‘बाजार दर्शन’ नामक इस पाठ में लेखक ने ऐसी अनेक बातें कहीं हैं जो वह अपने विषय के बारे में कहना चाहता है, लेकिन पाठ में उसने बीच-बीच में ऐसे कई बार के उपयोग प्रयोग में लाए हैं, जो वह सीधे पाठक वर्ग को संबोधित करते हुए कह रहा है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करते हुए ऐसे वाक्य को कहने का लेखक का मुख्य उद्देश्य अपने रचना के साथ पाठकों के लगाव को बनाए रखने होता है। वह अपनी रचना को ऐसे दो चार वाक्य शैली द्वारा सरस बना देता है, जिससे पाठक वर्ग रचना के साथ जुड़ा रहता है, जब किसी रचना में शब्द बहुत अधिक भारी हो जाते हैं और नीरसता आने लगती है, तब लेखक ऐसे वाक्यों का उपयोग करके पाठक वर्ग को सरसता प्रदान करते हैं और इस तरह वह पूरी रचना को पाठकों से पढ़वा लेते हैं,
ऐसे ही कुछ बात पांच वाक्य इस प्रकार हैं…
- लेकिन ठहरिए। इस सिलसिले में एक भी महत्त्व का तत्त्व है, जिसे नहीं भूलना चहाइए।
- कहीं आप भूल न कर बैठिएगा।
- यह समझिएगा कि लेख के किसी भी मान्य पाठक से उस चूरन वाले को श्रेष्ठ बताने की मैं हिम्मत कर सकता हूँ।
- पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए।
- यह मुझे अपनी ऐसी विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं।
पाठ के बारे में…
यह पाठ जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखित एक निबंध है, जिसमें उन्होंने बाजारवाद और उपभोक्तावाद की विवेचना की है। इस निबंध के माध्यम से उनकी गहरी वैचारिकता और सहायक सुलभ लालित्य का प्रभाव देखने को मिलता है। उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद पर पर व्यापक चर्चा के परिप्रेक्ष्य में यह पाठ एक महत्वपूर्ण निबंध है। कई दशक पहले लिखा गया जैनेंद्र कुमार का यह निबंध आज भी अपने लिए बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद के संदर्भ में पूरी तरह प्रासंगिक है और बाजारवाद की मूल अंतर्वस्तु को समझने के मामले में बेजोड़ है।जैनेंद्र कुमार हिंदी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने अनेक कहानियां एवं निबंधों की रचना की। उनका जन्म 1905 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था।
उनकी प्रमुख रचनाओं में अनाम, परख, स्वामी, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, एक रात, दो चिड़िया, फांसी, नीलम देश की राजकन्या, प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच-विचार, समय और हम, मुक्तिबोध नामक उपन्यास तथा पाजेब नामक कहानी संग्रह हैं।
उन्हें साहित्य अकादमी तथा भारत भारती पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार द्वारा द्वारा पद्म भूषण सम्मान भी मिल चुका है। उनका निधन सन 1990 में हुआ।
संदर्भ पाठ :
बाजार दर्शन, लेखक : जैनेंद्र कुमार ( कक्षा – 12, पाठ – 12, हिंदी स्पर्श 2)
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