फिल्मों का समाज का समाज की उन्नति में विशेष योगदान हो सकता है ।
यदि फिल्म निर्माता केवल स्वार्थी न होकर जन-कल्याण के लिए शिक्षाप्रद फिल्में बनाए तो चलचित्रों से अच्छा मनोरंजन एवं शिक्षा का दूसरा कोई माध्यम नहीं है । हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि हम अधिक फिल्में न देखकर कुछ चुनिन्दा तथा अच्छी एवं ज्ञानवर्धक फिल्में ही देखें, जिससे हमारा मनोरंजन भी होगा तथा ज्ञानवर्धक भी । आज हिंदी फिल्में, हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति का लोकदूत बनकर विश्व स्तर पर हिंदी की पताका फहरा रही है ।
फिल्में शिक्षा एवं मनोरंजन दोनों लक्ष्यों की पूर्ति करने में सहायक है । देश की जिन सामाजिक प्रथाओं, कुरीतियों, अच्छाइयों, बुराइयों, प्राचीन संस्कृतियों आदि के बारे में हमने केवल पढ़ा है या किसी बुजुर्ग से सुना है; आज हम फिल्मों के द्वारा उनके बारे में देख सकते हैं और सही गलत की पहचान कर सकते हैं । हमें फिल्मों द्वारा इतिहास, भूगोल, समाज, विज्ञान, संस्कृति आदि का भी भरपूर ज्ञान प्राप्त हो सकता है ।
आज फिल्म निर्माताओं तथा राष्ट्र के नायकों और समाज के पथ प्रदर्शकों को इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा, कि इस लोकप्रिय माध्यम का उपयोग राष्ट्रीय भावना के निर्माण के लिए किया जाए ।
देश में बढ़ती हुई अराजकता तथा अनेक अपराधों और अनैतिक कार्यों को फिल्मों द्वारा दिखाकर इसे जनता के सम्मुख रख कर इससे दूर रहने की प्रेरणा दी जा सकती है । युवा पीढ़ी इससे सृजनात्मक पक्ष को सीख सकती है, यदि इसके निर्माता इस तथ्य को भी समझें कि राष्ट्र और जन-जीवन के प्रति भी वे उत्तरदायी हैं ।
अच्छी और राष्ट्रीय स्तर की फिल्मों को प्रोत्साहन देना तथा फार्मूला फिल्मों को प्रतिबंधित करना सरकार का कर्तव्य है । भारतीय संस्कृति के आदर्श तथा वर्तमान विश्व की स्थिति को सिनेमा प्रभावी ढंग से लोगों तक प्रेषित करें, तो इससे शांति और समृद्धि, सुख और समता के आदर्श को स्थापित किया जा सकता है ।
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