आपने समाचारपत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिन्दुओं के सन्दर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया – 1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु 2. विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य 3. विज्ञापन की भाषा।

हमने भी अनेक समाचार पत्रों, टीवी आदि पर अनेक तरह के विज्ञापन देखे हैं जिनमें ग्राहकों को अलग अलग तरीके से लगाने का प्रयास किया जाता रहा है। हम भी ऐसे कई बार किसी न किसी विज्ञापन से प्रभावित होकर कोई ना कोई वस्तु अवश्य खरीदे हैं। हमने कभी किसी फिल्मी सितारे अथवा खेल सितारे द्वारा किए जाने वाले विज्ञापन से प्रभावित होकर कोई वस्तु खरीदी, तो कभी किसी विज्ञापन के निरंतर प्रसारित होने और रोज देखते रहने से उस विज्ञापन के प्रभाव में आकर वस्तु खरीदी। कभी-कभी हमें विज्ञापन की भाषा की रोचक लगी कि हम उस वस्तु की ओर आकर्षित हो गए।

1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु

विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय वस्तु याद आते रहे, जिसके कारण संबंधित उत्पाद खरीदने की ओर आकर्षित हुए।

2. विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य

विज्ञापन में आए पात्र जैसे कि कोई फिल्मी सितारे अथवा खेल सितारे अथवा कोई प्रसिद्ध व्यक्ति यदि किसी उत्पाद का विज्ञापन करता है तो हम भी उसको खरीदने के लिए लालायित हो जाते हैं। इसका औचित्य इतना ही होता है कि हमारे पसंदीदा सितारे ने उस उत्पाद का विज्ञापन किया है तो हम भी उसकी नकल करने लगते हैं। भले ही हमें उत्पाद उपयोगी के बारे में ज्यादा न पता हो।

3. विज्ञापन की भाषा।

कभी-कभी देश में विज्ञापन को किसी रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे हम उस उत्पाद को खरीदने के लिए आकर्षित हो जाते हैं।

पाठ के बारे में…

यह पाठ जैनेंद्र कुमार द्वारा लिखित एक निबंध है, जिसमें उन्होंने बाजारवाद और उपभोक्तावाद की विवेचना की है। इस निबंध के माध्यम से उनकी गहरी वैचारिकता और सहायक सुलभ लालित्य का प्रभाव देखने को मिलता है। उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद पर पर व्यापक चर्चा के परिप्रेक्ष्य में यह पाठ एक महत्वपूर्ण निबंध है। कई दशक पहले लिखा गया जैनेंद्र कुमार का यह निबंध आज भी अपने लिए बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद के संदर्भ में पूरी तरह प्रासंगिक है और बाजारवाद की मूल अंतर्वस्तु को समझने के मामले में बेजोड़ है।जैनेंद्र कुमार हिंदी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार रहे हैं, जिन्होंने अनेक कहानियां एवं निबंधों की रचना की। उनका जन्म 1905 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था।
उनकी प्रमुख रचनाओं में अनाम, परख, स्वामी, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी, एक रात, दो चिड़िया, फांसी, नीलम देश की राजकन्या, प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, सोच-विचार, समय और हम, मुक्तिबोध नामक उपन्यास तथा पाजेब नामक कहानी संग्रह हैं।

उन्हें साहित्य अकादमी तथा भारत भारती पुरस्कार जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार द्वारा द्वारा पद्म भूषण सम्मान भी मिल चुका है। उनका निधन सन 1990 में हुआ।

संदर्भ पाठ :

बाजार दर्शन, लेखक : जैनेंद्र कुमार ( कक्षा – 12, पाठ – 12, हिंदी स्पर्श 2)

 

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पाठ के अन्य प्रश्न

प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के हामिद और उसके दोस्तों का बाज़ार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।

विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फिल्म बनी है) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे कि भगतजी की सन्तुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं? गड़रिया बगैर कहे ही उसके दिल की बात समझ गया, पर अंगूठी कबूल नहीं की। काली दाढ़ी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुए बोला-‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूँ। मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अंगूठी मेरे किस काम की। न यह अंगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़ें भी मेरी तरह गँवार हैं। घास तो खाती हैं, पर सोना सूंघती तक नहीं। बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।’ – विजयदान देथा

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