त्याग तो वह होता है…..उसी का फल मिलता है। पाठ में दिए गए इस संदर्भ में हम अपने जीवन का किसी प्रसंग का वर्णन करें तो हमारे पड़ोस में एक पति पत्नी रहते हैं, जो बेहद दयालु एवं धार्मिक स्वभाव के हैं। पत्नी रोज सुबह 10-12 लोगों का खाना बनाती है और पति दोपहर में अपनी दुकान से आते हैं। उसके बाद दोनो पति-पत्नी साथ में वह खाना लेकर आस पास की बस्ती में या किसी मंदिर के बाहर बैठे भिखारी आदि को देकर आते हैं। यह उनका रोज का कार्य है।
पति का कार्य कामकाज बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन उनके अंदर त्याग की भावना है। वह अपनी सीमित आय में भी यथासंभव असहाय लोगों का पेट भरने का प्रयास करते हैं। त्योहारों आदि के अवसर पर वह कुछ कपड़े आदि भी बांटते रहते हैं। हमने उन्हें इस तरह के अनेक परोपकार के कार्य करते देखा है। उनसे पूछने पर पता चला कि यह कार्य करने में उन्हें बड़ा ही आनंद आता है। उनका घर साधारण है और वे अपनी सारी कमाई लगभग इसी तरह खर्च कर देते हैं। उनके साधारण से घर में बहुत अधिक सुविधाएं ना होकर भी असीम शांति और सुकून है ।यह शायद उनके द्वारा किए गए त्याग और परोपकार के कार्यों के कारण ही है।
इसीलिए सच्चा त्याग तो वह होता है जो अपनी सुविधा को ध्यान में न रखकर किया जाए। जो अपने हित से ऊपर दूसरे के हित को समझें और उसके लिए कुछ त्याग करे, वही सच्चा त्याग है।
संदर्भ पाठ :
‘काले मेघा पानी दे’ लेखक धर्मवीर भारती (कक्षा-12, पाठ-13, हिंदी आरोह 2)
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काले मेघा पानी दे : धर्मवीर भारती (कक्षा-12 पाठ-13)