प्रिय अनुज,
स्नेह !
मैं यहाँ पर कुशलता से हूँ और आशा करता हूँ कि तुम भी कुशलता से होंगे । माता जी का पत्र मिला था उन्होंने बताया कि तुम अपनी कक्षा में प्रथम आए हो और अपनी वार्षिक परीक्षाओं के लिए बहुत मेहनत कर रहे हो । यह बहुत अच्छी बात है लेकिन तुम अपनी सेहत का भी ख्याल रखो ।
मैं बड़ा भाई होने के नाते तुम्हें बताना चाहता हूँ कि तुम प्रातः काल भ्रमण की आदत डालो । प्रातः काल भ्रमण उनके लिए अधिक उपयोगी है, जिन्हें योगासन अथवा अन्य किसी व्यायाम तथा खेल-कूद के लिए समय नहीं मिल पाता है ।
मैं जनता हूँ कि तुम्हें पढ़ाई के कारण व्यायाम करने और खेलने का भी वक्त नहीं मिलता है इसलिए तुम्हें प्रातः काल भ्रमण करना चाहिए । प्रातःकालीन भ्रमण से अनेक लाभ हैं । यह प्रकृति प्रदत्त एवं निशुल्क औषधि है, जिसका अमीर और गरीब, सभी एक समान रूप से प्रयोग करने में आज़ाद है ।
प्रातःकाल की वायु स्वास्थ्यवर्धक होती है । अतः ऐसे समय भ्रमण करने से मनुष्य के अनेक रोग स्वतः ही दूर हो जाते हैं । शरीर बलिष्ठ और सुन्दर बनता है । नई स्फूर्ति प्राप्त होती है और आलस्य दूर हो जाता है । मस्तिष्क को शान्तिः और शक्ति मिलती है ।
परिणामस्वरूप स्मरण शक्ति का विकास होता है । भ्रमण करते समय हमें अपनी गति को बहुत तीव्र नहीं रखना चाहिए । प्रातः कालीन शीतल वायु फेफड़ों के लिए बहुत अच्छी होती है ।
प्रातः काल घूमने से आपको शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है क्योंकि सुबह वायु में शुद्ध आक्सीजन होती है । प्रातः काल भ्रमण करना एक प्रकार का प्राणायाम का ही एक अंग है । जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की आवश्यकता होती है ।
प्रातः काल भ्रमण करने से व्यायाम भी हो जाता है । सुबह घूमने से मनुष्य के प्रत्येक शरीर में गति उत्पन्न हो जाती है । प्रातः काल के खुले वातावरण में टहलने पर मन प्रसन्न होता है, तन में स्फूर्ति आती है जिससे दिन भर चाहे हम कुछ भी काम करें, उसे शांति, प्रसन्नता तथा साहस से कर सकते हैं ।
चलो अब मैं पत्र समाप्त करता हूँ । शेष मिलने पर ।
तुम्हारा बड़ा भाई,
राम ।
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