यशोधर बाबू द्वारा विपरीत परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास का परिणाम यह होता है कि उनके मन में एक अंतर्द्वंद चलता रहता है।
यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे। उनके विचार अपनी पीढ़ी के समय के विचार थे। उनकी संतानों नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती थी और वह नए विचारों के अनुसार चलती थीं। यशोधर बाबू अब अपने जीवन के ढलती हुई शाम से गुजर रहे थे। जबकि उनकी संतान का समय आधुनिक समय था, इसलिए उनके घर की परिस्थितियां संतान के अनुसार निर्धारित हो रही थीं। यशोधर बाबू बदलती परिस्थितियों में सहज अनुभव नहीं कर पा रहे थे। वह अपने मूल्यों और अपने उसूलों के अनुसार जीना चाहते थे जबकि उनकी संतान अपने नए विचारों के अनुसार चलना चाहती थीं।
यशोधर बाबू का समय पीछे छूट गया था। अब वह नई परिस्थिति के साथ सामंजस्य बैठाने का प्रयास कर रहे थे। ना ही वह अपनी पुराने सिद्धांतों और विचारों को एकदम से छोड़ सकते थे और ना ही वह पूरी तरह नए विचारों को एकदम से अपना सकते थे। इसी कारण सामंजस्य बिठाने की इस प्रक्रिया में उनके मन में एक अंतर्द्वंद चलता रहता था।
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यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है, लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं ऐसा क्यों?