संताप और अवचेतन के कवि के रूप में सीताकांत महापात्र ने ख्याति प्राप्त की है।
सीताकांत महापात्र ने संताप और अवचेतन के कवि के रूप में जाने जाते हैं। वह मुंलतः उड़िया भाषा के कवि थे। उनकी कविताओं में अवचेतन मन को जब झकझोरने वाली प्रकृति का वर्णन हुआ है। उनकी कविताओं में समुद्र के आसपास के प्राकृतिक बिंब है। समुद्र के आसपास के वातावरण को उन्होंने जीवन और मृत्यु की शाश्वत अनुभूति के साथ जोड़ा है। उनकी कविताओं में आकाश, अंधकार, सांझ, सवेरे, सूर्योदय, सूर्यास्त, समुंदर, यात्रा, मृत्यु दिशाएं आदि जैसे शब्द बार-बार प्रयुक्त हुए हैं।
उनकी कविताओं में अवचेतन मन को जब झकझोरने वाली वाली ऐसी प्रवृत्ति है कि कविता को समझने के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता पड़ती है। जहाँ एक तरफ उनकी कविताओं में मृत्युबोध का शाश्वत चिंतन मिलता है, तो वहीं दूसरी तरफ उनकी कविताओं में जीवन की मधुर झंकार भी सुनाई देती है। जहाँ उनकी कविताओं में दुख एक अंधकार के रूप में प्रकट होता है तो वही आशा रूपी सुबह भी उनकी कविताओं में दृष्टिगोचर होती है। इसी कारण उन्हें संताप एवं अवचेतन के कवि के रूप में ख्याति प्राप्त हुई है।
सीताकांत महापात्र को सन 1993 में भारतीय साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है। उनकी कविताओं का उड़िया भाषा से हिंदी भाषा में अनुवाद राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने किया है।
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