सेवा में,
संपादक महोदय,
हिंदुस्तान टाइम्स,
दिल्ली
विषय : जीवन में बढ़ रही हिंसा पर अपने विचार बाबत ।
महोदय,
मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार पत्र का एक सुधि पाठक हूँ । जब से मैं देश समाज के प्रति जागरूक हुआ हूँ तबसे हिन्दुस्तान की पत्रकारिता से पभावित होता रहा हूँ । मैं जीवन में बड़ रही हिंसा पर अपने विचार आपके समाचार पत्र के माध्यम से जनता के समक्ष लाना चाहता हूँ ।
दरअसल सामाजिक हिंसा के कई रूप हैं, जिनमें से कुछ घरेलू हिंसा, नस्लवादी और / या होमोफोबिक हमले, आतंकवादी हमले, अपहरण, हत्याएं या हत्याएं, यौन हमले, बर्बरता, स्कूल या काम उत्पीड़न या किसी अन्य प्रकार की हिंसा हैं।
दुनिया हिंसा की लपटों से झुलस रही है । लैंगिक हिंसा के प्रकार लैंगिक हिंसा कई प्रकार से हमारे आस-पास घटित होती है । यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि एक महिला अपने जन्म से लेकर उम्र के हर पड़ाव में अलग-अलग प्रकार से लैंगिक हिंसा का सामना करती है । कन्या भ्रूण हत्या, यौन शोषण, एसिड अटैक आदि ।
महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा- किसी महिला को शारीरिक पीड़ा देना जैसे- मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, किसी वस्तु से मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक पीड़ा देना,महिला को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिये विवश करना, बलात्कार करना, दुर्व्यवहार करना आदि । बच्चों के विरुद्ध घरेलू हिंसा ।
हिंसा का बढ़ता प्रभाव मानवीय चेतना से खिलवाड़ करता है और व्यक्ति स्वयं को निरीह अनुभव करता है । इन स्थितियों में संवेदन हीनता बढ़ जाती है और जिन्दगी सिसकती हुई प्रतीत होती है ।
अतः आपसे विनम्र आग्रह है कि आप मेरी इन विचारों को अपने समाचार पत्र में
प्रकाशित करेंगे ।
धन्यवाद सहित ।
निवेदक,
वेणु राजगोपाल ।
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