बंगला नंबर 15,
मयूर विहार,
नई दिल्ली ।
प्यारे बेटे,
शुभाशीष !
मैं यहाँ कुशल मंगल से हूँ और ईश्वर से तुम्हारी कुशलता की मंगल कामना करती हूँ । बहुत समय हो गया है तुम मिलने नहीं आए और ना ही तुम्हारा कोई पत्र आया । बहु और बच्चे सब ठीक तो है ना । पत्र लिखकर जरूर बताना ।
मैं जानती हूँ कि तुम काम में व्यस्त होंगे इस कारण मुझसे मिलने नहीं आ सके । तुम सब की बहुत याद आती है । कभी हो सके तो समय निकाल कर बहु और बच्चों को लेकर मुझसे मिला देना । ना जाने साँसों की ये डोर कब टूट जाए ।
मैंने तुम्हें पहले भी पत्र लिखा था । उस समय हमारे आश्रम में दीवाली का त्योहार मनाया जा रहा था और सब के बच्चे उनसे मिलने आए थे । लेकिन शायद तुम्हें पत्र ना मिला हो । तुम्हारे द्वारा भेजे गए पैसे मुझे हर महीने मिल जाते है लेकिन बेटा कभी थोड़े समय के लिए ही सही मुझसे आकर मिल जाया करो । माँ सुनने को मेरे कान तरस गए हैं ।
अपने पोते और पोती को देखने के लिए मेरी आंखें तरस रही हैं । इससे पहले की ये आँखें हमेशा के लिए बंद हो जाए अपनी माँ से मिलने जल्दी आना । मैं बेसब्री से तुम सब का इंतज़ार कर रही हूँ । पत्र मिलते ही उत्तर देना और हो सके तो एक बार आकर अपनी माँ को मिल जाना । तुम्हारे पत्र के इंतजार में ।
तुम्हारी माँ ।
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