पानी का संकट वर्तमान स्थिति में भी बहुत गहरा आया हुआ है। इसी तरह के पर्यावरण से संबंध अन्य कई तरह के संकट हैं, जो हमारे पर्यावरण और मानव के अस्तित्व को चुनौती दे रहे हैं। यह सब मानव द्वारा किए गए अटपटे क्रियाकलापों के कारण ही उत्पन्न हुए हैं।
इस तरह के कुछ संकट इस प्रकार हैं…
शुद्ध वायु का संकट : शुद्ध वायु का संकट आज के समय में एक बेहद गंभीर संकट बन चुका है। नगरों महानगरों की वायु अधिक प्रदूषित हो गई है कि लोगों को सांस लेना मुश्किल हो रहा है और लोग अनेक तरह की साँस से संबंधित बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। कल कारखानों द्वारा निकलने वाले जहरीले धुएँ, वाहनों द्वारा निकलने वाले विषैले धुएँ आदि से पूरा का पूरा वायुमंडल अत्यधिक प्रदूषित हो चला है।
वनों की कमी का संकट : मानव निरंतर वृक्षों की कटाई में लगा है और कंक्रीट के जंगल फैलाता जा रहा है, जिससे हरे-भरे जंगलों की कमी होती जा रही है। इस कारण हरियाली देखने को दुर्लभ होती जा रही है। इससे वातावरण का संतुलन भी बिगड़ रहा है।
नदियों के अस्तित्व का संकट : मानव द्वारा किए गए अनेक तरह के व्यवसाय और विकास संबंधी गतिविधियों के कारण नदियां पूरी तरह दूषित हो हो गई हैं। बहुत सी नदियां अपने अस्तित्व की समाप्ति की ओर हैं या हो चुकी हैं। इनका जल इतना जहरीला हो चुका है कि उसमें उसे पीना तो दूर स्नान तक नहीं कर सकते।
ग्लोबल वार्मिंग का संकट : ग्लोबल वार्मिंग के लिए आज के समय की बड़ी चुनौती बना है। निरंतर पिघलती बर्फ और बढ़ती जा रही गर्मी के कारण पूरी पृथ्वी का ही मौसम अनियमित होता जा रहा है, जो आगे भविष्य के लिए एक खतरनाक विनाश का संकेत दे रहा है।
संदर्भ पाठ :
‘काले मेघा पानी दे’ लेखक धर्मवीर भारती (कक्षा-12, पाठ-13, हिंदी आरोह 2)
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पाठ के अन्य प्रश्न
त्याग तो वह होता…… उसी का फल मिलता है। अपने जीवन के किसी प्रसंग से इस सूक्ति की सार्थकता समझाइए।
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काले मेघा पानी दे : धर्मवीर भारती (कक्षा-12 पाठ-13)