सेक्टर – 45,
मयूर विहार,
नई दिल्ली
प्रिय अनुज,
स्नेह !
हम सब यहाँ पर सकुशल हैं और आशा करता हूँ कि तुम भी कुशलता से होंगे । कल तुम्हारे प्रधानाचार्य का पत्र मिला पढ़ कर बहुत दुख हुआ कि अर्द्धवार्षिक परीक्षा में तुम्हें केवल 40% अंक ही मिले हैं और तो और तुम आजकल कक्षा मैं भी कम ही दिखाई देते हो ज्यादातर तुम्हारा समय स्कूल कैन्टीन में ही गुज़रता है ।
कक्षा कार्य भी पूरा नहीं होता है । उनका कहना है कि तुम बुरी संगती में पढ़ गए हो और इसका असर तुम्हारी पढ़ाई पर पढ़ रहा है । तुम्हारा बड़ा भाई होने के नाते मैं तुम्हें समझना चाहता हूँ कि बुरी संगत बड़ी संक्रामक होती है, सरलता से उत्पन्न की जाती है, तेजी से फैलती है, यह खरपतवार की तरह होती है जैसे खरपतवार फसल को सिमटा देते हैं । वैसे ही यह बच्चे-बड़े सब को निगल लेती है ।
इसके विपरीत अच्छाई देर से पनपती है, धीमे-से फैलती है, नीम समान कड़वी लग सकती है क्योंकि अच्छे लोग जबरन हाँ में हाँ नहीं मिलायेंगे, वे विश्लेषण करते हुए सुधार करना चाहेंगे फिर चाहे वह किसी को नापसंद क्यों न हो ।
गुरु भी अनुशासन इत्यादि के कारण कठोर लगते है किन्तु जीवन-सुधार के लिए औषधि का कार्य करता है । इसलिए ‘अनुकूलता ढूँढने की चाह में कुसंगति के पास व सुसंगति से दूर न जाओ । ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थ, तुलना करने, पीठ पीछे निन्दा, बातें घुमाने अथवा बढ़ाने -घटाने, झूठ बोलने, उपभोक्ता वादी, बाज़ार वादी, भौतिक वादी, कीमत लगाने इत्यादि मन दोषों से ग्रसित लोग जब आपसे बात करें तो एक निश्चित दूरी बनाकर रखो ।
यदि तुम किसी प्रकार की कुसंगति में उलझ ही चुके हों तो कभी भी ऐसा न सोचना कि अब कुछ नहीं हो सकता/अब तो बहुत दूर निकल गए हो और वापसी सम्भव नहीं । वास्तव में ‘जब जागो तभी सवेरा’ के तहत वहीं से पलटकर सही दिशा में लौट आओ , ईश्वर कभी शरणागत की अनदेखी नहीं करता ।
बाकी तुम समझदार हो, तुम जानते हो कि मैं तुम्हें क्या समझाना चाहता हूँ । हम सभी को तुम से बहुत सी उम्मीदें हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उँ उम्मीदों पर खरा उतरोगे । पत्र मिलते ही उत्तर जरूर देना । तुम्हारे पत्र के इंतजार में ।
तुम्हारा बड़ा भाई,
ईशान ।
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